रायपुर (छत्तीसगढ़) : न्यू सर्किट हाउस में समन्वय संस्था की कार्यशाला में कोर मीडिया और सोशल मीडिया के बीच बेहतर तालमेल और दोनों में गुणात्मक सुधार पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के समानांतर एक और मीडिया शैली का विकास पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुआ है। आम लोगों द्वारा संचालित इस नई मीडिया शैली को सोशल मीडिया कहा जाता है। बहुत से सोशल मीडिया एक्टिविस्ट और पत्रकारों की राय है कि इन दोनों माध्यमों में यदि बेहतर समन्वय हो तो मीडिया और मजबूती के साथ समाज के लिए काम कर सकेगा।
समन्वय के मंगल सनेचा ने कहा कि मूल रूप से पत्रकार होने के साथ ही वे सोशल मीडिया से शुरूआती दौर से जुड़े हैं। उनका मानना है कि दोनों माध्यम एक-दूसरे के साथ बेहतर समन्वय से ज्यादा प्रभावशाली साबित हो सकते हैं। इस दौरान अखबारों की गुणवत्ता और सोशल मीडिया की बुराइयों पर भी चर्चा की गई।
मंगल ने कहा कि अखबार अपने प्रभावशाली प्रजेंटेशन के जरिए किसी घटना को हमेशा के लिए अमर बना सकते हैं। इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया अखबार की जगह कभी नहीं ले सकते। इसी तरह सोशल मीडिया व्यक्तिगत होने की वजह से ज्यादा स्वतंत्र है और त्वरित अभिव्यक्ति के चलते कई बार बेहद प्रभावशाली साबित होता है, लेकिन इसके विपरीत सोशल मीडिया प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह निष्पक्ष हो यह जरूरी नहीं है। ये अक्सर राजनीति प्रेरित भी होता है और अक्सर इसका दुरुपयोग भी होता है, जिसकी वजह से इसकी आलोचना की जाती है। अखबारों में उपयोग होने वाले सॉफ्टवेयर टूल्स तैयार करने वाले आकृति व लिपिका के विशेषज्ञ भी इस दौरान मौजूद थे। आकृति के प्रमोटर एम एस श्रीधर ने कई नए सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन्स के बारे में जानकारी दी, जो सोशल और प्रिंट मीडिया के बीच बेहतर समन्वय में कारगार साबित हो सकते हैं।