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जेटली साहब ज़रा अपने दूरदर्शन को भी देखिए, वो सरकारी भोंपू बना हुआ है

Mukesh Kumar : अरूण जेटली ने सही फरमाया है कि चैनलों की चर्चाएं शोरगुल और उत्तेजना से भरी होती हैं। उन्होंने ये समझाइश भी ठीक ही दी है कि उन्हें इस पर विचार करना चाहिए यानी सुधारना चाहिए। भला कौन उसे असहमत होगा, क्योंकि सभी चैनलों की चर्चाओं से त्रस्त हैं। लेकिन जेटली साहब ज़रा अपने दूरदर्शन को भी देख लिया कीजिए। वो किस कदर एक पक्षीय और सरकारी भोंपू बना हुआ है। उसे तथ्यों-कथ्यों से कुछ लेना-देना नहीं होता, बस सरकार का अंधाधुंध प्रचार और विपक्षियों के खिलाफ़ निंदा अभियान। आखिर प्रसार भारती का गठन इसलिए तो नहीं किया गया था। अगर जेटली सचमुच में भारतीय मीडिया के चरित्र को लेकर चिंतित हैं और उसमें बदलाव चाहते हैं तो शुरूआत प्रसार भारती से ही करें। उसे मुक्त करें और समूचे मीडिया के लिए रोल मॉडल बनने दें। अगर नहीं कर सकते तो ये पाखंड उनको शोभा नहीं देता।

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Mukesh Kumar : अरूण जेटली ने सही फरमाया है कि चैनलों की चर्चाएं शोरगुल और उत्तेजना से भरी होती हैं। उन्होंने ये समझाइश भी ठीक ही दी है कि उन्हें इस पर विचार करना चाहिए यानी सुधारना चाहिए। भला कौन उसे असहमत होगा, क्योंकि सभी चैनलों की चर्चाओं से त्रस्त हैं। लेकिन जेटली साहब ज़रा अपने दूरदर्शन को भी देख लिया कीजिए। वो किस कदर एक पक्षीय और सरकारी भोंपू बना हुआ है। उसे तथ्यों-कथ्यों से कुछ लेना-देना नहीं होता, बस सरकार का अंधाधुंध प्रचार और विपक्षियों के खिलाफ़ निंदा अभियान। आखिर प्रसार भारती का गठन इसलिए तो नहीं किया गया था। अगर जेटली सचमुच में भारतीय मीडिया के चरित्र को लेकर चिंतित हैं और उसमें बदलाव चाहते हैं तो शुरूआत प्रसार भारती से ही करें। उसे मुक्त करें और समूचे मीडिया के लिए रोल मॉडल बनने दें। अगर नहीं कर सकते तो ये पाखंड उनको शोभा नहीं देता।

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खबर आई है कि प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल में फेरबदल करना चाहते हैं, मगर उन्हें अच्छी प्रतिभाएं नहीं मिल रहीं। दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की ये दुर्दशा कि वह ऐसे ढंग के नेता भी उपलब्ध नहीं करवा पा रही कि प्रधानमंत्री काबिल मंत्री चुन सकें ताकि डेढ़ साल में ही फिसड्डी साबित हो रही सरकार की छवि बदली जा सके और उसे थोड़ा कामकाजी बनाया जा सके। वैसे जब सारे फैसले पीएमओ ले रहा है तो मंत्रियों में खोट निकालना कहां तक ठीक है। उन्हें तो काम करने की स्वतंत्रता ही नहीं दी गई। अगर दी जाती और वे नाकाम रहते तब उन्हें निकम्मा और नालायक कहना ठीक होता, मगर सही ढंग से आज़माए बिना उन्हें खारिज़ कर देना ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री जी जब आप दूसरों पर उंगली उठा रहे हैं, तो ध्यान रहे कि बाक़ी की चार उंगलियाँ आपकी ओर हैं। देखा जाए तो प्रतिभाएं बिखरी पड़ी हैं। गजेंद्र चौहान में अपार क्षमताएं हैं, फिल्म संस्थान के बजाय उन्हें सरकार में आज़माया जाना चाहिए। इसी तरह और भी प्रतिभाएं जगह-जगह शोभायमान हैं, उन्हें भी अवसर की दरकार है।

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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