दया शंकर शुक्ल सागर-
साठ साल की उम्र होने का इंतजार किए बिना आखिर हमने भी कोविड की वैक्सीन लगवा ली. सरकार ने नियम बनाया है कि 45 के ऊपर वाले भी अगर वे हाईबीपी या शुगर के मरीज हैं तो उन्हें भी ये वैक्सीन लग सकती है. अब इस नामुराद जमाने ने इतने तनाव तो दे ही दिए हैं कि जिस्म में खून का थोड़ा दबाव बढ़ा ही रहने लगा है. तो बैठे बिठाए वैक्सीन लगवाने के लिए सरकारी अर्हता हासिल कर ली.
सोचा किसी डाक्टर मित्र से बात किए बिना साधारण नागरिक की तरह टीका लगवा लिया जाए इससे सरकार के टीकाकरण अभियान का भी हालचाल मिल जाएगा. तो सरकारी वेबसाइट cowin.gov.in पर गए और पहले पिताजी का फिर अपना रजिस्ट्रेशन करा लिया. करीब के निजी अस्पताल का विकल्प भर दिया. 250 रु. फीस दी और हाईबीपी की दवा का पुराना पर्चा दिखा कर आधे घंटे में वैक्सीन लग गई.
गरीब जनता के लिए सरकारी अस्पतालों में ये वैक्सीन फ्री में लग रही है. सब कुछ बहुत आसानी और आराम से हो रहा है. वैक्सीन लगाने वाली एक दक्षिण भारतीय सौम्य नर्स थी. टीका कब लग गया पता ही नहीं चला. आजकल हाइपोडरमिक (ये एक ग्रीक शब्द है हाइपो मतलब अंदर और डर्मिक माने त्वचा) निडिल इतनी अत्याधुनिक हो गई हैं कि त्वचा पर सुई की चुभन तक महसूस नहीं होती.
पूछने पर सिस्टर ने बताया कि अब तक उनके पास एक भी केस ऐसा नहीं आया कि किसी को टीका से कोई जरा सी भी दिक्कत हुई हो. कुछ को बुखार आ सकता है लेकिन दस हजार में किसी एक आदमी को. अगर आए तो बुखार की दवा लीजिए और सब ठीक. टीका लगने के बाद वे सबको आधे घंटे के लिए रोक रहे हैं. 28 दिन बाद दूसरी डोज लग लीजिए और फिर ईश्वर चाहेगा तो इस कम्बखत कोविड वायरस से आप हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएंगे.
यही वैक्सीन अगर कोविड संकट के दौर में आ गई होती तो उसे लगवाने के लिए भगदड़ मच गई होती. लेकिन अब सब फुर्सत में हैं. उस दौर में थाली पीटने वाले भी और ‘गो करोना गो’ वाले मूर्खानंद भी. एक खास तरह का बुद्धिजीवी वर्ग कोविड वैक्सीन के साइड अफेक्टस पर आंखें गड़ाए बैठा है. वह अब भी मानने को राजी नहीं कि ये वैक्सीन सेफ है. दूसरे आम आदमी के पास अब इतनी फुर्सत नहीं कि रजिस्ट्रेशन कराए जाकर टीका लगवाए.
कोर्ट सरकार पर नाराज हो रहा है कि यहां 60 से कम उम्र वालों को लगाने के लिए सरकार के पास टीका नहीं है और सरकार विदेश लोगों की चिन्ता कर रहे हैं और उन्हें टीके बेच रहे हैं. कम से कम कोर्ट से मुझे ऐसी संकीर्ण और तंगदिल टिप्पणी की कतई उम्मीद नहीं थी. शायद हमारी कोर्ट भी नए तरह के राष्ट्रवाद से पीड़ित है.
भारत की संस्कृति में पूरा विश्व एक कुटुंब है. तो हमें उनके बुजुर्गों की भी चिन्ता करनी ही चाहिए. गरीब देशों को मरने के लिए यूं नहीं छोड़ा जा सकता. फिर मुझे किसी साथी ने बताया कि कोर्ट की असल चिन्ता ये थी कि सरकार कोर्ट परिसर में ही जजों व वकीलों के लिए टीकाकरण का इंतजाम करा दे. यानी उन्हें अस्पताल भी नहीं जाना पड़े. तो ये तो हाल है इस देश की न्यायपालिका का. किस किस पर रोएंगे आप?
तो अगर आप या आपके परिवार का कोई सदस्य अगर कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए अर्ह है तो cowin.gov.in पर अपना पंजीकरण कराके करीब के अस्पताल में टीका लगवा ले. तब तो इस पोस्ट को लिखने का कोई फायदा है. वर्ना देश तो चल ही रहा है?