संजय कुमार सिंह
आज ज्यादातर अखबारों में ईरान-इजराइल युद्ध और इजराइल पर ईरान के मिसाइल दागने की खबर लीड है। कई अखबारों में सेकेंड लीड चीन सीमा पर सेना प्रमुख का बयान है और आज निश्चित रूप से यह बड़ी खबर है। फिर भी, दि एशियन एज की लीड का शीर्षक है, “कांग्रेस देश को बांटना चाहती है, देशभक्ति को कुचलना : प्रधानमंत्री”। गनीमत है कि दूसरे अखबारों ने प्रधानमंत्री के इस आरोप को इतना महत्व नहीं दिया है और संभव है गोदी वाले भी अब 56 ईंची का खोखलापन समझने लगे हों। पर वह अलग मुद्दा है। आज सेना प्रमुख का बयान इतना महत्वपूर्ण है कि दि एशियन एज ने भी इसे अंदर की महत्वपूर्ण खबरों में रखा है और पहले पन्ने पर अंदर की जिन तीन खबरों की चर्चा है उनमें एक यह भी है। इसका शीर्षक है, “सेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने कहा, एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर स्थिति स्थिर पर संवेदनशील है और सामान्य नहीं है”। आप जानते हैं कि पहले के दो सेना प्रमुखों की किताबें रुकी हुई है और लगभग तैयार होने के बावजूद जारी नहीं होने दी जा रही है। ऐसे में सेना प्रमुख का यह कहना और उसे अखबारों में पहले पन्ने पर ही नहीं, सेकेंड लीड के रूप में छपना बड़ी बात है। दूसरी ओर अगर प्रधानमंत्री 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस पर वही पुराने आरोप लगा रहे हैं तो वह भी बड़ी खबर है। इसीलिए दि एशियन एज ने इसे लीड बनाया है।
प्रधानमंत्री की राजनीति, उनके बयान पर चाहे किसी का नियंत्रण नहीं हो और वे कह रहे हैं तो लीड बन जाये पर राजनीति की सामान्य समझ रखने वाला भी जानता है कि दस साल पहले ही कांग्रेस बुरी थी। इसीलिये भाजपा, संघ परिवार और देश ने उसे हटाकर नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया था। सत्ता में आने के बाद वे वंशवाद और राहुल गांधी पर हमला करते रहे। 10 साल में जो करना था किया और लगभग मनमानी की है। उसके बावजूद अब अपनी अच्छाई या उपलब्धियां, सफलता न बताकर कांग्रेस पर वही पुराने आरोप लगाने का क्या मतलब? कांग्रेस बुरी होगी पर आप अच्छे हैं यह तो बताना होगा। 10 साल पहले की बात अलग थी। तब लोग कांग्रेस को जानते थे लेकिन भाजपा या संघ परिवार को नहीं जानते थे। जानने की कोशिश में या वैसे भी अगर भाजपा ने शासन में 10 साल पूरे कर लिये हैं और तीसरी बार सत्ता में आकर नेहरू की बराबरी कर ली है तो उससे बेहतर कहां हैं, कैसे हैं यह बताने की बजाय वे अभी भी कह रहे हैं कि कांग्रेस बुरी है, देश बांटना चाहती है और देश भक्ति को खत्म करना चाहती है।
यह सब तब है जब पूर्व सेना प्रमुख को अपनी बात कहने की छूट नहीं है। पुस्तक में अगर कुछ आपत्तिजनक या गलत होता तो उसे हटाकर पुस्तक आ सकती थी पर नहीं आने का मतलब यही है कि उसमें जो कहा गया है वह सही है और सरकार उसे जनता को बताना नहीं चाहती है। देश की जो बात पूर्व सेना प्रमुख (एक नहीं, दो) जनता को बताना चाहते हैं, जानने लायक समझते हैं उसे सरकार जनता को जानने से रोक रही है और दावा कि कांग्रेस देशभक्ति को कुचलना चाहती है। इसी तरह, जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती, जिनकी दक्षिण भारतीय भाषाओं में दिलचस्पी नहीं है, जिनपर हिन्दी थोपने का आरोप लगता है वह कहता है कांग्रेस देश को बांटना चाहती है। हिन्दी थोपने का आलम यह है कि पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम हिन्दी में थे और उन्हें बांग्ला में जारी करने की जरूरत ही नहीं समझी गई। कांग्रेस देश भक्ति खत्म करना चाहती है – यह तब कहा गया है जब मणिपुर डेढ़ साल से जल रहा है, कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाने का प्रयोग चल रहा है, लद्दाख के आंदोलन पर ध्यान नहीं दिया गया और सोनम वांगचुक को राजघाट नहीं जाने दिया गया। इससे पहले किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोक कर और दिल्ली सरकार को जनहित के तमाम काम करने से रोक कर यह साबित किया जा चुका है कि दिल्ली पर राजा के महल जैसा एकाधिकार चाहिये।
दस साल से ज्यादा के जिसके शासन में सेना का उपयोग तो किया गया है पर सैनिकों के अपमान के ढेरों मामले हैं और सैनिकों की बात तो छोड़िये आम लोगों का जो हाल है सो है, बलात्कारी, यौन शोषण करने वाले ही नहीं, मुंह पर मूतने वाले लोग साथी और पार्टी के सदस्य रहे हैं, सुरक्षा पाई है और सजा से बचा लिये गये हैं। वह भी तब जब आदिवासियों और वंचितों के लिए काम करने वाले 84 साल के स्टेन स्वामी पर माओवादियों से संबंध होने का आरोप लगाया गया, गिरफ्तार किया गया, जेल में सिपर जैसी चीज के लिए परेशान किया गया और आतंकवाद के साथ यूएपीए की धाराओं में बंद करके जेल में मार दिया गया। बात इतनी ही नहीं है। इसका अफसोस नहीं है, खेद के दो शब्द नहीं हैं। और तो और किसानों के हित में उनकी सलाह के बगैर कानून बनाने का दावा किया गया, उनके आंदोलन में सात सौ से ज्यादा किसान मर गये पर उनके लिए दो मिनट का मौन नहीं रखा गया।
देश में 10 साल शासन करने, अनुच्छेद 370 हटाने को उपलब्धि बताने के बावजूद भाजपा की हालत यह है कि आज हिन्दुस्तान टाइम्स में छपे केंद्रीय रक्षा मंत्री के इंटरव्यू का शीर्षक है, जम्मू और कश्मीर के लोग अब भाजपा के प्रति एलर्जिक नहीं है। आप जानते हैं कि कश्मीर में 10 साल बाद चुनाव हुए हैं। भाजपा कई जगह चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं रही। मुकाबले में नहीं है सो अलग मुद्दा है। इसके बावजूद श्रीनगर को छोड़कर बाकी इलाकों में अच्छा मतदान हुआ है और आठ अक्तूबर को भाजपा की लोकप्रियता का पता चल जायेगा पर आज वे ऐसा कह रहे हैं और अखबार में छपा है तो इसलिए कि हरियाणा में चुनाव है और लोकप्रियता वहां भी दिखानी है। आप जानते हैं कि भाजपा ने आग्रह करके चुनाव की तारीख बढ़वाई है। कश्मीर के मामले में राजनाथ सिंह ने ऐसा तब कहा है जब राज्य को दो हिस्सों में बांटकर केंद्र शासित प्रदेश बनाने से लोगों में भारी गुस्सा है और अपनी मांगों के समर्थन में पैदल दिल्ली आये सोनम वांगचुक और साथियों को राजघाट पहुंचने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया और आज ही, हिन्दुस्तान टाइम्स में ही पहले पन्ने पर ही (भले सिंगल कॉलम में) खबर है, वांगचुक को रोकने पर नाराजगी।
टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर दो कॉलम में है और दि एशियन एज में पांच कॉलम में है। प्रधानमंत्री के दावे और सोनम वांगचुक की खबरों के बीच में राहुल गांधी की भी खबर है और शीर्षक है, भाजपा संविधान विरोधी : राहुल हरियाणा में कांग्रेस की आंधी देख रहे हैं। उपशीर्षक है, प्रधानमंत्री पर हमले के लिए बेरोजगारी, अग्निवीर योजना का मुद्दा उठाया। कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी या कांग्रेस की खबरें अमूमन पहले पन्ने पर नहीं होती हैं। द टेलीग्राफ में होती थीं लेकिन अब उसमें आधे पन्ने का विज्ञापन रहता है इसलिए मैं दि एशियन एज को भी अपने अखबारों में शामिल कर ले रहा हूं। अब आप यहां सात की जगह आठ अखबारों के पहले पन्ने की खबरें पढ़ सकेंगे।
पहले पन्ने पर नरेन्द्र मोदी के साथ राहुल गांधी को भी जगह देने का काम आज नवोदय टाइम्स ने भी किया है। असल में पहले पन्ने पर छह कॉलम का विज्ञापन गर्दन तक है इसलिए दो पहले पन्ने बनाये गये हैं। दोनों खबरें दूसरे पहले पन्ने पर हैं। ऊपर शीर्षक है, कांग्रेस दलालों और दामादों की पार्टी : मोदी। नीचे शीर्षक है, मोदी सरकार संविधान पर कर रही हमला :राहुल। जहां तक आरोपों के साथ तथ्यों की बात है, हाल में मैंने लिखा था भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के कोषाध्यक्ष को केंद्रीय (रेल और वित्त जैसे महत्वपूर्ण विभागों का) मंत्री बना दिया था। इतना ही होता तो भी गनीमत थी। जब पूर्व कोषाध्यक्ष केंद्रीय मंत्री रहे तो भाजपा के कोषाध्यक्ष का पद खाली रहा और यह स्पष्ट नहीं है कि केंद्रीय मंत्री ही कोषाध्यक्ष थे या कोषाध्यक्ष का पद खाली था। किसी ने पूछा नहीं और बताया नहीं गया सो अलग। ऐसी पार्टी और सरकार चलाने वाले नरेन्द्र मोदी कांग्रेस को दलालों और दमादों की पार्टी कह रहे हैं तो अखबारों का भी काम है कि वह पाठकों को इन बातों की याद दिलाये। पर वह अलग मुद्दा है। नवोदय टाइम्स के पहले पन्ने की लीड का शीर्षक है, बुलडोजर न्याय पर रोक। दूसरे पहले पन्ने की लीड का शीर्षक है, ईरान ने इजराल पर दागी दर्जनों मिसाइलें।
इंडियन एक्सप्रेस की लीड आज सबसे अलग है। खबर के अनुसार सेबी से संबंधित नये नियमों की शुरुआत 20 नवंबर को होगी और सेबी ने बाजार की अटकलबाजी को कम करने के लिए एफएंडओ यानी फ्यूचर एंड ऑप्शंस नियम सख्त कर दिये हैं। यह आम लोगों के मतलब की खबर नहीं है और शायद इसीलिये दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। सेबी प्रमुख पर आरोपों के मद्देनजर सेबी कुछ कर रहा है तो निश्चित रूप से वह खबर है। इसी तरह सरकार के एक और काम का प्रचार आज इंडियन एक्सप्रेस में है। इसके अनुसार, शिखर की 500 फर्मों के साथ इंटर्नशिप योजना के लिए पोर्टल 12 अक्तूबर को शुरू होगा। पूर्व में देश भर की बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर एक प्रशिक्षण योजना शुरू करने की घोषणा हुई थी औऱ यह उसी के क्रम में है। द टेलीग्राफ में यह खबर बिजनेस पेज पर लीड है। इसका शीर्षक है, पीएम इंटर्नशिप योजना के लिए बड़ी फर्मों ने दस्तखत किये। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री की योजना है तो बड़े नाम जुड़ेंगे ही लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह योजना दूसरी योजनाओं या प्रयोगों से अलग, कामयाब रहेगी। +
अब मुझे यह यकीन हो चला है कि कि प्रधानमंत्री कुछ गलत धारणाओं और सूचनाओं से प्रभावित थे और समझते थे कि भिन्न कारणों से उसे लागू नहीं किया जा रहा है और किया जा सके तो क्रांति हो जायेगी। प्रधानमंत्री बनने के बाद नोटबंदी से लेकर जीएसटी जैसे प्रयोग इसी क्रम में हैं और उनके कुछ पुराने भाषण भी इसकी पुष्टि करते हैं। यह योजना भी उसी क्रम में है। इसे बेरोजगारी दूर करने के नाम पर शुरू किया गया है पर मुझे लगता है कि निजी क्षेत्र को इसकी आवश्यकता होती तो उन्हें रोक कौन रहा था और मैंने पहले लिखा है कि जमशेदपुर में टाटा की गाड़ियों (ट्रक, बस) और डीलर के यहां काम करने वालों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था हमारे बचपन में थी और उसके लिए कर्मचारियों के बच्चों को प्राथमिकता भी मिलती थी। फिर भी मेरे जैसे कई लोगों ने कभी उधर ध्यान नहीं दिया जबकि उस योजना के तहत प्रशिक्षण पाये मेरे साथ के लोग डीलर के वर्कशॉप से जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए। कुल मिलाकर प्रशिक्षण की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन जिसे इसकी जरूरत थी उनके पास इसकी व्यवस्था पहले से थी और नये या अतिरिक्त प्रशिक्षण से रोजगार न मिले तो इस योजना का लाभ क्या होगा? अखबारों को चाहिये था कि इसपर कुछ बताते पर वह नहीं के बराबर हुआ है।
यह सब तब है जब सरकार मुसलमानों को (विरोधियों को भी) परेशान करने के लिए बुलडोजर न्याय का अधिकार चाहती है और स्पष्ट रूप से देश को हिन्दू बनाम अन्य में बांट रही है। इसीलिए राहुल गांधी ने सिखों का उदाहरण दिया तो तिलमिला गई और मुकाबले में राहुल गांधी को धमकियां मिलीं, उनपर चुप्पी रही आदि आदि। अब सुप्रीम कोर्ट इस मनमानी का सख्ती से इसका विरोध कर रहा है। यही नहीं, अमर उजाला की आज की लीड के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, सड़क पर बने धार्मिक निर्माण गिराएं, संपत्ति ढहाने पर तय करेंगे दिशा-निर्देश। आप समझ सकते हैं अतिक्रमण कर बनाये गये पूजा स्थलों से सुप्रीम कोर्ट भी परेशान है। लेकिन धार्मिक कारणों से उसे नहीं गिराया जा रहा है और टाइम्स ऑफ इंडिया के शीर्षक के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कथित अपराध के लिए हम बुलडोजर न्याय की अनुमति नहीं देंगे।