लाखों के घोटाले और इसे उजागर करने वाले पत्रकार पर गोरखपुर की प्रिंट मीडिया चुप क्यों है!

गोरखपुर के ग्रीन कार्ड घोटाले व फ्राड की घटना पर सबकुछ जानकर भी वहां की प्रिंट मीडिया चुप है। सिर्फ एक इलेक्ट्रानिक चैनल ईटीवी यूपी ने इस मामले में ढंग की खबर चलाई। उधऱ, पीड़ित पत्रकार वेद प्रकाश पाठक की लड़ाई जारी है। यहां हम फेसबुक और वाट्स एप्प पर साझा किये हुये उनके कुछ पोस्ट प्रकाशित कर रहे हैं…

जुझारू पत्रकार के संघर्ष के चलते ट्रैफिक पुलिस की मिलीभगत से ठगी करने वालों पर दर्ज हो सका मुकदमा

ढाई साल पहले घटी एक घटना ने मुझे बेहद आघात पहुंचाया था। शहर के यातायात चौराहे पर यातायात पुलिस बूथ में बैठे वृन्दावन महिला कल्याण समिति के कर्मचारी ने आपके साथी से 80 रुपये लेकर उसे फर्जी ग्रीन कार्ड पकड़ा दिया। यह फ्राड हुआ तो हजारों के साथ लेकिन बात मुझे खल गई। इतनी पढ़ाई लिखाई करने और पत्रकार होने का क्या मतलब, अगर कोई बीच चौराहे पर आपको पुलिस की संरक्षण में ठग ले। मैंने हास, परिहास और उपहास की परवाह किये बिना इस ठगहाई के खिलाफ लड़ने की ठान ली। मेरे दोस्तों, मीडिया के कुछ साथियों, कई अपने लोगों और यहां तक की यातायात पुलिस ने भी मुझे समझाने का प्रयास किया लेकिन मैंने सिर्फ अपने दिल की सुनी।

इस पत्रकार ने योगी को शशि शेखर से किया सचेत

गोरखपुर। हिंदुस्तान अखबार में काम कर चुके, “हिंदवी” (सीएम योगी का अखबार, जो अब बंद हो चुका है) के पूर्व विशेष संवाददाता और इन दिनों स्वतंत्र पत्रकार के रूप में सक्रिय वेद प्रकाश पाठक ने एक ट्वीट के माध्यम से सीएम योगी को सतर्क किया है।

मैंने प्रधान संपादक योगी आदित्यनाथ से सीखा है निर्भीक और निष्पक्ष लेखन

मित्रों,

मैं इसे सौभाग्य मानता हूं कि मैंने प्रिंट पत्रकारिता की पहली खबर ही मीडिया प्रतिरोधी निर्भीक लेखन से की। यह लेखन तत्कालीन अखबार “हिंदवी” के प्रधान संपादक, गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी और गोरखपुर सदर सीट से सांसद योगी आदित्यनाथ जी से ही सीखने को मिला। दरअसल यह प्रतिरोधी लेखन स्थानीय मीडिया (गोरखपुर के कुछ मीडिया संस्थानों) की एक भ्रामक खबर के खिलाफ था। स्थानीय मीडिया की भ्रामक खबर के खिलाफ जो रिपोर्ट मैंने लिखी उसकी हेडिंग कुछ यूं थी- “पुलिस और मीडिया के गठजोड़ ने ही सुनील सिंह को कराया तड़ीपार”।

मजीठिया की जंग : सुनवाई के लिए आज हम तीन पत्रकार पहुंचे तो उप श्रमायुक्त गोरखपुर गायब मिले

 

मेरी लड़ाई पत्रकारों या अखबारों से नहीं, कंपनियों की शोषक नीतियों से लड़ रहा हूं

मित्रों,

दस साल हो गए पत्रकारिता में। इस दरम्यान टीवी, रेडियो, कई दैनिक सांध्य अखबारों, दैनिक भास्कर, हिंदुस्तान जैसे कार्पोरेट अखबारों, साप्ताहिक अखबारों, डिजीटल मीडिया और मैगजीन में सेवाएं दीं। स्वतंत्र पत्रकार के रूप में डिजीटल मीडिया व एक सांध्य दैनिक अखबार में लेखन और रेडियो पत्रकारिता अभी भी जारी है। एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं। मेरी लड़ाई न किसी अखबार से है और न ही किसी पत्रकार से। मैं उन कंपनियों से लड़ रहा हूं जो अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों के साथ धोखा कर रही हैं। उनका आर्थिक, शारीरिक और मानसिक शोषण कर रही हैं। इस लड़ाई में शोषित सभी पत्रकार साथी मेरे साथ हैं। बस चंद ऐसे पत्रकार मेरे विरोधी हैं जो कंपनियों द्वारा गुमराह किये जा रहे हैं। ऐसे विरोधी साथियों के प्रति भी मेरी पूरी हमदर्दी है। भरोसा है कि एक न एक दिन वह भी मेरे साथ जरूर आएंगे।

एचएमवीएल के एचआर हेड को उप श्रमायुक्त गोरखपुर ने जारी किया नोटिस

हिन्दुस्तान अखबार को चलाने वाली कंपनी हिन्दुस्तान मीडिया वेन्चर्स लिमिटेड (एचएमवीएल) के एचआर हेड को उप श्रमायुक्त गोरखपुर ने नोटिस जारी किया है। नोटिस के जरिये कंपनी के प्रतिनिधि को बुलाया गया है ताकि कंपनी अपना पक्ष रख सके। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 7 फरवरी 2015 तक सभी अखबार चार किश्तों में मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से एरियर का पूर्ण भुगतान कर दें। नवम्बर की 11 तारीख और वर्ष 2011 से 10 जनवरी 2013 तक के मेरे एरियर का भुगतान कंपनी को 18 प्रतिशत कंपाउंड ब्याज के साथ मुझे बिना मांगे देना चाहिये था। मैंने बड़ी विनम्रता से माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई समयावधि का इंतजार किया। जब एक पाई कंपनी ने नहीं भेजा तब कंपनी के एचआर हेड और समूह संपादक को पत्र भेजकर अपना एरियर मांगा। इस बेशर्म कंपनी ने जवाब तक नहीं दिया।

मजीठिया के लिए लड़ रहे क्रांतिकारी मीडियाकर्मियों के पक्ष में एक पत्रकार की आम जन से अपील

स्वच्छ, स्वस्थ, निष्पक्ष, गुणवत्तायुक्त पत्रकारिता सभी की डिमांड है। इसके लिये जवाबदेह हिन्दी मीडिया संस्थानों को सस्ते और सर्वगुण समपन्न पत्रकार चाहिये। पिछले 10 सालों से पत्रकारिता में पाने वाली सेलरी बताऊं, उससे पहले इसकी पढ़ाई का खर्च बताता हूं। 2 लाख खर्च करके पहली पढ़ाई पूरी की तो 3000 रूपये महीने की नौकरी 2007 में मिली। काम 14 घंटे। अच्छे संस्थान में नौकरी की प्रत्याशा में 1 लाख और खर्च कर ट्रेनिंग ली। मेरठ में नौकरी मिली। दाम 4000 रूपये महीने। थोड़े दिन बाद दैनिक भास्कर जैसा बड़ा समूह ज्वाइन किया। पहले 8000 महीना दिया और 2010 तक यह रकम 9500 हो गई। कामकाज ठीकठाक था लिहाजा गोरखपुर हिंदुस्तान में ज्वाइनिंग मिल गई। 2010 में रिपोर्टर पद पर 12000 में ज्वाइन किया और 2013 में सीनियर स्टाफ रिपोर्टर पद से 15000 प्रति माह की पगार के साथ बीमारी के कारण विदाई हो गई।

‘हिन्दुस्तान’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के साथियों से एक पत्रकार की अपील

“हिन्दुस्तान” और “हिन्दुस्तान टाइम्स” से पूरे देश में जुड़े साथियों से खुली अपील है कि आप मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड के लिये 17(1) के तहत जमकर क्लेम करें। अगर 11 नवम्बर 2011 के बाद कभी भी रिटायर हुये हैं या जबरन रिजाइन ली गई है तब भी आपका एरियर बनता है। एरियर बनवाने में कोई दिक्कत हो तो मुझसे सम्पर्क करें। अगर आप काम कर रहे हैं तो डरने की जरूरत नहीं है। कंपनी आपको ट्रांसफर करेगी, सस्पेंड कर सकती है, टर्मिनेट करेगी और इनके लोग धमकियां भी देंगे, जैसा कि इन दिनों पूरे देश में हो रहा है। लेकिन भरोसा रखें, ये बिगाड़ कुछ नहीं पाएंगे।

शोभना भरतिया ने कोई कार्यवाही न की तो हिंदुस्तान के पत्रकार ने पत्र किया सार्वजनिक, आप भी पढ़ें

मैंने एचएमवीएल की मुखिया और बिड़ला जी की उत्तराधिकारी श्रीमती शोभना भरतिया को यह रजिस्ट्री से भेजा गया पत्र और ई-मेल है। पत्र इस भरोसे से लिखा कि वह अपने प्रबंधतंत्र पर नकेल कसेंगी। लेकिन शोभना भरतिया भी अपने तंत्र के चंगुल में हैं और सभी अत्याचार और अनाचार को मौन सहमति दे रखा है। मैंने उन्हें तय समय देते हुये कहा था कि अगर उस अवधि में ठोस एक्शन नहीं हुआ तो मैं पत्र सार्वजनिक करने के लिये बाध्य होउंगा।