Dayanand Pandey : तब प्रिंट का समय था। पर जल्दी ही नेट का समय आ गया। उस में भी यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया ले कर उपस्थित हुए। 2001 में अपने-अपने युद्ध छपा था। 9 साल बाद 2010 में भड़ास पर ‘अपने-अपने युद्ध’ का धारावाहिक प्रकाशन शुरू किया यशवंत ने। जैसे आग लग गई। वह कहते हैं …
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संस्मरण : पुलिस से भिड़े लखनऊ के शराबी पत्रकार जब हवालात पहुंते तो पढ़िए आगे क्या हुआ….
Dayanand Pandey : खबर है कि कल से उत्तर प्रदेश पुलिस अपने सिपाहियों को शिष्टाचार की ट्रेनिंग देगी। ख़ास कर लखनऊ में। विवेक तिवारी की हत्या और उस के बाद हत्यारे सिपाही के पक्ष में गोलबंद हो रही पुलिस की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की गरज से यह सब हो रहा है। कि पुलिस बगावती …
पुण्य प्रसून जी, आप बाज़ार के एक मोहरा भर हैं, मालिक या नियंता नहीं!
Dayanand Pandey : दि वायर में पुण्य प्रसून वाजपेयी का विधवा विलाप पढ़ कर पता लगा कि वह मोदी-मोदी भले बोल रहे हैं, फर्जी शहादत पाने के लिए लेकिन उन नौकरी के असली दुश्मन रामदेव ही हैं। आज तक और ए बी पी दोनों जगह से रामदेव और पतंजलि का विज्ञापन ही उन की विदाई …
अकेले शराब पीने को हस्त मैथुन मानते थे रवींद्र कालिया
Dayanand Pandey : संस्मरणों में चांदनी खिलाने वाला रवींद्र कालिया नामक वह चांद… आज रवींद्र कालिया का जन्म-दिन है… ‘ग़ालिब छुटी शराब’ और इस के लेखक और नायक रवींद्र कालिया पर मैं बुरी तरह फ़िदा था एक समय। आज भी हूं, रहूंगा। संस्मरण मैं ने बहुत पढ़े हैं और लिखे हैं। लेकिन रवींद्र कालिया ने जैसे दुर्लभ संस्मरण लिखे हैं उन का कोई शानी नहीं। ग़ालिब छुटी शराब जब मैं ने पढ़ कर ख़त्म की तो रवींद्र कालिया को फ़ोन कर उन्हें सैल्यूट किया और उन से कहा कि आप से बहुत रश्क होता है और कहने को जी करता है कि हाय मैं क्यों न रवींद्र कालिया हुआ। काश कि मैं भी रवींद्र कालिया होता। सुन कर वह बहुत भावुक हो गए।
‘रविवार’ के संपादक एसपी सिंह और रिपोर्टर शैलेश यूं निकल पाए थे दबंग मंत्री के आपराधिक मानहानि के मुकदमे से!
Dayanand Pandey : अमित शाह के बेटे जय शाह पर आरोप सही है या गलत यह तो समय और अदालत को तय करना है। पर इन दिनों बरास्ता द वायर एंड सिद्धार्थ वरदराजन, रोहिणी सिंह सौ करोड़ के मानहानि के मुकदमे के बाबत हर कोई पान कूंच कर थूक रहा है, आग मूत रहा है। लेकिन आज आप को एक आपराधिक मानहानि के मुकदमे का दिलचस्प वाकया बताता हूं। अस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध की बात है। अमृत प्रभात, लखनऊ में एक रिपोर्टर थे शैलेश। कोलकाता से प्रकाशित रविवार में उत्तर प्रदेश के ताकतवर और दबंग वन मंत्री अजित प्रताप सिंह के ख़िलाफ़ एक रिपोर्ट लिखी शैलेश ने।
यह संजय, शराब और शेरो शायरी का दौर था…. कह सकते हैं डिप्रेसन की इंतिहा थी…
स्वर्गीय संजय त्रिपाठी होते हैं कुछ लोग जो सिर्फ़ संघर्ष के लिए ही पैदा होते हैं। हमारे छोटे भाई और फ़ोटोग्राफ़र मित्र संजय त्रिपाठी ऐसे ही लोगों में शुमार रहे हैं। आज जब संजय त्रिपाठी के विदा हो जाने की ख़बर सुनी तो दिल धक से रह गया। फ़रवरी, 1985 से हमारा उन का साथ …
44 के हुए यशवंत को वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय ने यूं दी बधाई
Dayanand Pandey : आज हमारे जानेमन यारों के यार यशवंत सिंह का शुभ जन्म-दिन है। व्यवस्था से किसी को टकराना सीखना हो तो वह यशवंत सिंह से सीखे। अपनों से भी किसी को टकराना सीखना हो तो वह यशवंत से सीखे। यहां तक कि अपने-आप से भी किसी को टकराना सीखना हो तो भी वह यशवंत से सीखे। अपने आप को गाली सुनाने और सुनने की क्षमता भी किसी को पानी हो तो यशवंत से पाए। पारदर्शिता की इंतिहा भी हैं यशवंत सिंह।
रवीश कुमार ने बलात्कारी राम रहीम और निकम्मे मनोहर लाल खट्टर की डट कर ख़बर ली
Dayanand Pandey : रवीश कुमार सिर्फ़ लाऊड, जटिल और एकपक्षीय ही नहीं होते, कभी-कभी स्मूथ भी होते हैं और बड़ी सरलता से किसी घटना को तार-तार कर बेतार कर देते हैं। आज उन्होंने एक बार फिर यही किया। एनडीटीवी के प्राइम टाइम में हरियाणा के पंचकुला में बलात्कारी राम रहीम के कुकर्मों और उन पीड़ित दोनों साध्वी की बहादुरी का बखान करते हुए खट्टर सरकार की नपुंसकता की धज्जियां उड़ा कर रख दीं।
कश्मीर और पाकिस्तान मुद्दे पर नरेंद्र मोदी पूरी तरह फेल हो चुके हैं
कश्मीर और पाकिस्तान मुद्दे पर नरेंद्र मोदी पूरी तरह फेल हो चुके हैं। उनकी नीतियां पानी मांग गई हैं। दरअसल कश्मीर और पाकिस्तान दोनों ही मसले कूटनीति की परिधि से बाहर निकल चुके हैं। इन दोनों का समाधान अब सर्जिकल स्ट्राइक और सैनिक कार्रवाई है, कुछ और नहीं। मोदी कहते रह गए कि पाकिस्तान को अकेला कर दिया, यह कर दिया, वह कर दिया। नतीज़ा यह है कि कुछ नहीं किया। पाकिस्तान आज भी वही कर रहा है जो पहले करता रहा था।
मांस कारोबारियों के असली दुश्मन हैं आजम खान!
Dayanand Pandey : उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के नगर विकास मंत्री रहे सर्वशक्तिमान आज़म खान ने उत्तर प्रदेश के मांस कारोबारियों और मांस प्रेमियों से जो दुश्मनी निभाई है उस की कोई दूसरी मिसाल नहीं है। बतौर नगर विकास मंत्री न उन्हों ने अवैध बूचड़खानों के बाबत सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की परवाह की, न ग्रीन ट्रिब्यूनल की। न नगर निगम के स्लाटर हाऊसों को आधुनिक बनवाया, न लाइसेंस बनवाए, न पुराने लाइसेंसों का नवीनीकरण करवाया। जब कि बतौर मंत्री यह उन की ज़िम्मेदारी थी। उलटे उन्हों ने सब कुछ यानी अवैध बूचड़खानों को चलने दिया, सारे क़ानून को ठेंगे पर रख कर। लात मारते हुए।
सारे न्यूज़ चैनल भाजपा के जरखरीद गुलाम बन गए हैं!
Dayanand Pandey : कि पेड न्यूज़ भी शरमा जाए…. आज का दिन न्यूज़ चैनलों के लिए जैसे काला दिन है, कलंक का दिन है। होली के बहाने जिस तरह हर चैनल पर मनोज तिवारी और रवि किशन की गायकी और अभिनय के बहाने मोदियाना माहौल बना रखा है, वह बहुत ही शर्मनाक है। राजू श्रीवास्तव, सुनील पाल आदि की घटिया कामेडी, कुमार विश्वास की स्तरहीन कविताओं के मार्फ़त जिस तरह कांग्रेस आदि पार्टियों पर तंज इतना घटिया रहा कि अब क्या कहें।
अखिलेश यादव संग साइकिल चलाते राहुल कंवल का चमचई भरा इंटरव्यू पेड न्यूज़ ही तो है!
अखिलेश यादव के साथ साईकिल चलाते हुए ‘आज तक’ के राहुल कंवल का आधा घंटे का चमचई भरा इंटरव्यू करना क्या पेड न्यूज़ में नहीं आता? साईकिल पर ही बैठे हुए डिंपल यादव का इंटरव्यू करना भी। गोमती रिवर फ्रंट का भी प्रचार। [वैसे गोमती रिवर फ्रंट बहुत सुंदर बना दिख रहा है।]
श्रीलंका से लौटे पत्रकार दयानंद पांडेय का एक अदभुत यात्रा वृत्तांत पढ़िए
दीप्तमान द्वीप में सागर से रोमांस
आज पंद्रह दिन हो गया है श्रीलंका से लौटे हुए लेकिन कोलंबो में सागर की लहरों का सुना हुआ शोर अभी भी मन में शेष है । थमा नहीं है । यह शोर है कि जाता ही नहीं । कान और मन जैसे अभी भी उस शोर में डूबे हुए हैं । उन दूधिया लहरों की उफान भरी उछाल भी लहरों के शोर के साथ आंखों में बसी हुई है । लहरों का चट्टानों से टकराना जैसे मेरे मन से ही टकराना था । दिल से टकराना था । लहरों का यह शोर मेरे मन का ही शोर था । मेरे दिल का शोर था । यह शोर अब संगीत में तब्दील है शायद इसी लिए अभी भी मन में तारी है । स्मृतियों में तैरता हुआ । तो क्या यह वही शोर है , वही दर्प है जो राम को समुद्र पर सेतु बनाने से रोक रहा था ? जिस पर राम क्रोधित हो गए थे ? तुलसी दास को लिखना पड़ा था :
बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति।
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति॥
अलविदा अज्ञात जी, आप तो अशोक थे लेकिन हम अब भारी शोक में हैं
(स्व. अशोक अज्ञात जी)
कभी माफ़ मत कीजिएगा अशोक अज्ञात जी, मेरे इस अपराध के लिए … हमारे विद्यार्थी जीवन के मित्र अशोक अज्ञात कल नहीं रहे। यह ख़बर अभी जब सुनी तो धक् से रह गया । सुन कर इस ख़बर पर सहसा विश्वास नहीं हुआ । लेकिन विश्वास करने न करने से किसी के जीवन और मृत्यु की डोर भला कहां रुकती है। कहां थमती है भला ? अशोक अज्ञात के जीवन की डोर भी नहीं रुकी , न उन का जीवन । अशोक अज्ञात हमारे बहुत ही आत्मीय मित्र थे । विद्यार्थी जीवन के मित्र । हम लोग कविताएं लिखते थे। एक दूसरे को सुनते-सुनाते हुए हम लोग अकसर अपनी सांझ साझा किया करते थे उन दिनों।
एक अनाम और निरपराध औरत की जेल डायरी
करे कोई, भरे कोई। एक पुरानी कहावत है। एक बात यह भी है कि कई बार आंखों देखा और कानों सुना सच भी , सच नहीं होता। होता तो यह जेल डायरी लिखने की नौबत नहीं आती। लेकिन हमारे जीवन में भी कई बार यह बात और वह कहावत लौट-लौट आती है। एक वाकया याद आता है। एक गांव में एक पंडित जी थे। पूरी तरह विपन्न और दरिद्र। लेकिन नियम क़ानून और शुचिता से कभी डिगते नहीं थे। किसी भी सूरत। लोग बाग़ जब गन्ने के खेत में आग लगा कर कचरा , पत्ता आदि जला देते थे , पंडित जी अपने खेत में ऐसा नहीं करते थे। यह कह कर कि अगर आग लगाएंगे तो जीव हत्या हो जाएगी। पत्तों के साथ बहुत से कीड़े-मकोड़े भी मर जाएंगे। पर्यावरण नष्ट हो जाएगा।
अरसे बाद कोई पढ़ा-लिखा और समझदार पत्रकार केंद्रीय मंत्रिमंडल में आया है
Dayanand Pandey : अरसे बाद कोई पढ़ा-लिखा और समझदार पत्रकार केंद्रीय मंत्रिमंडल में आया है। नाम है एम जे अकबर। इस के पहले मेरी याद में पढ़े-लिखे पत्रकारों में से केंद्रीय मंत्रिमंडल में कमलापति त्रिपाठी थे। अटल बिहारी वाजपेयी थे। लालकृष्ण आडवाणी थे। अरुण शौरी थे। अटल बिहारी वाजपेयी तो प्रधान मंत्री भी रहे। बीच-बीच में कुछ दलाल पत्रकार भी मंत्री बने हैं। लेकिन उन दलालों का यहां ज़िक्र कर काहे को ज़ायका ख़राब किया जाए।
मीडिया मालिकों ने मुख्यमंत्री से लगायत अदालत तक को ख़रीद रखा है, सुप्रीम कोर्ट तक इससे बरी नहीं है
Dayanand Pandey : आज की तारीख़ में लगभग सभी मीडिया संस्थानों में ज़्यादातर पत्रकार या तो अनुबंध पर हैं या बाऊचर पेमेंट पर। कोई दस लाख, बीस लाख महीना पा रहा है तो कोई तीन हज़ार, पांच हज़ार, बीस हज़ार, पचास हज़ार भी। जैसा जो बार्गेन कर ले। बिना किसी पारिश्रमिक के भी काम करने वालों की लंबी कतार है। लेकिन बाकायदा नियुक्ति पत्र अब लगभग नदारद है, जिस पर मजीठिया सिफ़ारिश की वैधानिक दावेदारी बने। फिर भी कुछ भाई लोग सोशल साईट से लगायत सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया की लड़ाई लड़ रहे हैं। जाने किसके लिए।
अब सेक्यूलरिज़्म के दूसरे सूरमा प्रणव राय पर भी बन आई है…
: भारतीय पत्रकारिता में सेक्यूलरिज्म का तड़का और उस का यह हश्र : विजय माल्या और प्रणव राय की गलबहियां : भारतीय पत्रकारिता में सेक्यूलरिज्म का तड़का भी अजीबोगरीब स्थितियां पेश कर देता है। क़िस्से तो बहुतेरे हैं पर अभी दो लोगों को याद कीजिए। एक तुर्रम खां हैं तहलका के तरुण तेजपाल जो अर्जुन सिंह द्वारा दिए गए सरकारी अनुदान से वाया तहलका सेक्यूलर चैम्पियन बने। फिर जल्दी ही वह कुख्यात माफ़िया पोंटी चड्ढा की गोदी में जा गिरे और देखते-देखते अरबों में खेलने लगे।
कन्हैया कुमार की तरह नरेंद्र मोदी पर ऐसा बड़ा हमला अभी तक कोई भी नहीं कर पाया था
कामरेड कन्हैया में लेकिन आग बहुत है। और लासा भी। ललक और लोच भी बहुत है। लेकिन कुतर्क की तलवार भी तेज़ हो गई है। वह जेल से जे एन यू लौट आए हैं। जैसे आग में लोहा तप कर आया हो। जैसे सोना कुंदन बन कर आया हो। जे एन यू में बोल गए हैं धारा प्रवाह। कोई पचास मिनट। आधी रात में। तेवर तल्ख़ हैं। उम्मीद बहुत दिखती है इस कामरेड में। लोकसभा में बस पहुंचना ही चाहता है। वक्ता भी ग़ज़ब का है। बस हार्दिक पटेल याद आता है। उस का हश्र याद आता है। फिसलना मत कामरेड।
बिना प्रणव राय की मर्जी के रवीश कुमार एनडीटीवी में सांस भी ले सकते हैं?
: सच यह है कि रवीश कुमार भी दलाल पथ के यात्री हैं : ब्लैक स्क्रीन प्रोग्राम कर के रवीश कुमार कुछ मित्रों की राय में हीरो बन गए हैं। लेकिन क्या सचमुच? एक मशहूर कविता के रंग में जो डूब कर कहूं तो क्या थे रवीश और क्या हो गए हैं, क्या होंगे अभी! बाक़ी तो सब ठीक है लेकिन रवीश ने जो गंवाया है, उसका भी कोई हिसाब है क्या? रवीश कुमार के कार्यक्रम के स्लोगन को ही जो उधार ले कर कहूं कि सच यह है कि ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है! कि देश और देशभक्ति को मज़ाक में तब्दील कर दिया गया है। बहस का विषय बना दिया गया है। जैसे कोई चुराया हुआ बच्चा हो देशभक्ति कि पूछा जाए असली मां कौन? रवीश कुमार एंड कंपनी को शर्म आनी चाहिए।
अख़बारों-मैग्जीनों में छपने वाला साल का साहित्यिक आकलन मालिश पुराण के सिवा कुछ भी नहीं
Dayanand Pandey : अख़बारों और पत्रिकाओं में छपने वाला साल का साहित्यिक आकलन के नाम पर मालिश पुराण चार सौ बीसी के सिवा कुछ भी नहीं है। जैसे न्यूज चैनल न्यूज दिखाने की जगह चार ठो पैनलिस्ट बैठा कर चीखते -चिल्लाते आप का समय नष्ट करते हैं, अपना धंधा चोखा करते हैं। वैसे ही यह साहित्य के रैकेटियर कुछ लोगों की चरण वंदना करते हैं। यह किताबों की चर्चा नहीं करते, चेहरे की चर्चा करते हैं। नाम जानते हैं यह, काम नहीं।
जिन सब्जियों का यह पीक सीज़न है, उनका भी दाम आसमान पर, जियो रजा हुक्मरानों… खूब लूटो!
Dayanand Pandey : हरी मटर पचास रुपए किलो, टमाटर चालीस रुपए किलो, गोभी तीस रुपए पीस, पत्ता गोभी बीस रुपए, पालक चालीस रुपए किलो, बथुआ चालीस रुपए किलो, चना साग अस्सी रुपए किलो। इन सब्जियों का यह पीक सीज़न है। फिर लहसुन दो सौ रुपए किलो। फल और दाल तेल तो अय्यासी थी ही, अब लौकी, पालक आदि भी खाना अय्यासी हो गई है। जियो रजा हुक्मरानों! ख़ूब जियो और ख़ूब लूटो! दूधो नहाओ, पूतो फलो! यहां तो किसी संयुक्त परिवार में रोज के शाम के नाश्ते में मटर की घुघरी और भोजन में निमोना नोहर हो गया है। हम लखनऊ में रहते हैं। यहीं का भाव बता रहे हैं। अब कोई मुफ़्त में ही खा रहा है या कम भाव में, तो खाए। अपनी बला से। हमें क्या?
हिंदी की फ़ासिस्ट और तानाशाह आलोचना ने जाने कितने रामदरश मिश्र मारे हैं
हिंदी की फ़ासिस्ट और तानाशाह आलोचना ने जाने कितने रामदरश मिश्र मारे हैं । लेकिन रचना और रचनाकार नहीं मरते हैं । मर जाती है फ़ासिस्ट आलोचना । मर जाते हैं फ़ासिस्ट लेखक । बच जाते हैं रामदरश मिश्र । रचा ही बचा रह जाता है । रामदरश मिश्र ने यह ख़ूब साबित किया है …
रंगनाथ मिश्र सत्य ने तो अपनी ऐसी तैसी करवा ली है!
Dayanand Pandey : हिंदी दिवस पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पुरस्कार कार्यक्रम में मुख्य मंत्री अखिलेश यादव की चरण वंदना करती रंगनाथ मिश्र सत्य की यह एक फ़ोटो फ़ेसबुक पर वायरल हो कर उपस्थित है। रंगनाथ मिश्र सत्य ने तो अपना साहित्य भूषण पुरस्कार इस चरण वंदना में धो दिया है। अपनी ऐसी तैसी करवा ली है। लेकिन उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक और मम अरण्य, शाने तारीख़ और रंग राची जैसे कालजयी उपन्यासों के तपस्वी रचनाकार सुधाकर अदीब इस अपमानजनक घटना के अनिवार्य साक्षी रहे हैं। यह अपमानजनक दृश्य देख कर उन की आंखें वहीँ तुरंत छलक पड़ीं। निरंतर बहती रहीं।
मुलायम का अंत भी अब करीब आ गया है, वह भी अमिताभ ठाकुर के हाथों : दयानंद पांडेय
Dayanand Pandey : एक समय कंस और रावण जैसों को भी लगता था कि उन का कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। और वह अत्याचार पर अत्याचार करते जाते थे। लेकिन एक दिन उन का अंत हुआ। गोरी, गजनवी, चंगेज खां, बाबर, औरंगज़ेब आदि के हश्र भी हमारे सामने हैं। ब्रिटिश राज में तो एक समय सूरज भी नहीं डूबता था, पर एक दिन आया कि डूब गया। तो मुलायम सिंह यादव कौन सी चीज़ हैं? मुलायम सिंह यादव के पाप और कुकर्म का घड़ा भी अब भर जाने की राह पर है।
अमृता-दिग्विजय ने कर ली शादी, फेसबुक पर शेयर की दिल की बात
Dayanand Pandey : अमृता राय और दिग्विजय सिंह आप दोनों को बधाई तो बनती है। बहुत-बहुत बधाई! गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री 68 वर्षीय दिग्विजय सिंह और राज्यसभा टी वी की पत्रकार 44 वर्षीय अमृता राय ने विवाह कर लिया है। अमृता राय ने फ़ेसबुक पर अपनी वाल पर अंगरेजी में यह बात साझा करते हुए जो कुछ लिखा है, उसे हिंदी में पढ़िए :
चंचल जी, आपके समाजवादी नेता ने जुझारू अमिताभ ठाकुर को सस्पेंड करवा दिया!
Dayanand Pandey : उत्तर प्रदेश की फासिस्ट सरकार ने आख़िर हमारे जुझारू और संघर्षशील मित्र अमिताभ ठाकुर को सस्पेंड कर दिया है। अब अमिताभ ठाकुर के विरोधियों की ईद अच्छी मनेगी। जातिवादी समाजवादी नेता ने सारा लोकतांत्रिक लोक लाज भस्म कर अमिताभ को सस्पेंड करवा दिया है अपने मुख्य मंत्री बेटे से रो गा कर। ईद मनाईये, दीवाली और होली मनाईये सरकार की इस फासिस्ट कार्रवाई पर और सेक्यूलरिज्म के खोखले गीत गाईए, और मस्त हो जाईए!
मुझे इस चोर और बेईमान न्यायपालिका पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है : दयानंद पांडेय
Dayanand Pandey : इन सारे कमीनों, इन सारे चोरों और बेईमानों को इस न्यायपालिका में इतना यकीन होना आम आदमी को बार-बार डरा देता है। ख़ास कर तब और जब यह सब के सब एक सुर में कहते हैं कि न्यायपालिका में उन्हें पूरा यकीन है, पूरा भरोसा है! याद कीजिए कि अभी दो दिन पहले इस अपराधी सलमान खान ने बड़े गुरुर से कहा था कि मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है! लालू प्रसाद यादव भी यही बोलता है, मायावती, मुलायम, जयललिता आदि-आदि सारे बेईमान और अपराधी यह संवाद सर्वदा बोलते रहते हैं।
केजरीवाल पर संपादक ओम थानवी और नरेंद्र मोदी पर पत्रकार दयानंद पांडेय भड़के
Om Thanvi : लोकपाल को वह क्या नाम दिया था अरविन्द केजरीवाल ने? जी, जी – जोकपाल! और जोकपाल पैदा नहीं होते, अपने ही हाथों बना दिए जाते हैं। मुबारक बंधु, आपके सबसे बड़े अभियान की यह सबसे टुच्ची सफलता। अगर आपसी अविश्वास इतने भीतर मैल की तरह जम गया है तो मेल-जोल की कोई राह निकल आएगी यह सोचना मुझ जैसे सठियाते खैरख्वाहों की अब खुशफहमी भर रह गई है। ‘साले’, ‘कमीने’ और पिछवाड़े की ‘लात’ के पात्र पार्टी के संस्थापक लोग ही? प्रो आनंद कुमार तक? षड्यंत्र के आरोपों में सच्चाई कितनी है, मुझे नहीं पता – पर यह रवैया केजरीवाल को धैर्यहीन और आत्मकेंद्रित जाहिर करता है, कुछ कान का कच्चा भी।
बीते एक-डेढ़ दशक से यही लोग पत्रकारिता के अगुआ भी हो गए हैं….
Dayanand Pandey : पत्रकारिता और ख़बर की समझ तो हमें पहले भी थी, आज भी है। लिखने-पढ़ने का सलीक़ा भी। लिखने-पढ़ने और समझ का फख्र भी। हां, लेकिन दलाली, भड़ुवई, लाइजनिंग, चापलूसी, चमचई, बेजमीरी, चरण-चुंबन आदि-इत्यादि का शऊर न पहले था, न अब है, न आगे कभी होगा। दुर्भाग्य से यह दूसरी तरह के लोग पहले भी काबिज थे पत्रकारिता पर लेकिन अब बीते एक-डेढ़ दशक से यही लोग पत्रकारिता के अगुआ भी हो गए हैं।
दिल्ली विस चुनाव में न्यूज चैनल खुल्लमखुल्ला ‘आप’ और ‘भाजपा’ के बीच बंट गए हैं
Dayanand Pandey : दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार टीवी चैनल खुल्लमखुल्ला अरविंद केजरीवाल की आप और भाजपा के बीच बंट गए हैं। एनडीटीवी पूरी ताकत से भाजपा की जड़ खोदने और नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने में लग गया है। न्यूज 24 है ही कांग्रेसी। उसका कहना ही क्या! इंडिया टीवी तो है ही भगवा चैनल सो वह पूरी ताकत से भाजपा के नरेंद्र मोदी का विजय रथ आगे बढ़ा रहा है। ज़ी न्यूज, आईबीएन सेवेन, एबीपी न्यूज वगैरह दिखा तो रहे हैं निष्पक्ष अपने को लेकिन मोदी के लिए अपनी प्रतिबद्धता दिखाने में एक दूसरे से आगे हुए जाते हैं। सो दिल्ली चुनाव की सही तस्वीर इन के सहारे जानना टेढ़ी खीर है। जाने दिल्ली की जनता क्या रुख अख्तियार करती है।
तब पंकज श्रीवास्तव की तनी हुई मुट्ठियां लाखों के पैकेज में विश्राम कर रही थीं!
(दयानंद पांडेय)
Dayanand Pandey : पत्रकारिता में गीदड़ों और रंगे सियारों की जैसे भरमार है। एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं। जब लोगों की नौकरियां जाती हैं या ये खा जाते हैं तब तक तो ठीक रहता है। लोगों के पेट पर लात पड़ती रहती है और इन की कामरेडशिप जैसे रजाई में सो रही होती है। लेकिन प्रबंधन जब इन की ही पिछाड़ी पर जूता मारता है तो इन का राणा प्रताप जैसे जाग जाता है।
सतीश उपाध्याय, उमेश उपाध्याय और बिजली कंपनियों का खेल
Madan Tiwary : सतीश उपाध्याय पर अरविन्द केजरीवाल ने आरोप लगाये है बिजली के मीटर को लेकर सतीश उपाध्याय बीजेपी के दिल्ली अध्यक्ष हैं। उन्होंने मानहानि का मुकदमा करने की धमकी दी है और आरोपों से इंकार किया है। सतीश जी, शायद केजरीवाल के हाथ बहुत छोटी सी जानकारी लगी है। आप जेल चले जायेंगे सतीश जी। आपके ऊपर करीब चार सौ करोड़ बिजली कंपनी से लेने का मुद्दा बहुत पहले से गरमाया हुआ है और आपके भाई उमेश उपाध्याय की सहभागिता का भी आरोप है। यह दीगर बात है कि पत्रकार बिरादरी भी यह सबकुछ जानते हुए खुलकर नहीं बोल रही है। दिल्ली की जनता को दुह कर दिल्ली की सत्ता को दूध पिलाने का काम करती आ रही हैं बिजली कंपनियां। खैर मुद्दा चाहे जो हो लेकिन एक साल के अंदर बिजली की दर 2:80 प्रति यूनिट से 4:00 प्रति यूनिट करने की दोषी तो भाजपा है ही। देश है, सब मिलकर बेच खाइये। जनता है, किसी न किसी को वोट देगी ही। काश! देश की जनता सही लोगों को चुन पाती या चुनाव बहिष्कार कर पाती। अपने नेताओं से सवाल कर पाती। काश।
यह तो शार्ली आब्दी का सरासर अपमान है!
Dayanand Pandey : हमारे भारतीय समाज में ही नहीं पूरी दुनिया में ही लेखक वर्ग अपनी सहिष्णुता, अपने प्रतिरोध और न झुकने के लिए जाना जाता है। इस के एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। भारत में भी, दुनिया में भी। लेखक टूट गए हैं, बर्बाद हो गए हैं, पर झुके नहीं हैं। अपनी बात से डिगे नहीं हैं। व्यवस्था और समाज से उन की लड़ाई सर्वदा जारी रही है। हर कीमत पर जारी रही है। इसी अर्थ में वह लेखक हैं। लेकिन इधर कुछ लेखकों में पलायनवादिता की प्रवृत्ति देखने को मिल रही है। इन लेखकों में एक सब से बड़ी दिक्कत आई है तानाशाही प्रवृत्ति की। इस तानाशाही ने लेखक बिरादरी का बड़ा नुकसान किया है।
पंकज पचौरी की मूर्खता बनाम रवीश कुमार का अहंकार
रवीश बाबू, इतना स्मार्ट बनना और अपमानित करना गुड बात नहीं
-दयानंद पांडेय-
एक समय मैं रवीश कुमार के अनन्यतम प्रशंसकों में से एक था। उन की स्पेशल रिपोर्ट को ले कर उन पर एक लेख भी लिखा था सरोकारनामा पर कभी। रवीश तब मेरे इस लिखे पर न्यौछावर हो गए थे। मुझे भी अच्छा लगा था उन का यह न्यौछावर होना । यह लेख अब मेरी एक किताब में भी है। मेरी मातृभाषा भी भोजपुरी है इस नाते भी उन से बहुत प्यार है। लेकिन बीते कुछ समय से जिस तरह सहजता भरे अभिनय में अपने को सम्राट की तरह वह उपस्थित कर रहे हैं और लाऊड हो रहे हैं , एकतरफा बातें करते हुए और कि अपने अहमक अंदाज़ में लोगों का भरपूर अपमान हूं या हां कह कर कर रहे हैं और कि एक ढीठ पूर्वाग्रह के साथ अपने को प्रस्तुत कर रहे हैं जिस का कि किसी तथ्य और तर्क से कोई वास्ता नहीं होता वह अपनी साख, अपनी गरिमा और अपना तेवर वह बुरी तरह गंवा चुके हैं।
हिंदी संस्थान ने लखकों को झूठा-फ्रॉड साबित कर अपनी फोरेंसिक लैबोरोट्री भी खोल ली है…
Dayanand Pandey : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में इस बार पुरस्कार वितरण में धांधली भी खूब हुई है। इस धांधलेबाजी खातिर पहली बार उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने एक फर्जी फोरेंसिक लैब्रोटरी भी खोल ली है। तुर्रा यह कि बीते साल किसी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में किसी ने याचिका दायर कर दी थी सो इस याचिका कर्ता के भय में लेब्रोटरी में खुद जांच लिया कि कौन सी किताब किस प्रेस से कैसे छपी है और इस बिना पर कई सारी किताबों को समीक्षा खातिर ही नहीं भेजा समीक्षकों को। और इस तरह उन्हें पुरस्कार दौड़ से बाहर कर दिया। क्या तो वर्ष 2014 की छपाई है कि पहले की है कि बाद की है। खुद जांच लिया, खुद तय कर लिया। ज़िक्र ज़रूरी है कि इस बाबत लेखक की घोषणा भी हिंदी संस्थान लेता ही है हर बार।
माया की इस मासूमियत पर कौन यकीन करेगा कि मिल रहा इतना सारा पैसा वह ठुकरा दें
Dayanand Pandey : मायावती और अखिलेश दास की आज हुई अंत्याक्षरी में मायावती ने कहा कि अखिलेश दास राज्य सभा सदस्यता कंटीन्यू करने के लिए उन्हें दो सौ करोड़ तक देने को तैयार थे फिर भी उन्होंने मना कर दिया। एक तो राज्य सभा सदस्यता की कीमत अभी इतनी मंहगी हुई नहीं है। दूसरे मायावती की इस मासूमियत पर भला यकीन करेगा कौन? कि मिल रहा इतना सारा पैसा भी वह भूल कर ठुकरा दें! रही बात अखिलेश दास की तो उन्हों ने यह तो बताया कि मायावती विधायक के टिकट खातिर दस लाख लेती हैं जब कि लोक सभा के टिकट खातिर एक करोड़ तक लेती हैं।
शैलेंद्र सागर की रचनाओं पर लोग बिना तैयारी के आए और रूटीन ढंग से बोल गए
बहुत दिनों बाद लखनऊ में आज की शाम बड़ी सुखद बन गई। बीते कई सालों से कथाक्रम पत्रिका निकालने और कथा क्रम का आयोजन करने वाले शैलेंद्र सागर के रचना संसार पर कैफ़ी आज़मी सभागार में प्रगतिशील लेखक संघ ने एक संगोष्ठी आयोजित की। इस मौक़े पर शैलेंद्र सागर की रचनाओं के बहाने उन के व्यक्तित्व पर भी बात हुई। उन की नई पुरानी रचनाओं पर बात हुई, उनकी सादगी और संजीदगी की बात हुई, संकेतों में ही सही उनके शौक़ और आशिक़ी की बात हुई। लेकिन जो उनका सबसे बड़ा गुण है, उनकी संतई और उनकी तपस्या, इसी की बात नहीं हुई। जो ज़रूर होनी चाहिए थी।
ये देखिए… बरखा दत्त भी नरेंद्र मोदी की छतरी तले कल की चाय पार्टी में…
Dayanand Pandey : अब यह देखिए… एक साथ सेक्यूलर राजनीति और नीरा राडिया दोनों की पैरोकारी करने और तमाम-तमाम चीज़ें साधने वाली चिर कुंवारी बरखा दत्त भी नरेंद्र मोदी की छतरी तले कल की चाय पार्टी में, नरेंद्र मोदी का लुत्फ़ लेती हुई। पावर ब्रोकर कही जाने वाली यह वही बरखा दत्त हैं जो कभी मनमोहन सिंह सरकार के समय प्रधानमंत्री की शपथ के पहले ही ए राजा जैसों को कम्यूनिकेशन मिनिस्ट्री का पोर्टफोलियो मिलने का आश्वासन देती फ़ोन टेप पर पकड़ी गई थीं।
किसी पत्रकार ने कोई सवाल नहीं पूछा, सब के सब हिहियाते हुए सेल्फी लेते रहे…
Dayanadn Pandey : लोकतंत्र क्या ऐसे ही चलेगा या कायम रहेगा, इस बेरीढ़ और बेजुबान प्रेस के भरोसे? कार्ल मार्क्स ने बहुत पहले ही कहा था कि प्रेस की स्वतंत्रता का मतलब व्यवसाय की स्वतंत्रता है। और कार्ल मार्क्स ने यह बात कोई भारत के प्रसंग में नहीं, समूची दुनिया के मद्देनज़र कही थी। रही बात अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तो यह सिर्फ़ एक झुनझुना भर है जिसे मित्र लोग अपनी सुविधा से बजाते रहते हैं। कभी तसलीमा नसरीन के लिए तो कभी सलमान रश्दी तो कभी हुसेन के लिए। कभी किसी फ़िल्म-विल्म के लिए। या ऐसे ही किसी खांसी-जुकाम के लिए। और प्रेस? अब तो प्रेस मतलब चारण और भाट ही है। कुत्ता आदि विशेषण भी बुरा नहीं है।
डॉ. एसबी निमसे यानि लखनऊ विश्वविद्यालय का निकम्मा कुलपति
Dayanand Pandey : लखनऊ विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ. एसबी निमसे क्या एक निकम्मे कुलपति हैं? और कि परीक्षा विभाग उन की बिलकुल नहीं सुनता? बीएड का इम्तहान प्रैक्टिकल सहित जुलाई में खत्म हो गया। लेकिन रिजल्ट का अभी तक अता-पता नहीं है। अखबारों के जिम्मे ऐसी खबरें नहीं होतीं। अखबारों को नेताओं अफसरों के खांसी जुकाम से फुर्सत नहीं है। तो अखबार इन के ठकुर-सुहाती खबरों से लदे रहते हैं।
नरेंद्र मोदी कांग्रेसी हो गए हैं!
Dayanand Pandey : कांग्रेस मुक्त भारत की दहाड़ लगाने वाले नरेंद्र मोदी आहिस्ता-आहिस्ता उसी रहगुज़र के आशिक हो चले दीखते हैं। आप दीजिए गांधी, नेहरू, पटेल और इंदिरा जी को भी इज़्ज़त और बख्शिए उन्हें नूर भी! इस के हक़दार हैं यह लोग। खादी-वादी , हिंदी-विंदी, अमरीका, चीन, जापान , भूटान और नेपाल भी ठीक है, बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि दे कर शिव सेना की हवा भी निकालिए लेकिन इन गगनचुंबी बातों की बिना पर, नित नई डिप्लोमेसी की बुनियाद पर असली मुद्दों से आंख तो मत चुराइए जनाबे आली! नहीं तो जनता आंख से काजल निकाल लेना भी जानती है।
विशाल भारद्वाज की ‘हैदर’ महाबकवास और बहुत भटकी हुई फिल्म है : दयानंद पांडेय
Dayanand Pandey : विशाल भारद्वाज की हैदर महाबकवास और बहुत भटकी हुई फ़िल्म है, लेकिन लोग हैं कि जाने क्यों तारीफ़ पर तारीफ़ झोंके जा रहे हैं. अजब भेड़चाल में फंस गए हैं लोग इस फ़िल्म को ले कर. और हद तो देखिए कि विशाल भारद्वाज ने हिंदू अख़बार में एक बयान झोंक दिया है कि अगर मैं वामपंथी नहीं हूं , तो मैं कलाकार ही नहीं हूं. बस इतने भर से वामपंथी साथी भी लहालोट हैं. हालांकि इस फ़िल्म का वामपंथ से भी क्या सरोकार है, यह समझ से क़तई परे है.