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युवा महिला पत्रकार पर संपादक महोदय की इतनी मेहरबानी क्यों!

मामला दैनिक भास्कर का है. इस अखबार के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल के रंगीन किस्से अभी थमे भी नहीं कि एक संपादक महोदय का किस्सा सामने आ गया है. इस अखबार में काम कर रही एक कन्या और एडिटर के बीच चौंकाने वाली कॉल डिटेल्स पूरे समूह में चर्चा का विषय बन गई है. जिन संपादक महोदय की बात हो रही है, वे दूसरे संस्करणों के संपादकों और दूसरे लोगों के फोन कॉल्स या एसएमएस का जवाब देने में रुचि नहीं दिखाते लेकिन स्वयंभू ओजस्वी संपादक उक्त कन्या के साथ देर रात से लगभग सुबह तक लगातार दो-दो तीन-तीन घंटे फोन पर बात करते रहते हैं.

मामला दैनिक भास्कर का है. इस अखबार के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल के रंगीन किस्से अभी थमे भी नहीं कि एक संपादक महोदय का किस्सा सामने आ गया है. इस अखबार में काम कर रही एक कन्या और एडिटर के बीच चौंकाने वाली कॉल डिटेल्स पूरे समूह में चर्चा का विषय बन गई है. जिन संपादक महोदय की बात हो रही है, वे दूसरे संस्करणों के संपादकों और दूसरे लोगों के फोन कॉल्स या एसएमएस का जवाब देने में रुचि नहीं दिखाते लेकिन स्वयंभू ओजस्वी संपादक उक्त कन्या के साथ देर रात से लगभग सुबह तक लगातार दो-दो तीन-तीन घंटे फोन पर बात करते रहते हैं.

रात एक बजे से सुबह तीन बजे के बीच ऐसा कौन सा अखबार या स्पेशल एडिशन बनता है, जिसके लिए दोनों के बीच इतनी लंबी चर्चा की संभावना हो. जबकि कन्या जिस सेक्शन में काम करती है, उसके पास किसी संस्करण का कोई काम ही नहीं है. प्रबंधन ने सिर्फ कुछ पेज बनाने की जिम्मेदारी तक इस टीम को सीमित रखा हुआ है, जिसमें संस्करणों की तरह रात के काम की कोई गुंजाइश ही नहीं है.

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कॉल्स, एसएमएस और उनके लगातार रिप्लाई का समय ध्यान देने लायक है. 15 जुलाई 2014 को दोनों के बीच रात 12 बजकर 56 मिनट पर बातचीत शुरू होती है पूरे एक घंटा चलती है. फिर फोन कटता है और कुछ ही सेकंड में फिर चर्चा शुरू हो जाती है, जो देर रात 2 बजकर 56 मिनट पर खत्म होती है. ऐसा कौन सा विषय है, जिस पर इतना लंबा विचार-विमर्श दोनों के बीच होता रहा और जब घंटों की सीधी बातचीत से चर्चा पूरी नहीं हुई तो सैकड़ों की तादाद में एसएसएस का आदान-प्रदान प्रतिदिन हुआ. मैसेज के माध्यम से अक्सर यह संवाद ऑफिस टाइम में भी जारी रहा है जबकि दोनों ही चंद फ़ीट की दूरी पर बैठे रहे होंगे.

22 जुलाई को रात 11 बजकर 56 मिनट से 23 जुलाई की सुबह 8 बजकर 13 मिनट के बीच सौ से ज्यादा मैसेज आए-गए. 52 एसएमएस एक तरफ से हुए, जिनके लगातार जवाब आते रहे. यानी पूरी रात मैसेज और उनके रिप्लाई में गई. इसी महीने 2 जुलाई को रात 10.26 मिनट से 3 जुलाई की सुबह 3 बजकर 32 मिनट के बीच पूरी रात 19 एसएमएस यहां से गए और इनके जवाब वहां से आए. अगस्त के महीने में करीब 275 एसएमएस एक तरफ से भेजे गए, जिनके जवाब कुछ ही सेकंड में आए. सितंबर के महीने में दोनों के बीच 400 एसएमएस का आदान-प्रदान हुआ. एक सितंबर को सुबह 10.34 मिनट से देर रात दो बजे के बीच ही 60 से ज्यादा एसएमएस आए-गए. भड़ास के पास तीन महीने के एक कॉल डिटेल्स हैं.

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यहां यह बताना जरूरी है कि इस खबर को छापकर भड़ास का मकसद किसी के निजी जीवन में दखल देना नहीं बल्कि यह जताना है कि आफिस टाइम में आफिस के काम की जगह दूसरा काम करना संपादक को कितना शोभा देता है. साथ ही, किसी कन्या पत्रकार पर किन्हीं अन्य वजहों से अत्यधिक मेहरबानी ठीक बात नहीं है. साल भर के भीतर ही संपादक जी ने कन्या पत्रकार को विदेश यात्रा तक करा दी. तो लोग क्यों न अर्थ निकालें कि इतनी मेहरबानी के पीछे कुछ खास बात तो जरूर है. हर रोज दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले संपादक को कभी अपने गिरहबान में भी झांक लेना चाहिए. आप प्रेम करिए. लेकिन आफिस टाइम से इतर करिए.

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0 Comments

  1. cheeta reporter

    December 25, 2014 at 5:33 am

    😀

  2. Abhi

    February 13, 2015 at 10:53 pm

    पार्ट- वन
    महोदय, देश का सबसे बड़ा समाचार पत्र होने के नाते दैनिक भास्कर प्रकाशन समूह से नैतिक मूल्यों पर भी ख़रा उतरने की अपेक्षा रखना स्वाभाविक है। आये दिन समूह का प्रबन्धन, एचआर विभाग और सम्पादकगण ऐसे विषयों पर कई ईमेल भी अपने सहकर्मियों को भेजते रहते हैं। औरों को उपदेश देने से पहले अख़बार के सर्वोच्च प्रबन्धन को ख़ुद नैतिक मानदंडों का संरक्षक बनना चाहिए। लेकिन भास्कर समूह के सम्पादकीय विभाग में शीर्ष स्तर पर सारी मर्यादाओं की धज्जियाँ उड़ायी जा रही हैं। जबकि प्रबन्धन मूक दर्शक बना बैठा है!

    इस सन्दर्भ पत्र के साथ भास्कर समूह के सम्पादकीय विभाग के नैशनल न्यूज़ रूम में कार्यरत एक जूनियर महिला पत्रकार के मोबाइल की तीन महीने की कॉल डिटेल्स संलग्न हैं। आपसे आग्रह है कि ज़रा देखिए कि इसमें भास्कर समूह के ग्रुप एडिटर के मोबाइल नम्बर का इस्तेमाल कितनी शिद्दत और कितनी-कितनी देर के लिए किस-किस वक़्त पर हो रहा है! ये कोई पेशेवर बातचीत नहीं है, बल्कि अनैतिक दीवानगी की स्वयंसिद्ध मिसाल है। इसमें भास्कर के ‘ओजस्वी और स्वनाम धन्य’ सम्पादक को अपनी महिला सहकर्मी के साथ लगातार घंटों-घंटों बतियाते देखा जा सकता है। ये बात इसलिए भी और अखरती है कि ये उसी कल्पेश ‘जी’ की करतूत है जो समूह के अन्य संस्करणों के सम्पादक या दूसरों लोगों की कॉल्स या एसएमएस का कभी कोई जवाब देने का सामान्य शिष्टाचार भी नहीं दिखाते हैं।

    क्या भास्कर समूह का शीर्ष प्रबन्धन इस तथ्य की तह तक जाना चाहेगा कि संपादक और उनकी चहेती रात के एक बजे से भोर के तीन बजे के बीच लगातार दो-दो, तीन-तीन घंटे तक बात करके किस अख़बार और उसके स्पेशल संस्करण पर मशविरा कर रहे होते होंगे, जिसके लिए ऐसी विहंगम चर्चा की गुंज़ाइश हो? ग़ौरतलब है कि दैनिक भास्कर समूह के नैशनल न्यूज़ रूम के पास किसी संस्करण जैसा कोई काम नहीं होता। उसकी ज़िम्मेदारी सिर्फ़ कुछ पेज़ों को बनाने तक ही सीमित रखी गयी है।

    …जारी…

  3. Abhi

    February 14, 2015 at 4:24 am

    पार्ट- टू
    कॉल डिटेल्स पर ग़ौर करके आप पाएँगे कि 15 जुलाई 2014 को दोनों के बीच रात 12 बजकर 56 मिनट पर बातचीत शुरू होती है जो पूरे घंटे भर चलती है। फिर कुछ क्षण के लिए फोन कटता है और ऐसी चर्चा बहाल होती है जो रात के 2 बजकर 56 मिनट तक चलती है। यही नहीं, कितनी ही बार तो ऐसा भी हुआ कि दोनों के बीच दफ़्तर में बैठे-बैठे ही सैकड़ों की तादाद में एसएमएस का आदान-प्रदान हुआ वो भी तब जबकि दोनों एक ही हॉल में महज़ कुछ फीट की दूरी पर ही बैठते हैं। कॉल डिटेल्स इस बात का गवाह है कि दोनों पूरे समर्पण से एसएमएस पाने और उसे भेजने में जुटे रहते हैं। तभी तो 22 जुलाई 2014 को रात में 11 बजकर 56 मिनट से लेकर अगले दिन की सुबह 8 बजकर 13 मिनट के दौरान सौ से ज़्यादा मैसेज़ का आना-जाना हुआ। एक तरफ से 52 एसएमएस गये और वैसी ही शिद्दत से दूसरी ओर से जवाब भी आये। इस सिलसिले में कब रात गुज़र गयी और सूरज सिर पर आ गया होगा, ये समझना मुश्किल नहीं है! इसी तरह से अगस्त में क़रीब 275 एसएमएस एक तरफ़ से भेजे गये! सितम्बर में इनकी संख्या 400 को पार कर गयी। एक सितम्बर 2014 को सुबह 10 बजकर 34 मिनट से लेकर देर रात 2 बजे के दौरान 60 से ज़्यादा एसएमएस का आवागमन हुआ!

    अब ज़रा इस ‘सुलक्षिणी’ महिला पत्रकार के बारे में भी जान लीजिए। पंजाबी मूल की इस महिला ने सिर्फ़ डेढ़ साल पहले नैशनल न्यूज़ रूम को ज्वाइन किया था। ज्वानिंग के कुछ ही वक़्त बाद कई वरिष्ठ सम्पादकीय सहयोगियों को इस ‘विदुषी’ का मातहत बना दिया गया, जो असल में सारे काम निपटाते थे। महिला पत्रकार की ‘विलक्षण’ प्रतिभा और ‘सेवाओं’ से खुश होकर साल भर के भीतर समूह सम्पादक ने कदाचित उन्हें आबोहवा बदलने के लिए फ्रांस यात्रा पर भी भेज दिया। यही सिलसिला उन्हें संस्थान की ओर दिल्ली और मुम्बई में आयोजित कई महत्वपूर्ण सेमिनारों और कॉन्फ्रेंसेस की कवरेज़ के लिए भेजकर भी निभाया गया। इसके अलावा भी ‘शानदार प्रदर्शन’ के नाम पर इन्हें कई और इनामों से भी नवाज़ा गया।

    साफ़ है, इस संपादक जैसे ढोंगी और पतित सम्पादक ने न सिर्फ़ भास्कर समूह की प्रतिष्ठा पर बट्टा लगाया है, बल्कि पेशवर पत्रकारिता को भी कलंकित किया है। अब तो सिर्फ़ यही देखना बाक़ी है कि भास्कर प्रबन्धन ऐसे चरित्र-विहीन सम्पादक और उसकी कथित ‘रखैल’ के ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई करता है! इस संपादक की करतूतें ‘पत्रकारिता के आसाराम’ जैसी हैं। ये वही नरभक्षी है जो जयपुर, दिल्ली, अहमदाबाद और भोपाल में घंटों भाषण देकर पत्रकारिता के उच्च मानदंडों की दुहाई देने के लिए कुख्यात है। लेकिन न जाने इसने भास्कर प्रबन्धन को कौन सी अफ़ीम चटा रखी है, जो इस कोढ़ को ढोने के लिए अभिशप्त है! क्या आप भास्कर को समुचित नसीहत देना चाहेंगे?

    समाप्त

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