अटल बिहारी वाजपेई जी से बड़े नेता माने जाएँगे अशोक गहलोत!

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शशि भूषण-

अटल बिहारी वाजपेई जी ने भारत देश में पेंशन बंद की थी। एक प्रकार से कर्मचारियों के बुढ़ापे की लाठी छीन ली थी। अशोक गहलोत ने राजस्थान राज्य में पेंशन शुरू कर दी। एक प्रकार से अपनी सामर्थ्य भर कर्मचारियों के बुढ़ापे का सहारा लौटा दिया।

अटल बिहारी वाजपेई जी और अशोक गहलोत दोनों वरिष्ठ नेता हैं। भले दोनों के अलग अलग दल हैं। दोनों नेताओं के लिए पेंशन का प्रावधान है। अटल बिहारी वाजपेई को पूरी पेंशन सुविधा मिली। अशोक गहलोत को पूरी पेंशन सुविधा मिलेगी। अटल जी प्रधानमंत्री थे। अशोक जी मुख्यमंत्री हैं।

लेकिन आज की तारीख़ में सेवारत रहे बुजुर्गों के नजरिए से अटल बिहारी वाजपेई जी से अशोक गहलोत बड़े नेता ठहरते हैं। क्योंकि छीनने वाले से लौटाने वाला बड़ा होता है। बुद्ध के समय से चला आ रहा अदालत का फैसला है, “मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है।” जनता उस नेता की जो उसे लौटाए। अटल बिहारी वाजपेई जी सम्मानित रहे। अशोक गहलोत प्यारे होंगे।

फ़िलहाल देश में पेंशन बंद है। लेकिन एक राज्य में पेंशन शुरू हुई। अब दूसरे राज्यों का फ़र्ज़ है कि अपने-अपने राज्य के लिए वोकल हों। क्योंकि भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री जी का ही कहना है, लोकल के लिए वोकल बनें। अब देखना यह है कि कौन से मुख्यमंत्री बुजुर्गों के प्यारे बनते हैं।

तीरथ कराना अगर एक कदम बढ़ाना हो तो पेंशन लौटा देना तीसरा कदम होगा। इसमें किसे संदेह होगा!

उमा शंकर सिंह परमार-

अशोक गहलोत जी ने दिखा दिया कि सच्चे जननेता ही जनता के पक्ष में निर्णय ले सकते हैं

1- पेंशन का अन्त आर्थिक उदारवाद की पहली भीषण ‘चोट’ थी जो किसी भी सरकारी कर्मचारी के ‘जीने मरने’ का सवाल है । उस चोट की सही चिकित्सा गहलोत जी ने कर के अपना कद देश के सभी मुख्यमन्त्रियों से बडा कर लिया
2- आर्थिक रूप से गरीब सवर्णों ( ईडब्लूएस) के लिए 100 करोड़ का कोष बना दिया और दिखा दिया कि सामाजिक न्याय में ‘जाति’ ही एकमात्र मानक नही है गरीबी भी है।
3- राजस्थान के पुराने पुस्तकालय ‘साहित्य सम्मेलन पुस्तकालय’ के उद्धार व संचालन के लिए पाँच करोड़ धन की व्यवस्था । यह सीख है कि जो कुछ शेष है वह बचाना जरूरी है । यूपी में नागरी प्रचारिणी , साहित्य सम्मेलन , हिन्दुस्तानी अकादमी , गीताप्रेस गोरखपुर , चौखम्भा जैसे बडे किताबघर आज नष्ट होने की कगार पर हैं और हमारे प्रदेश के सभी राजनैतिक दलों मसलन भाजपा सपा बसपा वगैरा का आईक्यू लेवल इतना कमजोर है कि उद्धार और सरंक्षा जैसे मामले उनकी अकल में नही प्रवेश कर सकते हैं ।

अशोक गहलोत जिन्दाबाद , कांग्रेस जिन्दाबाद

ओम थानवी-

राजस्थान के बजट पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रदेश में और बाहर वाजिब तारीफ़ हुई है; पेंशन प्रबंध के साथ कृषि, रोज़गार, स्वास्थ्य, पर्यटन आदि को इसी तवज्जोह की ज़रूरत थी और घोषित योजनाओं से निश्चय ही उनका हाल सुधरेगा।

लेकिन मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया शिक्षा के प्रति ज़ाहिर प्रतिबद्धता ने। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, मेडिकल संस्थान, आइटीआइ आदि विकास और रोज़गार की असल धुरी हैं। इसलिए इनके प्रावधान अहम हैं।

औपचारिक शिक्षा के साथ अनौपचारिक शिक्षा के इदारे भी बहुत ज़रूरी होते हैं। पता नहीं कितनों ने ग़ौर किया होगा कि 400 करोड़ रुपए ख़र्च कर जयपुर में शैक्षिक गतिविधियों का केंद्र-स्थल (हब) बनेगा; 225 करोड़ रुपए इसमें गांधी अध्ययन संस्थान के लिए रखे गए हैं। गांधीजी का नाम तो अब संघ वाले भी जपते हैं — दिखावे को सही — पर गांधी-विचार क्यों प्रासंगिक है, संसार में उसके प्रभाव और संभावनाओं पर कौन समझाएगा? और कहाँ?

हाँ, मेरा सुझाव है कि इतने महत्त्वपूर्ण गांधी संस्थान ( Mahatma Gandhi Institute of Governance and Social Sciences) का नाम संशोधित करना चाहिए। अभी वह गांधी अध्ययन का नहीं, राजकाज और समाजविज्ञान का संस्थान प्रकट होता है, आरंभ का महात्मा गांधी नाम तो संस्थाओं के नामकरण में रस्मी हो चला है।

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