पत्रकारिता में शौक से आये हो या इसे अपना करियर बनाना चाहते हो?

‘भ्रष्ट इंडिया कंपनी’ से मुक्ति का मार्ग ‘आजादी का दूसरा संघर्ष’ है…  छब्बीस जनवरी बीते एक माह गुजर गया है और पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव का अंतिम दौर चल रहा है। इस एक महीने के अंतराल में भारतीय लोकतंत्र के मौजूदा स्वरूप को लेकर अनेक तरह के विचार हवा में तैरते रहे। यह पहला मौका है जब चुनाव में न तो राष्ट्रीय फलक पर और न क्षेत्रीय या स्थानीय स्तर पर ही कोई मुद्दा चर्चा में है। इसके बरअक्स निचले स्तर के सामान्य चुनावी प्रचारकों से लेकर राष्ट्रीय स्तर के बडे़ नेताओं, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की भी, भाषा-शैली के घटते स्तर को लेकर हर जागरूक व्यक्ति चिंतित और शर्मसार नजर आ रहा है।

पढ़े-लिखे और शहरी नौजवानों में आधे से ज्यादा भारत में नहीं रहना चाहते!

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में छपे एक सर्वेक्षण ने आज मुझे जरा चौंका दिया। इसके अनुसार देश के पढ़े-लिखे और शहरी नौजवानों में आधे से भी ज्यादा भारत में नहीं रहना चाहते। वे भारत को अपनी अटल मातृभूमि नहीं मानते। उन्हें मौका मिले तो वे किसी अन्य देश में जाकर हमेशा के लिए बसना चाहेंगे। उन नौजवानों में से 75 प्रतिशत का कहना है कि वे किसी तरह भारत में रह रहे हैं। 62.8 प्रतिशत युवतियों और 66.1 प्रतिशत युवकों का मानना है कि इस देश में निकट भविष्य में अच्छे दिन आने की संभावना कम ही है। उनमें से 50 प्रतिशत का कहना है कि भारत की दशा सुधारने के लिए किसी ‘महापुरुष’ का अवतरण होना चाहिए। उनमें से लगभग 40 प्रतिशत ने कहा कि यदि उन्हें पांच साल के लिए प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो वे देश की दशा सुधार सकते हैं।

फिर-फिर मुठभेड़ करेगी यह उन्मत्त भीड़

हार्दिक पटेल आज की तारीख में एक बिसरा हुआ नाम है। ज्यादा आशंका है कि हुक्मरान-ए-दौरां इस नाम को हमेशा के लिए दफन करने की पूरी कोशिश करेंगे। वे सफल हो या न हों, लेकिन जो मुद्दे हार्दिक पटेल ने उठाए हैं, वे प्रथम दृष्ट्या बेढंगे दिखने के बावजूद पूरी शिद्दत और तार्किकता के साथ शासक वर्ग के सामने फिर-फिर मुठभेड़ करने के लिए उठ खड़े होंगे। इतिहास गवाह है गुजरात में ही चिमन भाई पटेल के मुख्यमंत्रित्व काल में छात्रों के स्वतः स्फूर्त आंदोलन को तत्कालीन सरकार ने भले ही दबा दिया हो, लेकिन उसकी तार्किक परिणति इमरजेंसी और फिर इन्दिरा गांधी की बेदखली के रूप में सामने आयी। और भी कई उदाहरण हैं। उस समय प्रभुवर्ग ने गुजरात के छात्रों को दिग्भ्रमित बताया और भी तमाम लांछन लगाये गये। जैसा आज भी हो रहा है।

मजीठिया वेतनमान मार खुशी के गीत गा रहे मीडिया के मसखरे स्वतंत्रता दिवस को विज्ञापनों के टकसाल में ढालने पर आमादा

सारी कारस्तानी देख रहा है विजयी विश्व तिरंगा प्यारा….

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा सब देख रहा है कि मजीठिया वेतनमान मार कर खुशी के गीत गा रहे मीडिया के मसखरे किस तरह आजादी मिलने के दिन को विज्ञापनों के टकसाल में ढालने पर आमादा हैं, झंडोत्तोलन पर सरगना सलामी ले रहा है और भ्रष्टाचार की वैतरिणियों में तैर रहे अपराधियों के गिरोह तालियां बजा रहे हैं, दुःशासनों के झुंड स्त्री-विमर्श और दलित चेतना की वकालत में व्यस्त हैं, चप्पलों पर तिरंगा छाप रहे हैं, उसे उल्टा लटका रहे हैं।

जनतंत्र के लिए खतरा बने कारपोरेट मीडिया घराने

नेटवर्क 18, दैनिक भास्कर समूह, जी नेटवर्क, टाइम्स ग्रुप या ऐसे तमाम मीडिया समूह जनतंत्र की मूल आत्मा और उसके ढांचे के लिए खतरनाक हैं जो एक ही साथ दर्जनभर से ज्यादा ब्रांड को चमकाने और उनसे अपने मीडिया बिजनेस का प्रसार करने में लगे हैं ? देश के इन प्रमुख मीडिया घरानों के संबंध में अगर ये बात सवाल की शक्ल में न करके स्टेटमेंट देने के तौर पर की जाए तो बहुत संभव है कि इनकी ओर से संबंधित व्यक्ति पर मान-हानि का मुकदमा या कम से कम कानूनी नोटिस तो भेजा ही जाएगा. लेकिन भारत सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय, उसकी सहयोगी संस्था ट्राय और मीडिया के मालिकाना हक को लेकर समय-समय पर गठित कमेटी पिछले कुछ सालों से लगातार इस बात को दोहराती आयी है कि जो मीडिया संस्थान एक ही साथ प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो, ऑनलाइन और मीडिया के कई दूसरे व्यवसाय से एक साथ जुड़ी है, वो दरअसल देश के लोकतांत्रिक ढांचे और उसकी बुनियाद कमजोर करने का काम कर रहे हैं.

पत्रकारों के साथ गहरी साजिश का अंदेशा, भविष्य निधि की साइट कई दिनो से निष्क्रिय

केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के अधीन संचालित कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ, इण्डिया) की साइट पिछले कई दिनों से डाउन चल रही है या डाउन कर दी गई है, जिससे मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे कर्मचारियों को अपनी ईपीएफ पासबुक निकालने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

अपने आप से संवाद : काश आप जैसे सभी मुसलमान हो जाएँ

मुसलमान अनपढ़ और जाहिल होते हैं. लेकिन मैं ऍम.ए, पी-एच.डी हूँ. मुसलमान अधिक बच्चे पैदा करते हैं. मेरा तो एक ही बेटा है. मुसलमान देश का नहीं, पाकिस्तान का झंडा फहराते हैं. मैंने पाकिस्तान पर किताब लिखी है. आप उसे पढ़ लें. समझ लेंगे कि मैं किसका झंडा फहराता हूँ.  मुसलमान टैक्स नहीं देते. टैक्स तो मेरे वेतन से कटा करता था. रिटायर होने के बाद पेंशन से कटता है. मुसलमान आतंकवादी होते हैं. मैं हर तरह के आतंक का विरोधी हूँ.

करोड़ों अकेले बेबस लोगों का देश

देश में अभी भी पचास करोड़ से ज्यादा वोटर किसी भी राजनीति दल के सदस्य नहीं हैं। और इतनी बडी तादाद में होने के बावजूद यह सभी वोटर अपनी अपनी जगह अकेले हैं। नहीं ऐसा भी नहीं है कि बाकि तीस करोड़ वोटर जो देश के किसी ना किसी राजनीतिक दल के सदस्य हैं, वे अकेले नहीं है। दरअसल अकेले हर वोटर है। लेकिन एक एक वोट की ताकत मिलकर या कहे एकजुट होकर जब किसी राजनीतिक दल को सत्ता तक पहुंचा देती है तो वह राजनीतिक दल अकेले नहीं होता। उसके भीतर का संगठन एक होकर सत्ता चलाते हुये वोटरो को फिर अलग थलग कर देता है। यानी जनता की एकजुटता वोट के तौर पर नजर आये । और वोट की ताकत से जनता नहीं राजनीतिक दल मजबूत और एकजुट हो जाये । और इसे ही लोकतंत्र करार दिया जाये तो इससे बडा धोखा और क्या हो सकता है। क्योंकि राजनीतिक पार्टी को सत्ता या कहे ताकत जनता देती है। लेकिन ताकत का इस्तेमाल जनता को मजबूत या एकजूट करने की जगह राजनीतिक दल खुद को खुद को मजबूत करने के लिये करते हैं। एक वक्त काग्रेस ने यह काम वोटरों को बांट कर सियासी लाभ देने के नाम पर किया तो बीजेपी अपने सदस्य संख्या को ग्यारह करोड़ बताने से लेकर स्वयंसेवक होकर काम करने के नाम पर कर रही है । 

झाबुआ में चिकित्सा-विमर्श : मीडिया को मेडिकल से क्या काम, सेहत से खेल रहे अस्पताल

झाबुआ : कंठ तक भ्रष्टाचार में डूबी देश की चिकित्सा व्यवस्था और उसके प्रति नितांत अगंभीर कारपोरेट मीडिया घरानों ने करोड़ो-करोड़ परेशानहाल लोगों से अपनी चिंताएं पूरी तरह हटा ली हैं। संसाधनहीन लोगों और गरीबों के प्रति जैसी उदासीनता सरकारी और प्राइवेट चिकित्सा संस्थान बरत रहे हैं, वही हाल खुद को चौथा खंभा कहने वाला मीडिया का भी है। प्रायः लगता है कि जैसे, देश की पूरी चिकित्सा व्यवस्था पैसे के भूखे इन गिरोहबाजों के चंगुल में फंस गई है। मीडिया घराने चिकित्सा क्षेत्र के विज्ञापनों को लेकर जितने आकुल-व्याकुल दिखते हैं, काश उतना आग्रह परेशान और असहाय मरीजों की मुश्किलों पर भी होता।  

राजग सरकार जल्द ही देश का नाम सिर्फ ‘इंडिया’ करने वाली है !

राजग सरकार को सत्ता में आए एक वर्ष से अधिक हो चुका है। राष्ट्रवादी सरकार से जैसी उम्मीद थी, उसके विपरीत हर नयी योजना का नाम अंग्रेजी में रख रही है और इन नयी नयी योजनाओं के प्रतीक-चिह्न बनाने के लिए केवल अंग्रेजी विज्ञापन अंग्रेजी के महँगे अख़बारों में छपवाए जा रहे हैं। इन योजनाओं के लिए सुझाव भी जनता से अंग्रेजी माध्यम में बनी वेबसाइटों और अंग्रेजी में छपे दिशा निर्देशों और नियमों के द्वारा आमंत्रित किए जा रहे हैं।  नयी योजनाओं के लोकार्पण के कार्यक्रम अब लांच फंक्शन कहलाते हैं और इनमें सभी बैनर, पोस्टर और अतिथि नामपट आदि केवल अंग्रेजी में छपवाए जाते हैं।  आश्चर्य इस बात का है कि विदेशी सरकारें प्रमं की विदेश यात्राओं के दौरान ये सब अपने देश की भाषा एवं हिंदी में तैयार करवाती हैं ताकि भारत से घनिष्ठता और उसके प्रति सम्मान को सिद्ध कर सकें। 

अपनी गलती से शर्मसार बीबीसी इंडिया ने माफी मांगी

बीबीसी इंडिया को अपनी एक गलती से शर्मसार होकर सोशल मीडिया पर माफी मांगनी पड़ गई। उसने गलती से विंबलडन महिला डबल्स की जीत का सारा श्रेय स्विट्जरलैण्ड की खिलाड़ी मार्टिना हिंगिस को दे दिया। खिताब भारत की सानिया मिर्जा और मार्टिना ने जीता था।  

 

देश में आज भी अघोषित आपात काल कायम

आपातकाल की चालीसवीं वर्ष गांठ के अवसर पर राजनीतिक विमर्श का एक दौर चल पड़ा है। लालकृष्‍ण आडवाणी के बाद अब पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने भी आपातकाल की संभावना से इंकार नहीं किया है। पीटीआई को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ‘आज राजनीति में द्वेष और बदले की भावना बढ़ गई है। इस लिहाज से आपातकाल के डर से इंकार नहीं किया जा सकता। 

भारत में 14 करोड़ से अधिक हुए सोशल मीडिया वाले लोग, गांवों में ढाई करोड़

भारत में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या 14.3 करोड़ तक पहुंच चुकी है। इसमें से ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ताओं की संख्या पिछले एक साल में 100 प्रतिशत तक बढ़कर ढाई करोड़ पहुंच गई है।

ये दिल्ली प्रेस क्‍लब है या दलाल(प्रेस) क्‍लब ऑफ इंडिया!


दिल्ली : सुना है कि प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया पर बिल्‍डरों का कब्‍जा हेा गया है। आज वहां चुनाव है। हमारे यहां चुनाव का मतलब , गांव से शहर तक और पंचायत से संसद तक एक ही होता है। अगर अब इस क्‍लब मेंपत्रकार नहीं रहे या क्‍लब में पत्रकाराें की नहीं चलती तो इस तरह के क्‍लब का कोई मतलब नहीं है। 

 

भारतीय मीडिया की नेपाल में किरकिरी

काठमांडू ! भारतीय मीडिया का एक वर्ग गलत कारणों से नेपाल में सुर्खियां बटोर रहा है। भारतीय मीडिया, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर सनसनी फैलाने के आरोप लगाए गए हैं, वह भी ऐसे समय में जब नेपाल भूकंप की मार से उबर रहा है। नेपाल की प्रोबायोटेक इंडस्ट्रीज के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी दिनेश गौतम ने आईएएनएस को बताया, “नेपाल में भारतीय पत्रकारों के प्रति लोगों में बहुत नाराजगी है, क्योंकि भारतीय पत्रकारों ने भूकंप त्रासदी की रपट तैयार करने में पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया।” 

मोदी सरकार पर अमेरिकी मीडिया ने साधा सीधा निशाना

अमेरिकी मीडिया ने मोदी सरकार की उपलब्धियों पर आलोचनात्मक रुख जाहिर करते हुए कहा है कि उनका महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ अभियान अब तक ज्यादातर सुर्खियों में ही रहा है और भारी अपेक्षाओं के बीच रोजगार में वृद्धि धीमी बनी हुई है।

टैराकोटा वॉरियर्स म्यूज़ियम में नहीं घुस पाए भारत के कई रिपोर्टर

शियान : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे को कवर करने यहां पहुंचे मीडियाकर्मियों को उस समय गहरा धक्का लगा, जब उन्हें शियान के ऐतिहासिक टैराकोटा वॉरियर्स म्यूजियम में नहीं घुसने दिया गया। ऐसा तब हुआ, जबकि इन तमाम मीडियाकर्मियों को चीनी ऑथोरिटी की तरफ से बकायदा पास भी जारी हो चुका था। 

नेपाल के भूकंप पर भारतीय मीडिया का मृत्यु-प्रहसन, सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया

नेपाल के भूकंप पर ख़बरों को भारतीय टेलीविज़न चैनलों ने जिस तरह पेश किया है, उससे सोशल मीडिया में तीखी प्रतिक्रिया है। रवीश कुमार लिखते हैं – ”नेपाल में ट्वीटर पर #gohomeindianmedia ट्रेंड तो कर ही रहा था और उसकी प्रतिक्रिया में भारत में भी ट्रेंड करने लगा है। मुझे इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी मगर कुछ तो था जो असहज कर रहा था। टीवी कम देखने की आदत के कारण मीडिया के कवरेज पर टिप्पणी करना तो ठीक नहीं रहेगा, लेकिन जितना भी देखा उससे यही लगा कि कई ख़बरों में सूचना देने की जगह प्रोपेगैंडा ज्यादा हो रहा है। ऐसा लग रहा था कि भूकंप भारत में आया है और वहां जो कुछ हो रहा है वो सिर्फ भारत ही कर रहा है। कई लोग यह सवाल करते थक गए कि भारत में जहां आया है वहां भारत नहीं है। उन जगहों की उन मंत्रियों के हैंडल पर फोटो ट्वीट नहीं है जो नेपाल से लौटने वाले हर जहाज़ की तस्वीर को रीट्विट कर रहे थे। फिर भी ट्वीटर के इस ट्रेंड को लेकर उत्साहित होने से पहले वही गलती नहीं करनी चाहिए जो मीडिया के कुछ हिस्से से हो गई है।”

अपनी भूमिका और दिशा से भटका भारतीय मीडिया

संसद के बजट सत्र में बीमा, खनन और कोल से जुड़े तीन महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए. देश के विकास से जुड़े तीनों महत्वपूर्ण कानूनों के बारे में इस देश की जनता की समझ क्या है? यह विचारणीय पहलू है कि जिस कोयला घोटाले को लेकर राष्ट्रीय मीडिया ने पूरे 24 महीने तक लगातार कवरेज कर तबकी यूपीए सरकार को जमीन पर लाने का काम किया, उसी मीडिया ने नयी सरकार की नयी कोयला नीति पर 24 सेकेण्ड की भी खबर प्राइम टाईम में दिखाना उचित नहीं समझा. हाँ मनमोहन सिंह को इस घोटाले में जारी समन पर जरूर विशेष बुलेटिन 24 घंटे खबरिया चैनलों ने प्रसारित किए।

…फिर भी मेक इन इण्डिया व राइजिंग उत्तर प्रदेश

बजबजाती नालियाँ, गंदगी व सड़ान्ध से वातावरण दूषित, मच्छर और मक्खियों की भरमार। आन्त्रशोथ, क्षयरोग, यकृत रोग, गुर्दे की खराबी आदि समस्त शारीरिक संक्रामक बीमारियों की जनक दूषित जलापूर्ति। बिजली के नंगे तार लटकते हर गली-मोहल्लों में जैसे सर पर मंडराती मौत। बाँस-बल्लियों के सहारे की जा रही विद्युतापूर्ति। खुले में असुरक्षित रखे हुए ट्रान्सफार्मर। विद्युत अनापूर्ति, आपूर्ति का समय निश्चित नहीं। 

कब थमेगा सहारा इंडिया में आत्‍महत्‍याओं का दौर, हालात भयावह

सुब्रत राय की सुनहरी ऐयाशियों की अट्टालिका जब ढहने लगी तो अब शुरू हो गया है सहारा इंडिया में आत्‍महत्‍याओं का भयावह दौर। सूत्र बताते हैं कि शुरूआत में यह दौर कर्मचारियों की आत्‍महत्‍याओं का है, इसके बाद तो सामान्‍य निवेशकों का दौर शुरू होगा जिन्‍होंने अपनी जीवन की सारी जमा-पूंजी सुब्रत राय के दिखाये सुनहले सपनों पर न्‍योछावर कर दी है।

What next for the Indian media ?

Now that India has lost  against Australia in cricket, what subject will the great Indian media focus on next ? Some affair of an Indian film star ? The internal problems of AAP ? Or some other frivolous non issue ?   But what can the editors and T.V. anchors do ? They will lose their …

भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई की कीमत चुका रहे एम्स के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी

नई दिल्ली : एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस) के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी आज भी भ्रष्टतंत्र विरोधी अपनी ईमानदारी की कीमत चुका रहे हैं। उन्हें एक तरह से साइडलाइन कर दिया गया है। आरटीआई से पता चला है कि आंतरिक प्रताड़ना के शिकार चतुर्वेदी को न तो कहीं स्थानांतरित किया जा रहा है, न उनसे और कोई काम लिया जा रहा है। उनकी फाइल केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के पास जाकर अटक गई है।

इंडिया टुडे के एडिटोरियल डाइरेक्टर (पब्लिशिंग) बने राज चेंगप्पा

दिल्ली : इंडिया टुडे ग्रुप के मालिक अरुण पुरी ने राज चेंगप्पा को एडिटोरियल डाइरेक्टर (पब्लिशिंग) नियुक्त किया है। वह आगामी 15 जून 2015 से अपना कार्यभार संभालेंगे। राज चेंगप्पा इंडिया टुडे ग्रुप के लिए नये नहीं हैं। उन्होंने वर्ष 1981 में इंडिया टुडे के बंगलौर ब्यूरो में कॉरेस्पांडेंट के रूप में ज्वॉइन किया था और 29 वर्ष से अधिक समय तक अपनी सेवाओं के दौरान वह मैनेजिंग एडिटर भी रह चुके हैं। वह 2010 में चंडीगढ़ में ट्रिब्यून अखबार समूह के एडिटर-इन-चीफ का पदभार संभाला था। अब वह पुनः जून में एडिटोरियल डाइरेक्टर (पब्लिशिंग) के रूप में इंडिया टुडे ग्रुप को ज्वाइन करने जा रहे हैं। ग्रुप के मालिक अरुण पुरी ने राज चेंगप्पा के पुनः इंडिया टुडे ग्रुप से जुड़ने का स्वागत किया है।

स्टार इंडिया ने किया ‘स्क्रीन’ का अधिग्रहण

मुंबई : प्रमुख मीडिया और मनोरंजन कंपनी स्टार इंडिया ने फिल्म पत्रिका ‘स्क्रीन’ का अधिग्रहण करने के लिए इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के साथ एक समझौता किया है। रूपर्ट मडरेक द्वारा संचालित भारत में स्टार ग्रुप का यह दूसरा सौदा है जबकि उसकी मूल कंपनी न्यूज कार्प ने व्यावसायिक न्यूजपोर्टल वी सी सर्ल को खरीदने की …

इंडिया टुडे स्पोर्ट्स पेज के एडिटर सौरव गांगुली

दिल्ली : भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने indiatoday.in/worldcup2015 के एडिटर का जिम्मा संभाल लिया है। क्रिकेट में दादा ने कप्तान के तौर पर टीम इंडिया को कई बड़ी जीत दिलाई हैं। शाम 5 बजे से हरभजन सिंह इंडिया टुडे के क्रिकेट फैन्स के साथ फेसबुक पर भी जुड़ेंगे।  

विश्व हिंदी सचिवालय द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता के लिए अपनी प्रविष्टियां भेजें, देखें विज्ञापन

भारत सरकार व मॉरीशस सरकार की द्विपक्षीय संस्था ‘विश्व हिंदी सचिवालय’ द्वारा विश्व हिंदी दिवस 2015 के उपलक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। आप दुनिया के किसी भी हिस्से में हो अपने भौगोलिक क्षेत्र का जिक्र करते हुए नियम व शर्तों के अनुरूप अपनी प्रविष्टि भेज सकते हैं। प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र के विजेताओं को प्रमाण पत्र व नकद पुरस्कार दिया जाएगा। प्रथम पुरस्कार 300 डॉलर, द्वितीय पुरस्कार 200 डॉलर और तृतीय पुरस्कार 100 डॉलर है। प्रविष्टियां भेजने की अंतिम तिथि 15 नवम्बर, 2014 है। स्वयं भाग लें और मित्रों को भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। अधिक जानकारी के लिए नीचे विज्ञापन को पढ़ें:

Poster Laghukatha Competition final