बाईस सुरक्षाकर्मी इस देश के महानतम अंधराष्ट्रवादी ऐंकर के आगे-पीछे तैनात रहेंगे!

Harsh Deo : टाइम्स नाउ के स्टूडियो में बैठकर तमाम स्वतंत्र चेता व्यक्तियों के विरुद्ध माइक पर बलबलाने वाला अर्णव गोस्वामी स्टूडियो से बाहर वाई श्रेणी की सरकारी हिफ़ाज़त में रहेगा! बेचारा राष्ट्रभक्तों की जर्सी गाय! उम्मीद नहीं थी इतने पतन की।

अनुराग कश्यप का साहस काबिल-ए-तारीफ़ है

Mukesh Kumar : आम तौर पर फिल्म इंडस्ट्री कायरों से भरी पड़ी है (तथाकथित महानायक अमिताभ बच्चन इसकी सबसे बड़ी बानगी हैं)। एक-दो लोगों को छोड़कर कभी कोई खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं करता। लेकिन अनुराग कश्यप ने जिस तरह से सीधे प्रधानमंत्री को आ़़ड़े हाथों लिया है वह काबिल-ए-तारीफ़ है और इसके लिए उन्हें शाबाशी दी जानी चाहिए। अंध राष्ट्रवादी नफ़रत और हिंसा के खिलाफ़ ये खुलकर बोलने का समय है। जो चुप हैं इतिहास उनको भी दर्ज़ कर रहा है।

एनडीटीवी ने भी मोदी राज के आगे घुटने टेक दिए!

Mukesh Kumar : तो अब एनडीटीवी को भी घुटने टेकने पड़ गए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े कवरेज को सेंसर करने के जो तर्क उसने दिए हैं वे न पत्रकारिता की कसौटी पर खरे उतरते हैं और न ही लोकतंत्र की। सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति करने या सेना पर संदेह करने वाली सामग्री नहीं दिखाने का ऐलान उसकी संपादकीय समझदारी के बजाय उसके भय को ज्यादा प्रतिध्वनित कर रहा है। प्रश्न और संदेह करना पत्रकारिता का बुनियादी काम है, मगर वह उसी से खुद को अलग कर रहा है। ये और कुछ नहीं राष्ट्रभक्ति का पाखंड है, जो दूसरे चैनल पहले से उससे बेहतर ढंग से कर रहे हैं। सरकार या सेना दोनों सही या ग़लत काम कर सकते हैं और मीडिया का ये दायित्व है कि वह दोनों ही को वस्तुपरक ढंग से रिपोर्ट करे।

एनडीटीवी समूह के संपादकीय नेतृत्व का पूरा नज़रिया अभिजातवर्गीय है : मुकेश कुमार

ये लोग लुटियन की दिल्ली और बॉलीवुड के सितारों से आगे देख ही नहीं पाते….

Mukesh Kumar : एनडीटीवी का पूरा चरित्र सेलेब्रिटी केंद्रित है, वह इससे उबर ही नहीं पाता। बीच-बीच मे एकाध कार्यक्रम या रिपोर्ट में दूसरे वर्ग भले आ जाएं मगर वह अपने इस मूल स्वभाव के अनुरूप ही व्यवहार करता रहता है। कोई समस्या हो या अभियान, उसकी प्रस्तुति तुरंत सेलेब्रिटीमय हो जाती है। स्क्रीन पर सेलेब्रिटी आकर जम जाते हैं और पूरे देश को ज्ञान देने लगते हैं। ये ज्ञान मोटे तौर पर अँग्रेज़ी में ही होता है। हिंदी के एक-दो चिकने चेहरे भी ले लिए जाते हैं और बीच-बीच में उन्हें भी थोड़ा-बहुत मौक़ा दे दिया जाता है मगर मोटे तौर पर अँग्रेज़ी के सेलेब्रिटी एंकर ही मोर्चा सँभालते हैं। शायद एनडीटीवी ने इसे एक फार्मूले की तरह ही अपना लिया है।

मोदी से सटने की कोशिश क्यों कर रहे अर्नब गोस्वामी?

Mukesh Kumar : अर्नब गोस्वामी की नीयत मुझे ठीक नहीं लगती। जिस तरह से चमचागीरी वाले अंदाज़ में उन्होंने पीएम को जन्मदिन पर बधाईयाँ दीं, उससे पता चलता है कि वे मोदी से सटने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पहले मोदी का नवनीत लेपन मार्का इंटरव्यू और हर रोज़ सरकार का ढोल पीटना बताता है कि उनके इरादे पत्रकारिता से इतर कुछ और भी हैं। विनीत जैन के कहने से वे ऐसा कर रहे होंगे, ये मुझे नहीं लगता।

बेचारी सुषमा स्वराज!

Mukesh Kumar : बेचारी सुषमा स्वराज। दुनिया भर से लोगों को बचाने के अभियान में लगी रहती हैं, मगर खुद को संकट से नहीं निकाल पा रहीं। विदेश नीति की इतनी बड़ी परीक्षा चल रही है और वे कहीं हाशिए पर फेंक दी गई हैं। किसी भी महत्वपूर्ण बैठक में उन्हें नहीं बुलाया जा रहा है, मानो उनका कोई वजूद ही न हो।

मोदी जी के पास डिग्री है तो सत्यमेव जयते के साथ ट्वीट क्यों नहीं कर दे रहे?

Sanjaya Kumar Singh : मोदी जी के पास डिग्री है तो सत्यमेव जयते के साथ ट्वीट क्यों नहीं कर दे रहे हैं। और नहीं कर रहे हैं तो भक्तों ने जैसे कन्हैया को नेता बनाया वैसे ही अरविन्द केजरीवाल की पार्टी को पंजाब चुनाव जीतने का मौका क्यों दे रहे हैं। भक्तों के उछलकूद का लाभ अरविन्द केजरीवाल को मिल रहा है। अलमारी में रखी डिग्री अंडा-बच्चा तो देती नहीं। ना बीमार होकर अस्पताल जाती है। आमलोगों की डिग्री तो पत्नी कहीं रख देगी, चूल्हा जला चुकी होगी या बच्चों के टिफिन पैक करके दे देगी। मोदी जी के साथ तो ये सब लफड़ा भी नहीं है। फिर इतनी देर?

दिल्ली सरकार ने फर्ज़ी वीडियो चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर बेहद ज़रूरी काम किया है : मुकेश कुमार

Mukesh Kumar : जब केंद्र सरकार चुप हो, उसके मातहत काम करने वाली दिल्ली पुलिस चुप हो, चैनलों के संपादकों का संगठन चुप हो, एनबीए चुप हो, नियामक चुप हो, पत्रकारों के संगठन कुछ न कर रहे हों या कुछ न कर पा रहे हों तब दिल्ली सरकार ने फर्ज़ी वीडियो बनाने और चलाने वालों के खिलाफ़ कार्रवाई करने की दिशा में क़दम उठाकर बेहद ज़रूरी काम किया है। अगर इस फर्जीवाड़े की प्रवृत्ति को रोका न गया तो ये न केवल मीडिया की बची-खुची साख को खा जाएगा, बल्कि पूरे देश को भारी संकटों में डालता रहेगा।

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टटेस पर आया जसबीर चावला का कमेंट इस प्रकार है…

टाइम्स नाऊ का लायसेंस रद्द कर अरनब गोस्वामी को जेल भेज देना चाहिए

जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार का फर्जी वीडियो दिखाने में आगे रहने वाले न्यूज चैनल टाइम्स नाऊ और इसके संपादक अरनब गोस्वामी को लेकर वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने फेसबुक पर एक संक्षिप्त पोस्ट लिखी है, जो इस प्रकार है :

माकपा के सवर्ण कम्युनिस्टों को सदबुद्धि आ गई…

Mukesh Kumar : शुक्र है कि माकपा को अब जाति व्यवस्था से उपजी सामाजिक विषमता के कारण होने वाले अत्याचारों एवं भेदभाव को अपनी नीति-रीति का हिस्सा बनाने की सद्बुद्धि आ गई है। सवर्णों के नेतृत्व ने उसे ऐसा करने से रोक रखा था, लेकिन सफाचट हो रहे जनाधार ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपना रवैया बदले और भारतीय परिस्थितियों में सामाजिक-आर्थिक विषमता को जोड़कर देखे।

सम-विषम दौर-दौरे में इस बड़े फच्चर को दूर करने का जतन तुरंत किया जाना चाहिए

Om Thanvi : मुझे बहुत खुशी होगी, अगर सम-विषम प्रयोग सफल होता है। लेकिन सरकार को भी चाहिए कि आवागमन के वैकल्पिक, प्रदूषण रहित, साधनों की उपलब्धि में जी-जान लगा दे। दिल्ली की छाती पर एनसीआर हलकों में धुँआ उगलते वाहनों पर नियंत्रण के लिए पड़ोसी राज्यों की सरकारों से सहयोग की गुजारिश करनी चाहिए। एक और समस्या, जिसे तुरंत हल किया जाना चाहिए। रेडियो टैक्सी एक बेहतर सुविधा के रूप में विकसित हो रही है। लेकिन अपनी सफलता पर इतरा कर कंपनियां बेजा फायदा भी उठाने लगी हैं। मसलन ऊबर (Uber) को लें। “पीक आवर” अर्थात ज्यादा भीड़ के घंटों में चार-छः गुणा किराया झटकने लगे हैं। यह किसी की मजबूरी का फायदा उठाना है, सरासर ब्लैकमेलिंग है। दूसरी कंपनियां – जैसे मेरु (Meru) – तो ऐसा नहीं करतीं। कुछ टैक्सी संचालकों को लूट की यह आजादी क्यों?

शेखर गुप्ता की पीटर मुखर्जी, रवीना राज कोहली और स्टार टीवी के बारे में पढ़ने योग्य टिप्पणी

Mukesh Kumar : वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता की पीटर मुखर्जी, स्टार की सीईओ रह चुकी रवीना राज कोहली और स्टार टीवी के बारे में टिप्पणी पढ़ने योग्य है। ये अंश अख़बारों में प्रकाशित लेख से लिए गए हैं-

केंद्र सरकार ने केबल एक्ट 1995 में चुपचाप संशोधन कर चैनलों को नोटिस जारी कर दिया, हम सब कब जगेंगे!

Mukesh Kumar : केंद्र सरकार ने केबल एक्ट 1995 में चुपचाप संशोधन करके 21 मार्च को गज़ट में अधिसूचना जारी कर दी और उसके आधार पर तीन चैनलों को नोटिस भी दे दिया। ख़ैर सरकार से इससे बेहतर की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि वह तो पहले दिन से मीडिया को नाथने में लगी हुई है। एडिटर्स गिल्ड और बीईए ने ठीक ही सरकार की इस सेंसरशिप का कड़ा विरोध किया है।

तो इसलिए टेलीविजन मीडिया में दर्शक हाशिए पर जा रहा है

भोपाल, 1 अगस्त । प्रख्यात जनसंचार शास्त्री मार्शल मेक्लुहान का कथन है कि ‘माध्यम ही संदेश है’। वर्तमान भारतीय मीडिया की स्थिति को देखकर आज यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि ‘स्वामित्व ही संदेश है’। आज समाचारपत्र, टेलीविजन एवं अन्य मीडिया संस्थानों के मालिकों द्वारा तय किए गए विचार ही मीडिया में दिखाई देते हैं। यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में वरिष्ठ पत्रकार श्री मुकेश कुमार ने व्यक्त किए।

चुनाव जीतने के बाद सामने आने लगी अहंकारी केजरीवाल की असलियत

Mukesh Kumar : अहंकारी कौन? केजरीवाल या प्रशांत-योगेंद्र?? मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद केजरीवाल ने कहा था कि राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने का फ़ैसला अहंकार से प्रेरित था। फिर उन्होंने इस फ़ैसले को नकारते हुए इसके पैरोकारों को पीएसी से बाहर कर दिया। अब वे कह रहे हैं कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपना विस्तार करेगी। सवाल उठता है कौन अहंकारी है? कहीं ये केजरीवाल का अहंकार तो नहीं बोल रहा था कि मेरे होते हुए फ़ैसला करने वाले तुम तुच्छ लोग कौन होते हो? फैसला करने का हक मेरा और मेरे चमचों का है, किसी और का नहीं इसलिए अब का फ़ैसला सही है और अहंकार रहित है। इस पाखंड पर बलिहारी जाने का मन करता है।

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केजरीवाल सरकार भी बांटने लगी रेवड़ियां, संसदीय सचिव बनाकार 21 MLA को मंत्री पद का दर्ज़ा दिया

Mukesh Kumar :  दिल्ली की केजरीवाल सरकार भी रेवड़ियां बाँटने लगी है। इक्कीस विधायकों को संसदीय सचिव बनाकार मंत्री पद का दर्ज़ा दे दिया गया है। इतने संसदीय सचिव देश के किसी भी राज्य में नहीं हैं। बहुत से राज्यों में तो ये हैं ही नहीं। लगता है किसी असंतोष को दबाने के लिए ऐसा किया गया है, क्योंकि दिल्ली जैसे आधे-अधूरे और छोटे से राज्य में तीन-चार संसदीय सचिवों से काम चल सकता था, इसके लिए इस पैमाने पर रिश्वत ब़ॉटने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

ये हार बहुत भीषण है म्हराज!

Sheetal P Singh : पिछले दो दिनों में दिल्ली के सारे अख़बारों में पहले पेज पर छापे गये मोदी जी + बेदी जी के विज्ञापन का कुल बिल है क़रीब चौबीस करोड़ रुपये। आउटडोर विज्ञापन एजेंसियों को होर्डिंग / पोस्टर / पैम्फलेट / बैनर / स्टेशनरी / अन्य चुनावी सामग्री के बिल इससे अलग हैं। इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा प्रधानमंत्री और अन्य हैवीवेट सभाओं के (कुल दो सौ के क़रीब)इंतज़ाम तथा टेलिविज़न / रेडियो विज्ञापन और क़रीब दो लाख के क़रीब आयातित कार्यकर्ताओं के रख रखाव का ख़र्च श्रद्धानुसार जोड़ लें। आम आदमी पार्टी के पास कुल चुनाव चंदा क़रीब चौदह करोड़ आया। बीस करोड़ का लक्ष्य था। कुछ उधार रह गया होगा। औसतन दोनों दलों के ख़र्च में कोई दस गुने का अंतर है और नतीजे (exit poll) बता रहे हैं कि तिस पर भी “आप” दो गुने से ज़्यादा सीटें जीतने जा रही है! ये हार बहुत भीषण है म्हराज! ध्यान दें, ”आप” बनारस में पहले ही एक माफ़िया के समर्थन की कोशिश ठुकरा चुकी थी, आज उसने “बुख़ारी” के चालाकी भरे समर्थन को लात मार कर बीजेपी की चालबाज़ी की हवा निकाल दी।

एनडीटीवी प्राइम टाइम में Ravish Kumar और अभय दुबे ने भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली को पूरी तरह घेर लिया

Shambhunath Shukla : एक अच्छा पत्रकार वही है जो नेता को अपने बोल-बचन से घेर ले। बेचारा नेता तर्क ही न दे पाए और हताशा में अंट-शंट बकने लगे। खासकर टीवी पत्रकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। बीस जनवरी को एनडीटीवी पर प्राइम टाइम में Ravish Kumar और अभय दुबे ने भाजपा प्रवक्ता नलिन कोहली को ऐसा घेरा कि उन्हें जवाब तक नहीं सूझ सका। अकेले कोहली ही नहीं कांग्रेस के प्रवक्ता जय प्रकाश अग्रवाल भी लडख़ड़ा गए। नौसिखुआ पत्रकारों को इन दिग्गजों से सीखना चाहिए कि कैसे टीवी पत्रकारिता की जाए और कैसे डिबेट में शामिल वरिष्ठ पत्रकार संचालन कर रहे पत्रकार के साथ सही और तार्किक मुद्दे पर एकजुटता दिखाएं। पत्रकार इसी समाज का हिस्सा है। राजनीति, अर्थनीति और समाजनीति उसे भी प्रभावित करेगी। निष्पक्ष तो कोई बेजान चीज ही हो सकती है। मगर एक चेतन प्राणी को पक्षकार तो बनना ही पड़ेगा। अब देखना यह है कि यह पक्षधरता किसके साथ है। जो पत्रकार जनता के साथ हैं, वे निश्चय ही सम्मान के काबिल हैं।

It is hard to be loved by Idiots… मूर्खों से प्यार पाना मुश्किल है…

Arun Maheshwari : ग्यारह जनवरी को दस श्रेष्ठ कार्टूनिस्टों के हत्याकांड के बाद आज सारी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ पर सन् 2007 एक मुकदमा चला था। तब इस पत्रिका में डैनिस अखबार ‘जिलैट पोस्तन’ में छपे इस्लामी उग्रपंथियों पर व्यंग्य करने वाले कार्टूनों को पुनर्प्रकाशित किया गया था। इसपर पूरे पश्चिम एशिया में भारी बवाल मचा था। फ्रांस के कई मुस्लिम संगठनों ने, जिनमें पेरिस की जामा मस्जिद भी शामिल थी, शार्ली एब्दो पर यह कह कर मुकदमा किया कि इसमें इस्लाम का सरेआम अपमान किया गया है। लेकिन, न्यायाधीशों ने इस मुकदमे को खारिज करते हुए साफ राय दी कि इसमें मुसलमानों के खिलाफ नहीं, इस्लामी उग्रपंथियों के खिलाफ व्यंग्य किया गया है।

बेचारे मनोज तिवारी सच बोलकर फँस गए… किरण बेदी की थानेदारी चल पड़ी…

Mukesh Kumar : बीजेपी में किरण बेदी की थानेदारी चल पड़ी है। बेचारे मनोज तिवारी सच बोलकर फँस गए। सांसदों से कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार करने वाली किरण बेदी ने उनकी शिकायत हाईकमान से कर दी और मनोज बाबू को झाड़ पड़ गई। बेदी के आने से दिल्ली बीजेपी में सिर फुट्व्वल का ये एक नमूना भर है। अभी बहुतेरे हैं जो नाखुश हैं और मौका मिलते ही हिसाब चुकता करेंगे।

अटल जी की पार्टी आज संसद को धता बताकर एक के बाद एक दस अध्यादेश जारी कर रही है

Mukesh Kumar : संसद सजावट की वस्तु है? तेईस-चौबीस साल पहले एक दूरदर्शन के लिए एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी-संसद से सड़क तक। ये फिल्म बीजेपी और दूसरे विपक्षी दलों द्वारा संसद की कार्रवाई को हफ़्तों तक ठप करने को लेकर थी। उस समय पंडित सुखराम के टेलीकॉम घोटाले की गूँज चारों ओर थी और विपक्षी दल उत्तेजित थे। इस फिल्म के लिए मैंने भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का लंबा इंटरव्यू किया था, जिसमें उन्होंने संसद के बहिष्कार को जायज़ ठहराते हुए कहा था- संसद कोई सजावट की, प्रसाधन की वस्तु नहीं है।

एमजे अकबर के इस अधोपतन को कैसे देखा जाए

(मुकेश कुमार)


Mukesh Kumar : एक अच्छा खासा पत्रकार और लेखक सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान का अंग बनने के प्रलोभन में किस तरह प्रतिक्रियावादी हो जाता है इसकी मिसाल हैं एमजे अकबर। आज टाइम्स ऑफ इंडिया में उनका लेख इसे साबित करता है। उन्होंने इस्लामी पुनरुत्थानवाद को आटोमन और मुग़ल साम्राज्य से जोड़कर प्रस्तुत किया है, लेकिन कहीं भी ज़िक्र नहीं किया है कि तमाम पुनरूत्थानवादी शक्तियाँ दरअसल ऐसे ही कथित गौरवशाली अतीत को वर्तमान में तब्दील करने की कोशिश करते नफरत और हिंसा का अभियान चलाती हैं।