वाराणसी। “हम सायादार पेड़ जमाने के काम आए
जब सूख गए तो जलाने के काम आए”
संदीप दा यानी संदीप घटक यानी कामरेड संदीप की शख्सियत भी कुछ ऐसी ही थी बीते सोमवार की शाम बीएचयू के सर सुन्दर लाल चिकित्सालय में जिंदगी को अलविदा कहने वाले49 साल के संदीप अपने शरीर को Anatomy Department को सौंप गए मृत्यु से पहले यही उनकी अंतिम ख्वाहिश थी अब मेडिकल के छात्र उनके शरीर का उपयोग अपने पढ़ाई के लिए करेंगे। मंगलवार की सुबह उनके परिजनों, मित्रों,साथी कामरेडों और चाहने वालों ने उनकी शवयात्रा निकाल कर उनका शव Anatomy Department को सौंप दिया।
हमेशा हंसने और हंसाने वाले कामरेड संदीप सामाजिक तौर पर बेहद सक्रिय रहे लोगो की तकलीफ और दर्द में उनका साथ देते रहे जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए भले ही उन्होंने मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव का काम किया पर उनका जुड़ाव हमेशा ही समाज के पीड़ित तबके से रहा कभी भाकपा माले से जुड़कर अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत करने वाले कामरेड संदीप इन दिनों सीटू के जिला संयुक्त मंत्री होने के साथ ही सीपीआई एम के सदस्य भी थे।
संदीप दा उत्प्रेरक की तरह थे उनसे मिलकर ऊर्जा मिलती थी। जब भी मिलते हंसते हुए मिलते और हंसाते रहते। सोनारपुरा हो या फिर भागते शहर में हांफती जिंदगी लिए शहर की भीड़ भरी सड़क पर देखते ही दूर से तेज आवाज में पूछते “केमोन आछो” कैसे हो। एक प्रतिबद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता होने के साथ बेहद मिलनसार इंसान थे संदीप दा।
उनके बचपन के मित्र कामरेड संजय भट्टाचार्य बताते है कि संदीप अच्छा गाते थे किशोर कुमार के गाने उनके आवाज में बेहद अच्छे लगते थे। संजय बताते हैं किसी के बिमारी होने की खबर मिलते ही संदीप उसकी मदद जरूर करते थे किसी भी सामाजिक कार्य में वो बेहद सक्रिय रहते थे।
संदीप अपने पीछे अपनी बूढ़ी मां 10 साल की बेटी और पत्नी सान्या घटक को छोड़ गए हैं । तकरीबन 7 माह पहले ही उनके मझले भाई का निधन हुआ था ऐसे में संदीप का असमय जाना उनके मां के लिए असहनीय है। जिंदा दिल संगीत दा हमेशा याद आयेंगे।
-बनारस से भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट.
संदीप के जाने पर समाजवादी चिंतक Aflatoon Afloo की ये पोस्ट देखें-
संदीप मुझसे उम्र में 8-10 साल छोटा रहा होगा। वह काशी विश्वविद्यालय में बी एस सी करते वक्त स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया से जुड़ा था। मैं समता युवजन सभा की गतिविधि में रुचि लेता था लेकिन राजनैतिक जनसंगठन- समता संगठन से जुड़ चुका था। 1985 में विश्वविद्यालय प्रशासन मतदान से एक दिन पहले मतदान टाल दिया था। फिर छात्रसंघ को निलंबित कर दिया और छात्रसंघ के दो पदाधिकारियों और मुझे निलंबित कर दिया।
छात्रसंघ संविधान में संशोधन और नया संविधान बनाने के प्रावधान छात्रों के बनाए हुए उस वक्त के संविधान में थे लेकिन उन्हें नकारते हुए प्रशासन एक संविधान ले आया था। नए संविधान में छात्रसंघ के उद्देश्यों से ‘समग्र सामाजिक परिपेक्ष्य में लोकतांत्रिक असहमति प्रकट करना’ हटा दिया गया था, संविधान संशोधन और नया संविधान बनाने के अधिकार भी गायब कर दिए गए थे। छात्र राजनीति के प्रति ‘घूस दो,बदनाम करो, निकाल फेंको’ की नीति अपनाने में प्रशासन में मौजूद भ्रष्ट तत्वों का भी स्वार्थ था।
बहरहाल जनेवि में एस एफ आई के खिलाफ लड़ने के बावजूद हमारे संगठन की समझदारी बनी कि निरंकुशता के खिलाफ व्यापक एकजुटता बन जाए । फिर जनतांत्रिक हक बहाल होने के बाद आमने सामने बहस करते रहेंगे।इसी दौर में रैडिकल स्टूडेंट्स यूनियन और स्टूडेंट्स फेडरेशन से समता युवजन सभा ने मोर्चा बनाया।अनिल यादव की पहल पर एस एफ आई की इकाई बनी थी और विजय सिंह, राजेंद्र मिश्र, राजेन्द्र गुप्ता, राधेश्याम भारती, मृगेंद्र सिंह, शिवशंकर वर्मा और संदीप घटक आदि सक्रिय थे।चुनाव के मौके पर प्रेमनाथ राय, रथिन सेनगुप्ता, नीलोत्पल बसु और सुभाषिनी भी हमारे मोर्चे के समर्थन में एस एफ आई के बुलावे पर आ जाते थे।
मैंने जब विधानसभा चुनाव लड़ा तब माकपा और भाकपा (माले) ने मेरा समर्थन किया।संदीप ने एक चुनाव सभा आयोजित की थी।
एंड्रॉइड युग में संदीप सक्रियता से जुड़े और राजनैतिक नाते का नवीकरण भी हुआ।
संदीप एक प्रतिबद्ध राजनैतिक कार्यकर्ता थे।उनके द्वारा देहदान का फैसला करना और उनकी पत्नी और साथी सोनिया द्वारा संदीप के देहदान का क्रियान्वयन एक आकर्षक बात है।मुझे स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता श्रीपाद केलकर की याद आई ।बहुत मुमकिन है कि संदीप को ज्योति बसु के देहदान से प्रेरणा मिली हो।
स्थानीय अखबारों के लिए संदीप घटक द्वारा देहदान का संकल्प और सोनिया द्वारा उसे पूरा कराना अपने आप में खबर बननी चाहिए थी।
पंजाब के किसानों के एक नारे से प्रेरित होकर संदीप के लिए कहना चाहूंगा-
न धर्म के और न रिलायंस के साथ,
कॉमरेड संदीप थे सायंस के साथ।
साथी संदीप घटक की याद को सलाम।