लखनऊ । नागरिक परिषद की ओर से यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में ‘अफसरशाही, पुलिस, कानून और न्यायपालिका से पीडि़त नागरिकों का सम्मेलन’ आयोजित किया गया गया। सम्मेलन में समूचे प्रशासनिक-न्यायिक सिस्टम से पीडि़त आम नागरिकों ने पुलिस और न्यायपालिका द्वारा प्रताड़ित किए जाने की घटनाओं को जहां बेबाकी से बताया वहीं इससे निपटने के तरीकों पर भी विचार विमर्श किया गया। इस सम्मेलन में बोलते हुए लखनऊ के बुजुर्ग सफाई कर्मचारी नेता ननकऊ लाल हरिद्रोही ने कहा कि वे स्वयं सफाई कर्मचारी रहे और जीवन भर मजदूर आंदोलन और दलित आंदोलन में हिस्सा लिया। उन्होंने लखनऊ में सबसे पहले सफाई कर्मचारियों के मोहल्ले अंबेडकर नगर में दलित बालक-बालिकाओं की शिक्षा के लिए ‘महर्षि सुपंच सुदर्शन विद्यालय’ की स्थापना की।
इस विद्यालय की जमीन पर स्थानीय पुलिस द्वारा बाउंड्री तोड़कर कब्जा कराने बावत उन्होंने पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों सहित कब्जेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। विधानसभा पर धरना प्रदर्शन किया। इससे नाराज होकर स्थानीय पुलिस ने उनके 10वीं में पढ़ रहे सबसे छोटे नाबालिग बेटे के खिलाफ अलग-अलग थानों से नौ मुकदमे दो दिन में कायम करवा कर उसे जेल भेज दिया। उनका बेटा सुदर्शन नाग अपनी हाईस्कूल की परीक्षा नही दे पाया। उस पर गैंगेस्टर एक्ट लगाया। डेढ़ साल वह जेल में रहा। रिटायरमेंट से मिले सारे पैसे वकीलों, दलालों व पुलिस की जेब में चले गए। छह बरस बच्चा मुकदमा लड़ता रहा।
न्यायालय ने उसे निर्दोष घोषित किया और पुलिस द्वारा लादे गए सभी मुकदमों को फर्जी बताया। विद्यालय की जमीन पर कब्जे की शिकायत में फाइनल रिपोर्ट लग गई। दंड शिकायतकर्ता और उसके नाबालिक बेटे को मिला। दलित समाज के नेता हरिद्रोही पूछते हैं ‘क्या न्याय व्यवस्था यही है?’
इसी सम्मेलन में बोलते हुए भूतपूर्व सैनिक देवी दत्त पाण्डेय ने कहा कि ‘भ्रष्टाचार के मामले को उजागर करने के बाद मेरे ऊपर पुलिस द्वारा फर्जी मुकदमे लादे गए’। जब मैंने पुलिस अधीक्षक से बात की तो उन्होंने कोई रुचि नहीं ली। उन्होंने कहा कि पुलिस हमारी सुरक्षा के लिए नही बल्कि लूट खसोट के लिए है। जिस दिन पुलिस ईमानदार हो जाएगी उस दिन कोर्ट से ज्यादातर मुकदमे खत्म हो जाएंगे। हम पर दर्ज फर्जी मुकदमें के बावत जब आरटीआई से पता किया तो मालूम चला कि जिस घटना में मेरे ऊपर आरोप हैं वहां ऐसी कोई घटना नही हुई है। लेकिन मुकदमा फिर भी चल रहा है।
सम्मेलन में बोलते हुए दलित कवि जानकी प्रसाद धानुक ने अपनी कविताओं के माध्यम से शासन और प्रशासन में आम नागरिकों के खिलाफ फैले उत्पीड़न पर अपनी बेबाक बात रखी। उन्होंने कहा कि अब पीडि़तों और दलितों को इस अन्याय के खिलाफ जगाना ही होगा। आज आम आदमी को लूटने के लिए हर ओर से मुंह फैलाए प्रशासनिक मशीनरी खड़ी हुई है। इससे आम आदमी को बचाना होगा। पुलिस प्रशासन अन्याय की सबसे बड़ी जड़ है। अब इस अन्याय के खिलाफ लोगों को संगठित करना होगा।
पुलिस और न्याय पालिका द्वारा आम आदमी को मुकदमे के दुष्चक्र में फंसाने के सवाल पर एडवोकेट डीसी वर्मा ने कहा कि यह समस्या गंभीर है और इसे समझने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा। दरअसल यह समस्या 1935 के कानूनों को आजादी के बाद हूबहू स्वीकार कर लेने से पैदा हुई है। उन्होंने कहा कि बेगुनाह छूटने के बाद पीडि़त को मुवाबजा दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन इसका उपयोग कभी नही होता है। सरकार की जांच एजेंसी ने पीड़ित को जांच के बाद कटघरे में खड़ा किया है तो इस पर बात होनी ही चाहिए। इस मामले में खुलकर आम जन में बात होनी चाहिए कि उसे कैसे मुवाबजा मिले। उन्होंने कहा कि जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में भी पुलिस और नौकरशाही की
इस उत्पीड़क मानसिकता पर बात की गई थी। घोसला कमीशन में पुलिस को सेवक बनाने की बात कही गई थी। उसमें कहा गया था कि उसकी मानसिकता ही औपनिवेशिक ब्रिटिश पुलिस वाली है। यही नहीं, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस मुल्ला ने अपने एक फैसले में कहा था कि पुलिस राज्य का एक संगठित हिंसा का गिरोह है। भले ही बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस लाइन को बदल दिया। लेकिन यह लाइन वास्तविकता को बयां कर देती है। उन्होंने कहा कि वास्तव में पुलिस आम आदमी की सुरक्षा के लिए नही बनाई गई है। आज पूरी पुलिस मशीनरी कारपोरेट हितों के हित के लिए खेल रही है। उन्होंने कहा यह भी कहा कि कि आज वकीलों की फीस भी गरीबों के लिए न्याय के रास्ते बंद कर चुकी है। इस पूरे प्रकरण के लिए एक व्यापक राजनैतिक बहस की जरूरत है। बिना एक व्यापक बहस के इस दिशा में कुछ नही हो सकता। साल दर साल नौकरशाही के अधिकार बढ़त जा रहे हैं और नागरिक हाशिए पर खिसकते जा रहे हैं। यह खतरनाक स्थिति है।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए लोकतंत्र सेनानी आलोक अग्निहोत्री ने कहा कि आज लुटेरे ही कानून बना रहे हैं, न्याय कर रहे हैं। आजादी के बाद से आज तक का पूरा सिस्टम ही आम जनता को हाशिए पर खड़ा किए हुए है। आज का पूरा सिस्टम बदलने लायक है। उन्होंने कहा कि इस देश में कभी भी जीने का अधिकार गुलाम भारत में भी खत्म नही हुआ था लेकिन, आजाद भारत में में आपातकाल लागू करके ऐसा किया गया है। यह पूरा सिस्टम ही आम लोगों के लिए कोई ‘स्पेस’ नही रखता है।
कार्यक्रम में बोलते हुए अशोक कुमार ने कहा कि आज यह महसूस किया जा रहा है कि मुल्क में लोकतंत्र होते हुए भी पूरा प्रशासनिक तंत्र लोकतंत्र विरोधी हो चुका है। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक दंगों के दौरान पुलिस और नौकरशाही तथा न्यायपालिका ने बड़ी ही निराशाजनक भमिका अदा की है। आज तक गुजरात तथा सिख विरोधी दंगों के आरोपी सजा नही पा सके। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका भी आज सांप्रदायिक और दलित विराधी मानसिकता को ढो रही है। कोई अदालत यह कैसे कह सकती है कि दलित महिला के साथ ब्राह्मण बलात्कार नहीं कर सकता है। आम मजदूरों के खिलाफ भी न्यायपालिका का रवैया मारूती के मजदूरों के मामले में साफ देखा जा सकता है। उन्होंने कई राज्यों में पुलिस द्वारा मजदूरों पर की जा रही ज्यादतियों का उल्लेख किया और बताया कि किस तरह से अदालतों ने भी इंसाफ नही किया। उन्होंने कहा कि यह पूरा सिस्टम ही विदेशी पूंजीपतियों की सेवा के लिए है। आम जनता के हालातों से इन्हें कोई सरोकार नही है। इस मुल्क के ज्यादातर कानून ही यूरोप से लिए गए हैं। यह सारे कानून ही सभी शोषणों की जड़ हैं। बिना इनके बदले कुछ भी बदलने वाला नही है।
झारखंड से आए सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार मुन्ना कुमार झा ने कहा कि आज बिहार से झारखंड को अलग हुए 14 साल हो रहे हैं। झारखंड में विकास की राजनीति आम लोगों और 6 करोड़ आदिवासियों को तबाह करने में जुटी है। आज आदिवासी समाज अपनी जल-जंगल-जमीन को नही बचा पा रहा है। आज करीब 6 हजार बेगुनाह नौजवान जेल में हैं। अगर इस देश में सबसे ज्यादा विरोध कहीं कारपोरेट का हो रहा है तो वह झारखंड है। वहीं पर सबसे ज्यादा कानूनों का दुरुपयोग हो रहा है। पुलिस लोगों को गांवों से ही गायब कर देती है क्योंकि वे इस जमीन अधिग्रहण का विरोध करते हैं। हजारों केस हैं। उन्होंने पूछा कि आखिर यह मुल्क कौन चला रहा है। कानून किसके लिए बने हुए हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने की पूरी लूट प्रक्रिया को भारतीय राज्य मशीनरी पूंजी के हित में संचालित कर रही है।
सम्मेलन में इलाहाबाद से शामिल होने आए किसान मजदूर नेता राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि आज जो गठजोड़ राजनैतिक तंत्र और कारपोरेट द्वारा बना दिया गया है उसी के साथ तंत्र का हिस्सा होने के कारण न्यायपालिका द्वारा भी कदम ताल की जा रही है। बिना लड़े इस समस्या ने निजात नही मिलने वाली और इसके लिए हमें लड़ना ही पड़ेगा। हमारी लड़ाई हर तरह के अन्याय के खिलाफ चल रही है और मंजिल मिलने तक जारी रहेगी।
कार्यक्रम में बोलते हुए उन्नाव से आए एक और मुन्ना जो कि दलित समाज से हैं ने अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि उनके लड़के को पुलिस द्वारा बेहद शातिराना अंदाज में अपराधी बना दिया गया। फर्जी बरामदगी दिखाकर जेल भेज दिया गया। क्योंकि हम दलित हैं और हमारे लड़के ने ठाकुरों जुल्म का विरोध किया था। ठाकुरों ने हमारी लड़की को भी भगवा दिया और थानेदार से जब शिकायत हुई तो उसने गाली देते हुए हमें भगा दिया। ग्राम प्रधान से भी कहा लेकिन हमारी मदद किसी ने नही की। डीएम से शिकायत करने पर पुलिस ने जबरिया सुलह करवाने की कोशिश की। बाद में ठाकुरों से पुलिस मिल गई और हमारे चारों बेटों को मार-पीट में अपराधी बनाकर जेल भेज दिया। आज तीन साल से हम दौड़ रहे हैं कोई सुनवाई नही हुई। हमारी लड़की भी आज तक नही मिली।
सम्मेलन में एनआरएचएम घोटाले के बाद बेगुनाह होकर भी फंसाई गई पीड़ित महिला डाक्टर द्वय चित्रा सक्सेना और अंजली पंत ने अपनी दास्तान बताते हुए कहा कि घोटाला करने के लिए पिछली सरकार ने पूरे हेल्थ विभाग को दो भागों में बांटा था। सभी जगह दो पदाधिकारी बनाए गए। 80 फीसद बजट पीड़ितों के लिए था। लेकिन सारा गणित इस बजट को खाने के लिए किया गया। इसके लिए भी दो मंत्री बनाए गए। उन्होंने कहा कि सारा काम सीएमओ के अंडर में होता है लेकिन एंबुलेंस घोटाले में हमें इस आधार पर आरोपी बनाया गया कि एंबुलेंस बिना चलाए, फर्जी गाड़ियां चलवाकर, बिल पेमेंट करवाए गए। सारा भुगतान सीएमओ आफिस से होता था। फिर भी हमें सीबीआई द्वारा जबरिया फंसा दिया गया।
इसी तरह से सैकड़ों पीड़ितों की दास्तान थी जो इस व्वस्था के अन्यायी और जन विरोधी होने का सबूत दे रही थी। कार्यक्रम का संचालन रामकृष्ण ने किया। अध्यक्षता लक्ष्मीनारायण एडवोकेट और के के शुक्ल ने की। इस अवसर पर पूर्व सांसद इलियास आजमी, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, के.के. शुक्ला, आदियोग, रामकृष्ण, पीसी कुरील, लक्ष्मण प्रसाद, राजीव शाहनवाज समेत सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद थे।
द्वारा जारी-
वीरेन्द्र त्रिपाठी
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