गोरखपुर के ग्रीन कार्ड घोटाले व फ्राड की घटना पर सबकुछ जानकर भी वहां की प्रिंट मीडिया चुप है। सिर्फ एक इलेक्ट्रानिक चैनल ईटीवी यूपी ने इस मामले में ढंग की खबर चलाई। उधऱ, पीड़ित पत्रकार वेद प्रकाश पाठक की लड़ाई जारी है। यहां हम फेसबुक और वाट्स एप्प पर साझा किये हुये उनके कुछ पोस्ट प्रकाशित कर रहे हैं…
80 रुपये के फ्राड केस में छिपा है लाखों का खेल!
एसपी ट्रैफिक ने 9 जनवरी 2013 को ही ग्रीन कार्ड छपाई पर प्रतिबंध लगा दिया था
फिर भी 2 साल 1 महीने 9 दिन तक चौराहों, पुलिस चौकियों और बूथ पर चला धंधा
गोरखपुर। कैंट पुलिस ने जिस 80 रुपये के ग्रीनकार्ड फ्राड में मुकदमा दर्ज किया है उसके नेपथ्य में लाखों का खेल छिपा हुआ है। वर्तमान SP Traffic Gorakhpur की जांच में कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। दरअसल, तत्कालीन एसपी ट्रैफिक रमाकान्त प्रसाद ने 9 जनवरी 2013 को ही ग्रीन कार्ड छपाई और वितरण करने के संस्था के काम पर प्रतिबंध लगा दिया था। ऐसे में सवाल यह है कि पूरे 2 साल 1 महीने और 9 दिन तक कैसे सरेराह चौराहों, पुलिस चौकियों और बूथ पर ग्रीन कार्ड छापे और पैसे लेकर बांटे गये। ऐसा बगैर पुलिस की मिलीभगत के संभव न था। अब पुलिस खुद सवालों के घेरे में है और निष्पक्ष विवेचना से ही राज खुलकर सामने आएगा।
आरोपी संस्था वृन्दावन महिला कल्याण समिति की सचिव वृन्दा देवी ने एसपी ट्रैफिक आदित्य प्रकाश की जांच में यह बयान दिया है कि उन्हें वर्ष 2012 में 30 रुपये की दर से कार्ड छापने की अनुमति तत्कालीन एसपी ट्रैफिक रमाकान्त प्रसाद ने दी थी। तीन महीने बाद उनसे काम बंद करने के लिए कहा गया और उन्होंने काम बंद करा दिया।
इसके ठीक उलट, यातायात पुलिस के पास मौजूद रिकार्ड के मुताबिक एसपी ट्रैफिक रमाकान्त प्रसाद ने 10 फरवरी 2012 को पत्र जारी करके वृन्दावन महिला कल्याण समिति को कार्ड छापने की अनुमति दी थी। और यह अनुमति 9 जनवरी 2013 को निरस्त की गई। यातायात विभाग के रिकार्ड के अनुसार संस्था को करीब 11 महीने कार्ड छापने की अनुमति दी गई थी जबकि संस्था सचिव का बयान है तीन महीने बाद काम बंद कर दिया गया।
चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जब संस्था ने तीन महीने में काम बंद कर दिया और एसपी ट्रैफिक रमाकान्त प्रसाद ने 9 जनवरी 2013 को काम पर प्रतिबंध लगाया तो पीड़ित के पास 18 फरवरी 2015 को ग्रीन कार्ड कैसे आ गया? दो वर्षों तक कौन लोग थे जो खुलेआम 40 रुपये से लेकर 80 रुपये तक जमा कराकर ग्रीन कार्ड छापते और बांटते रहे। इस दरम्यान चौराहों पर बैनर लगाकर ग्रीन कार्ड बांटे जा रहे थे और ट्रैफिक पुलिस के बूथ में आवेदन लिये जा रहे थे तो ट्रैफिक पुलिस के उस समय के आला अधिकारी कहां सो रहे थे।
वृन्दावन महिला कल्याण समिति ने पीड़ित के कार्ड और दस्तावेजों के प्रति अपनी जवाबदेही से साफ शब्दों में इनकार कर दिया है। हांलाकि एसपी ट्रैफिक आदित्य प्रकाश वर्मा ने अपनी जांच आख्या में माना है कि पीड़ित को किसी संस्था या फर्म ने ही ग्रीन कार्ड छापकर दिया है।
25 लाख के कार्ड छापने की आशंका
पीड़ित वेद प्रकाश पाठक का कहना है कि अगर एक दिन में पांच हजार रुपये के कार्ड भी छापे गए हैं तो दो साल की मियाद में 25 लाख से ज्यादा का घोटाला और भ्रष्टाचार हुआ है। चूंक ट्रैफिक पुलिस व इसके आला अधिकारी भी इस उगाही में शामिल थे लिहाजा घोटाले को हर कदम पर दबाने का प्रयास किया गया। उन्होंने उम्मीद जताई है कि उनके पास उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर निष्पक्ष और ईमानदारी के साथ विवेचना हुई तो सभी आरोपी पकड़े जाएंगे। इस पूरे घोटाले का पर्दाफाश हो सकेगा।
“फर्जीवाड़े की कहानी, पीड़ित की जुबानी”
शहर के यातायात चौराहे पर यातायात पुलिस बूथ में बैठे वृन्दावन महिला कल्याण समिति के कर्मचारी ने पीड़ित वेद प्रकाश पाठक से से 80 रुपये लेकर उन्हें 18 फरवरी 2015 को एट फर्जी ग्रीन कार्ड पकड़ा दिया। वेद ने इसके खिलाफ लड़ने का मन बना लिया। वेद ने बताया कि इस लड़ाई का आगाज हुआ 21 फरवरी 2015 को। उन्होंने आईजी जोन गोरखपुर से शिकायत की। मामले की जांच एसपी ट्रैफिक गोरखपुर को मिली। फर्जीवाड़े की यह घटना ज्यादातर मीडियाकर्मियों को थी लेकिन कलम नहीं चलीः चूंकि फ्राड करने वाली संस्था समाजवादी पार्टी की रसूखदार नेता से जुड़ी थी लिहाजा राजनीतिक दबाव में एसपी ट्रैफिक रमाकान्त प्रसाद जी ने मामला मैनेज कर दिया। दो साल बाद वेद ने आरटीआई से जानकारी पायी कि उनके प्रकरण में कोई कार्यवाही नहीं हुई है।
महंत योगी आदित्यनाथ सीएम बने और जनता दरबार लगाने लगे तो उनकी थोड़ी आस बढ़ी। 01 मई 2017 को उन्होंने योगी से मिलकर इस प्रकरण की शिकायत की थी। एसपी ट्रैफिक श्रीप्रकाश द्विवेद्वी को जांच मिली लेकिन यहां भी मामला मैनेज हो गया। सीएम से मिलना बेकार हो गया। उनका मन बहुत दुखी हुआ लेकिन फिर भी हिम्मत नहीं हारी।
फेसबुक और ट्विटर के जरिये वर्तमान एसपी ट्रैफिक श्री आदित्य प्रकाश वर्मा जी की जानकारी में उन्होंने पूरा प्रकरण लाया। मुख्यमंत्री के एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (आईजीआरएस) के जरिये आईजी जोन महोदय, डीआईजी रेंज महोदय और एसएसपी गोरखपुर महोदय से शिकायत भी की। इस बार जांच एक ईमानदार कार्यशैली वाले अफसर श्री आदित्य प्रकाश वर्मा जी के हाथ में थी। उन्होंने मामले की निष्पक्षता से जांच की और उनके निर्देश पर कैंट थाने में आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 419, 420 के तहत मुकदमा कायम हुआ है।
पीड़ित पत्रकार वेद प्रकाश पाठक की फेसबुक वाल से.
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