‘भ्रष्ट इंडिया कंपनी’ से मुक्ति का मार्ग ‘आजादी का दूसरा संघर्ष’ है… छब्बीस जनवरी बीते एक माह गुजर गया है और पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव का अंतिम दौर चल रहा है। इस एक महीने के अंतराल में भारतीय लोकतंत्र के मौजूदा स्वरूप को लेकर अनेक तरह के विचार हवा में तैरते रहे। यह पहला मौका है जब चुनाव में न तो राष्ट्रीय फलक पर और न क्षेत्रीय या स्थानीय स्तर पर ही कोई मुद्दा चर्चा में है। इसके बरअक्स निचले स्तर के सामान्य चुनावी प्रचारकों से लेकर राष्ट्रीय स्तर के बडे़ नेताओं, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री की भी, भाषा-शैली के घटते स्तर को लेकर हर जागरूक व्यक्ति चिंतित और शर्मसार नजर आ रहा है।