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सियासत

गुलामी का दूसरा नाम है कर्ज

ग्रीस एक बेहद खूबसूरत देश है। कई मायनों में स्विट्जरलैंड से भी ज्यादा खूबसूरत और दिलकश। दुनिया भर के सैलानियों की पसंदीदा सैरगाह। इसके अलावा भी दुनिया के नक्शे में ग्रीस एक ऐसा मुल्क है जिसका अपना एक गौरवशाली इतिहास है और असाधारण उपलब्धियों का जखीरा है। सिकंदर महान (एलेक्जेंडर दी ग्रेट) का जिक्र छोड़ भी दिया जाए तो गणित फिलोस्फी और हुनर में ग्रीस का योगदान अनदेखा नहीं किया जा सकता। 

ग्रीस एक बेहद खूबसूरत देश है। कई मायनों में स्विट्जरलैंड से भी ज्यादा खूबसूरत और दिलकश। दुनिया भर के सैलानियों की पसंदीदा सैरगाह। इसके अलावा भी दुनिया के नक्शे में ग्रीस एक ऐसा मुल्क है जिसका अपना एक गौरवशाली इतिहास है और असाधारण उपलब्धियों का जखीरा है। सिकंदर महान (एलेक्जेंडर दी ग्रेट) का जिक्र छोड़ भी दिया जाए तो गणित फिलोस्फी और हुनर में ग्रीस का योगदान अनदेखा नहीं किया जा सकता। 

यहां यह जानना जरूरी है कि तमाम यूरोपियन देशों की तरह ग्रीस भी देशभक्ति के मामले में अगली कतार में खड़ा है। ग्रीस की जनता अपने मुल्क के स्वाभिमान के लिए कोई भी कुर्बानी देने के लिए तैयार है। ताजा उदाहरण जनमत संग्रह में जनता का फैसला है। इसे क्रांतिकारी कदम न भी माना जाए तो भी यह एक दुर्लभ साहसिक कदम जरूर है। ऐसी अनहोनी दुनिया के मौजूदा पूंजीवादी और युद्धपिपासु ताकतों में डर पैदा कर सकती है। 

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ग्रीस की जनता को अच्छी तरह से पता था क अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और जर्मनी को कर्ज अदायगी से इनकार करना उनके लिए कई तरह की मुसीबतों का सबब बन सकता है। उन पर तरह-तरह के आर्थिक प्रतिबंध लग सकते हैं। अब तक विदेशी कर्ज के बलबूते शान-शौकत से जीने के आदी ग्रीस के लोगों को इसका एहसास था कि अब सादगी से रहना पड़ेगा और जितना उनके पास है, उसी में गुजर बसर करनी पड़ेगी। 

ग्रीस एक लोकतांत्रिक देश है। जनमत संग्रह का फैसला वहाँ की चुनी हुई वामपंथी सरकार का फैसला था। इस फैसले के पीछे जो राजनैतिक सूझ-बूझ और रणनीति थी, वह काबिले तारीफ थी। ग्रीस की सरकार जानती थी कि लोकतंत्र की बहाली के नाम पर अमेरिका, इंगलैंड या जर्मनी उनके मुल्क पर हमला नहीं कर सकती। ग्रीस कभी भी विस्तारवादी देश नहीं रहा और न ही कभी किसी तरह के आतंकवादी गिरोहों को पनाह दी। पूंजी के बलबूते लूट मचाने वाले ताकतर देशों के लिए आतंकवाद के नाम पर ग्रीस को धमकाना नाममुकिन था। 

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ग्लोबल दुनिया में ग्रीस के फैसले ने खतरे की घंटी बजा दी है। अंतरराष्ट्रीय पूँजी को लग रहा है कि यह फैसला उसके वर्चस्व और आधिपत्य में डायनामाइट लगा सकता है। आज ग्रीस ने शुरूआत की है, कल दूसरे देश भी कर्ज देने से इंकार कर सकते हैं। साम्राज्यवादी ताकतों के लिए दुनिया के विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों को लुटने के दो ही साधन हैं- हथियार और पूँजी। हथियार बनाने के लिए भी पूँजी की दरकार होती है। ताकत और लूट का दूसरा नाम पूँजी है।

ग्रीस की इस साहसिक पहल ने दुनिया में एक नए आर्थिक दशर्न की पेशकश की है। गुलामी का दूसरा नाम कर्ज है। दिवालियापन मुक्ति का मार्ग है। कर्ज में डूबा हुआ देश आत्मसम्मान के साथ नहीं जी सकता। कर्ज में डूबे हुए देश को अपनी जमीन, संसाधन और श्रम गिरवी रखने के लिए मजबूर होना पड़ता है। कर्ज में डूबा हुआ देश अपनी बहन बेटियों की अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकता। 

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ग्रीस का फैसला भारत के राजनेताओं के लिए एक सबक है। भारत को एक ताकतवर और आत्मनिर्भर देखनेवाले समाजशास्त्रियों और राजनैतिक चिन्तकों के लिए एक वरदान है। अब इस सिद्धांत को सिरे से खारिज करने का वक्त आ गया है कि कर्ज लेने से देश का विकास होता है। ग्रीस ने अपनी औकात से कई गुणा ज्यादा कर्ज लिया तो फिर उसका विकास क्यों नहीं हुआय़ उसे खुद को दिवालिया घोषित करना पड़ा। फर्क सिर्फ इतना है कि ऐसा उसने पूरे दमखम और एक मिसाल के तौर पर किया। खतरा उठाते हुए किया और अपनी जनता की सहमति से किया। ग्रीस ने बता दिया कि कर्ज देनेवाले देश ऐसी शर्तें और पाबंदियां नहीं सकते हैं कि जनता का जीना दूभर हो जाए। ग्रीस की राष्ट्रीय अस्मिता खतरे में पड़ जाए। ऐसा खतरा देशभक्त कौम ही उठा सकती है। ग्रीस ही नहीं, यूरोप के तमाम देश (और अमेरिका भी) देशभक्ति के मामले में अप्रतिम हैं। अमेरिका और यूरोप के विकसित होने का एक अहम कारण है- देशभक्ति ! 

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में यह नहीं बताया जाता कि देश पर कितना विदेशी कर्ज है। विचलित कर देनेवाला तथ्य यह है कि सूद चुकाने के लिए भी विदेशी कर्ज लेना पड़ता है। जो सरकार कर्ज नहीं चुका सकती, से कर्ज लेने का अधिकार है या नहीं, इस पर संसद या बाहर कोई बहस नहीं होती। सरकार द्वारा लिया गया कर्ज जनता पर लादा गया कर्ज है। हकीकत में विदेशी कर्ज भारत की जनता की गुलामी का बोंड है। 

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लेखक एवं ‘दाल-रोटी’ के संपादक अक्षय जैन से संपर्क : 8080745058, [email protected]

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