Kumar Sauvir : पिछले दस बरसों से एडवरटोरियल पर खूब हंगामा चल रहा है। कई प्रतिष्ठित अखबारों ने इस से अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश भी की है। कम से कम हिन्दुस्तान दैनिक ने तो घूस को घूंसा नाम से एक आन्दोलन तक छेड़़ रखा था। लेकिन अब तो एडवरटोरियल से भी बात कोसों दूर आगे खिसक आ चुकी है। हैरत की बात है कि यह शुरुआत हिन्दुस्तान ने ही छेड़ दिया है। जरा देखिये इस खबर को, और फिर बताइयेगा कि आखिर हमारे समाचारपत्र किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। देखिये, कितनी बेशर्मी के साथ यह प्रेसनोट छापा गया है।
मियां-बीवी से जुडे इस पीस में मोबाइल नम्बर तक छाप दिया गया है, कि मरीज सम्पर्क करें। अब ऐसा तो कोई भी यकीन नहीं करेगा कि सम्पादकीय में से किसी की नजर ही नहीं पड़ी होगी। हैरत की बात तो यह है कि पहले अखबारों में ऐसे मामलों का खुलासा होने पर भूल-सुधार की व्यवस्था हुआ करती थी। लेकिन अब तो हम्माम खुलाआम फर्रूखाबाद बन चुका है।
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से.
Comments on “देखिये, कितनी बेशर्मी के साथ यह प्रेसनोट हिंदुस्तान अखबार में छापा गया है”
किस बेशर्मी की बात कर रहे हैं आप / हर अखबार अपने अपने तरीके से चांदी ऐंठ रहा है/ सही बात तो है अखबारों की नियामक संस्था के नाम पर देश में जो कुछ भी वह नाकाफी है/ मीडिया की निरंकुशता घूस और घूंसा के स्तर के अलावा भी कई बातों को लेकर लगातार तेज हो रही है/ असली मसला है प्रबन्धन की नीयत का/ अच्छे लोगाें को बाहर का रास्ता दि खाया जा रहा है/ दलालों के लिए अखबारों के दरवाजे खुले हुए हैं /