अनन्त कुमार सिंह के झूठे साक्षात्कार के मामले में दोषी पत्रकारों की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज की…
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति श्री डी0के0 सिंह ने अनन्त कुमार सिंह, तत्कालीन जिलाधिकारी, मुजफ्फरनगर का मनगढ़न्त साक्षात्कार छापने वाले रिपोर्टर रमन किरपाल, सम्पादक ए0के0 भट्टाचार्या, मुद्रक एवं प्रकाशक संजीव कंवर की पुनरीक्षण याचिका को निरस्त कर दिया है।
विचारण एवं अपीली न्यायालय के द्वारा दी गई कारावास एवं जुर्माने की सजा के विरूद्ध वर्ष-2012 में ये याचिका दाखिल की गई थी।
सजा-प्राप्त याचियों ने उच्च न्यायालय में विचारण एवं अपीली न्यायालय के निर्णय को गुण-दोष के आधार पर चुनौती दी थी, परन्तु सुनवाई के दौरान उन्होंने निचली दोनों अदालतों के निर्णय एवं निष्कर्षों को किसी भी प्रकार से चुनौती न देते हुए अपने अपराध को स्वीकार कर लिया एवं प्रथम अपराध होने के आधार पर अपराधियों की परीवीक्षा अधिनियम की धारा-4 के अन्तर्गत परिवीक्षा पर छोडे़ जाने की याचना की।
उन्हानें अपने अपराध के लिए श्री अनन्त कुमार सिंह से बिना शर्त क्षमा याचना भी की। सुनवाई के उपरान्त उच्च न्यायालय ने पहला अपराध होने के आधार पर विचारण न्यायालय द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखते हुए पुनरीक्षण याचिका तो खारिज कर दी, परन्तु, जेल की सजा भोगने के स्थान पर एक साल तक अच्छे आचरण एवं इस प्रकार का कोई अपराध न करने के लिए निचली अदालत में 50,000 रुपये का बंध-पत्र उनके द्वारा भरने पर उन्हें परिवीक्षा पर छोड़ने का आदेश दिया है।
उच्च न्यायालय ने परीवीक्षा अधिनियम की धारा-5 के अन्तगर्त सजा-प्राप्त रिपोर्टर रमन किरपाल को 1 लाख रुपये तथा सजा-प्राप्त सम्पादक ए0के0 भट्टाचार्य तथा प्रकाशक एवं मुद्रक संजीव कंवर को पचास-पचास हजार रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में श्री अनन्त कुमार सिंह को भुगतान करने का भी निर्देश दिया है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि इन सजा-प्राप्तों के द्वारा ऊपर के किसी भी शर्त का उल्लंघन किया जाता है, तो उसे मूल सजा भुगतनी पड़ेगी।
याद दिला दें कि अक्टूबर, 1994 में श्री अनन्त कुमार सिंह का एक साक्षात्कार प्रश्नोत्तर के रूप में उनके फोटो के साथ अंग्रेजी दैनिक ‘दि पायनीयर‘ के दिल्ली एवं लखनऊ तथा दैनिक ‘स्वतत्रं भारत‘ के लखनऊ संस्करणों में ‘‘निर्जन स्थान में कोई भी महिला के साथ बलात्कार करेगा- डी0एम0 मुजफ्फरनगर‘‘ शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। उसी दिन अनन्त कुमार सिंह ने इस साक्षात्कार के झूठा एवं मनगढ़न्त होने के संबंध में अपना खण्डन इन समाचारपत्रों के सम्पादकों को भेज दिया था। लेकिन खंडन एक सप्ताहतक प्रकाशित नहीं किया गया और जब किया भी तो काट-छांटकर ‘चिट्ठी-पत्री‘ कालम में रिपोर्टर के झूठे दावे के साथ प्रकाशित किया गया जिसमें कहा गया कि इंटरव्यू हुआ था।
इस आपराधिक कृत्य से क्षुब्ध अनन्त कुमार सिंह ने रिपोर्टर रमन किरपाल, सम्पादक गण ए0के0 भट्टाचार्य एवं घनश्याम पंकज तथा प्रकाशक एवं मुद्रक गण दीपक मुखर्जी एवं संजीव कंवर के विरूद्ध मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट लखनऊ के न्यायालय में मुकदमा दाखिल किया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद वर्ष 2007 में श्री सतीश चन्द्रा, विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने रिपोर्टर रमन किरपाल को एक वर्ष की सजा एवं 5 हजार रुपए जुर्माना किया, जबकि सम्पादक घनश्याम पंकज एवं ए0के0 भट्टाचार्या तथा मुद्रक एवं प्रकाशक दीपक मुखर्जी एवं संजीव कंवर को 6-6 माह की कारावास तथा 2-2 हजार रुपए का जुर्माना किया।
आदेश के विरूद्ध सभी 5 सजा प्राप्तों ने अपर जिला जज के न्यायालय में अपील की। अपील की सुनवाई के दौरान अभियुक्त घनश्याम पंकज की मृत्यु हो गई। श्री पी0 एन0 श्रीवास्तव, अपर जिला जज ने दोनों पक्षों की सुनवाई के उपरान्त वर्ष 2012 में शेष चारों अपीलार्थियों की अपील खारिज करते हुए मजिस्ट्रेट न्यायालय के आदेश की पुष्टि की। इस आदेश के विरूद्ध सजा प्राप्तों ने उच्च न्यायालय में रिवीजन दाखिल किया था। रिवीजन की सुनवाई से पूर्व याची श्री दीपक मुखर्जी की भी मृत्यु हो गई। उच्च न्यायालय ने बचे हुए तीन सजा-प्राप्तों के संबन्ध में उक्त आदेश पारित किया है।
अनन्त कुमार सिंह की शिकायत पर प्रेस काउंसिल आफ इण्डिया भी वर्ष 1996 में रिपोर्टर द्वारा लिखे गए इस झूठे, मनगढ़न्त एवं मानहानिकारक साक्षात्कार को प्रकाशित करने के लिए समाचारपत्रों की निन्दा कर चुका है।