शुकुल बाजार (अमेठी) : सिधौली ग्राम पंचायत के बाहुबली, आरोपी प्रधान ने अपने समर्थकों के साथ पहले तो पत्रकार सुरजीत यादव और उनके भाई सुरेश यादव पर जानलेवा हमला किया। जब मामला पुलिस तक पहुंचा तो उल्टे पत्रकार के ही खिलाफ कोर्ट को रिपोर्ट दे दी गई। पीड़ित पत्रकार का आरोप है कि सीओ ने सही रिपोर्ट लगाने के बदले 50 हजार रुपए मांगे थे। न देने पर उल्टी चाल चल दी।
घटनास्थल का एक दृश्य, जिसमें पुलिस के सामने लाठियों से लैस दिख रहा हमलावर पक्ष
पत्रकार सुरजीत यादव
गौरतलब है कि विगत 02 अप्रैल 2015 को थानाक्षेत्र के एक दैनिक अखबार के पत्रकार सुरजीत यादव और उनके भाई सुरेश यादव सिधौली ग्राम पंचायत में आधार कार्ड बनवाने गये थे। वहाँ सुरजीत यादव की खबरों से रंज रखते हुए प्रधान पक्ष की ओर से जानलेवा हमला किया गया था, जिसमें सुरजीत यादव ने घटना के 45 मिनट बाद आरोपी भगौती प्रसाद दुबे और प्रधानपुत्र रविशंकर, अजयशंकर, विजय शंकर और दिवाकर के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत करवाया था । घटना के 3 घण्टे बाद पत्रकार सुरजीत यादव और उनके पिता, भाई के खिलाफ फर्जी एस सी एसटी एक्ट दर्ज किया गया था ।
इस पूरे घटनाक्रम की विवेचना मुसाफिरखाना क्षेत्राधिकारी सुमित शुक्ला और शुकुल बाजार के एसएसआई रोहित शुक्ला कर रहे थे । पत्रकार सुरजीत यादव ने सशपथ प्रार्थनापत्र देकर सीओ सुमित शुक्ला से न्यायिक जांच की मांग की तो उनसे 50 हजार रूपये की मांग की गयी। जब सुरजीत यादव इतनी रकम नहीं दी तो उनके खिलाफ फर्जी आरोप-पत्र कोर्ट में दाखिल किया गया । सुरजीत यादव का कहना है कि सीओ द्वारा घटना स्थल पर जाकर विवेचना नहीं की गयी बल्कि धन बल और ब्राह्मणवाद के चलते टेबलवर्क कर फर्जी आरोप-पत्र कोर्ट में दाखिल किया गया ।
सुरजीत यादव का आरोप है कि प्रधान व प्रधानपुत्रों द्वारा उनको लगातार सिर कलम करने की धमकियां दी जा रही हैं। सुरजीत ने मुहिम चलाकर प्रधान के खिलाफ खबरें प्रकाशित की थीं और जनसूचनाएं भी माँगी थीं । सुरजीत के मुताबिक प्रधान से उनकी कोई व्यक्तिगत शत्रुतता नहीं। खबरों से परेशान प्रधान सूचनाओं को व्यक्तिगत रूप से लेते हुए जानलेवा हमला किया। सीओ ने धनबल के दबाव में दंबग प्रधान की मदद करते हुए गलत चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी।
यहाँ खास बात यह है कि सुरजीत यादव को जिस प्रधान द्वारा मारा गया और घटना के समय की जो तस्वीर है, उसमें प्रधान के हाथ में लाठी होने के बावजूद पुलिस ने प्रधान का नाम ही आरोप पत्र से गायब कर दिया। दूसरी बात, सुरजीत पक्ष के रूपनरायन पासी को भी गम्भीर चोटे आयी थीं। उसकी ओर से भी पुलिस ने मुकदमा दर्ज नहीं किया । जब रूपनरायन कोर्ट की शरण में गया तो सीजीएम कोर्ट ने रूपनरायन के सक्ष्यों के आधार पर विवेचना करने को आदेशित किया परन्तु यहाँ भी पुलिस ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए दबंग प्रधान की मदद की । पुलिस लगातार प्रधान की मदद कर रही है और विषेश समुदाय से होने के नाते समाज को आईना दिखाने वाले पत्रकार को न्याय नहीं मिल पा रहा है । पुलिस के मुताबि जिस परशुराम द्वारा मुकदमा दर्ज करवाया गया है, उसके गवाह भी खुद प्रधान के गांव के हैं।