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तोड़ डालो कॉलर पकड़ने वाले बदतमीज प्रबंधन का हाथ!

हाथ तोड़ दो जो तुम्हारा कॉलर पकड़े। मुंह तोड़ दो जो तुमको गाली दे। मैं यह बात हिन्दुस्तान अखबार के उन कर्मियों से ही नहीं कह रहा हूं, जिनके साथ उनके प्रबंधन ने बदतमीजी की है। मैं उन सभी मीडियाकर्मियों से कह रहा हूं, जिनके साथ उनका प्रबंधन बदतमीजी कर रहा है। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा जेल ही तो जाना पड़ेगा। जेल तो भगत सिंह भी गए थे। दमन के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जेल तो जाना ही पड़ता है।

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हाथ तोड़ दो जो तुम्हारा कॉलर पकड़े। मुंह तोड़ दो जो तुमको गाली दे। मैं यह बात हिन्दुस्तान अखबार के उन कर्मियों से ही नहीं कह रहा हूं, जिनके साथ उनके प्रबंधन ने बदतमीजी की है। मैं उन सभी मीडियाकर्मियों से कह रहा हूं, जिनके साथ उनका प्रबंधन बदतमीजी कर रहा है। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा जेल ही तो जाना पड़ेगा। जेल तो भगत सिंह भी गए थे। दमन के खिलाफ आवाज उठाने वालों को जेल तो जाना ही पड़ता है।

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देखने में आ रहा है कि मीडियाकर्मियों के उत्पीडन के मामले कोई तंत्र काम नहीं आ रहा है। ऐसे में कोर्ट ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं करता कि प्रबंधन मीडियाकर्मियों के साथ बुरा बर्ताव न कर सके। हम लोग तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही प्रबंधन से अपना हक़ मांग रहे हैं। जब कोर्ट के आदेश की अवमानना करने वाले प्रबंधनों का दिमाग इतना ख़राब है तो इसका जिम्मेदार कौन है ? यदि कोर्ट ने मजीठिया मांगने पर प्रबंधन के तबादला किये गए दो कर्मियों को वापस वहीँ काम पर भेज दिया और प्रबंधन ने फिर से तबादले का पत्र इन्हें पकड़ा दिया तो क्या प्रबंधन ने कोर्ट के आदेश की अवमानना फिर से नहीं की?

ऐसे में कोर्ट बिना देर किये बदतमीजी करने वाले प्रबंधन के लोगों को जेल में डाल देना चाहिए। वह भी लंबे समय तह।  साहस दिखाने वाले कर्मियों के साथ प्रबंधन लगातार बदतमीजी कर रहा है और केस की लड़ाई लड़ रहे वकील और कोर्ट मूकदर्शक की भूमिका में है। अब तो एक ही बात समझ में आ रही कि मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे मीडियाकर्मी या तो अपने दम पर प्रबंधन के सीने पर चढ़कर काम करने की भूमिका बनाएं या फिर लंबी लड़ाई लड़ने के लिए अपने को तैयार करें। सुप्रीम कोर्ट और मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे वकीलों के रुख से कतई नहीं लग रहा है कि बर्खाश्त और स्थानांतरित होने वाले मीडियाकर्मियों को जल्द कोई राहत मिलने जा रही है। मजीठिया की लड़ाई हम लोग जीत भी जाते हैं तो भले ही अखबार मालिक जेल भेज दिये जाएं पर काम पर  जाए बिना हमें न्याय नहीं मिलेगा। हां अंदर बैठे लोग हमें माने या न माने हम लोग उनकी लड़ाई जरूर लड़ रहे हैं और तब भी उनका ही फायदा होगा।

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यह मीडियाकर्मियों के लिए शर्मनाक ही है कि रांची में मजीठिया वेज बोर्ड के अनुरूप वेतन और भत्ते मांगने वाले दो कर्मचारी कोर्ट से जीतकर जब अपने काम पर लौटे तो कार्मिक प्रबंधक उनका कालर पकड़ कर अपशब्दों का इस्तेमाल किया। यदि अभी नहीं संभले तो यह स्थिति प्रिंट मीडिया के तो हर कर्मचारी से साथ आनी है किसी के साथ अब तो किसी के साथ बाद में।

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मजीठिया वेजबोर्ड की लडाई लड रहे रांची हिन्दुस्तान के संपादकीय विभाग में कार्यरत अमित अखौरी और शिवकुमार सिंह आप लोग डटे  रहो। हम लोग इतिहास रचेंगे। पर कमी हमारी भी है जो लोग मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हैं वे एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। हम हम लोग एकजुट होकर अपने हक़ की लड़ाई लड़ें। गज़ब स्थिति पैदा हो गई है देश में । पत्रकारों से एचआरहेड बदतमीजी कर रहा है और अपने को देश कर्णधार बताने वाले पत्रकार तलाशबीन बने हुए हैं। यदि थोड़ी बहुत शर्म और गैरत अभी बची है तो  डूब मरो चुल्लूभर पानी में। 

चरण सिंह राजपूत
[email protected]

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