Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

मीडिया जगत पर पड़ सकती है बेरोजगारी की मार

मीडिया जगत में बेरोजगारी की मार पड़ सकती है। दरअसल लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस मीडिया से अत्याधिक खफा है और वह मीडिया से दूरी बनाना चाहती है। ऐसे में कांग्रेस शासित राज्य मीडिया को विज्ञापन नहीं दे रहे हैं। दूसरी तरफ 8 बड़े राज्य मंदी की मार झेल रहे हैं। वे अत्याधिक कर्ज ले चुके हैं। नतीजन उस कर्ज का ब्याज ही इतना बन रहा है कि उसे चुके के बाद राज्य में विकास कार्य करने के लिए फंड ही नहीं बचता। ऐसे में मीडिया का विज्ञापन रोक दिया गया है। नतीजन कई पत्रकारों को घर बैठना पड़ेगा। खास बात यह है कि देश में रोजगार तेजी से खत्म हो रहे हैं। लेकिन रोजगार के नए अवसर कम पैदा हो रहे हैं।

मोदी सरकार भी बन सकती है बेरहम… वहीं केंद्र सरकार भी मीडिया में जगत में भ्रष्टाचार खत्म करना चाहती है। 2019 में एबीसी समाचार पत्रों के सर्कुलेशन की जांच करेंगी। और इस बार जांच के साथ खरीदी और जीएसटी का रिकॉर्ड मांग रही है। ऐसे में आसानी से पकड़ में आ जाएगा कि किस पेपर का कितना सर्कुलेशन है? कितने कर्मचारी हैं? उनका पीएफ एकांउट क्या है? आदि पूछा जाएगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कोर्ट पहुंचेगा विवाद… चूंकि अब अधिकांश पत्रकार जागरुक हो चुके हैं। यदि किसी की नौकरी जाती है तो वह कोर्ट जाएगा। ऊपर से मजीठिया वेतनमान का क्लेम करेंगा। वहीं मोदी सरकार न्यायालय में सुनवाई तेज करने पर जोर दे रही है। 2020 तक कोर्ट केस तेजी से निपटाए जा सकते हैं। साथ ही आनलाइन पेशी और दावा-आपत्ति पेश करने को मंजूरी दी सकती है। इसका सीधा असर केसों की सुनवाई पर पड़ेगा। चूंकि अभी तक वकील पैसों के लालच में केस की सुनवाई टालते रहते थे, लेकिन जब ऑनलाइन सुनवाई होगी तो आवेदक अनावश्यक समय बढ़ाने का विरोध करेगा और कोर्ट चाहकर भी सुनवाई विलंब नहीं कर सकती। वैसे यह सच भी है कि जिसकी नौकरी जाए तो कोर्ट केस करेगा ही चाहे कितने भी नियम कानून से क्यों न हटाया गया हो? विधिक सेवा से वकील प्राप्त करें और केस लगाए। चूंकि सिविल केस चलता है इसलिए आपको रोज-रोज कोर्ट जाने की जरूरत नहीं। सिर्फ गवाही के दिन ही जाना पड़ेगा। बाकी वकील की उपस्थित ही पर्याप्त है। इससे अन्य साथियों की नौकरी सुरक्षित रहेगी।

बेरोजगारी भत्ता नहीं देना पड़ता इसलिए सरकार खामोश… नियमानुसार जिन संस्थानों में 100 से ज्यादा कर्मचारी हैं उन्हें औद्योगिक संबंध अधिनियम के तहत छंटनी से पूर्व श्रम विभाग से परमिशन लेनी पड़ती है, लेकिन आज तक कोई कंपनी श्रम विभाग से अनुमति नहीं लेती। और सरकार भी इसलिए खामोश रहती है कि कोई बेरोजगार हो जाएगा तो उसका क्या जाता है।भोजन करेंगा तो सरकार को कर मिलेगा ही। कौन सा बेरोजगारी भत्ता देना पड़ेगा? बेरोजगारी भत्ता देना पड़ता तो कंपनी से 20 बार पूछ-ताछ होती कि आपने उसे क्यों निकाला?

Advertisement. Scroll to continue reading.

बेरोजगारी के खिलाफ उठाएं आवाज… पत्रकार बेरोजगारी के खिलाफ लोगों को जागरुक करें। चूंकि लोग समझते हैं रोजगार उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। इसलिए रोजगार की मांग नहीं करते। कुछ लोग बेरोजगारी के खिलाफ आवाज तो उठाते हैं लेकिन सरकार से सिर्फ सरकारी नौकरी मांगते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि नौकरी कैसी भी हो सरकारी मापदंड के अनुसार जॉब सिक्यूरिटी, अच्छा वेतन, छुट‍्टी और पीएफ कटे तो प्राइवेट नौकरी से किसे एतराज होगा। और सरकार बेरोजगारी के खिलाफ तभी कम करेगी जब युवा रोजगार की मांग को लेकर आंदोलन करेंगे।

सच्चाई यह है कि आजीविका के अधिकार के तहत हर नागरिक को रोजगार उपलब्घ कराना सरकार की जिम्मेदारी है। लोग इसीलिए सरकार को टैक्स देते हैं कि सरकार सबको रोजगार उपलब्ध कराए। 1985 में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की धारा 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार को व्यापक कर इसमें आजीविका का अधिकार भी समाहित कर दिया है। इसलिए लोगों जागरुक करें कि वे सरकार से रोजगार की मांग करें। यह आपका अधिकार है। आप बिस्कुट भी खाते तो सरकार को जीएसटी के रूप में कर जाता है। और जब तक सरकार रोजगार न उपलब्ध करा सके तब तक बेरोजगारी भत्ता दे।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement