सत्येंद्र पी एस-
जंतर मंतर पर पहलवान क्रांति चल रही है। भाजपा सांसद ब्रज भूषण शरण सिंह पुराने नेता हैं। माफिया के रूप में भी जाने जाते हैं। बाबरी कांड के मुख्य आरोपी रहे हैं। दाऊद के सहयोगी होने के आरोप में जेल काट चुके हैं।
ब्रज भूषण का बलरामपुर लिंक, रिजवान जहीर से राइवलरी का खेल रहा है। उसमें अटल बिहारी वाजपेयी भी एक पात्र थे जो बलरामपुर से सांसद रह चुके हैं और ब्रज भूषण के बहुत करीबी। अभी योगी से ब्रजभूषण का 36 का आंकड़ा है। लेकिन ब्रज भूषण योगी से बड़े नेता रहे हैं।
फोगाट फेमिली का केस भी समझ में आने लायक नहीं है। वह कितना सही कह रहे हैं, जांच का विषय है। लेकिन ब्रज भूषण संकट में तो फंस ही गए हैं।
फोगाट की तरह सत्यपाल मलिक नए क्रांतिकारी बनकर उभरे हैं। ब्रज भूषण खुद भाजपा से इतने तबाह हैं कि अगर विपक्ष होता तो भाग ही जाते। लेकिन जिंदगी भाजपा में खपा दी। अब जाएं तो कहां जाएं, यह हालत है।
विपक्ष को इसमें राजनीति खोजनी चाहिए और करनी चाहिए। लेकिन यह लोग हीरो नहीं हैं। लोग फालतू की क्रांति मचाए हुए हैं। जो थोड़ा कामरेड टाइप हैं उनको क्रांति मचाने दीजिए, यह लोग ऐसे ही प्याले में तूफान उठाते रहते हैं और नेताओं को इन्हें यूज करना चाहिए। कांग्रेस को थोड़ा बकप करना चाहिए कि बड़ा गलत हो रहा है। छोटे नेताओ को थोड़ा बहुत जाने दें। वरना अठन्नी चवन्नी में फंसकर रुपया गंवाएंगे।
गिरिजेश वशिष्ठ-
कोई भी नहीं चाहता कि ब्रजभूषण शरण सिंह को फांसी चढ़ा दिया जाये. लेकिन न्याय को टाला क्यों जा रहा है. ये बड़ा सवाल है. इससे भी बड़ा सवाल है कि जो न्याय होना है अभी हो जाना है. जो न्यायालय है वहां न्याय होगा या न होगा इसको लेकर तमाम आशंकाएं हैं इसलिए नहीं कि न्यायाधीष गड़बड़ करते हैं बल्कि न्याय प्रक्रिया. ज्ञानवापी मस्जिद में जो आकृति निकली उस पर स्पष्ट कोई न्याय जल्दी आने के बजाय उसे भविष्य की राजनीति के लिए मसाला बना दिया गया है.
राहुल गांधी को मानहानि मामले में एक स्पष्ट और न्याय संगत न्याय मिलने के बाद जलेबी छानी जा रही है. अतीक पुलिस के हत्थे चढ़ा तो दुनिया की हर चीज उसके खाते में लिख दी गई. एक बार जेल गया आदमी इस हालत में नहीं होता कि अपना पक्ष भी रख सके. मीडिया उसे आरोपी की जगह दोषी ट्रीट करने लगता है. ब्रजभूषण शरण सिंह अगर अंदर गया तो चाहे वो दोषी हो या निर्दोष आज ही माथे पर लिख जाएगा.
लड़कियां जो कह रही हैं वो गलत नहीं होगा लेकिन फिर भी न्याय की कसौटी पर चीजों को कसा जाना चाहिए बीजेपी जानती है कि अंदर गया आदमी बाहर आसानी से नहीं आता. सिसोदिया को देख लो. सत्येन्द्र जैन को देख लो. आएगा भी तो वो तोहमत लगाने वालों से भिड़ने के बजाय अपना इहलोक सुधारने में लग जाएगा. ये विडंबना है. न कोई दोषी है न कोई बेकसूर बस बिडंबना ही बिडंबना.
जब तक सस्ता और शीघ्र न्याय सेमिनार से निकल कर कोर्ट तक नहीं पहुंचेगा तब तक ये समस्या रहेगी. मैं ब्रजभूषण शरण सिंह के लिए सहानुभूति नहीं रखता. न ही रखने की कोई वजह है लेकिन न्याय से सहानुभूति सभी को होनी चाहिए.