दिल्ली : सुना है कि प्रेस क्लब ऑफ इंडिया पर बिल्डरों का कब्जा हेा गया है। आज वहां चुनाव है। हमारे यहां चुनाव का मतलब , गांव से शहर तक और पंचायत से संसद तक एक ही होता है। अगर अब इस क्लब मेंपत्रकार नहीं रहे या क्लब में पत्रकाराें की नहीं चलती तो इस तरह के क्लब का कोई मतलब नहीं है।
जैसे संपादक की कुर्सी पर मालिक कब्जा कर बैठै हैं ,कुछ पर दलाल। माफ कीजिएगा दलाल इस उदारीकरण के युग में किसी को गाली देने के लिए प्रयोग नहीं किया जाता। उसके सम्मान के लिए किया जा रहा है। वैसे भी जब यूएनआई जैसी संस्थाओं में कर्मचारियों को वेतन नसीब न हो रहा हो वैसे में प्रेस क्लब में बैठकर दारू पीने वाले लोग पत्रकार नहीं हो सकते।
मजीठिया के लिए दबे -कुचले कर्मचारी जब सुप्रीम कोर्ट में एडि़यां रगड़ रहे हों और जूते घिस रहे हों तब प्रेस क्लब में ब्ौठकर बड़ी -बड़ी डींगे हांकने वाले ये भारी भरकम लेाग कौन हैं , इनकी पहचान जरूरी है। शायद ये बिल्डर के ही दलाल हैं। फिर क्यों न इस क्लब का नाम दलाल क्लब ऑफ इंडिया होना चाहिए।
मजीठिया मंच एफबी वॉल से