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सुख-दुख

अपना डाक्टर गंवा दिया, रो रहे हैं दिल्ली वाले!

शम्भूनाथ शुक्ल-

डॉ. केके अग्रवाल ने एक बार मुझे समझाया था कि शुक्ला जी अगर ‘जीवेम शरद: शतम’ आपका लक्ष्य है तो पहले 80 की उम्र को राज़ी-ख़ुशी पार कर लीजिए। उन्होंने कहा, इस 80 के लिए आप अपनी तोंद 80 रखिए। अपना बीपी और अपनी शुगर तथा पल्स रेट भी 80 के नीचे रखिए। और इसके लिए हर सफ़ेद चीज़ से दूर रहिए। गौरांग बीवी की चाह न रखिए, न सफ़ेद आटा खाएँ न सफ़ेद मीठा। यहाँ तक कि सफ़ेद लोगों से भी दूर रहें क्योंकि ये श्वेत लोग परले दर्जे के पाखंडी होते हैं। उस समय मैं 42 नम्बर की पैंट पहना करता था अब 34 पर आ गया हूँ। और यदि कोरोना लंबा खिंचा तो 32 यानी कि 80 पर आ जाऊँगा। किंतु डॉक्टर आप तो ख़ुद 62 में ही मुँह मोड़ गए। डॉक्टर केके अग्रवाल की स्मृतियों को नमन।

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आलोक कुमार-

दिल्ली ने अपना डॉक्टर गंवा दिया । आखिरकार मनहूस खबर आ ही गयी। डॉक्टर के. के अग्रवाल चले गये। उनके जाने से अजीब रिक्तता पैदा हो गयी है। न जाने यह कैसे भर पायेगा।
जब डॉक्टरी सेवा से ज़्यादा धंधा बन गया है तब एक डॉक्टर के के अग्रवाल थे जिन्हें मुझ जैसी हज़ारों आवाज़ें कभी भी राहत के लिये पुकार सकती थी।

गज़ब के परोपकारी थे। हौले से मूलचंद बुलाते, ठीक होने का भरोसे वाला परामर्श देकर ही छुटकारा देते। जरुरी होता तो रेफरेन्स देने की कहने के बजाय सम्बंधित डॉक्टर को सीधे फोन कर देते।

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उनसे मुलाक़ात 1998-99 की है। बाद में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर सी पी ठाकुर ने आम जन तक डॉक्टरी सेवा पहुँचाने के लिये हेल्थ मेला की शुरुआत की। दिल्ली में हेल्थ मेला को सफल बनवाने में डॉक्टर के के अग्रवाल का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

जब टेली मेडिसीन और टेली परामर्श का दौर आया तो डॉ. अग्रवाल नौजवान की तरह सबसे आगे खड़े हो गये। अफ़सोस कि अब नहीं रहे। कोरोना ने उनको भी छीन लिया। डॉक्टर बहुत याद आएंगे, आप। विनम्र श्रद्धांजलि!

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विनोद शर्मा-

Dr KK Aggarwal was a friend who happened to be a doctor. He has been a helpline for hundreds of people for years on end; forever available and willing to help. Much of his advice came gratis with only the expectation of an enduring relationship.

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It was his template that young politicians like BV Srinivas and others have so energetically followed to help the needy in the times of the pandemic. The best tribute to him will be to keep alive the public spirit that was Dr Aggarwal’s hallmark.

Deep respects dear Doctor. Keep up the good work at whatever you’ve set up your new clinic.

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मनोज मलयानिल-

दिन की शुरुआत एक बुरी ख़बर से। क़रीब ढाई दशक पहले जब हमने पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया था शुरू तब गिने चुने डॉक्टर थे जो मीडिया के माध्यम से स्वास्थ्य जागरूकता के कार्य में सक्रिय थे। डॉक्टर केके अग्रवाल उन्हीं गिने चुने डॉक्टरों में एक प्रमुख चेहरा थे।

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डॉक्टर साहब को जब कभी किसी हेल्थ /मेडिकल स्टोरी या रिपोर्ट के लिए फ़ोन करता वो तुरंत बातचीत के लिए तैयार हो जाते।अपने डॉक्टरी पेशे को समर्पित डॉक्टर अग्रवाल को भी कोरोना ने हमसे छीन लिया है। डॉ अग्रवाल के योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।


गिरिजेश वशिष्ठ-

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पता नहीं कितनों को जीवन दिया, दिन रात कोरोना को रोकने में लगे रहे. ऑक्सीजन लगी थी और लाइव कर रहे थे. कह रहे थे शो मस्ट गो ऑन, हमेशा हंसते मुस्कुराते रहने वाले डॉक्टर केके की वो एनर्जी, वो ईमानदारी, वो मेहनत, वो फोन उठाकर अगली लाइन में आ जा कहना.

एक सच्चा डॉक्टर जो सिर्फ इलाज ही नहीं करता था. इलाज बताता भी था. जो जागरण करता था जिसने हमेशा प्यार कमााया. जब उनके बीमार होने की खबर यूट्यूब चैनल पर डाली तो श्रद्धांजलियों की झड़ी लग गई. दोनों टीके लगवा चुके थे.

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झूठ बोलता है मुल्क का सिस्टम कि टीके लगाने के बाद कोरोना होगा लेकिन प्राण घातक नहीं होगा. उदाहरण सामने हैं. कल ही रिपोर्ट आई है कि खुद वैक्सीन से लोगों के अंदर खून के थक्के जम रहे हैं. लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है और उनकी जानें जा रही है. हे प्रभु ये कैसा दौर आ गया है. डॉक्टर साहब आप हमेशा रहेंगे. यहीं हालांकि आपकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकेगा. नमन. Dr K K Aggarwal!


दीपांकर पटेल-

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डॉक्टर KK अग्रवाल के वीडियोज देखकर लाखों लोगों कोरोना के इस कठिन समय में सम्बल मिला. KK अग्रवाल ने हमेशा बताया कि किन किन परिस्थितियों में नहीं घबराना चाहिए.

कोरोना के बारे जितनी वृहद जानकारी और शोध पत्रों को इन्होंने आम जनता के लिए डिकोड किया उतना प्रयास तो सरकार की तरफ से भी नहीं दिखा. अभी सूचना मिल रही है कि अग्रवाल साहब नहीं रहे, कोरोना ने इन्हें भी निगल लिया.

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पता नहीं ये कठिन समय कब समाप्त होगा!


अमिताभ श्रीवास्तव-

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जाने माने हृदयरोग विशेषज्ञ डाक्टर के के अग्रवाल एक अच्छे चिकित्सक के साथ-साथ बहुत अच्छे इन्सान और हमेशा मदद करने को तैयार समाजसेवी भी थे। शालीन , हमेशा मुस्कुराता हुआ चेहरा, सकारात्मक नज़रिया। दोस्त की तरह व्यवहार करते थे। कोई बात हो, बस मूलचंद अस्पताल पहुँच जाइये, हमेशा हर मदद को तैयार मिलते थे। फ़ोन पर कहते -आ जा ।

लोगों को जागरूक करने के लिए स्वास्थ्य मेले लगाते थे। उस सिलसिले में साझेदारी के लिए आजतक के तत्कालीन ऑफ़िस वीडियोकान टावर में हमारी टीम के साथ उनकी मुलाक़ातें, बातचीत याद आ रही है। उनका मामला वैक्सीन से जुड़ी शंकाएँ बढ़ा सकता है क्योंकि उन्होंने दोनों खुराक ले ली थी फिर भी कोरोना उनके लिए जानलेवा साबित हुआ।

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हमारे जैसे समाज में उन जैसे चिकित्सकों की बहुत ज़रूरत है। दुखद है कि हमेशा लोगों का हौसला बढ़ाने वाले डॉक्टर अग्रवाल को कोरोना ने हमसे छीन लिया। उनकी कमी खलेगी। विनम्र श्रद्धांजलि।


श्याम मीरा सिंह-

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हम ज़िंदा रहते कितनों को ही याद कर पाते हैं. कितनों को ही बता पाते हैं कि वे अच्छे इंसान हैं. मगर जब वे चले जाते हैं तो ऐसे लगता है जैसे उन्हें कुछ और जीना चाहिए था ताकि हम मिलने पर कह पाते कि कमाल के इंसान हैं साहब आप, शुक्रिया.. खूब शुक्रिया आपका. डॉक्टर केके अग्रवाल. कोरोना पर लगातार video बनाते रहे, परिवार में एक बुजुर्ग की तरह सम्बल देते रहे. हिम्मत बँधाते, और एक डॉक्टर उपलब्ध संसाधनों में जो कुछ कर सकता था वो करने की कोशिश करते. बड़ी बड़ी रिसर्च को सरल भाषा में बताया. मैं निजी तौर पर उन्हें जानने का दावा नहीं करता मगर सोशल मीडिया पर उन्होंने मुफ़्त में लाखों लोगों को मशविरा दिया.

ज़रूरी नहीं है उनके मशविरे से सबकी जान बची होगी, हो सकता है जो इस महामारी से बचे भी होंगे वे अपने भाग्य से ही बचे हों, मगर केके अग्रवाल ने कुछ कोशिशें तो कीं, इस महामारी के आगे अभी चिकित्सा विज्ञान काफ़ी छोटा है. अब तक इस बीमारी का कोई पार नहीं पा पाया. मगर जो कुछ उपलब्ध जानकरियाँ इस समय हैं केके अग्रवाल ने लाखों लोगों तक पहुँचाने की कोशिशें कीं. मुझे विजेता और जीते हुए नायक जितना आकर्षित करते हैं उतने कोशिश करते, लड़ते जूझते इंसान भी करते हैं. कोशिशों से सुंदर कोई विजय नहीं, भले ही उसके अंत में हार हो जाए.

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आज केके अग्रवाल भी महामारी से जूझते, लड़ते भिड़ते ज़िंदगी की जंग हार गए. बूढ़े शरीर से कब तक ही लड़ते, आख़िर में थककर उन्होंने हमेशा के लिए सो जाना चुना. ये उनका निर्णय है इसमें हमारी क्या बिसात कि कुछ कहें. पर घर के छोटे बच्चे शिकायत तो कर ही सकते हैं अपने बढ़ो से. मगर केके साहब से तो कोई शिकायत भी नहीं है, मगर उनके लिए इच्छा थी कि इस महान अंधकार के बाद उगने वाले सूरज को वो देखते, गलियों-मोहल्लों में गीत गाते लोगों को देखते. बाज़ारों में फिर से हाट लगते देखते. क्रिकेट मैदानों में किसी खिलाड़ी के लिए शीटी मारते दर्शकों को देखते. मगर उस सुबह के आने से पहले ही धरती माता का ये सुंदर दीप बुझ गया. केके साहब की तस्वीर देखते हुए ऐसे लग रहा है जैसे वे अचानक बोल पड़ेंगे और हम सब से कहेंगे “मेरे बच्चों ख़्याल रखना”।


उमेश उपाध्याय-

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डॉ. के के अग्रवाल – एक दोस्त चला गया।

“मैं एम्बुलेंस भेज रहा हूँ।अपनी मदर इन लॉ को तुरंत मूलचंद लेकर आ।”

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फोन पर दूसरी तरफ डॉ केके थे। शाम का वक्त था। मैं सफदरजंग अस्पताल में मिंटी की मम्मी यानि अपनी सास के सिरहाने खड़ा था। वे बेहोश थीं। हमें लगा था कि ये बेहोशी कमजोरी के कारण है।

बात 27 जून 1993 की है। हमें मम्मी की तबियत की गंभीरता का कोई अंदाजा नहीं था। मैंने तो यूँ ही उनकी तबियत बताने के लिए केके को फोन किया था। दो – तीन सवाल पूछने के बाद ही केके को पता चल गया कि उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ है। मैंने उनसे कहा कि मैं लेकर आता हूँ।

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कुछ पल बाद ही केके फिर फोन पर थे।

“तेरे पास टाइम नहीं है। एम्बुलेंस में वक्त लगेगा। ऐसा करो उन्हें अपनी कार में ही लेकर बिना एक मिनट गवाए आ जाओ। बाकी मैं देख लूँगा।”

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हम तुरंत मूलचंद अस्पताल पहुंचे। केके ने न्यूरो सर्जन को बुला रखा था। जिसे हम बेहोशी समझ रहे थे वो दरअसल ‘कोमा’ की स्थिति थी।

रात में ही ऑपरेशन शुरू हुआ। कई घंटे के बाद रात तीसरे पहर सर्जरी ख़तम हुई। कुछ दिन बाद मम्मी सकुशल घर लौंटी।

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ऑपरेशन की सारी रात केके वहीँ थे। घर नहीं गए। रूटीन के मुताबिक सुबह के अपने वार्ड राउंड करने के बाद ही शायद थोड़ा आराम किया होगा।

डा धर ने ऑपरेशन किया था। पर हमारे लिए मम्मी की जान डॉ केके ने बचाई थी।

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सिर्फ मम्मी ही नहीं, ऐसी कई घटनाएं मेरी अपनी और अनगिनत जानकारों की हैं, जब केके ने बिना किसी स्वार्थ के मदद की थी। हमारे पिताजी, हमारे बच्चों और खुद मेरे लिए भी केके देवदूत से कम नहीं थे।

मेरा और डॉ के के का रिश्ता कोई 35 साल पुराना था। 80 के दशक में मैंने पत्रकारिता शुरू की थी। डॉक्टर के तौर पर केके का व्यावसायिक जीवन भी शुरूआती दौर में था। उसी दौरान जब मैं दूरदर्शन में संवाददाता था तो एक दोस्त की मार्फ़त में उनका इंटरव्यू करने गया था। उसके बाद हमारी वो मामूली जान पहचान दोस्ती में बदल गयी। वे मूलचंद अस्पताल में डॉ चौपड़ा की टीम में थे। उसके बाद तो किसी को भी कैसी मेडिकल मदद की ज़रुरत होती थी, मेरा फोन उन्हें ही जाता था। और ऐसा कभी नहीं हुआ कि केके उपलब्ध न हों।
1996 में जब मुझे ब्लैकआउट हुआ तो मेरे साथी मुझे सीधे केके के पास लेकर गए। तबतक मैं ज़ी टीवी में एक्सीक्यूटिव प्रोड्यूसर बन चुका था।

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केके की वो बात मुझे अब तक याद है। जांच के बाद मैंने जब उनसे पूछा कि मुझे आगे क्या करना है।

“तुम्हें कुछ नहीं करना है। बस मस्त रहना है। आज से ये मेरी प्रॉब्लम है।”

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दूसरों की प्रॉब्लम को अपनी समस्या बनाकर हल करने के लिए जी जान लगाना, यही थे डॉ केके।

एक कुशल चिकित्सक, बड़ा सोचने वाला, हर समय नया करने/सीखने को तत्पर, हमदर्द, दोस्तों का दोस्त और ज़िंदादिल इंसान आज चला गया।

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अब मुझे नहीं पता कि आधी रात को भी जब किसी को भी ज़रुरत होगी तो किसे फोन करूंगा?


पंकज मिश्रा-

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यह समय डाक्टर के के अग्रवाल के जाने का नही था , मेडिकल awareness का वह जो मुसलसल प्रोग्राम चला रहे थे वह आज के दौर में बेहद अहम था | मैं उनका वह वीडियो देख रहा था जब उनके नाक में ऑक्सीजन की नली लगी थी और पूछने पर उन्होने बताया कि उन्हें कोरोना हुआ है , ऑक्सीजन लेवल नाप के दिखाया कि यह 94 , 95 है , ज़िस पर बोला कि यह मेरे लिए नॉर्मल ही मगर चूंकि मैं lecture ले रहा हूँ इसलिए लगातार बोलने से कोई दिक्क्क्त न आये तो ऑक्सीजन ले रहा हूँ | इसी तरह अपने बढे CRP को भी बताते और बोलते इसका मतलब है कि मुझे अब further investigation कराना होगा ….. हो सकता है मुझे एडमिट होना पड़े तो भी हमारा यह show चलता रहेगा ….

Show तो चल रहा है मगर protagonist बीच show से चला गया ….

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आज जितनी श्रद्धांजलियां देश के कोने कोने से डाक्टर अग्रवाल को मिलेंगी , समझिए वही एक डॉक्टर की थाती है , वही पूंजी है , हमे ऐसे पूंजीवाद और ऐसे ही पूंजीपतियों की जरूरत है …..

भरे गले से अंतिम प्रणाम बोल रहा हूँ , आवाज़ नही पहुंचेगी आप तक , मगर तब भी आप इस तरह पहुंचते रहेंगे अवाम तक … आपके लेक्चर्स लोग फिर से सुनेंगे तब भी आप कुछ बांट रहे होंगे ….. मृत्यु के बाद भी जिसके पास देने के लिए कुछ रह जाता है असली इंसान वही है |

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