NEW DELHI: लक्ष्मीकान्त वाजपेई की जगह जब 2016 में ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था तो ब्राम्हणवादी मीडिया ने उन्हें न जाने क्या क्या कहा था. अमित शाह के फैसले पर सवाल उठाये थे. जी न्यूज़ के एक रीजनल चैनल के संपादक वाशिन्द्र मिश्र को उस दिन की अपनी फुटेज जरुर दिखानी चाहिए जिन्होंने ब्राम्हण होने के नाते केशव को कमजोर दिखाने की पूरी कोशिश की.
घोर जातिवादी पत्रकारों, तुम्हे एक ओबीसी का उस बीजेपी में इतना बड़ा कद पच नहीं रहा था जिसमें शुरू से अब तक ब्राम्हणों का ही कब्ज़ा था. अब नरेन्द्र मोदी, अमित शाह की सरपरस्ती में केशव प्रसाद मौर्य ने वह कर दिखाया है जो अब तक नहीं हुआ था. जबकि आप लोगों के अजीज लक्ष्मीकान्त वाजपेई अपनी सीट तक नहीं बचा सके. जनता बताये कि अब वाशिन्द्र मिश्र जैसे पत्रकारों को क्या कहना चाहिये. मेरे खयाल से मिश्र को वो फुटेज दिखानी ही चाहिये ताकि पता चले कि मीडिया को लोग ब्राम्हणवादी क्यों कहते हैं. मैं बता देना चाहता हूँ कि मीडिया ने कहा था कि केशव प्रसाद मौर्य को जनता कौन है?
मीडिया में एक वर्ग जो हमेशा से सत्ता का चाटुकार रहा है. वह नहीं चाहता कि दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं का उभार हो. वैसे ऐसे पत्रकारों को मैं बता देना चाहता हूँ की मुख्यमंत्री बनने से पहले नरेन्द्र मोदी और गुजरात का गृह मंत्री बनने से पहले अमित शाह को भी कोई नहीं जानता था. शाह ने तो एक बूथ एजेंट की हैसियत से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी. अगर पता नहीं है तो पढ़ लेना चाहिये.
सबको मौका मिलना चाहिये, उसके बाद ही सवाल उठने चाहिये. मैं समझता हूँ कि मीडिया में तुम्हारी भरमार है. तुम्हारे संपादक हैं, इसलिए तुम लोगों को नौकरी आसानी से मिलती है, अब भी दलित और पिछड़ा व्यक्ति मीडिया में नौकरी मांगने चला जाये तो उससे कैसे सवाल किये जाते हैं. कोई बहुत योग्य हो तो भी मुश्किल से जगह मिलती है. और ब्राम्हण अयोग्य हो तो भी उसे संपादक ढो लेता है. इसी का परिणाम है की मीडिया पर ब्राम्हणवादी होने के आरोप लगते हैं और केशव प्रसाद मौर्य जैसे योग्य नेता को भी अयोग्य बताया जाता है.
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