मिथिलेश धर दुबे-
कभी-कभी मुझे लगता है कैंसर का 100% इलाज संभव न होने के पीछे स्कैम है। बड़ी-बड़ी मेडिकल कंपनियां मुख्य प्लेयर हैं। सालाना अरबों का कारोबार है। कहीं मरीज ठीक होने लगे तो इनकी दुकानें बंद होने लगेंगी।
देखिएगा, जिस दिन कैंसर कोरोना की तरह भेदभाव बंद कर देगा, इसका भी इलाज होने लगेगा। भेदभाव से मतलब अमीरी, गरीबी से ही है। ऐसा नहीं है कि अमीरों को कैंसर नहीं हो रहा, लेकिन वे इलाज करा सकते हैं। जीवन बढ़ा सकते हैं। युवराज सिंह की तरह कितने लोग अमरीका जाकर इलाज करा सकते हैं? गरीब आदमी पास के सामुदायिक केंद्र जाता है जहां वर्षों से पेट दर्द का ही इलाज कराता रहता है।
कल ही नोएडा के सेक्टर 62 में पति पत्नी फांसी के फंदे पर लटके मिले। वजह जानते हैं? पति को गले का लास्ट स्टेज का कैंसर था। मैं यह कतई नहीं कह रहा कि उनका कदम ठीक था। लेकिन हर स्टेज में इसका इलाज इतना महंगा है कि घर, खेत सब बिक जाता है। इसके बाद भी ठीक होने की कोई गारंटी नहीं होती।
एक रिपोर्ट कहती है कि कैंसर मरीजों को अपने इलाज के लिए घर बेचने पड़ते हैं, लोन लेना पड़ता है। 50% से अधिक कैंसर रोगी इलाज के दौरान आर्थिक रूप से दिक्कत झेलते हैं। भारत में कैंसर मरीज इलाज में होने वाले खर्च का 75% फीसदी अपनी जेब से देते हैं। बीमा आदि सब फेल हैं।