आज के अखबारों में भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गौतम नवलखा को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिल जाने की खबर प्रमुखता से छपी है तो द टेलीग्राफ ने इस खबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुरूजी, संभाजी भिडे के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा छह मामले वापस लिए जाने की खबर के साथ प्रमुखता से छापा है। महाराष्ट्र ने भिडे के खिलाफ छह मामले खत्म किए – फ्लैग शीर्षक है और मोदी के गुरूजी के लिए सरकारी कृपा शीर्षक से अखबार ने इस खबर को बॉटम बनाया है। खबर के बीच में गौतम नवलखा की छोटी सी खबर फोटो के साथ है जिसका शीर्षक है, जमानत मिली।
खबर के मुताबिक भीमा कोरेगांव हिंसा के शुरुआती प्रमुख आरोपी, संघ परिवार के सहयोगी, भिडे का नाम एक जनवरी की जातीय हिंसा के बाद दाखिल कराई गई एफआईआर में था। जबकि एक साल बाद इस मामले में गिरफ्तार किए गए 10 वाम झुकाव वाले ऐक्टिविस्ट्स में से सिर्फ एक का नाम इसमें था। अखबार ने लिखा है कि आरटीआई के तहत हासिल जवाब के मुताबिक भाजपा नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने जून में भिडे के खिलाफ मामले वापस ले लिए थे। इससे पहले राज्य मंत्रिमंडल की एक उपसमिति ने इस संबंध में निर्णय लिया था। अखबार ने लिखा है कि 2014 का अपना चुनाव अभियान शुरू करने से पहले नरेन्द्र मोदी सांगली स्थित भिडे के घर गए थे और एक जनसभा में कहा था, मैं स्वयं सांगली नहीं आया हूं। मुझे भिडे गुरूजी ने आपके शहर में आने का आदेश दिया था और मैं यहां हूं।
अखबार ने आगे लिखा है, पुणे के एक वकील ने पूछा, क्या पुलिस के लिए एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करना संभव है जिसके पांव प्रधानमंत्री छूते हैं। बुजुर्ग भिडे श्री शिव प्रतिष्ठान के संस्थापक हैं और अपना रास्ता अलग चुनने से पहले सतारा-सांगली-कोल्हापुर के क्षेत्र में आरएसएस के प्रचारक थे। कोल्हापुर रेंज के विशेष इंस्पेक्टर जनरल, विश्वास नांगरे पाटिल ने कहा, उन्हें 2008 से लेकर अब तक के सभी मामलों से मुक्त कर दिया गया है। अखबार के मुताबिक मुंबई के एक आरटीआई कार्यकर्ता शकील अहमद शेख ने मार्च में एक आरटीआई के जरिए जानना चाहा था कि 2008 से अब तक राजनीतिकों के खिलाफ कितने मामले वापस लिए गए हैं। दो अपीलों के बाद उन्हें शनिवार को जवाब मिला।
भिडे के खिलाफ कुछ मामले 2008 के हैं जब वे और उनके समर्थकों ने आशुतोष गोवारीकर की फिल्म जोधा अकबर के प्रदर्शन के खिलाफ ऐतिहासिक गलतियों का आरोप लगाते हुए थिएटर में तोड़-फोड़ की थी। कुछ महीनों बाद उन्होंने सांगली में भी भारी हंगामा किया था। सरकार द्वारा मामला वापस लिए जाने के छह महीने बाद भिडे का नाम एक जातीय हिन्सा में आया। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। एफआईआर में भिडे और भाजपा पार्षद तथा हिन्दू एकता मंच के संस्थापक, मिलिन्द एकबोटे का नाम था। एकबोटे जमानत पर हैं लेकिन भिडे को कभी गिरफ्तार ही नहीं किया गया। पुणे के एसपी ग्रामीण संदीप पाटिल ने भिडे के मामले में कहा कि उनके शामिल होने का कोई सबूत नहीं है। हमारे पास एकबोटे के खिलाफ सबूत है और जल्दी ही चार्जशीट दाखिल की जाएगी।
पुणे पुलिस ने मामले से संबंध में इस साल जून में पांच ऐक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार किया और पांच अन्य को अगस्त में पकड़ा। इसके लिए देश भर में कई जगह छापे मारे गए। उनपर माओवादियों से संपर्क रखने और मोदी की हत्या और सरकार गिराने की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया है।
पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]