कहा था न कि आप बांस नहीं करोगे तो आपको बांस कर दिया जाएगा। एक कहावत है-फटने लगी तो हर कोई बोला, हाजमोला हाजमोला। हम बात कर रहे हैं यूनियनों के जरिये अखबार प्रबंधन पर दबाव बनाने की। यह एक शुभ संकेत है कि कर्मचारियों की एकता रंग लाई और हाल ही में तीन-तीन यूनियनें चल पड़ी हैं। एक यूपी न्यूजपेपर कर्मचारी यूनियन, दूसरी जागरण प्रकाशन लिमिटेड कर्मचारी यूनियन 2015 और तीसरी सहारा कर्मचारियों की यूनियन। लेकिन आपने देखा कि किस प्रकार शांत माहौल होने पर भी सहारा के मुख्य द्वार पर भारी पुलिस बल जमा हो गया। कहीं यह कर्मचारियों को भयभीत करने का कुचक्र तो नहीं था।
साथियो, हमारा साथ कोई नहीं देने वाला है, क्योंकि हम संख्या में दूसरे वर्गों के मुकाबले कम हैं। हमारे साथ जो लोग हैं भी उनमें से तमाम भय, संकोच और लालच के कारण खुलेआम साथ नहीं आना चाहते। ऐसे में हम लड़ाई कैसे जीत पाएंगे। हमारा साथ कई सरकारें इसलिए भी नहीं देना चाहेंगी, क्योंकि हम उनकी पार्टी के लिए वोट बैंक भी नहीं हो सकते। असहाय समझ कर हमें छोड़ दिया जाता है। कुछ सरकारें तो ऐसी हैं, जहां सीएम से मुलाकात के लिए समय तक नहीं दिया जा रहा है। हम पर हमला कराया जाता है, लेकिन पुलिस वाले हमारी नहीं सुनते। वे कहते हैं कि जब तक हम संस्थान के साथ हैं, तभी तक हमारी सुनी जाएगी। मतलब साफ है-सारा जहां अखबार मालिकों के साथ है। अब अखबार मालिक प्रबंधन यूनियनों के साथ हुए समझौते की अदालतों में क्या व्याख्या करा देगा, कुछ ठीक नहीं है।
इस परिस्थिति में जरूरी हो गया है कि हमारी यूनियनें एक फेडरेशन के बैनर तले एकजुट हो जाएं, ताकि हमारी संख्या बढ़े और सरकार व प्रशासन को हमारी ताकत का पता चले। क्योंकि कहा गया है-सबै सहायक सबल को, निर्बल कोउ न सहाय। पवन जगावत आग को, दीपै देई बुझाय। अर्थात-सभी लोग शक्तिशाली की ही मदद करते हैं। कमजोर की कोई मदद नहीं करता। ठीक उसी प्रकार जैसे हवा आग को और भड़का देती है, लेकिन वह दीपक को बुझा देती है। अब आपको यह तय करना है कि अपनी ताकत बढ़ानी है या एक टिमटिमाते दिए की तरह हवा के एक झोंके में बुझ जाना है। जय श्रमिक। जय बांस।
श्रीकांत सिंह के एफबी वाल से