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केंद्र सरकार ने केबल एक्ट 1995 में चुपचाप संशोधन कर चैनलों को नोटिस जारी कर दिया, हम सब कब जगेंगे!

Mukesh Kumar : केंद्र सरकार ने केबल एक्ट 1995 में चुपचाप संशोधन करके 21 मार्च को गज़ट में अधिसूचना जारी कर दी और उसके आधार पर तीन चैनलों को नोटिस भी दे दिया। ख़ैर सरकार से इससे बेहतर की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वह तो पहले दिन से मीडिया को नाथने में लगी हुई है। एडिटर्स गिल्ड और बीईए ने ठीक ही सरकार की इस सेंसरशिप का कड़ा विरोध किया है।

<p>Mukesh Kumar : केंद्र सरकार ने केबल एक्ट 1995 में चुपचाप संशोधन करके 21 मार्च को गज़ट में अधिसूचना जारी कर दी और उसके आधार पर तीन चैनलों को नोटिस भी दे दिया। ख़ैर सरकार से इससे बेहतर की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वह तो पहले दिन से मीडिया को नाथने में लगी हुई है। एडिटर्स गिल्ड और बीईए ने ठीक ही सरकार की इस सेंसरशिप का कड़ा विरोध किया है।</p>

Mukesh Kumar : केंद्र सरकार ने केबल एक्ट 1995 में चुपचाप संशोधन करके 21 मार्च को गज़ट में अधिसूचना जारी कर दी और उसके आधार पर तीन चैनलों को नोटिस भी दे दिया। ख़ैर सरकार से इससे बेहतर की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वह तो पहले दिन से मीडिया को नाथने में लगी हुई है। एडिटर्स गिल्ड और बीईए ने ठीक ही सरकार की इस सेंसरशिप का कड़ा विरोध किया है।

लेकिन अब चैनलों को ही नहीं पूरे मीडिया को तय करना है कि वह इस निरंकुशता के सामने घुटने टेकेगा या दो-दो हाथ करेगा। मेरे खयाल से तो चैनलों को नोटिस का जवाब ही नहीं देना चाहिए और तमाम मीडिया कर्मियों को एकजुट होकर आंदोलन छेड़ना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मालिकों और बाज़ार से भी ख़तरा है, मगर सत्ता के पास जिस तरह की शक्ति और दमन के हथियार होते हैं वे उनके पास नहीं होते। इसलिए सरकार द्वारा मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिशों का सबसे पहले विरोध होना चाहिए।

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पब्लिक ब्रा़डकस्टर प्रसार भारती के मातहत चलने वाले दूरदर्शन और आकाशवाणी तो पहले से ही सरकारी भोंपू थे मगर अब सरकार उसे पालतू कुत्ता बनाने पर आमादा है। वह उनके अधिकारियों को बुलाकर क्लास ले रही है, जबकि उसको ऐसा करने का अधिकार भी नहीं है। इस लिंक में पढ़िए कि कैसी-कैसी ख़बरों पर सरकार उन्हें हड़का रही है। http://goo.gl/ohjgf2

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वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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0 Comments

  1. प्रयाग पाण्डे

    August 13, 2015 at 3:38 pm

    श्री मुकेश भाई ! आपकी बात सौ आना सच है । यह भी सही है कि -“मीडिया कर्मियों को एकजुट होकर आंदोलन छेड़ना चाहिए। ” पर ये बड़े समाचार संस्थान जिला और राज्य स्तर पर पत्रकारों का हो रहे शोषण पर कभी मुँह खोलने की जुर्रत करते हैं क्या ? ये बड़े समाचार संस्थान कब पत्रकारों के दमन और उत्पीड़न के सवालों पर पत्रकारों के पक्ष में खड़े होते हैं ?

  2. Gopalji Journalist

    August 15, 2015 at 6:29 pm

    मुकेश जी बिकाऊ मीडिया का कब तक साथ डोज, एक दिन ये लोग आपकी भी पुंगी बजाकर ही रहेंगे। सरकार का यह क़दम एक मंझले और सच्चे पत्रकार के हित में है।

  3. सुंदर कुमार

    August 14, 2015 at 6:45 am

    मुकेश जी इस घटना के लिए क्या मीडिया के वो दलाल जिम्मेदार नही जिहे सत्ता पक्ष से हमेशा अपना फायदा करना होता है लेकिन ये तथाकतिथ विद्वान् या बात भूल जाते हैं कि आज किसी और को नोटिस भेज है कल उनकी बारी होगी जब ये लोग सत्ता पक्ष के मुताबिक़ भूमिका नही निभाएंगे ………सुंदर कुमार संपादक मिस्टिक पावर हिंदी मासिक पत्रिका

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