Satyendra PS-
कोरोना के टीके पर कई मित्रों से बात हुई। इसका असर ठीक ठाक है। जिन लोगों ने टीके लगवाए थे, वहां कैजुअलिटी रेट निश्चित रूप से कम है। चिकित्सा शास्त्र में इसे भी एक प्रमाण माना जाता है।
उत्तर प्रदेश के अधिकारियों से बात हुई है तो उत्तर प्रदेश का उदाहरण सबसे पहले लेते हैं। राज्य में पंचायती राज विभाग के कर्मचारियों और स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस वालों को फ्रंटलाइन वर्कर मानकर उन्हें टीका पहले चरण में लगा दिया गया था।
पुलिस व स्वास्थ्य महकमा सबसे ज्यादा जोखिम में रहता है, उसके मुताबिक इन दोनों विभागों में कर्मचारियों की मौतें कम हुई हैं।
यूपी में निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा भूमिका पंचायती राज विभाग की होती है। पूरे चुनाव की प्रक्रिया में इस विभाग में कैजुअलिटी कम रही। यहां तक कि इस विभाग के साथ मिलकर चुनाव कराने डेपुटेशन पर आए अधिकारी ज्यादा मात्रा में कोविड के शिकार हुए। प्राइमरी के अध्यापकों का तो यूपी सरकार ने नरसंहार ही करा दिया और 700 से ज्यादा टीचरों की हत्या हुई है। मास्टरों को बगैर किसी टीके के जबरी मतदान व मतगणना में उतार दिया गया था।
इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि आंशिक ही सही, कोरोना का टीका कारगर है। टीका लगवाएं, कोई भरम न पालें।
टीके की हालत यह है कि केंद्र सरकार ने राज्यों से कह दिया है कि वे वैश्विक टेंडर जारी कर टीका खरीदें। यानी भारत के 32 राज्य दुनिया भर की कम्पनियों के साथ टीके के लिए गिड़गिड़ाए। भारत के राज्य आपस में ही कट मरें कि हमको 100 रुपये में टीका दो, फिर दूसरा राज्य कहे कि हम 110 रुपये देने को तैयार हैं फिर छठा राज्य कहे कि हम 300 रुपये देने को तैयार हैं।
ऐसी हरामी केंद्र सरकार पहली बार आई है जो कम्पनियों के सामने देश के राज्यों को आपस में ही टीके के लिए कट मरने को छोड़ दिया है। इसके पहले भारत एक देश के रूप में वैश्विक समुदाय के सामने जाता था।
बहरहाल इस बीच खुशी की बात है कि बच्चों को लगने वाले 3 टीके जल्द ही आ सकते हैं, उनपर शोधार्थियों का काम चल रहा है।
भवतु सब्ब मंगलम।
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