दुनिया की नंबर वन एमएलएम कंपनी बनने का दावा करने वाले ‘कैनविज समूह’ के अखबार ‘कैनविज टाइम्स’ के कर्मचारी भुखमरी के कगार पर आ खड़े हुए हैं। पत्रकारों के हालात ऐसे हो गए हैं कि किसी पास दफ्तर पहुंचने का किराया नहीं है तो कोई अपने घर का किराया देने में असमर्थ है। कैनविज प्रबंधन कान में तेल डाले बैठा है। उसका पत्रकारों के दयनीय हालातों से कोई वास्ता नहीं। चर्चा है सैलरी लटकाने का ‘खेल’ प्रबंधन छंटनी को अंजाम देने के लिए खेल रहा है।
कैनविज समूह के दूसरे सभी विभागों के कर्मचारियों को समय से सैलरी वितरित कर दी गई है लेकिन पत्रकारों को ‘गोली’ दी जा रही है। जिनके कंधों पर सवार होकर गुलाटी ने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा किया, उन्हीं की जड़ें खोदने की तैयारी चल रही है। प्रबंधन की तरफ से किसी भी प्रकार का जवाब न मिलने से कैनविज के कर्मचारियों की हालत घर का सारा काम करने वाली उस छोटी बहू की तरह हो गई है जिसे हर कोई दुत्कारता है, लेकिन फिर भी वो घर के सभी लोगों की तरफ बड़ी उम्मीद से देखती है।
नोट : कैनविज के पत्रकारों से इंडस्ट्रीयल एरिया में काम करने वाले मजदूर फिर भले हैं, उनका मालिक कम से कम इतना तो बता देता है कि शाम तक इतना काम करने पर इतना पारिश्रमिक मिलेगा, कैनविज प्रबंधन तो अपना काम भी करा लेता है और कोई समुचित जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझता।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Comments on “भुखमरी के कगार पर कैनविज टाइम्स के पत्रकार”
कैनविज टाइम्स अखबार के लिए भुखमरी शब्द का प्रयोग करना बहुत ही गलत बात है। राजधानी का यही ऐसा अखबार है,जहां का प्रबंधन तय समय पर पत्रकारों को सैलरी प्रदान करता है। भुखमरी शब्द का प्रयोग करने वाले को ईश्वर सद्बुद्धि प्रदान करें।