मेरा नाम अब्दुल सत्तार है। पेशे से मैं पत्रकार हूँ और इस समय उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद से प्रकाशित होने वाले दैनिक हिंदी अखबार खुसरो मेल में विशेष संवाददाता के पद पर लखनऊ में कार्यरत हूँ। एक महत्वपूर्ण विचारधारा के साथ आपके राजनैतिक लक्ष्य की कामना करने के साथ आपको भाजपा उत्तर प्रदेश मुख्यालय की लगातार हो रही एक गड़बड़ी से अवगत कराना चाह रहा हूँ। पार्टी प्रदेश मुख्यालय में हर तरफ चौकसी रहे (कार्यकर्ताओं पर भी) इसके लिए पार्टी प्रशासन की तरफ से कई एक सीसी टीवी कैमरे लगाए गए है। यहां तक मुख्यालय परिसर स्थित पेड़ों की टहनियों पर भी, जो किसी को भी दिखाई नहीं देते।
चौकसी की इस मंशा में प्रशासन की यह व्यवस्था प्रशंशनीय है। मगर अति कष्ट कारक भी। केंद्रीय स्तर पर ऊंची सोच के लोग बैठे ज़रूर होंगे, लेकिन यहां नहीं। वह इसलिए क्यूंकि यहां सेवारत मुख्यालय प्रभारी की नज़र व्यवस्था और सतर्कता पर कम, आरामतलवी, चरण वंदन लेना व स्वप्रशंसा पर अधिक रहती है। अपने मन और कई अन्य द्वारा कही गयी बातों को यहां ला इसलिए रहा हूँ, क्यूंकि मेरे साथ पार्टी प्रदेश कार्यालय में हुई एक घटना ने मजबूर किया।
दरअसल, कभी कभी की तरह (08 जनवरी गुरुवार) मैंने अपनी मोटर साईकिल मुख्यालय की व्यवस्था अनुसार निर्धारित स्थान पर खड़ी की थी। समाचार संकलन के दौरान ही अचानक किस काम से मुझे पार्टी मुख्यालय से पैदल ही बाहर निकलना पड़ा। विश्वनीयता को ध्यान में रखते हुए मोटर साईकिल वहीं छोड़ दिया। कुछ समय बाद लौट कर आया तो निर्धारित स्थान पर मोटर साईकिल नहीं थी। अपने स्तर से पूरे परिसर में पूछ-ताछ कर जानकारी ली। मिली जानकारी के अनुसार और अधिक जानकारी के लिए कार्यालय प्रभारी श्री भारत दीक्षित जी से सम्पर्क करने को कहा गया, जो सीसी टीवी फुटेज की अधिकृत जानकारी दिलाकर मेरा सहयोग कर सकते थे।
यह सुनकर अपनी मोटरसाइकिल मिल जाने का विश्वास हो गया। मगर उनकी प्रशासनहीनता शीघ्र ही सामने आयी, जब उनकी टीम द्वारा कई बार कोशिश के बाद भी सीसी टीवी द्वारा रिकार्डेड फुटेज की कोई भी क्लिप दिखा नहीं सका। मुझे याद है सी सी टीवी लगने के बाद राजधानी का कोई ऐसा समाचार पत्र नहीं था, जिसने इस वाकये को सुरक्षात्मक दृष्टी से प्रकाशित ना किया हो। मेरे कई सहयोगी भी इससे प्रसन्न हुए थे। लेकिन वो प्रसन्नता और टीवी फुटेज की रिकार्डेड क्लिप ना मिलने से यह प्रसन्नता काफूर हो गयी। जो स्वाभिक है। अब मुझे अपने चिंता के साथ वह चिंता भी सता रही है कि यदि कल को कोई बड़ी दुर्घटना घटित हो जाए, तो उसका जिम्मेदार यह पार्टी किसे मानेगी।
ज़ाहिर है, हममें से ही किसी को। इस चिंता का आधार माहौल और अनुभव है। बात यहां केवल मेरी मोटरसाइकिल खोने की नहीं है। यहां तैनात प्रभारी की सूचना प्रौद़योगिकी क्रांति से विरत होना है। ऐसे में जब पार्टी इस क्रान्ति का सर्वाधिक लाभ ले रही हो, कष्ट के साथ लिखना पड़ रहा है कि टाइटेनिक रुपी जहाज़ में प्रभारी जी उस जंग लगी नट की तरह हैं जो अपनी चूरी में फिट ना हो पाया हो और समुद्र की तूफानी धाराओं को नहीं झेल पाती है।
फिलहाल केंद्र में तो अपनी सरकार है, 2017 भी अपना ही है, ऐसी ही चर्चा कर रही मंडली के बीच बैठे श्री दीक्षित के सम्मुख फुटेज का रिकॉर्ड न मिलने का सवाल मैंने उठाया तो उनका दंभी स्वरुप व्यवहार ठीक उसी तरह लगा जैसे किसी अज्ञान और निरक्षर व्यक्ति को राजनैतिक सत्ता दे दी जाए। यह मुझे कष्टकारक लगा। कैप्टन और उसकी चौकस टीम की नज़र तिल की तरह छोटे उस नट पर ना पड़े तो वह उसकी चूक कही जायेगी। इसके लिए स्वाभिक कह कर किनारा नहीं किया जा सकता। दूरदर्शियों से अपेक्षा यह है कि जंग लगे ऐसे नट पर केंद्रीय लोग अवश्य केंद्रित करें, क्यूंकि सब कुछ के बाद मैं भी युवा हूँ और कुछ करना चाहता हूँ जो मुझे सम्मान दिला सके।
इन कैमरों का क्या फायदा जब उसकी फुटेज ही रिकार्ड ना होती हो। बहरहाल मैंने इस संदर्भ में सारी जानकारी और अपने साथ घटित वाकए की सूचना भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पीएमओ कार्यालय को मेल द्वारा भेज दी है। अब देखना है कि ये बड़े राजनेता इस संदर्भ में कितना ध्यान देते हैं।
अब्दुल सत्तार
(विशेष संवाददाता)
खुसरो मेल