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गुजरात

अमित शाह और शरद पवार की मीटिंग में क्या ‘पका’?

Pankaj Chaturvedi-

‘खेला’ महाराष्ट्र का, देशमुख पर चुप्पी और पर्दे के पीछे…. परसों रात शरद पवार जयपुर एक निजी समारोह में शामिल होने आये, वे निजी विमान से थे — फिर उनका जहाज रात बारह बजे अहमदाबाद हवाई अड्डे पर उतरा, वहां पर पूर्व उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल पहले से थे — दो गाड़ियों में ये लोग अहमदाबाद के बाहरी हिस्से में एक फ़ार्म हॉउस में पहुंचे –केद्रीय गृह मंत्री अमित शाह वहां पहले से थे — एक घंटा बातचीत हुयी और श्री शाह पूर्वोत्तर भारत के लिए निकल गए, पटेल अपने घर और पवार मुम्बई।

महाराष्ट्र की सत्ता पाने के लिए व्याकुल भाजपा पहले भी ऐसे ही आधी रात में एक शपथ ग्रहण समारोह करवा चुकी है लेकिन उस समय शिव सेना और राकपा को साथ लाने में इसी फ़ार्म हाउस की भूमिका थी।

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जान लें, देश के साथ साथ महाराष्ट्र में शासन कौन करेगा, इसका निर्णय काफी कुछ उसी एन्तेलिया बिल्डिंग से होता है जिसके आधे किलोमीटर दूर नागपुर के कारखाने से लायी गयी जिलेटिन छड़ों को कर सारी पटकथा लिखी गयी। जान लें उद्धव ठाकरे भी उनकी मर्जी से ही कुर्सी पर हैं। तभी उन्हें चुग्गा बनाया गया।

मु्बई के पुलिस कमिश्नर परमवीर सिंह गृह मंत्री देशमुख का आदमी था और वह किस तरह एनआईए के झोल में फंस कर तनखैया हो गया, उसके पीछे की कहानियों में बहुत कुछ है, जिसमें उनकी पत्नी के पांच कंपनियों के डायरेक्टर होने, उनके बेटे की शादी एक प्रभावशाली भाजपा खानदान में होने — और रिटायरमेंट के बाद की योजनायें हैं – इतना सब कुछ होते हुए भी गृह मंत्री अनभिज्ञ रहे या चुप रहे — जैसे ही शिव सेना अनिल देशमुख पर हमलावर हुयी तो राष्ट्रवादी कांग्रस के अजित पवार सबसे पहले प्रतिक्रया में सामने आये , जिन्हें इसी परमवीर सिंह ने सिंचाई घोटाले में क्लीन चीट दी थी और जो आधी रात की भाजपा सरकार में उप मुख्यमंत्री बन गये थे.

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राकपा की घड़ी उलटी घूम रही हैं — यदि पवार साहब भाजपा के साथ जाते हैं तो उनकी पार्टी में भी फूट होगी लेकिन उन्हें भरोसा है कि वे कुछ विधायक कांग्रेस के तोड़ लेंगे — अब कांग्रेस की कमान नाना पटोले के हाथों में है — जो कांग्रेस से भाजपा में गए थे और 2014 के आम चुनावों में उन्होंने नागपुर की भंडारा गोंदिया सीट से एनसीपी के बड़े नेता और पवार के दाहिने हाथ प्रफुल्ल पटेल को करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया था। नाना पटोले की निगाह राकपा और भाजपा के कुछ विधायकों पर है —- वे भी अनिल देखमुख के खिलाफ बयान दे चुके हैं।

भाजपा का खेल स्पष्ट है कि “हम भी खेलेंगे नहीं तो खेल बिगाड़ेंगे” यानी वह चाहते हैं कि सरकार गिर जाए, राष्ट्रपति शासन लगे और फिर चुनाव हो — पहली बार चुने गए कई विधायक इस हालात में पेंशन के हक़दार भी नहीं होंगे सो वे अपनी कुर्सी बचने के लिए खरीद फरोख्त की मंडी में खुद को पेश कर सकते हैं — लेकिन जान लें “घड़ियाल” उलटा चल रहा हैं —

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