दैनिक जागरण जैसे अखबार अगर बंद हो जाएं तो इससे समाज को राहत मिलेगी, झूठी खबरें पढ़ने और इससे बदनामी झेलने से. उत्तराखंड के बागेश्वर में एक व्यक्ति जो जिंदा है, उसका दैनिक जागरण ने निधन करा दिया. यह सब पढ़ कर संबंधित व्यक्ति व उनके परिजन बेहद दुखी हैं.
राजू परिहार ने भड़ास4मीडिया को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि हार्ट अटैक के कारण एक व्यक्ति अस्पताल में भर्ती है. दैनिक जागरण ने इस व्यक्ति को मरा छाप दिया है. इस व्यक्ति की मौत की झूठी खबर छापे जाने के बाद स्थानीय लोग पूछ रहे हैं कि क्या फेक न्यूज़ फैलाते पकड़े गए दैनिक जागरण पर जिला प्रशासन कोई मुकदमा करेगा?
दैनिक जागरण के 26 अप्रैल के हल्द्वानी से प्रकाशित अल्मोड़ा संस्करण में पेज नम्बर 3 पर बागेश्वर से एक खबर छपी है- ‘कोरोना के डर व आर्थिक तंगी से हुआ हार्ट अटैक’. इस खबर के लास्ट में व्यक्ति का निधन बता दिया गया है. यह व्यक्ति अभी जिंदा है. इस खबर में बीमार व्यक्ति नवीन सिंह की तस्वीर भी लगाई गई है. सच्चाई ये है कि नवीन को हार्ट अटैक आया ज़रूर पर समय रहते ईलाज मिलने से अब सुरक्षित है।
दैनिक जागरण में जो निधन की खबर छपी है ये पूरी तरह से गलत और झूठी है. क्या किसी व्यक्ति को जीते जी मरा घोषित कर अख़बार में खबर प्रसारित करना किसी अपराध से कम है? इसका क्या असर नवीन और नवीन के परिवार वालों पर पड़ा होगा, इसका अंदाज़ा लगा पाना भी मुश्किल है।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों और कैसे दैनिक जागरण के संपादक ने इस न्यूज की बिना जांच-पड़ताल किये हुए इसे जगह दी? वैश्विक महामारी कोरोना के बारे में झूठी खबर प्रकाशित करने से पाठकों पर इसका क्या असर होगा, इस बात से दैनिक जागरण के संपादक अनजान हैं? खबरों को पहले प्रकाशित करने की होड़ में फेक न्यूज फैलाना कैसी पत्रकारिता है?
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