पिछले कई महीनों से यहां-वहां सुन रहा था। लोग कह रहे थे कि भोजपुरी को नई शारदा सिन्हा व विंध्यवासिनी देवी मिलती दिख रही है। कोई चंदन तिवारी है, जो भोजपुरी गाती है। उम्र अभी कम है, लेकिन टपकेबाजों को सुनने के लिए नहीं गाती। सड़कछाप भी दूर हैं। चंदन की भोजपुरी को सभी घर-परिवार में बैठ सुन सकते हैं। मैंने कभी सुना नहीं था, सो कहने वालों के लिए कुछ जोड़-घटा नहीं सकता था। पिछले महीने रांची के रास्ते जमशेदपुर जा रहा था। बाहर झमाझम बारिश हो रही थी। थकान के कारण मन अलसाया था। तभी सारथी समीर ने कोई सीडी बजा दी। भोजपुरी सुन पहले तो मन नहीं रमा। तभी अचानक ‘बेटी की विदाई’ की गीत के बोल निकले। विदाई की कसक थी, दर्द भरे शब्द थे। मन की अलसाहट खत्म हुई। ध्यान से सुनता गया। रोने के अलावा कुछ नहीं बचा था। लगा घर से मेरी बिटिया जाएगी, तब भी ऐसा ही होगा।
सारथी समीर से सीडी का कवर देने को कहा। अब समझ में आया कि लोग जिस चंदन तिवारी की बात कर रहे थे, वह गा रही थी। सचमुच, भोजपुरी के नये दौर में उच्छृंखलता मुक्त ऐसे किसी सीडी की उम्मीद नहीं थी। पटना में मीडिया के साथियों से चंदन तिवारी के बारे में पूछा। बताया गया कि पैदा तो पीरो में हुई, अभी बोकारों में रहती है। फिर बोकारो के साथी लाइन पर आये। मैंने चंदन से मिलने की इच्छा जताई। कहा गया कि अगले दिन शो है, मुलाकात होने पर बात करा दी जायेगी। बात हुई भी। यह मेरे लिए और दंग करने की बात थी कि वह मुझे जानती थी। फेसबुक में मेरे साथ कनेक्ट थी। चंदन ने कहा कि पटना आकर मिलूंगीं।
मिलना अभी शेष था। लेकिन जानकारियों ने चंदन के प्रति मेरा स्नेह कुछ और बढ़ा दिया। अभी संघर्ष पथ पर है चंदन। संघर्ष पथ के वक्त मिले मौके को कई गंवाना नहीं चाहता। लेकिन कमिटमेंट के आगे आफर को आगे के लिए टाल देना बड़ी बात होती है। मारीशस में 31 अक्तूबर से विश्व भोजपुरी सम्मेलन का आयोजन है। चंदन को न्योता आया। कौन नहीं जाता। किंतु चंदन ने यह कहकर माफी मांग ली कि इस दौरान अनाथाश्रम के बच्चों के साथ रहना है। कई माह पहले वचन दे चुकी हूं। बच्चे चंदन की गीतों पर पिछले तीन माह से डांस की तैयारी कर रहे हैं। बिना मिले चंदन की भावनाओं की मैंने कद्र की।
अब मंगलवार सात अक्तूबर की बात करते हैं। शाम को मैं अपने कार्यालय में था। पुराने जान-पहचान वाले के साथ कोई लड़की आई। सीधे पैर छूकर आशीष लिया। जानने वाले ने कहा कि सर चंदन है। मैं फिर कंफ्यूज कर गया। जब बोकारो की बात हुई, तो मैंने समझा। चंदन ने बताया कि डुमरांव में शो था। लौटते वक्त बिना मिले न जाने की प्रतिज्ञा ली थी। ट्रेन पकड़ने के पहले आ गई स्नेह लेने। चंदन की शिष्टता कायल करने के लिए काफी थी। फिर आधे घंटे की लंबी बातचीत हुई। आदतन मैंने चंदन के भोजपुरी अवतार के बारे में पूछ लिया। चंदन ने कहा कि मां को गायन का शौक था। बचपन में देखा करती थी कि मां मंदिर-घरों में जाकर भजन करती है। हारमोनियम पर मां की चलती हुई अंगुलियां दिखती थी। जब कुछ बड़ी हुई व बोकारो आ गई, तो मां से उन दिनों के बारे में पूछा। मन संगीत की ओर मेरा मुड़ चुका था। मां ने कहा कि वह खुद बड़े कैनवास पर गाना चाहती थी, लेकिन भोजपुर की मिट्टी-पानी तब ऐसी नहीं थी कि देहरी से बाहर घर की महिला को स्टेज पर आने दे। चंदन ने इसी बहाने मुझे शारदा सिन्हा, विंध्यवासिनी देवी, मालिनी अवस्थी आदि की याद दिला दी। ये सभी जरुर भोजपुरी गाती हैं, लेकिन भोजपुरीभाषी हैं नहीं।
बेटी की इच्छा को देख मां ने अपने अधूरे ख्वाब को पूरा करने को पंख दिया। कंपीटिशन में चंदन भाग लेती रही। आगे-पीछे मुकाबले में जरुर रही। मुंबई से बुलावा आया। गये तो कई महंत मिले। कहा, ‘मुंबई में रहो, कहा करो’ -तभी बात बनेगी। लेकिन चंदन को यह बात रास नहीं आई। वह न तो फूहड़ गाने को तैयार थी और न ही समझौते के लिए राजी। यह भी देखा कि शारदा सिन्हा व अन्य तो बिहार में रहकर ही पॉपुलर हुई। फिर मैं क्यों नहीं हो सकती। ठोस मन से मुंबई छोड़ अपने शहर को आई। पुरबिया तान नाम से चंदन अभियान की शुरुआत की। महेंदर मिसिर व भिखारी ठाकुर के गीतों की सीरीज तैयार की। साउंड क्लाउड व यू ट्यूब के जरिये गीतों को साझा किया। चंदन की खुशी का ठिकाना तब न रहा, जब मालूम हुआ कि एक गीत को 48 घंटे में 30 हजार से अधिक लोगों ने सुना। इस बड़ी सफलता ने आरा, छपरा, बक्सर की जगह चंदन के लिए आने वाले स्वर्णिम दिनों ने सूरत, दुबई, अहमदाबाद, अमेरिका आदि में भी स्पेस बना दिया।
चंदन ने सीडी के जाल-बट्टे की तुलना में आनलाइन माध्यम को गीत-संगीत की लांचिंग का जरिया बनाया। वैसे सीडी से बिलकुल अलग नहीं हुई। हां, इसका ध्यान अवश्य रखा कि सब कुछ सबों के साथ मिलकर सुना जा सके। भोजपुरी में अश्लीलता के खिलाफ अभियान चलाने वाले लोकराग व बिदेसिया का साथ मिला। मीडिया ने भी सुर्खियां दी। सुनने के बाद मनोज वाजपेयी, भरत शर्मा व्यास के साथ मालिनी अवस्थी व शारदा सिन्हा ने भी चंदन की तारीफ की।
मारीशस न जाने के बारे में चंदन ने कहा कि सर, कभी भी चले जायेंगे। लेकिन अनाथाश्रम के बच्चे तो मना करते ही उदास हो जाते। मैं उन्हें उदास नहीं देख सकती थी। मारीशस के भोजपुरी फेस्टिवल में लोकार्पण के लिए मेरे गाये गीतों का अलबम ‘पुरबिया तान’ जरुर जा रहा है। मार्च, 15 में अमेरिका का न्योता मिल चुका है। चंदन फिलहाल एक नई श्रृंखला पर काम कर रही है, जिसमें वह बच्चों के लिए गांव की गलियों से संजोकर लाये गीतों को आवाज देने जा रही है। मैंने नई श्रृंखला के लिए चंदन को शुभकामनाएं दी। चंदन को साफ-सुथरे पथ में कुछ समय तक आने वाली आर्थिक दिक्कतों का ख्याल भी है, पर फूहड़ता में जाने को बिलकुल तैयार नहीं है। जाते-जाते चंदन को मैंने फिर से ‘बेटी की विदाई’ वाले गीत की बधाई दी। साथ में यह वचन भी लिया कि स्टार चाहे जितनी बड़ी बन जाना, बुलाने पर कभी मेरे घर भी आ जाना।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश्वर के फेसबुक वॉल से।