मीडिया पर पूंजीपितयों का कब्जा अच्छा संकेत नहीं है। उद्योगपितयों और मंत्रियों के बीच पर्दे के पीछे जो रिश्ते रहे हैं और आज भी हैं और जो आगे भी रहेंगे उन रिश्तों की बिना पर जो फायदे उठाये गये हैं और उठाये जा रहे हैं, उनकी कहानी पिछले कुछ सालों से मीडिया में लगातार आ रही है। उन्हीं रिश्तों के उजागर हो जाने के कारण कुछ नेताओं मंत्रियों को जेल की हवा भी खानी पड़ी है। यहां तक कि इन्हें प्रश्रय देने वाली सरकार को भी अपना तख्तो-ताज गंवाना पड़ा है।
जाहिर है, उद्योगपितयों को अब लगने लगा है कि नेता और मंत्री के साथ-साथ अगर मीडिया भी उनकी मुठ्ठी में हो तो उनके कारनामे कभी उजागर नहीं हो पायेंगे। फिर वो जो चाहेंगे, करते रहेंगे। यही कारण है कि उन्होंने पैसे के बल पर सीधे-सीधे मीडिया हाउसेज ही खरीदना शुरू कर दिया है। लेकिन लाख टके का सवाल ये है कि अगर यही प्रक्रिया लंबे समय तक जारी रही और मीडिया पर पूंजीपितयों का पूरी तरह कब्जा हो गया तो आने वाला कल कितना खतरनाक और कितना भयावह होगा, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है।
धनंजय सिंह, मुंबई
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