Sanjaya Kumar Singh-
धन के स्रोत की ‘जांच’ और पहले पन्ने पर खबर…
टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर खबर है, प्रवर्तन निदेशालय किसान आंदोलन के लिए धन के स्रोत की जांच कर रहा है। जांच हो रही है तो पहले पन्ने पर खबर है, इसमें कोई बुराई नहीं है। खबर का विस्तार अंदर के पन्ने पर है, वह भी ठीक है। लेकिन पुलवामा में आरडीएक्स कैसे पहुंचा और कितना था, फट गया तो पता लगाना मुश्किल है लेकिन शुरू में भाई लोगों ने 300 किलो किस बिना पर कहा था – यह सब आम आदमी के जानने योग्य चीजें हैं पर सरकार जांच नहीं करवा रही है। अखबार पता नहीं लगा रहे। चुप्पी साधे बैठे हैं। अर्नब के चैट लीक होने के बाद भी।
आज की बड़ी खबर दिल्ली में विस्फोट की है। खबर किसी भी अखबार में (द टेलीग्राफ को छोड़कर) टॉप पर नहीं है। जहां विज्ञापन है वहां सबसे नीचे और जहां विज्ञापन नहीं है (इंडियन एक्सप्रेस) वहां फोल्ड के नीचे। हिन्दू में विज्ञापन नहीं है तब भी फोल्ड के नीचे सिंगल कॉलम में है जबकि इंडियन एक्सप्रेस में डबल कॉलम है। पत्रकार नवनीत चतुर्वेदी के मुताबिक, यह विस्फोट भले ही आतंकी घटना नहीं मानी जा रही है, इजराइल इसे गंभीरता से आतंकी घटना की तरह ले रहा है।
सवाल यह है कि किसने किया होगा यह धमाका? जनधन की हानि तो नहीं हुई है लेकिन एक मैसेज देने की कोशिश जरूर की गई है। इंडियन एक्सप्रेस ने ईरान का लिंक बताया है, और हिन्दू ने कहा है कि भारत ने इजराइल से संपर्क किया। मतलब सामान्य विस्फोट में भी एंगल होता है और आप खबर को गंभीरता दे सकते हैं या मामूली विस्फोट कह कर टाल सकते हैं।
यही संपादकीय विवेक है और आजकल इसका पूरा उपयोग हो रहा है, जहां जितना या जैसा है। पहले अखबारों में सरकार जो करती थी उससे ज्यादा खबरें जो नहीं करती थी उसकी होती थी। यह खबर (मैं जो पांच अखबार देखता हूं उनमें) सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर है। यह संपादकीय विवेक का मामला है कि पहले पन्ने पर रोज आधा विज्ञापन रहता है और थोड़ा कम हो जाए तो कैसी खबरों से भरा जाए। मुझे लगता है कि सात साल पुरानी आधुनिक चाणक्य वाली यह सरकार कैसे काम करती है अब किसी से छिपा नहीं है और बच्चा बच्चा जानता है कि सरकार खर्च के स्रोत पर ही हमला करती है। यह खर्च देने वाला और भी अच्छी तरह से जानता है।
खबर यह होती है कि जांच में क्या मिला पर वह खबर कभी किसी ने किसी अखबार के पहले पन्ने पर पढ़ी हो तो बताइए। जब भी सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन अभियान चला, सरकार जी ने उसके धन के स्रोत का पता लगाना शुरू कर दिया। पर क्या अवैध मिला किसे किस बात की सजा हुई और अदालत में क्या हुआ – यह भी तो उसी खबर का भाग होगा? उन खबरों का क्या हुआ। कुछ नहीं तो ये भी बताना अखबारों का ही काम है लेकिन सब चंगा सी। राम नाम सत्य है।