नटपुरवा, हरदोई : गर्म-गोश्त की दूकानों वाले गांव से पहले करीब डेढ़ दर्जन अधेड़ और युवक मेरी कार को घेर लेते हैं और फिर शुरू हो जाती है इन दुकानदारों के बीच ग्राहकों को अपनी तरफ खींचने की आपाधापी। कोई गेट खोलने में जुटा है तो कोई रास्ता रोक रहा है। ग्राहक को लुभाने और खींचने के लिए मानो गदर-सी मच गयी है।
सरकार कहीं नही, पत्रकार लपके अफसरों की सेटिंग कराने… बेहद गहरी और अथाह कथा है सेटिंगबाज पत्रकारों की… मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इसका पता भाजपा को भी नहीं मगर मुख्य-सचिव और डीजीपी के लिए लामबन्दी स्टार्ट… मुख्यसचिव के लिए संजय अग्रवाल और डीजीपी के लिए सुलखान सिंह के लिए पेशबंदी शुरू…
लखनऊ : बेहद पढ़ाकू और परिश्रमी रहा है राजीव कुमार। शुरू से ही उसका सपना रहा है कि वह अपने देश और अपने देशवासियों की सेवा के लिए अपनी हर सांस अर्पित कर देगा। अपने इस सपने को साबित करने के लिए राजीव ने कठोर परिश्रम किया और वह आईएएस बन ही गया। लेकिन नौकरी की शुरूआती पेंचीदगियों ने उसे तोड़ना शुरू कर दिया। वह संशय में फंस गया कि उसके जीवन और उसके सपनों की नैया राजनीतिज्ञ निबटायेंगे या फिर उसके संवर्ग के वरिष्ठ सहयोगी। सोचा तो पता चला कि जिस तरह उसके वरिष्ठ सफलता की पींगें में लात उचका रहे हैं, वह ही रास्ता सर्वश्रेष्ठ है।
अपना ही कीर्तिमान तोड़ दिया हेमन्त तिवारी ने, इस बार जयपुर के पिंक-सिटी प्रेस क्लब में कूटे गये : बिना इजाजत के लिए घुस गये जयपुर के प्रतिष्ठित प्रेस क्लब में : मना करने के बावजूद देर रात तक दारू पीकर किया खूब हंगामा, दी गालियां : मना करने पर की नंगी गालियों की बौछार, नहीं माने तो लोगों ने कर दी कुटम्मस : कल्याण सिंह से अपने अधिवेशन से समय न मिल पाने से खीझे थे हेमन्त :
Sneh Madhur : मीडिया चीख-चीखकर कह रहा है कि उत्तर प्रदेश में मंगलवार को बलराम यादव को मंत्री पद से इसलिए हटा दिया गया क्योंकि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पसंद नहीं था कि माफिया छवि वाले नेता मुख्तार अंसारी का परिवार समाजवादी पार्टी में शामिल हों. अखिलेश यादव की कोशिश है कि उनकी खुद की छवि यादव परिवार के अन्य सदस्यों से अलग नज़र आये. कहा जा रहा है कि बलराम यादव ने मुख्तार एंड फॅमिली को सपा में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी इसलिए उनको जप लिया गया.
मुख्य सचिव आलोक रंजन को हार चाहिए, न मिले तो नकद तीस लाख रुपया दो… चोरी के आरोप में दो महीनों तक अवैध हिरासत में रखा अपने दो घरेलू नौकरों को… इसी सारे मामले से जुड़ी है लखनऊ के एसएसपी के तबादले की इंटरनल स्टोरी….
हम अपराधियों की हरकतों के खिलाफ युद्ध करें, उनके धंधे में भागीदारी क्यों
लखनऊ : यह कोई 13 साल पहले का हादसा है। मैं जौनपुर में हिन्दुस्तान अखबार का ब्यूरो प्रमुख था। खबर को लेकर दो बार मेरी मुठभेड़ मुख्तार अंसारी से हो गयी। एक बार एक ट्रैक्टर व्यवसायी आईबी सिंह के घर और दूसरी बार मोहम्मद हसन कालेज के प्रिंसिपल के यहां। तब मुख्तार अंसारी समाजवादी पार्टी के चहेते हुए करते थे। दोनों ही बार आयोजकों ने मुख्तार से मेरा परिचय कराया और मैंने सवाल पूछने शुरू किये।
न खुद दलाली कीजिए और न दलालों को अपने आसपास फटकने दीजिए
लखनऊ : चाहे वह सीवान का काण्ड हो या फिर चतरा का, पत्रकारों की मौत के असल कारणों का खुलासा तो बाद में ही हो पायेगा, लेकिन अब तक इतिहास बताता है कि ऐसे मामलों में उन लोगों की खास भूमिका रहती है, जो खुद को पत्रकार कहलाते हैं और असल पत्रकार जाने-अनजाने उनके पाले में पहुंच कर अपनी बरबादी का सामान जुटा लेता है। कम से कम, चालीस साल का जिन्दा इतिहास तो मुझे खूब याद है, जिसमें किसी पत्रकार की मौत के कारणों में से एक रहे हैं जो ऐसे पत्रकारों के करीबी बन कर असल वारदात को अंजाम दिला देते हैं।
लखनऊ : जौनपुर में मधुकर तिवारी जैसे व्यक्ति ने सीधे मुझ पर ही हमला कर दिया। बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक शिक्षक के तौर पर भर्ती इस शख्स ने अपनी नौकरी तो आज तक नहीं की, लेकिन पत्रकार बन कर प्रशासन को धौंस खूब दी। चूंकि हिन्दुस्तान अखबार ने मुधकर तिवारी को हटा कर मुझे ब्यू्रो प्रमुख बनाया था, इसलिए मधुकर का कोप मुझ पर भड़का। अरे मधुकर तिवारी वही, जो सरकारी नौकरी पर होने के बावजूद हिन्दुस्तान अखबार से सम्बद्ध था और अपनी धौंस-पट्टी कायम किये हुए था। लेकिन उसकी करतूतों का खुलासा होने पर उसे हिन्दुस्तान से हटा दिया और मुझे जोधपुर से बुलाया गया। तब मैं जोधपुर के दैनिक भास्कर एडीशन में ब्यूरो प्रमुख था। खैर।
लखनऊ : मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान केवल सात दिन की तैनाती पाये वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष चंद्र दुबे को दंगा न सम्भाल पाने को लेकर शासन ने दोषी ठहराया। दुबे को इस आरोप में मुजफ्फरनगर से हटाकर लखनऊ में पुलिस महानिदेशक कार्यालय में सम्बद्ध कर दिया गया और इसके 15 दिन बाद उन्हें निलम्बित भी …
लखनऊ : स्वतंत्र भारत का मुख्य उप सम्पादक हुआ करते थे सिद्दीकी। एक बार वे अपने आफिस में रात की पाली में काम कर रहे थे। रात आधी से ज्यादा हो गयी थी। पेज छूटना ही था। 15 मिनट का समय था, इसलिए सिद्दीकी बाहर चाय की दुकान की ओर बढ़े। रास्ते में नाली के किनारे बैठ कर उन्होंने पेशाब करना शुरू किया। अचानक कुछ लोगों ने पीछे से चाकुओं से हमला कर दिया। वार इतना सटीक था कि सिद्दीकी ज्यादा चिल्ला भी नहीं सके और मौके पर ही ढेर हो गये।
: विन्ध्य-क्षेत्र में देवी उपासना, विधायक पूजा में और भतीजा चीर-हरण में : भदोही में सीए की पढाई करती युवती को दी भद्दी गालियां, कपडे फाड़ डाले : नवनीत सिकेरा की कम्पनी 1090 ने शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाय पल्लू थाने पर झाड़ा : सपा के सांसद अबू आजमी के करीबी और एमएलए जाहिद बेग का भतीजा है सादाब : सिर्फ बेशर्म गिरोहबन्दी करते हैं भदोही के टुच्चे पत्रकार : अमर उजाला और आज ने तीन लाइनों में छापा:- सिर्फ छेड़खानी हुई : नियमित पैकेट हासिल करते हैं जाहिद बेग और विजय मिश्र से पत्रकार : बिटिया को न्याय पर चील मंडराये, पत्रकारों ने क्या इस मसले पर वाकई छोड़ दी अपनी कमीनगी : पुलिस अब तक नहीं गिरफ्तार कर सकी : पुलिस अधीक्षक का दावा- कोर्ट के पहले ही दबोचेंगे सादाब को : सपा विधायक के खेमे ने प्रशासन-पत्रकारों से की प्रभावी रणनीतियों की पेशकश : जनदबाव बढ़ा तो बिकाऊ पत्रकारों ने फिर थाम ली अपनी-अपनी कलम : दल्ला-भांड़ पत्रकार जो होता है वह वाकई दल्ला ही रहता है हमेशा : पत्रकार बनने का मकसद रौब ऐंठना-दलाली, खबरों से वास्ता नहीं : बेबस जनता, दबंग नेता, बेईमान पुलिस और तलवाचाटू पत्रकार :
Sanjaya Kumar Singh : छोटे शहरों के बड़े अखबारों की पत्रकारिता… भदोही में एक नेता के भतीजे ने किसी लड़की से छेड़खानी की और बात बढ़ी को उससे बदतमीजी की तथा उसके कपड़े भी फाड़ दिए। यह खबर भदोही से कायदे से रिपोर्ट नहीं हुई और लखनऊ के पत्रकार कुमार सौवीर ने इसपर अपने पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम पर विस्तार से लिखा और फेसबुक पर उसका लिंक भी दिया। खबर का शीर्षक था, “समाजवादी नवरात्र शुरू: एमएलए के भतीजे ने सरेआम नंगा किया अनाथ किशोरी को”।
गैर-मान्यताप्राप्त पत्रकारों के प्रति सतर्कता की जरूरत, सन्दर्भ संतोष ग्वाला व सुरेन्द्र सिंह की अकाल मौत
कितनी अनियमित होती है आम पत्रकार की दिनचर्या। कभी दफ्तर के कामधाम में डूबा होता है, कोई खबर पकड़ने की आपाधापी में, तो कोई बाइट लेने की दौड़ा-भागी में। न खाने का वक्त और न कौर चबाने का मौका। कई बार तो ऐसा होता है जब एक पत्रकार जब सोने जाता है, वह समय होता है बच्चों के स्कूल की तैयारी का। और जब वह थका-चूर होकर घर लौटता है तो घर के सारे लोग अपनी ज्यादातर नींद पूरी कर चुके होते हैं। ऐसे में किसी को जगाने-परेशान करने का कोई औचित्य तक नहीं होता। सोने का वक्त आते ही अगली खबर की प्लानिंग-रूपरेखा को लेकर बचे-खुचे दिमाग के तन्तु-रेशे आपस में लबड़-झबड़ करना शुरू कर देते हैं।
लखनऊ : उसका नाम था संतोष ग्वाला। अदना-सा पत्रकार, लेकिन गजब शख्सियत। अचानक उसकी मौत हो गयी। पत्रकारिता उसका पैशन था। खबर मिलते ही मौके पर पहुंच जाना उसका नशा। घटना को सूंघ कर उसमें पर्त दर पर्त घुस जाना उसकी प्रवृत्ति थी। दीगर पत्रकारों की तरह वह न तो किसी संस्थान में स्थाई मुलाजिम था और न ही सरकार से उसे मान्यता मिली थी। न पेंशन, न मुआवजा, न भविष्य कोष और न ही सरकार से किसी राहत की उम्मीद। पत्रकारिता की पहली सीढी पर ही उसने पूरी जिन्दगी बिता दी। जाहिर है कि अचानक हुई उसकी अकाल मौत से पूरा परिवार और खानदान विह्वल सन्नाटा में आ गया।
Kumar Sauvir : 1090 यानी वीमन हेल्प लाइन के बड़े दरोगा हैं नवनीत सिकेरा। अपराध और शोहदागिरी की राजधानी बनते जा रहे लखनऊ में परसो अपना जीवन फांसी के फंदे पर लटका चुकी बलरामपुर की बीडीएस छात्रा की मौत पर सिकेरा ने एक प्रेस-विज्ञप्ति अपनी वाल पर चस्पा किया है। सिकेरा ने निरमा से धुले अपने शब्द उड़ेलते हुए उस हादसे से अपना पल्लू झाड़ने की पूरी कवायद की है। लेकिन ऐसा करते हुए सिकेरा ने भले ही खुद को पाक-साफ़ करार दे दिया हो, लेकिन इस पूरे दर्दनाक हादसे की कालिख को प्रदेश सरकार और पूरे पुलिस विभाग के चेहरे पर पोत दिया है।
बधाई हो सरकार में बैठे समाजवादियों और तुम्हारे कारकूनों! तुम्हारे अटूट प्रयास आज फलीभूत हुए और नतीजा यह हुआ कि बीती रात एक मेडिकल छात्रा ने राजधानी के गुडम्बा कालोनी में अपने कमरे में पंखे से लटक कर खुद को मौत हवाले कर दिया। बधाई हो। ताज़ा खबर है कि लखनऊ के एक डेंटल मेडिकल छात्रा ने छेड़खानी से त्रस्त होकर फांसी लगा ली। पिछले कई महीने से मोहल्ले से लेकर कॉलेज आसपास शोहदों ने उसका जीना हराम कर रखा था। मानसिक तनाव इतना बढ़ने लगा कि उसे खुद की जिंदगी ही अभिशाप लगाने लगी। उसे लगा कि उसका स्त्री-देह ही उसका सबसे बड़ा दुश्मन है। बस फिर क्या था। इस बच्ची ने उस कलंक-अभिशाप को ही हमेशा-हमेशा के लिए धो डाला।
यह किस्सा मुझे भोपाल में मिला। पता चला कि यहां एक नामचीन पत्रकार हैं। मान लीजिए कि उनका नाम है मस्त-मस्त शर्मा। असली नाम नहीं बताऊंगा। हां, उनका सरनेम शर्मा है, शर्तिया और सौ-फीसदी सच। शर्मा जी दिल्ली में भी आला दर्जे की पत्रकारिता कर चुके हैं। शुरुआत में तो वे भी मध्य प्रदेश के कई बड़े शहरों में भी काम कर चुके थे, लेकिन दिल्ली में तो उनके जलवे ही थे। नामचीन नेताओं-अफसरों से उनके निजी रिश्ते बन गये। दरअसल, बेहद बलौस और तराशी हुई नजर अता फरमायी है खुदा ने उन्हें। वगैरह-वगैरह। लेकिन जैसा कि पत्रकारों के सिर पर से बाल खिसकते-छनते हैं और दीगर पत्रकारों की ही तरह उनकी खोपड़ी पर भी बेरोजगारी के पाले-पाथर बरसे। वे बेरोजगार भी हुए। यह किस्सा उनके इसी दौर का तफसील है।
मेरी बेटी से बहन, दोस्त, मां और दादी तक का सफर किया ट्रिक्सी ने : ट्रिक्सी की मौत ने मुझे मौत का अहसास करा दिया : मुझसे लिपट कर बतियाती थी दैवीय तत्वों से परिपूर्ण वह बच्ची
-कुमार सौवीर-
लखनऊ : मुझे जीवन में सर्वाधिक प्यार अगर किसी ने दिया है, तो वह है ट्रिक्सी। मेरी दुलारी, रूई का फाहा, बेहद स्नेिहल, समर्पित, अतिशय समझदार, सहनशील और कम से कम मेरे साथ तो बहुत बातूनी। अभी पता चला है कि ट्रिक्सी अब ब्रह्माण्ड व्यापी बन चुकी है। उसने प्राण त्याग दिये हैं। ट्रिक्सी यानी मेरी बेटी, बहन, दोस्तन, मां और दादी। ट्रिक्सी को लोगबाग एक कुतिया के तौर पर ही देखते हैं, लेकिन मेरे साथ उसके आध्यात्मिक रिश्ते रहे हैं। शुरू से ही।
: राज्य सूचना आयोग के अफसरों की मनमर्जी बेलगाम, कार्यकर्ताओं में क्षोभ : लखनऊ : सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी छवि चमकाने और पार्टी की जड़ों को जमाने की लाख कोशिश कर लें, उनके अनेक बड़े सूबेदार सारा मटियामेट करने में जुटे हैं। ताजा मामला है राज्य के चर्चित सूचना आयुक्त अरविन्द सिंह विष्ट का, जिन्होंने आज दोपहर एक सूचना कार्यकर्ता के साथ भरे दफ्तर गालियां दीं और अपने सुरक्षाकर्मियों को बुला कर उन्हें एक कमरे में बंद करा दिया। ताज़ा खबर मिलने तक तनवीर बिष्ट के कमरे में गैरकानूनी ढंग से नज़रबंद हैं और उन्हें किसी से भी मिलने से पाबंदी लगा दी गई है।
Kumar Sauvir : जय हिन्द आईजी साहब! कैसे हो मेरे माई-बाप हजूर सरकार? पहले तो आपको बधाई कि आपने आगरा के पत्रकारों को लंगड़ाकर चलना सिखा दिया। पत्रकारों के बदन पर वो लाठियां भांजी है आपने, कि पूछिए मत। देखने वाले दंग थे कि…. छोड़िये यह सब।
: टीवी-24 ने हेमंत को अपना यूपी प्रमुख का ऐलान किया : अनाम से सदुलपुर टाइम्सं का भी यूपी रिपोर्टर था हेमंत : परिवारीजनों को दी गयी पांच लाख रूपयों की आर्थिक मदद : चंदौली : यह मत समझिये कि चंदौली जैसे जिलों के छोटे-मोटे पत्रकार ही गड़बड़ी करते हैं। यूपी से लेकर दिल्ली तक के आला पत्रकार भी ऐसी-ऐसी करतूतें-दलाली करते मिल जाएंगे कि आप दांतों के तले उंगलियां दबा लें। नजीर है चंदौली के हेमंत यादव का मामला, जो लेखपाल और सिपाही से उगाही के लिए तहसीलदार, सीओ, चौकी प्रभारी और थानाध्यक्ष के दावा ही मंडराता रहता था। लेकिन जैसे ही हेमंत की हत्या हुई, दिल्ली के एक न्यूज चैनल ने उसे अपना यूपी प्रभारी होने का दावा कर लिया। टीवी-24 नाम के इस चैनल ने हेमंत की हत्या के बाद जो प्रमाणपत्र जारी किया है, उसमें हेमंत को पूरे प्रदेश में संवाददाताओं की नियुक्ति का अधिकार देने के साथ ही साथ उसे विज्ञापन का भी पूरा जिम्मा भी थमा दिया है।
: चंदौली में जितने दारोगा, उससे छह गुना पत्रकार : हत्या का मामला खोलने के बजाय सिर्फ मटरगश्ती कर रही है पुलिस, सिर्फ वादा : बात-बात पर वसूली करते हैं चंदौली के पराडकर-वंशज : चंदौली : 12 दिन बीत चुके हैं, लेकिन पुलिस अब तक हेमंत यादव के हत्यारों को नहीं खोज पायी है। हां, पिछले छह दिनों से पुलिस ने इस मामले में तीन लोगों को हवालात में बंद रखा है, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकल पाया। हैरत की बात है कि इस हत्या को लेकर चंदौली के एक बड़े पत्रकार संगठन उपजा में जबर्दस्त उठापटक शुरू हो चुकी है। यहां के एक बड़े पदाधिकारी विनय वर्मा ने उपजा से इस्तीफा दे दिया है। हत्या और उसकी साजिश की तपिश इस संगठन के मौजूदा अध्यक्ष दीपक सिंह का चेहरा झुलसा रही है।
Kumar Sauvir : पिछले दस बरसों से एडवरटोरियल पर खूब हंगामा चल रहा है। कई प्रतिष्ठित अखबारों ने इस से अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश भी की है। कम से कम हिन्दुस्तान दैनिक ने तो घूस को घूंसा नाम से एक आन्दोलन तक छेड़़ रखा था। लेकिन अब तो एडवरटोरियल से भी बात कोसों दूर आगे खिसक आ चुकी है। हैरत की बात है कि यह शुरुआत हिन्दुस्तान ने ही छेड़ दिया है। जरा देखिये इस खबर को, और फिर बताइयेगा कि आखिर हमारे समाचारपत्र किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं। देखिये, कितनी बेशर्मी के साथ यह प्रेसनोट छापा गया है।
: जैनी धर्मशाला में पर्यूषण के दौरान हड्डियां और बोतलों के साथ हंगामा : यह आपके अध्यक्ष महोदय हैं। उप्र मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के। ये समिति के ठेकेदार हैं और पुलिस में उनकी दलाली बेहिसाब है। इसलिए जितना भी कुकर्म कर सकते हैं, कर लेते हैं। नाम है हेमन्त तिवारी। फिलहाल तो उनके चेहरे पर कुकर्म एक नया काला धब्बा जुड़ गया है। ताजी सूचना ये है कि छत्तीसगढ़ के रायपुर में जैन समुदाय की निरंजनी धर्मशाला ने हेमन्त तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस आदि अराजक पत्रकारों की करतूत पर खफा होकर 50 हजार रुपयों का जुर्माना लगाने की धमकी दी लेकिन बीच-बचाव कर मामला निपटा दिया गया। इन पत्रकारों पर आरोप है कि उन्होंने जैन समुदाय के पर्युषण अवसर पर जैन समुदाय की निरंजनी धर्मशाला के चार कक्षों में जमकर मदिरा और मांसाहार किया।
दो गुटों में बंटे लखनऊ के पत्रकारों का एक चुनाव आज, दूसरा कल
Kumar Sauvir : पत्रकार समिति चुनाव में दलाल और प्रकाशक…. पत्रकार कहां हैं… गजब दौर है पत्रकारिता का, शर्म उन्हें बिलकुल नहीं आती… दोस्तों। सभी हमारे मित्र हैं और सभी लोग पत्रकार समिति की कार्यकारिणी पर कब्ज़ा करने की लालसा पाले हैं। गुड। वेरी गुड। इन सभी को जीत चाहिए। होनी भी चाहिए। गुड। वेरी गुड। लेकिन क्या किसी ने यह सोचा कि आपको और हम मित्रों को क्या चाहिये, जो मतदाता हैं। जिनके वोट से इन नेताओं की गिरी पीसने के सपने बुने जा रहे हैं। देखिये। इस सवाल का जवाब खुद में खोजिए कि हमारा नेता कौन होगा। कोई पक्का दलाल, झूठा, चाटुकार, दहशतगर्द, कोई मुनाफाखोर प्रकाशक, धंधेबाज, रैकेटियर, गिरोह की तरह कई कई अखबारों का धंधा करने वाला, विज्ञापन की खुली दलाली करने वाला या या या या फिर कोई, वाकई, पत्रकार। जिसके दिल में पत्रकारीय मूल्यों का जज़्बा हो, जूझने का दम हो, पत्रकार हितों के प्रति निष्ठां हो और सबसे बड़ी बात कि आप आदमी के प्रति समर्पण भी हो।
मान्यताप्राप्त पत्रकारों, जाओ मूली उखाड़ो, पेट साफ हो जाएगा… हेमन्त-कलहंस को धरचुक्क दिया तो नया पांसा पड़ा… तू डाल-डाल, मैं पात-पात कहावत सच… हेमन्त-कलहंस धड़ाम…
Kumar Sauvir : आयुर्वेद में मूली का अप्रतिम व्याख्यान है। मूली के जितने गुण आयुर्वेद, यूनानी और ऐलोपैथी सभी पैथियों ने पहचाने हैं, वह अनिर्वचनीय है। लेकिन दिक्कत यह है कि लखनऊ और आसपास के जिलों में खेतों की जगह अब मकान उग चुके हैं। अगर ऐसा न होता दोस्तों, तो मैं आज मैं अपने सभी मान्यताप्राप्त पत्रकार भाइयों को ऐलानिया सुझाव देता कि:- दोस्तों। जाओ, जहां भी दिखे, मूली उखाड़ लो। पत्रकार नेताओं ने अपनी काली-करतूतों के चलते जो बदहजमी का माहौल किया है, उसे सिर्फ मूली ही निदान है।
न करेंगे और न किसी को करने देंगे, विधानभवन के प्रेस-रूम में पुरानी समिति की करतूतों पर पत्रकारों का आक्रोश, उप्र अगले महीने संपन्न होंगे उप्र मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव
Kumar Sauvir : हैल्लो हैल्लो.. हेलो माइक टेस्टिंग हेलो… जी अब ठीक है। शुरू करूँ? … ओके. तो सुनिए… नमस्कारररररर… यह रेडियो यूपी है। अब आप उत्तर प्रदेश से जुडी अहम् खबरें सुन रहे हैं। सरकार ने यूपी में अरबों-खरबों के सरकारी घोटालों के मामले में साढ़े 3 साल तक डासना जेल में बंद रहे वरिष्ठ आईएएस अफसर को सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो का डीजी और प्रमुख सचिव की कुर्सी सौंप दी है। जबकि सरकारी घोटालों और भारी षडयंत्रो का भंडाफोड़ करने वाले जुझारू वरिष्ठतम आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह की कुर्सी छीन कर उन्हें बेआबरू करके बेकार ढक्कन की तरह सड़क पर फेंक दिया है। यूपी सरकार और उसका कामकाज पूरी सक्रियता, ईमानदारी और जान प्रतिबद्धता के साथ जी-जान के साथ प्रदेश के सर्वांगीण विकास में जुटी हुई है। समाचार समाप्त हुए। (लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर के फेसबुक वॉल से.)
: जो मनमर्जी और गुण्डागर्दी का कड़ा विरोध करे, वही सबसे बड़ा गुण्डा : मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति में गुण्डागर्दी पर हेमन्त तिवारी की नई व्याख्या : 25 तक कोई फैसला नहीं हुआ तो 27 को होगी फैसलाकुन बैठक :
लखनऊ : हम आपको बताये दे रहे हैं वह फोन वार्ता का लब्बोलुआब, जो शरत प्रधान और हेमन्त तिवारी के बीच हुई थी। बातचीत का मकसद था उप्र मान्यताप्राप्त पत्रकार समिति का बरसों से लटका चुनाव और उस पर कुण्डली पर बैठे तथाकथित और खुद को दिग्गज कहलाते नहीं थकते पत्रकार। परसों शाम मुख्यमंत्री कार्यालय एनेक्सी वाले मीडिया सेंटर में शरत प्रधान ने वहां मौजूद पत्रकारों को उस बातचीत का मोटी-मोटा ब्योरा सुनाया।
Kumar Sauvir : बीती शाम लखनऊ की एक बेटी फिर कुछ हैवानों की शिकार बन गयी। अलीगंज के बीचोंबीच सेंट्रल स्कूल के पीछे बोरे में दो दिन पुरानी उसकी लाश जब बरामद हुई तो लोग गश खाकर गिर पड़े। उम्र रही होगी करीब 25 साल, कपड़े बुरी तरह फटे हुए। हाथ और पैर तार से बंधे थे। इस बच्ची को जलाया गया था। इतना ही नही, इसके जननांग पर दरिन्दों ने बहुत बड़ा घाव बना दिया था। एक मनोविज्ञानी से बातचीत हुई तो उन्होंने बताया कि ऐसी दरिन्दगी नव-धनाढ्य और इसके बल पर पाशविक ताकत हासिल किये लोगों की ही करतूत होती है। सत्ता का नशा भी सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक तत्व बनता है। तो फिर कौन हैं वह लोग ? शायद एडीजी पुलिस (महिला सुरक्षा) सुतापा सान्याल को पूरी छानबीन के बाद इस बारे में पता चल जाए। इसके एक दिन पहले भी तेलीबाग में भी इसी तरह की एक लाश बरामद हुई थी। क्या वाकई लखनऊ की आबोहवा बेटियों के खिलाफ हो चुकी है? अगर ऐसा है तो हम सब के लिए यह शर्म, भय, निराश्रय, असंतोष के साथ ही साथ चुल्लू भर पानी में डूब जाने की बात है। बेशर्म हम।
Kumar Sauvir : अखिलेश जी। मुझे अपनी मौत का मुआवजा एक कराेड़ से कम मंजूर नहीं… अपने मुआवजा सेटलमेंट के बंटवारे का पूरा प्लान तय कर लिया है मैंने… पत्रकार-समिति के लोगों, 10-20 पेटी अलग ले लेना, पर मेरे हिसाब से नहीं… मैंने कर रखा है एक करोड़ मुआवजा के एक-एक पैसा का हिसाब प्लान… मेरी चमड़ी खिंचवाना व उसमें भूसा भरके मेरी प्रतिमा स्थापित कराना मित्रों…
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार कुमार सौवीर का जौनपुर में सम्मान करते स्थानीय पत्रकार.
: इरादा मजबूत हो तो पत्रकार को कोई भी डिगा नहीं सकता- कुमार सौवीर : लखनऊ से आये वरिष्ठ पत्रकार का जनपद के साथियों ने किया स्वागत : जौनपुर। पत्रकार के कलम की धार तेज हो और उसका इरादा मजबूत हो तो उसे कोई भी डिगा नहीं सकता है। पत्रकारिता को चाटुकारिता न बनाया जाय, क्योंकि इसी के चलते पत्रकार जगत में निरन्तर गिरावट आ रही है।
Kumar Sauvir : अब इस बहस का क्या मतलब कि शाहजहांपुर के पत्रकार जागेन्द्र सिंह ने आत्मदाह किया, या फिर उसे फूंक डाला गया था। खास तौर पर तब, जबकि बुरी तरह झुलसे जागेन्द्र ने लखनऊ के सिविल अस्पताल में अपना जो मृत्यु-पूर्व बयान कई लोगों के मोबाइल पर दर्ज कराया था, उसमें उसने साफ-साफ कहा था कि उसे जिन्दा फूंकने की कोशिश की गयी थी। मगर अब इस काण्ड को दबाने और उन्हें दोषियों को जेल भेजने की कवायद करने के बजाय, जो लोग इस मामले का खुलासा करने में जुटे हैं, उन्हें सपा-विरोधी मानसिकता से ग्रसित होने का आरोप लगाया जा रहा है। इतना ही नहीं, शाहजहांपुर और बरेली से लेकर लखनऊ तक पत्रकारों का एक खेमा इस मामले पर पुलिस और प्रशासन की दलाल-बैसाखी बन कर बाकायदा खुलेआम पैरवी में जुटा हुआ है। इन लोगों का मकसद सिर्फ यह है कि इस बर्बर दाह-काण्ड पर राख डालने की कोशिश की जाए। इसके लिए नये-नये तरीके-तर्क बुने जा रहे हैं।
(यूपी के शाहजहांपुर के पत्रकार जगेंद्र हत्याकांड के खिलाफ दिल्ली में जंतर-मंतर पर हुए प्रदर्शन की एक तस्वीर. वरिष्ठ पत्रकार रुबी अरुण समेत कई महिला पत्रकारों ने इस प्रदर्शन में हिस्सा लिया.)
Kumar Sauvir : यकीन मानिये कि मुझे कत्तई कोई भी जानकारी नहीं है कि आप दलाल-बेईमान हैं या फिर ईमानदार। लेकिन आज मैं दावे के साथ कहना चाहता हूं कि हमारी पूरी की पूरी न सही, लेकिन अधिकांश पत्रकार-बिरादरी सिर्फ दलाली ही करती है। बेईमानी तो इनके रग-रग में रच-बस चुकी है। गौर कीजिए ना कि शाहजहांपुर के जांबाज, लेखनी-सैनानी और जुझारू पत्रकार जागेन्द्र सिंह ने सत्य-उद्घाटन के लिए अपनी जान दे दी, मगर सत्य के सामने सिर नहीं झुकाया। नतीजा, मंत्री राममूर्ति वर्मा के इशारे पर उसके पालतू पुलिस कोतवाल, पत्रकार और अपराधियों ने उसे जिन्दा फूंक डाला।
Kumar Sauvir : बेशर्मी की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं शाहजहांपुर के पत्रकारों ने। जो पत्रकार था, उसे पत्रकार मानने से तैयार नहीं थी यह पत्रकार-बिरादरी और जो पत्रकार नहीं हैं, उन्हें जबरिया पत्रकार का तमगा देने पर आमादा थे यही लोग। पत्रकारिता के नाम पर कलंक बने इन्हीं हत्यारेनुमा पत्रकारों ने पुलिस, अफसर, नेता और मन्त्री की चौकड़ी तैयार कर ऐसा जाल बुन डाला, जिस शिकंजे में जागेन्द्र सिंह को जकड़ लिया गया और दिन-दहाड़े उसे पेट्रोल डाल कर जिन्दा फूंक दिया गया। इतना ही नहीं, जागेन्द्र सिंह की मौत के बाद अब इन्हीं पत्रकारों ने उसके नाम पर मर्सिया भी पढ़ना शुरू कर दिया है। हैरत की बात है कि जागेन्द्र सिंह की हत्या के बाद जिले के एक भी अधिकारी ने जागेन्द्र के घर जाने की जहमत नहीं फरमायी, लेकिन मूल कारणों को खोजना-विश्लेषण करने के बजाय अब इन्हीं पत्रकारों की टोलियां अब जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक और यहां के नेताओं की ओर से प्रतिनिधिमण्डल बना कर जागेन्द्र सिंह के घर पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं, यही पत्रकार अब इन अफसरों-नेताओं की ओर से आश्वासन तक दे रहे हैं कि जागेन्द्र की पत्नी को अनुग्रह दिलाया जाएगा, पीडि़त परिवार को मकान दिया जाएगा, उसे जमीन मुहैया करायी जाएगी और आश्रित लोगों को सरकारी नौकरी दिलायी जाएगी।
Kumar Sauvir : मुझे तो अब अक्सर ऐसा साफ लगने लगता है कि जो पढ़-लिख कर डीएम बन जाता है, वह वाकई बेवकूफी या अभद्रता का दामन सम्भाल लेता है। उनसे ज्यादा समझदार और संवेदनशील तो साबित होता है किसान, जो अफसरशाही कार्यशैली से लेकर प्रकृति तक की निर्ममता का सामना करना होता है। नजीर हैं हरदोई के जिलाधिकारी रमेश मिश्र। हरदोई के डीएम ने डीएम हरदोई के नाम पर एक नया फेसबुक पेज बनाया है, जिसमें वे दिन भर अपनी ढपोरशंखी ढफली बजाया करते हैं कि:- आज मैंने इतने लोगों को लाभान्वित किया, उतने लोगों को उतना फायदा उठाया। इतने लोगों के साथ हेन किया, और उतने लोगों को हेन किया। ऐसा किया, वैसा किया, यू किया, ऊ किया, अइसन किया, वइसन किया।
Kumar Sauvir : पत्रकारिता पर चर्चा शुरू हुई तो अशोक श्रीवास्तव ने बुरा-सा मुंह बना लिया। मानो किसी ने नीम को करेले के साथ किसी जहर से पीस कर गले में उड़ेल दिया हो। बोला:- नहीं सर, अब बिलकुल नहीं। बहुत हो गया। अशोक श्रीवास्तव, यानी 12 साल पहले की जान-पहचान। मैं पहली-पहली बार जौनपुर आया था। राजस्थान के जोधपुर के दैनिक भास्कर की नौकरी छोड़कर शशांक शेखर त्रिपाठी जी ने मुझे वाराणसी बुला लिया। दैनिक हिन्दुस्तान में। पहली पोस्टिंग दी जौनपुर।
Kumar Sauvir : मायावती ने एलान किया कि अखिलेश दास ने राज्यसभा की मेम्बरी के लिए बसपा को सौ करोड़ रुपया देने की पेशकश की थी। अखिलेश दास ने इस आरोप को ख़ारिज किया और कहा कि उन्होंने कभी भी एक धेला तक नहीं दिया। हालांकि सभी जानते हैं कि अखिलेश दास के पास बेहिसाब खज़ाना है। बस, वो खर्च तब ही लुटाते हैं जब उनकी कोई कर्री गरज फंसी होती हो। लखनऊ वालों को खूब याद है की लखनऊ संसदीय सीट के चुनाव की तैयारी में अखिलेश दास ने रक्षाबंधन, दीवाली, भैया दूज, होली, ईद-बकरीद तो दूर, करवा-चौथ तक के मौके पर घर-घर मिठाई और तोहफों के पैकेट भिजवाने के लिए सैकड़ों कार्यकर्ताओं की टीम तैनात कर रखी थी।
Kumar Sauvir : पालतू कूकुर और सड़कछाप कूकुर की फितरतों में बड़ा फर्क होता है। ताजा-ताजा पालतु हुआ कूकुर बहुत भौकता है और ताजा-ताजा सड़कछाप हुआ कूकुर बहुत झींकता हैं, मिमियाता है और बगलेंं भी खूब झांकता है। यह हकीकत दिखाया एबीपी-न्यूज के एक कार्यक्रम में। मौका है दिल्ली के चुनावों को लेकर। एक दौर हुआ करता था जब वरिष्ठ पत्रकार रहे आशुतोष ने एक कार्यक्रम में कांग्रेस के एक सांसद की इस तरह क्लास ली थी कि वह खुद ही कार्यक्र से भाग गया। ऐसे कई मौके आ गये हैं आशुतोष के कार्यक्रमों में जब उन्होंने बड़े-बड़े नेताओं की जमकर क्लास ली।