Dayanand Pandey : विशाल भारद्वाज की हैदर महाबकवास और बहुत भटकी हुई फ़िल्म है, लेकिन लोग हैं कि जाने क्यों तारीफ़ पर तारीफ़ झोंके जा रहे हैं. अजब भेड़चाल में फंस गए हैं लोग इस फ़िल्म को ले कर. और हद तो देखिए कि विशाल भारद्वाज ने हिंदू अख़बार में एक बयान झोंक दिया है कि अगर मैं वामपंथी नहीं हूं , तो मैं कलाकार ही नहीं हूं. बस इतने भर से वामपंथी साथी भी लहालोट हैं. हालांकि इस फ़िल्म का वामपंथ से भी क्या सरोकार है, यह समझ से क़तई परे है.
आंख में धूल झोंकने की भी एक हद होती है. कोढ़ में खाज यह भी कि फ़िल्म प्रकारांतर से कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवाद के प्रति बड़ा पाजिटिव रुख़ दिखाती है. न गाने किसी करम के हैं न संगीत, न पटकथा, न निर्देशन. बेवज़ह वक्त खराब किया है सो किया ही है, शेक्सपीयर के नाम पर जो बट्टा लगाया है सो अलग. फैज़ की रचनाओं का इससे बुरा इस्तेमाल भी नहीं हो सकता था. कुलभूषण खरबंदा, तब्बू और इरफ़ान जैसे अभिनेताओं की अभिनय क्षमता का दोहन भी फ़िल्म को कूड़ा होने से नहीं बचा पाता.
पत्रकार और साहित्यकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से.
Comments on “विशाल भारद्वाज की ‘हैदर’ महाबकवास और बहुत भटकी हुई फिल्म है : दयानंद पांडेय”
आपने कहा और हम मान ले, पता नही क्यो कुछ लोगो को लगता है कि वह सब कुछ जानते हैं । फिल्म के व्याकरण पर बात नही करेंगे पर कह देंगे कि सब कुछ घटिया है . परिभाषा ले कर आइये साह्ब । पैमाने पर बात किजिये या फिर ये कहिये कि मुझे पसंद नहि आइ अपनी बातो को लोगो पर थोपिये मत ।