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‘रिपब्लिक’ की लांचिंग के दिन अर्नब गोस्वामी सुपारी जर्नलिस्ट नज़र आए!

पूरा नेशन जानना चाहता था कि अर्नब गोस्वामी जिस चैनल को लेकर आ रहे हैं उसके तेवर कैसे होंगे? मीडिया की घटती विश्वसनीयता के बीच वो किन खबरों को तव्वजो देंगे। लेकिन ये कहने में कोई संकोच नहीं कि अर्नब ने न केवल दर्शकों को बल्कि पत्रकारों को भी निराश किया। सुबह करीब 10 बजे से लेकर रात के 1 बजे तक वो लालू प्रसाद और डॉन शाहबुद्दीन की कथित ऑडियो टेप को बार-बार दिखाते रहे। जिसमें शाहबुद्दीन लालू प्रसाद यादव से सीवान के एसपी को हटाने की बात कर रहे हैं। ऑडियो में शाहबुद्दीन को ‘आपका एसपी खत्म है’ कहते हुए सुनाया गया।

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पूरा नेशन जानना चाहता था कि अर्नब गोस्वामी जिस चैनल को लेकर आ रहे हैं उसके तेवर कैसे होंगे? मीडिया की घटती विश्वसनीयता के बीच वो किन खबरों को तव्वजो देंगे। लेकिन ये कहने में कोई संकोच नहीं कि अर्नब ने न केवल दर्शकों को बल्कि पत्रकारों को भी निराश किया। सुबह करीब 10 बजे से लेकर रात के 1 बजे तक वो लालू प्रसाद और डॉन शाहबुद्दीन की कथित ऑडियो टेप को बार-बार दिखाते रहे। जिसमें शाहबुद्दीन लालू प्रसाद यादव से सीवान के एसपी को हटाने की बात कर रहे हैं। ऑडियो में शाहबुद्दीन को ‘आपका एसपी खत्म है’ कहते हुए सुनाया गया।

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इस टेप की विश्वसनीयता को लेकर तमाम सवाल खड़े किए जा सकते हैं और हो सकता है कि टेप गलत या सही भी हों। लेकिन जरा गौर कीजिए। इस टेप के समर्थन में कौन लोग सामने आए। अमित शाह, रविशंकर प्रसाद, वैंकैया नायडू, सुशील कुमार मोदी, रीता बहुगुणा जोशी और रामविलास पासवान। तो क्या बिहार में बाकी नेताओं ने इसे कोई तव्वजो नहीं दी। कांग्रेस के टॉम वडक्कन को रिपब्लिक की टीम ने पकड़ा जरूर, लेकिन उनसे कोई ऐसी बात नहीं कहलवा पाए जो इनके टेप के दावे को मजबूत करता हो।

एक नए न्यूज चैनल का पहला दिन बहुत खास होता है। जो बताता है कि आने वाले दिनों में उसका रंग-रूप और उसकी दिशा क्या होने जा रही है? पर अर्नब के रिपब्लिक टीवी ने पहले दिन ही बता दिया कि वो आने वाले दिनों में क्या करने जा रहे हैं? एक ही बात को बार बार कहना और खुद को सबसे बड़ा तीसमारखान बताना यही इशारा करता है कि वो बड़बोलेपन के जाल से बाहर नहीं निकल पाए हैं। टीवी पर चिल्लाने से कोई खबर बड़ी नहीं हो सकती और वो एक खास वर्ग को ही प्रभावित करती है। जो एक खास विचारधारा और खास पार्टी के जरखरीद गुलाम होते हैं।

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लालू यादव भले ही आज भी आरजेडी के अध्यक्ष हों, लेकिन राजनीति में वो पतन की कगार पर ही है। चारा घोटाले में दोषी करार दिए गए हैं। फिलहाल जमानत पर रिहा हैं। ना तो चुनाव लड़ सकते हैं और ही कोई पद ग्रहण कर सकते हैं। ऐसे में उनके उनपर गदा प्रहार कर अर्नब गोस्वामी क्या साबित करना चाह रहे थे? वो भी दिनभर के लगातार प्रसारण में।

हमें उम्मीद है कि अर्नब गोस्वामी को अच्छी तरह पता होगा कि बीते दशकों में जेल मैनुअल में काफी सुधार हुआ है। अब जेल को य़ातना गृह के रूप में नहीं बल्कि कैदी सुधार गृह के रूप में देखा जाता है। जहां कैदियों के लिए अपने परिवार को सरकारी खर्च पर फोन करने की सुविधा होती है। अपने रिश्तेदारों से हफ्ते में कम से कम एक बार जेल में मिलने की इजाजात होती है। और अगर कैदी का आचरण अच्छा रहा तो उसे परोल पर अपने परिवार के बीत महीने-दो महीने रहेने की इजाजात भी दी जाती है। कई आदर्श जेल तो ऐसे हैं, जिनमें कैदी दिन में बाहर जाकर अपना रोजगार कर सकते हैं और शाम को फिर जेल में वापिस लौट सकते हैं। ऐसे में अगर आरजेडी सुप्रीमो से अगर आरजेडी नेता ने जेल से बात ही कर ली तो इसमें कौन सा तूफान टूट पड़ा।

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देशभर के दूरदराज के जेलों की बात तो छोड़ दें, दिल्ली की तिहाड़ जेल में ही सैकड़ों बार मोबाइल, शराब, ड्रग्स लेकर गांजा, अफीम, चरस तक मिलने और पकड़े जाने की खबरें आती रहीं हैं। अगर आपको याद हो तो एक स्टिंग ऑपरेशन में तिहाड़ जेल की हकीकत को एक युवा पत्रकार रवि शर्मा ने आजतक न्यूज चैनल में तार-तार कर दिया था। ऐसे में एक नेता का दूसरे नेता के साथ बात करना, चाहे बातचीत जेल के भीतर से ही क्यों ना की गई हों, इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि उसे एक चैनल अपनी लांचिंग के दिन 14 घंटे तक दिखाता रहे और बाकी किसी खबर को कोई तव्वजो ना दे।

किसी भी न्यूज चैनल से दर्शकों को उम्मीद होती है कि उसे एक घंटे में दिनभर की सारी छोटी-बड़ी खबरें मिल जाएं। अगर हम कल की ही बात करें तो तुगलकाबाद में गैस रिसने से 475 छात्राएं बीमार पड़ गईं। बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। कश्मीर में बिगड़ते हालात और महबूबा मुफ्ती की चिंता थी। स्कूली बच्चों की पत्थरबाजी थी। जिस पर गंभीर चिंतन के साथ कार्यक्रम प्रस्तुत किए जा सकते थे। सबसे बड़ी बात महबूबा मुफ्ती का वो बयान था जिसमें उन्होंने कश्मीर में हालात सामान्य करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से गुहार लगाई और उन्हें वाजपेयी जी की तरह ठोस कदम उठाने को कहा। आम आदमी पार्टी के भीतर मचे कोहराम और कुमार विश्वास के करीबी जल संसाधन मंत्री को हटाए जाने की खबर भी छोटी नहीं थी। लेकिन ये खबरें रिपब्लिक टीवी की हेडलाइंस से गायब नजर आई। गैस रिसाव से 475 छात्राओं के बीमार होना तो रिपब्लिक के पहले दिन की खबरों में जगह भी नहीं पा सकी।

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देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक कई ऐसी खबरें थीं, जिस अर्नब आज खबर बना सकते थे। कशमीर के ताजा हालात, तमिलनाडु के किसानों की समस्याएं, तेलंगाना के मिर्ची उगाने वाले किसानों के दर्द, भीषण गर्मी में पानी के लिए देश के कई हिस्से में त्राहिमाम्, उत्तर प्रदेश समेत देशभर में गौ रक्षकों की गुंडागर्दी, समंदर में मछली पकड़ने वाले मछुआरों की समस्याओं, किसानों की एमएसपी, बैंको के लाखों करोड़ के डूबे कर्ज, नोटबंदी से देश की इकोनॉमी को हुए नुकसान, नक्सलवाद की समस्याएं जैसे कई मसले थे, जिन्हें रिपब्लिक अपने लांचिंग के दिन बड़ी खबर के रूप में संजीदा तरीके से पेश कर सकता था। लेकिन अर्नब गोस्वामी ने मुंह दिखाई के दिन लालू को ध्वस्त करने की ठान ली। अर्नब को अच्छी तरह मालूम है कि उस तरह खबरें भले ही उन्हें टीआरपी दे दे, लेकिन पत्रकारिता के लिहाज से इसे सनसनी फैलाने वाली खबर ही माना जाएगा। जिसका आम जिंदगी से कोई खास सरोकार नहीं हो सकता।

अर्नब गोस्वामी को आमतौर पर सत्ता के करीबी पत्रकार के तौर पर ही देखा जाता है। जो चिल्लाते ज्यादा हैं और काम की बात कम करते हैं। उनके चैनल की फंडिंग को लेकर भी इसी तरह की बातें सामने आ रहीं हैं। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि आनेवाले दिनों में अर्नब और उनकी टीम कुछ संजीदा खबरों के साथ सामने आएंगे। जिनसे देश की आवाम को सरकार के सामने अपनी आवाज बुलंद करने में थोड़ी सहूलियत होगी। कहते हैं ना कि मरे हुए को तो कोई भी दो लात मार सकता है लेकिन आपको ताकतवर तब माना जाता है जब आप अपने से बड़े और रसूखदार लोगों पर वार करते हैं और अंजाम की परवाह नहीं करते। 

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लेखक संजय कुमार राज्यसभा टेलीविजन के एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.

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