यह हमला रवीश पर नहीं, आलोचना का साहस रखने वाली पत्रकारिता पर है : ओम थानवी

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Om Thanvi : आलोचक उनके लिए दुश्मन होता है; ‘दुश्मनी’ निकालने का उनके पास एक ही ज़रिया है कि आलोचक को बदनाम करो, उसका चरित्र हनन करो। भले वे विफल रहें, पर जब-तब अपनी गंदी आदत को आज़माते रहते हैं। उनकी आका भाजपा की वैसे ही रवीश से बौखलाहट भरी खुन्नस है। रवीश कुमार फिर उनके निशाने पर हैं। रवीश के भाई ब्रजेश बिहार में चालीस साल से कांग्रेस की राजनीति करते हैं।

एक नाबालिग़ लड़की ने एक ऑटोमोबाइल व्यापारी निखिल और उसके दोस्त संजीत के ख़िलाफ़ यौन शोषण का आरोप लगाया। लड़की के पिता भी कांग्रेसी नेता हैं और बिहार सरकार में मंत्री रहे हैं। एक महीने बाद उसने, सीआइडी की जाँच में, ब्रजेश पांडेय का भी नाम “छेड़छाड़” बताकर लिया और एसआइटी को बताया कि जब उसने अपने दोस्तों से बात की तो उन्होंने कहा कि “लगता है” ये सब लोग एक सैक्स रैकेट चलाते हैं। ग़ौर करने की बात यह भी है कि केस दर्ज़ होने के बाद वहाँ के अख़बारों में अनेक ख़बरें छपीं (भाजपाई जागरण में चार बार), लेकिन ब्रजेश पांडे किसी ख़बर में नहीं थे क्योंकि मूल शिकायत में उनका नाम नहीं था।

भले ही ब्रजेश का नाम शिकायतकर्ता ने एफ़आइआर दर्ज़ करवाते वक़्त नहीं लिया गया, न वीडियो रेकार्डिंग में उनका नाम लिया, न ही मजिस्ट्रेट के सामने नाम लिया; फिर भी अगर आगे जाकर एसआइटी के समक्ष छेड़छाड़ और दोस्तों के हवाले से सैक्स-रैकेट चलाने जैसा संगीन आरोप लगाया है तो उसकी जाँच होनी चाहिए, पीड़िता को न्याय मिलना चाहिए और असली गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सज़ा होनी चाहिए।

लेकिन महज़ आरोपों के बीच सोशल मीडिया पर रवीश कुमार पर कीचड़ उछालना क्या ज़ाहिर करता है? निश्चय ही अपने आप में यह निहायत अन्याय भरा काम है। आरोप उछले रिश्तेदार पर और निशाने पर हों रवीश कुमार? इसलिए कि उनकी काली स्क्रीन कुछ लोगों के काले कारनामों को सामने लाती रहती है?

ज़ाहिर है, यह हमला रवीश पर नहीं, इस दौर में भी आलोचना का साहस रखने वाली पत्रकारिता पर है। पहले एनडीटीवी पर “बैन” का सीधा सरकारी हमला हो चुका है। अब चेले-चौंपटे फिर सक्रिय हैं। इन ओछी हरकतों में उन्हें सफलता नहीं मिलती, पर लगता है अपनी कोशिशों में ख़ुश ज़रूर हो लेते हैं। अजीब लोग हैं।

इस प्रसंग में अभी मैंने बिहार के एक पत्रकार Santosh Singh की लिखी पोस्ट फ़ेसबुक पर देखी है। दाद देनी चाहिए कि उन्होंने तहक़ीक़ात की, थाने तक जाकर आरोपों के ब्योरे जानने की कोशिश की। उन्होंने जो लिखा, उसका अंश इस तरह है:

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“मैंने सोचा पहले सच्चाई जान लिया जाये (इसलिए) पूरा कागजात कोर्ट ने निकलवाया …

22-12-2016 को एसीएसटी थाने में एफआईआर दर्ज होता है जिसमें निखिल प्रियदर्शी उनके पिता और भाई पर छेड़छाड़ करने और पिता और भाई से शिकायत करने पर हरिजन कह कर गाली देने से सम्बन्धित एफआईएर दर्ज करायी गयी। इस एफआईआर में कही भी रेप करने की बात नही कही गयी है …इसमें ब्रजेश पांडेय के नाम का जिक्र भी नही है …

24-12-2016 को पीड़िता का बयान कोर्ट में होता है धारा 164 के तहत। इसमें पीड़िता शादी का झाँसा देकर रेप करने का आरोप निखिल प्रियदर्शी पर लगाती है। ये बयान जज साहब को बंद कमरे में दी है। इस बयान में भी ब्रजेश पांडेय का कही भी जिक्र नही है …

30–12–2016 को यह केस सीआईडी ने अपने जिम्मे ले लिया। इससे पहले पीड़िता ने पुलिस के सामने घटना क्रम को लेकर कई बार बयान दिया लेकिन उसमें भी ब्रजेश पांडेय का नाम नही बतायी।।

31-12-2016 से सीआईडी अपने तरीके से अनुसंधान करना शुरु किया और इसके जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया गया। इस जांच के क्रम में पीड़िता ने एक माह बाद कहा कि एक पार्टी में ब्रजेश पांडेय मिले थे, उन्होने मेरे साथ छेड़छाड़ किया। फेसबुक पर देखा ये निखिल के फ्रेंड लिस्ट में हैं। इनको लेकर मैं अपने दोस्तों से चर्चा किया तो कहा कि ये सब लगता है सैक्स रकैट चलाता है इन सबों से सावधान रहो।

पुलिस डायरी में एक गवाह सामने आता है मृणाल जिसकी दो बार गवाही हुई है। पहली बार उन्होनें ब्रजेश पांडेय के बारे में कुछ नही बताया, निखिल का अवारागर्दी की चर्चा खुब किया है। उसके एक सप्ताह बाद फिर उसकी गवाही हुई। और इस बार उसकी गवाही का वीडियोग्राफी भी हुआ, जिसमें उन्होने कहा कि एक दिन निखिल और पीड़िता आयी थी, निखिल ने पीड़िता को कोल्डड्रिंक पिलाया और उसके बाद वह बेहोश होने लगी उस दिन निखिल के साथ ब्रजेश पांडेय भी मौंजूद थे …
मृणाल उसी पार्टी वाले दिन का स्वतंत्र गवाह है। लेकिन उसने ब्रजेश पांडेय छेड़छाड़ किये है, ऐसा बयान नही दिया है।

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मामला जो हो, जाँच जिधर चले मैं फिर कहूँगा कि रवीश जैसे ज़िम्मेदार और संजीदा पत्रकार को इसमें बदनाम करने की कोशिश न सिर्फ़ दूर की कौड़ी (वहाँ कौड़ी भी नहीं) है, बल्कि सिरफिरे लोगों का सुनियोजित कीचड़-उछाल षड्यंत्र मात्र है। ऐसे बेपेंदे के अभियान चार दिन में अपनी मौत ख़ुद मर जाते हैं।

जाने माने पत्रकार ओम थानवी की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं….

Urmilesh Urmil इस मामले में बेवजह रवीश को निशाना बनाने का क्या औचित्य है? अगर कहीं किसी के परिजन पर कोई आरोप लगा है तो कानून की प्रक्रिया के तहत जांच होगी। इसमें सैकड़ों किमी दूर रहने वाले उक्त व्यक्ति के परिवार के एक पत्रकार-एंकर का भला क्या कसूर कि कुछ शरारती तत्व कीचड़ उछालने की कोशिश कर रहे हैं! इस दुष्प्रचार अभियान की जितनी निंदा की जाय, कम है।

Qamrul Hasan Siddiqui Urmilesh ji आदाब। बहुत अफ़सोस होता है ये सब पढ़ कर और देख कर। क्या देश में अब आप निष्पक्ष पत्रकारिता भी नहीं कर सकते। क्या एक पार्टी और विचार धरा की चाटुकारिता ही पत्रकारिता का मतलब रह गया है। पिछले 1 महीने से मैं रवीश के प्रोग्राम देख रहा हूँ। वो पैनापन बिलकुल नहीं दिख रहा है। तनाव और थकान साफ नज़र आ रहा है। हालांकि मैं इस छेत्र में नहीं हूँ फिर भी राजनीती को मैंने भी इमरजेंसी के समय से फॉलो किया है जब मैं इलाहाबाद से बीएससी कर रहा था। उस समय भी माहोल बहुत खराब था। मगर आज तो सोशल मीडिया और टीवी के कारण हर बात बहुत जल्दी फैलती है। इसी का फायदा ये तथा कथित देश भक्त उठा रहे हैं। और जो इनसे सहमत नहीं होता उनके ऊपर ये हुक्का पानी लेकर चढ़ दौड़ते है।

Chandra Prakash Pandey यह एक दलित महिला के शारीरिक उत्पीड़न का मामला है,, जिसमें एक दबंग सवर्ण पर आरोप लगा है,, इस पर रवीश बाबू का एक प्राइम टाइम तो जरूर बनता है, इससे उनकी निष्पक्षता ही साबित होगी और वह शक के दायरे में भी नहीं होंगे,,

Urmilesh Urmil Qamrul Hasan Siddiqui साहब, अपने मुल्क में स्वतंत्र और वस्तुपरक पत्रकारिता करना बहुत कठिन और जोखिम भरा काम है। तभी तो हम प्रेस फ्रीडम के मामले में 2016 के ताजा सूचकांक में 180 देशों की सूची में 133 वें नंबर पर हैं।

Om Thanvi मुख्य आरोप (बलात्कार का) जिस रईसज़ादे निखिल और उसके मित्र पर है, उसे परे रख आप उस व्यक्ति को ही आरोपी मान लें जिस पर अनुचित रूप से छूने का आरोप है (वह भी बेशक आपराधिक काम है) तो इसे आपका दुराग्रह न मानें तो क्या मानें? हो सकता है आपकी कोई रार हो, पर पीड़िता से आपको कोई सहानुभूति नहीं, वरना उन रईसज़ादों को आड़ न देते।

Chandra Prakash Pandey Om Thanvi यह एक दलित महिला के सम्मान की बात है,, कृपया इसे हल्के में न लें,, इस बारे मे श्रीमान रवीश जी को एक प्राइम टाइम कर दूध का दूध और पानी का पानी कर देना चाहिए,, और अपने भाई पर दलित महिला द्वारा लगाये कथित आरोपों को गलत सिद्ध कर देना चाहिए,,

Ashutosh Tripathi ग़लत सिद्ध करने का काम वक़ील का है और वो भी कोर्ट मे। न्यूज़ स्टूडियो कोर्ट नही है। अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली मे ससुराल के झगड़े के हवाले से एक विधायक को जेल मे डाल दिया गया था। बाद मे पुलिस की किरकिरी हुयी और छूट गये।…See more

Chandra Prakash Pandey Ashutosh Tripathi अभी तक तो हम देख रहे थे कि रवीश बाबू न्यूज़ रूम में ही कोर्ट लगाते थे,, अब इसमें भी एक प्राइम टाइम तो बनता है,, बड़े भाई

Ashutosh Tripathi रवीश पर न्यूज़ रूम मे कोर्ट लगाने का इल्ज़ाम तो नही लगा सकते। उनके पैनल मे तो विषय विशेषज्ञ ही रहते है, पार्टियों के वक़ील नही।

Subir Khanna इससे ये तो पता चला की आप जैसे पत्रकारों की पत्रकारिता किस तरह 10 जनपथ की गुलाम है. रविश विधान सभा चुनाव में अपने भाई का प्रचार करने गए थे उन्हें अब सामने आकर माफ़ी मांगना चाहिए. अब आपको जाँच और कानून याद आ रहा है पहले तो सिर्फ आरोपो पर स्टूडियो में बैठ कर खूब चिल्लाते थे……..

Om Thanvi दलित बच्ची की न्याय दिलाना है तो उन बलात्कार के दो आरोपियों का नाम लो, जो आप अब तक नहीं ले रहे। आप तीसरे छेड़खानी के आरोपी के भी भाई के पीछे टहल रहे हैं। यह दलित बच्ची को न्याय दिलाना नहीं है, मुख्य आरोपियों से ध्यान भटकाना है। झूठ गढ़ना और फैलाना भी एक मानसिक बीमारी है।

Chandra Prakash Pandey Om Thanvi जी दलित महिला ने एक आरोप लगाया है,, जिसका संज्ञान पुलिस/न्यायालय ने लिया है,, जिस व्यक्ति का नाम आया है वह बिहार कांग्रेस का उपाध्यक्ष है,, अब यह कोई सामान्य घटना नहीं है,, हो सकता है कांग्रेस की सरकार के चलते पुलिस प्राथमिकी में यह बात दबा दी गई हो,, यह जाँच का विषय है,, इसे सिरे से नकार देना या झूठा कह देना एक दलित महिला के प्रति अन्याय होगा,, रवीश NDTV को इसे प्राइम टाइम का विषय बनाना चाहिए,, बाकी आप वरिष्ठ हैं और गरिष्ठ भी,, चाहें तो इस बात को हज़म भी कर सकते हैं,,

Ratan Pandit इस प्रकरण में सवर्णों का दलित प्रेम देखते ही बन रहा है कारन गंगा मइया जाने

Om Thanvi आपको कुछ पता नहीं है, मैं जवाब देता हूँ तो फिर कुछ लिख देते हैं। वह महिला नहीं है, नाबालिग़ बच्ची है। प्राथमिकी कांग्रेस सरकार के चलते दबा दी गई होगी? कांग्रेस की सरकार बिहार में कितने वर्ष पहले थी पहले मालूम कर लीजिए। मामला तीन महीने पहले का है। और प्राथमिकी पढ़ भी लीजिए, उसमें दो ही नाम हैं, व्यापारी निखिल और संजीत का। नेता का नाम नहीं है। जिनका है उनके ख़िलाफ़ एक शब्द आपके मुँह से नहीं टपकता है।

Abhay Saxena शायद कुछ लोग रवीश कुमार को टीवी एंकर /पत्रकार नही बल्कि मंत्री या किसी पार्टी का अध्यक्ष समझ रहे हैं जो उनके भाई पर लगे आरोप पर सफाई देने को कह रहे हैं ! रवीश के भाई के तथाकथित अपराध के लिये रवीश पर आरोप लगाना कुछ ऐसा ही है जैसे किसी की महानता की तारीफ इस तरह की जाये कि “इतनी बड़ी पोस्ट मे हैं पर इनके भाई छोटा सा धंधा कर रहे हैं”। प्राइम टाइम की बहुत डिमांड हो रही है ! ISI certified ध्रुव सक्सेना के “DNA” की कोई फरमाइश नही कर रहा है!

Om Thanvi बेतुकी “डिमांड” है। न सिर न पैर।

Rakesh Singh सक्सेना जी ध्रुव सक्सेना के पीछे राबिया नाम की महिला का नाम आ रहा है। क्या आप नही जानना चाहेंगे कि कही बड़े भाई के पीछे छोटे का तो हाथ नही ?

Chandra Prakash Pandey एक प्राइम टाइम तो बनता है,, दलित महिला के शारीरिक उत्पीड़न का मामला है,, और पत्रकारिता का तक़ाज़ा भी है,, वैसे उन्होंने कैराना, धूलागढ, केरल, बंगाल में हो रही आरएसएस के स्वंसेवकों की दर्जनों हत्याओं, पर भी चर्चा नहीं करी,, ये उनका चैनल है उनके मालिक का विशेषाधिकार है क्या दिखायें और क्या छिपायें,, MSM भी एक धंधा है और धंधा प्राफिट के लिए किया जाता है,, फिर उसमें नैतिकता की बात करना बेमानी है,, बेतुकी है,,

Somu Anand Om सर . प्रणाम । आप बार-बार निखिल प्रियदर्शी और संजीत के नाम लिए जाने की बात करते हैं। सही है, नाम लिया जाना चाहिये लेकिन नाम उनका भी लिया जाना चाहिए जो सार्वजानिक मंचों से नैतिकता की दुहाई देते रहे हैं । हमने कभी निखिल प्रियदर्शी या संजीत को महिला कल्याण की बात करते नहीं सुना (हालांकि इसका अर्थ यह नही की उन्हें दुष्कर्म करने की आजादी है) लेकिन ब्रजेश बाबु को सुना है, इसीलिए उनका नाम तो आएगा ही और दूसरे किसी आरोपी से ज्यादा आएगा। हो सकता है कि आपको सोशल मीडिया पर हो रही बहस सड़कछाप लगे लेकिन सच्चाई यह है कि सत्ता और पत्रकारिता के साझेदारी से किसी आरोपी को बचाने की कोशिश को नाकाम यही सोशल मीडिया करती है।

Prabhat Ranjan आज इन्डियन एक्सप्रेस ने ब्रजेश पांडे की खबर को पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा है. आप जिस तरह से लिख रहे हैं बताने की कोशिश कर रहे हैं बात उतनी एकतरफा नहीं है.

Om Thanvi एक्सप्रेस की ख़बर में एक भी बात ऐसी नहीं है, जो मैंने नहीं लिखी। यह ख़बर भी पुलिस के हवाले से यही कहती है कि एफ़आइआए दो महीने पहले दर्ज हुई थी, पर ब्रजेश पांडेय का नाम तीन हफ़्ते पहले एसआइटी के सामने लिया गया, कि निखिल ने बलात्कार किया (जो आरोप एफ़आइआर में भी था), पांडेय ने अनुचित ढंग से छुआ (जो आरोप एफ़आइआर में नहीं था)। … मैंने साफ़ लिखा है कि क़ानून अपना काम करे, पीड़िता को न्याय मिले, अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा – मगर इसमें रवीश को क्यों घसीटा जा रहा है? … आपको मेरी बात में इकतरफ़ा क्या लगा, ज़रा स्पष्ट कीजिए।

Prabhat Ranjan Om Thanvi सर, एकतरफा इसलिए क्योंकि न्याय की लड़ाई लड़ने वाले रवीश कुमार को इस के बारे में भी बोलना चाहिए. आप लोगों के लिखने से लगता है जैसे वह कोई मसीहा हो. वैसे जिस संतोष सिंह का आप हवाला दे रहे हैं वह बिहार चुनाव के समय रवीश कुमार के साथ अपनी फोटो लगाकर यह भी लिख चुका है कि वह उनका कितना बड़ा फैन है. इसलिए मैंने एकतरफ़ा कहा. अपनी बात को पुष्ट करने के लिए आप जिन तथ्यों का सहारा लेता हैं उससे ही यह जाहिर हो जाता है कि आप क्या कहना चाह रहे हैं.

Sarvapriya Sangwan आपके घर में जिस-जिस पर जो मुकदमा चलता है, आप लेख लिखते हैं उस पर?

Prabhat Ranjan Sarvapriya Sangwan जी, जब चलेगा और मेरा नाम आएगा तो लिखूँगा। दुर्भाग्य से अभी तक चला नहीं है। ना मैं इतनी बड़ी शख़्सियत हूँ

Sarvapriya Sangwan क्यों बड़ी शख़्सियत पर ही ये ज़िम्मेदारी है? खोजने चलेंगे तो एक ऐसा घर भी ऐसा नहीं मिलेगा जिन पर मुक़दमे ना चल रहे हों। ज़िन्दगी बहुत लंबी है, भगवान ना करे कि आपके परिवार पर या आप पर कोई कीचड उछले लेकिन हुआ तो आप ज़रूर टीवी पर चलवाइयेगा।

Om Thanvi आपका तर्क इतना हास्यास्पद है कि साथी हैं इसलिए जवाब देता हूँ, वरना इसके योग्य नहीं। आरोप भाई पर, जवाब उनके परिजन देंगे? कितने परिजन देंगे? कल आप कहेंगे वे सज़ा भी भुगतें! यह तो संघ वाले अभी से कर रहे हैं, कि उन्हें विवाद में घसीट रहे हैं। वही काम आप करें अच्छा नहीं लगता।

Urmilesh Urmil मुझे भी प्रभात रंजन जैसे समझदार व्यक्ति और सक्रिय रचनाकर्मी की टिप्पणी पर अचरज हो रहा है!

Prabhat Ranjan Urmilesh Urmil सर मुझे थानवी जी पर आश्चर्य हो रहा है. जिस तरह से उन्होंने संतोष सिंह की बात को साझा किया. संतोष सिंह के बारे में वे जानते कितना हैं? भारत की राजनीति में परिवारवाद की बात बार बार तंज़ में उठाने वाले पत्रकार का परिवारवाद नहीं है यह(रवीश के सन्दर्भ में)? थानवी जी ने लिखा है कि ब्रजेश जी 40 साल से राजनीति कर रहे हैं. ब्रजेश जी की उम्र क्या है? सर यह जनतांत्रिक मंच है अगर कोई एकतरफा बात करेगा तो दूसरा भी सवाल उठाएगा ही न. मैं आपका और थानवी जी दोनों का बहुत सम्मान करता हूँ लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि रवीश जी का भी करूं. उनकी पत्रकारिता का बहुत बड़ा संबल उनका नैतिक होना रहा है. जिसके कारण मैं भी उनका बेहद प्रशंसक था लेकिन इस पूरे प्रकरण से उनकी वह नैतिक छवि दरक रही है. आप एक झटके में सबसे अलग नहीं हो सकते. बिहार में तो भाजपा की सरकार भी नहीं है फिर कौन ब्रजेश जी को फंसा रहा है. पंक्तियों के बीच में भी बहुत सारी पंक्तियाँ होती हैं सर

Sarvapriya Sangwan ब्रजेश पांडेय को कौन फंसा रहा है या नहीं फंसा रहा है, वो तो जांच के बाद सामने आ जायेगा। क्योंकि जांच चल ही रही है। वो अपने पद से इस्तीफा भी दे चुके हैं। लेकिन रवीश कुमार को आप फंसा रहे हैं। राजनीति के परिवारवाद को समझते हैं आप? इस जवाब से लगता है कि आप सिर्फ उत्तेजना में किसी भी तरह रवीश को गुनहगार साबित करना चाहते हैं। इस चक्कर में आप ज़रूर अतार्किक दिख रहे हैं। मुझे भी बहुत हैरानी हुई। लेकिन ठीक है, ऐसे किसी वक़्त में ही व्यक्ति का स्टैंड पता चलता है। आपके कुछ कहने से उनकी नैतिकता या उनका ‘ब्रैंड’ एक पॉइंट भी कम नहीं होगा।

Prabhat Ranjan Sarvapriya Sangwan जी, मैं क्षमा चाहता हूँ लेकिन जिस तरह से थानवी जी ने संतोष सिंह नामक बिहार के पत्रकार के हवाले से लिखा मुझे उससे दुःख हुआ. उनको उसके बारे में जानना चाहिए था पहले. यह भी नैतिकता का तकाज़ा होता है

Om Thanvi संतोष सिंह को जानने की क्या ज़रूरत? पत्रकार हैं और एफआइआर और अब तक की जाँच के दस्तावेज़ ले आए यही अहम बात है। इसी से स्पष्ट हुआ कि मूल शिकायत में ब्रजेश कहीं थे ही नहीं। रेकार्ड हुए बयान में भी नहीं। फिर, रवीश ख़ुद इस मामले में हैं कहाँ? यही तो बात है। मुख्य आरोपी का आप नाम तक नहीं लेते। बस रवीश और उनके भाई। आपकी गाँठ भी वहीं लगी है जहाँ संघ/भाजपा वालों की है। उन्हें तो कोई हिसाब चुकाना होगा, आपको?

Prabhat Ranjan Om Thanvi सर, मुझे क्या हिसाब चुकाना है. लेकिन यह एक नैतिक सवाल है जो मैं बार बार उठाऊंगा क्योंकि रवीश जी पत्रकारिता की धुरी नैतिकता रही है. उनके ऊपर किसी तरह का सवाल नहीं उठा रहा हूँ. उनके उस नैतिक बल पर सवाल उठा रहा हूँ जिसके कारण उनकी आवाज में हम जैसे कमजोर अपनी आवाज को महसूस करते रहे हैं.

Sarvapriya Sangwan प्रभात जी, संतोष सिंह रवीश के फैन हो सकते हैं लेकिन उन्होंने केस से जुड़े तथ्यों का ज़िक्र किया है। अगर आपको शक़ है तो आप भी तो पता करवा सकते हैं कि ऐसा है या नहीं। अगर वो तथ्य गलत हैं तब आप भी बोलिये, मैं भी बोलूंगी। बाकी जब जांच चल ही रही है और उसको किसी तरह प्रभावित नहीं किया जा रहा तो ज़बरदस्ती अपने घरवालों के लिए मुसीबत कोई क्यों बढ़ाएगा। आप अपने वकील से परामर्श लेंगे, उसकी बात मानेंगे या यहाँ सोशल मीडिया पर शुरू हो जायेंगे? मतलब एक तरीके की बात करिये सब पहलू सोच कर। रवीश कुमार पर तो कोई आरोप है ही नहीं। ज़बरदस्ती आरोप क्यों? लिखेंगे तो कहा जायेगा कि वो बचाव कर रहे हैं, मीडिया का सहारा लेकर प्रभावित कर रहे हैं। नहीं लिख रहे हैं तो आप लोग उन्हें और परेशान कर रहे हैं। अपने ऊपर लेकर सोचिये पहले।

Prabhat Ranjan Sarvapriyaजी, संतोष सिंह की विश्वसनीयता के ऊपर मुझे संदेह है. बाकी थानवी जी यही बात अगर इन्डियन एक्सप्रेस के हवाले से लिखते तो मुझे कोई दिक्कत नहीं होती. आपसे फिर माफ़ी.मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं थी. मैं भी उनका बड़ा प्रशंसक हूँ. अब नहीं लिखूंगा

Rakesh Rk दिल्ली में काम कर रहे रवीश कुमार को बिहार में रह रहे और कार्यरत उनके भाई के मामले में घसीटना ऐसा ही है जैसा आजकल दहेज विरोधी क़ानून का सहारा लेकर कुछ महिलायें अपने पति, सास-ससुर, ननद, देवर सहित ससुराल पक्ष के उन सभी सम्बन्धियों को नाप देती हैं जो वहाँ से सैंकड़ों मील दूर रहते हैं| अगर रवीश अपने नाम और रुतबे का फायदा उठाकर अपने भाई के पक्ष में जांच को प्रभावित कर रहे हैं जैसे कभी दिल्ली में एक कश्मीरी मूल की दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ राही लड़की के रेप में आरोपी युवक के आईपीएस पिता कर रहे थे तब तो उन पर उंगली उठाना सही भी हो सकता है| रवीश के भाई के मामले में यदि कोई भी शक्तिशाली व्यक्ति उन्हें बचाते हुए शिकायतकर्ता युवती को डरा धमका रहा है तब तो रवीश पर इस केस के बारे में कुछ लिखने बोलने या कार्यक्रम करने का दबाव आता है, वैसे क्यों आएगा? देश में रोजाना हजारों शिकायतें होती होंगी पुलिस में क्या रवीश कुमार सबकी रिपोर्टिंग करते फिरेंगे? उनके विरोधियों को तफसील से और बारीकी से जांच करके उन्हें वहाँ पकड़ना चाहिए जहां वे अपने भाई के खिलाफ जांच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हों| बाकी उन्हें इस घटना से जो दुख पहुंचा होगा उस दुख को वे लिख कर सबसे साझा करें न करें यह उन पर एक सभी समाज को छोड़ देना चाहिए| अभी तक तो उनकी नैतिकता पर इस केस की छवि का कोई वाजिब दबाव है नहीं|

Om Thanvi संतोष सिंह के पास जो दस्तावेज़ हैं, उनकी विश्वसनीयता मायने रखती है। वे मैंने देखे हैं, तभी लिखा। वे प्रामाणिक हैं। उन्हें लगा देता, पर पीड़िता का नाम उजागर नहीं होना चाहिए।

Prabhat Ranjan Om Thanvi आज इन्डियन एक्सप्रेस में भी उसी तरह की खबर थी सर. आपको प्रमाणिक स्रोत का इस्तेमाल करना चाहिए था. ऐसे स्रोत का नहीं जिसको आप जानते ही न हों. किसी मामले में किसका नाम कब आ जाये यह तो जांच से पता चलता है. शीना बोरा काण्ड में बहुत बाद में पीटर मुखर्जी का नाम आया और बाद में वे ही मुख्य अभियुक्त निकले. ब्रजेश पांडे का नाम लेकर उस लड़की ने कोई गंभीर आरोप नहीं लगाये हैं, बलात्कार का तो नहीं ही लगाया है. लेकिन लड़की नाबालिग है, दलित है. यह मामला बहुत संवेदनशील है. आप से हम बहुत उम्मीद रखते हैं. ऐसे नहीं कि किसी कशिश न्यूज के पत्रकार को आप सबसे विश्वसनीय मान लें.

Bawari Sudipti हिंदी पब्लिक स्फीयर में एक ‘रविश सिंड्रोम’ है। जाने किस-किस की कुंठा को तुष्टि मिल रही है।

Prabhat Ranjan सच कह रही हैं मैं बहुत कुंठित हूँ।

Bawari Sudipti आपका नाम मैंने नहीं लिया, बेवजह मुझे अपनी कुंठा में न घसीटें

Prabhat Ranjan जी ठीक है माफ़ी आपसे।

Om Thanvi तो आप हमें पत्रकारिता भी सिखाने लगे! बंधु, एक्सप्रेस की ख़बर आज छपी है, कल आधी रात की पोस्ट के लिए एक्सप्रेस सपने में आता क्या? दूसरी बात, संतोष सिंह ने मूल एफआइआर और अन्य दस्तावेज़ दिए, उन्हें उद्धृत भी किया। मेरे लिए वह प्रामाणिक स्रोत था। आप आज एक्सप्रेस पढ़कर जागे हैं, मैं कल टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के बाद दस्तावेज़ पाने में जुटा था। पोस्ट सुबह लिख दी थी, दस्तावेज़ रात को मिले।

Prabhat Ranjan Om Thanvi सर जो मैं जानना चाहता था आपने वह बता दिया। संतोष रवीश जी का भक्त है। उसने इस मामले में अतिरिक्त मेहनत की।

Om Thanvi अच्छा किया। इससे संतोष सिंह के प्रति मन में आदर अनुभव हुआ।

Prabhat Ranjan सर दो बातें हैं एक तरफ़ आप यह कह रहे हैं कि पाण्डे जी निर्दोष हैं दूसरी तरफ़ यह भी कि रवीश का इस मामले से कोई लेना देना नहीं। पाण्डे जी के प्रति आपकी यह अतिरिक्त सहानुभूति क्यों है?

Purnanand Singh डूबते को तिनके का सहारा।। जिन कुंठाग्रस्त लोगों को रविश और उनकी पत्रकारिता से नफ़रत है,आज उनके भाई पर लगे आरोप से ही मोर बन कर नाचने लगे हैं।। मानसिक दिवालियेपन का इससे अच्छा उदाहरण और क्या मिलेगा।।

Sanjaya Kumar Singh अगर रवीश के मामले में संतोष सिंह की खबर पर यकीन नहीं किया जाए तो इंडियन एक्सप्रेस की खबर पर भी नहीं करना चाहिए। कुल मुद्दा यह है कि रवीश के भाई राजनीति में हैं, उनपर राजनीतिक मामला है उन्होंने राजनीतिक कार्रवाई की, इस्तीफा दे दिया। भाजपा में लोग इतना भी नहीं करते। जहां तक रवीश के इसपर लिखने-बोलने की बात है – यह एनडीटीवी की संपादकीय नीति का मामला होगा कि कर्मचारी अपने रिश्तेदार के बारे में खुद क्या करे, स्पष्टीकरण वही दे या क्यों दे आदि। रवीश को इसपर ब्लॉग लिखना चाहिए। उसके हिसाब से अभी देर नहीं हुई है। पांडे जी निर्दोष हैं यह कोई नहीं कह रहा। उनपर जो मामला है वह कितना बड़ा है यह तय होना है।

Himanshu Luthra इतनी बढ़िया बहस फेसबुक पे बहुत ही काम पड़ने को मिलती है।। salute to all of you.. अगर फेसबुक का इस तरह से उपयोग किया जाये तो सच में ये main stream media को कोसों पीछे छोड़ देगा।।।

Om Thanvi पांडेय जी निर्दोष हैं, यह मैंने कहा? ऐसी बेसिरपैर की बहस ही फ़ेसबुक को सड़कछाप बनाती है और मैं इससे जब-तब हट जाना चाहता हूँ। आप इतना साफ़ झूठ कैसे बोल सकते हैं? मैंने तो कल ही लिखा है। आज भी सब सामने रखा है। ज़रा वह पंक्ति निकाल कर बताइए जहाँ मैंने किसी को भी दोषी या निर्दोष ठहराया हो। यह मेरा काम नहीं है, अदालत का है। शब्द मुझ पर थोपिए मत।

Prabhat Ranjan Om Thanvi सर अब आपने सड़क छाप कहा है तो सादर बहस से हटता हूँ। लेकिन दो बात फिर – मैंने आपसे हमेशा दो सवाल पूछे आपने सुविधानुसार एक जवाब दिया। ऊपर मैंने एक विरोधाभास की तरफ़ इशारा किया था। आपने जवाब में एक सवाल किया। दूसरी बात सिर्फ़ ऊपर किए गए एक सवाल की याद दिलाता हूँ- मैंने पूछा था पाण्डे जी अगर 40 साल से राजनीति कर रहे हैं तो उनकी उम्र कितनी है? इस सवाल का जवाब भी आप टाल गए थे। आपको मेरे जैसे सड़क छाप के लिए इतना समय व्यर्थ करना पड़ा इसके लिए माफ़ी।

Om Thanvi मेरा दायित्व नहीं है कि मैं हर सवाल का जवाब दूँ। पर आपको क्या स्पष्ट नहीं करना चाहिए आपने कहाँ पढ़ लिया कि मैंने कहा है पाण्डे जी निर्दोष हैं? बिना सोचे बिना आधार कुछ भी बोल देना क्या ज़ाहिर करता है? एक संगीन आरोप (कि आरोपी को निर्दोष बता दिया) हवा में मढ़ देना बेवक़ूफ़ाना है। अब जवाब देते क्यों नहीं बनता? जवाब कोई हो नहीं सकता क्योंकि मैंने कभी किसी आरोपी को निर्दोष बताया नहीं। न मेरा काम है न बता सकता हूँ।

Mohammad Hasan Omji मुझे नहीं लगता कि आपका तारकिक विशलेसन रंजन जैसे धीढ़ पत्रकारों को कोई समझ दें पायेगा. कोयला कितना ही द्दोया, पोता या जलाया जाये यूँ ही रहेगा, धुन्वा देगा या राख बनेगा. निचले स्तर के पत्रकार लगते हैं. रवीश जी से इर्षा रखते हैं. आपका support अहम बात है. आपसे बहस में निखार आया.

Prabhat Ranjan Om Thanvi सबकी भाषा ठीक करने वाले सर आपने संतोष सिंह की भाषा को कैसे बर्दाश्त किया। वह हर दूसरा शब्द अशुद्ध लिखता है। आप ग़लत बयानी करेंगे और कोई पूछेगा तो कहेंगे हर सवाल का जवाब देना आपका दायित्व नहीं है। जिस ब्रजेश पांडे के बारे में आपने लिखा कि वे 40 साल से राजनीति में हैं आप पहले उनकी असलियत पता कीजिए वे कब राजनीति में आए और कैसे इतनी जल्दी प्रदेश कोंग्रेस के उपाध्यक्ष बन गए।

Om Thanvi जब तथ्य देखने हों तब भाषा की त्रुटियां बीनने वाला मूल मुद्दे से आँख चुराने वाला या उस पर परदा डालने का ख़्वाहिशमंद ही होगा। 40 मुद्दा नहीं है। फिर भी ग़लत है तो पहले आप इसे साबित करें। आपके हर आरोप में मूल मुद्दे को भटकाने की कोशिश है, मैं इसमें आपको सहयोग नहीं करूँगा। और हाँ, आपने अब तक नहीं बताया कि मैंने पांडेय को निर्दोष कब बताया? अगर इतना संगीन आरोप आपने मुझ पर हवा में लगा डाला तो मान लीजिए, 40-50 आड़ में मत दुबकिए।

Prabhat Ranjan Om Thanvi सर आपने निर्दोष सीधे सीधे नहीं कहा लेकिन पाण्डे जी के मामले में एफआईआर की प्रति मँगाकर इस मामले पर आनन फ़ानन में लिखने का क्या आशय था? आप समझ नहीं पाए संतोष की वह एफआईआर की प्रति बहुत लोगों के पास थी। मेरे पास भी थी। जो ज़ाहिर है जानकी पुल के लिए किसी और स्रोत से आई थी। अब मैं विराम देता हूँ। आपका आदर करता रहा हूँ इसलिए दुःख हुआ। सादर

Rakesh Rk ऐसा लगता है हिन्दी जानने समझने वाले भी फेसबुक जैसे माध्यम पर या तो मन के आक्रोश के कारण या जल्दबाजी के कारण सरल हिन्दी में लिखे का सही अर्थ नहीं निकाल पाते| ऊपर एक टिप्पणी में लिखा गया ” ऐसी बेसिरपैर की बहस ही फ़ेसबुक को सड़कछाप बनाती है ” उसे इस तर्क बहस में एक सज्जन ने ऐसे पढ़ा कि उन्हें सड़कछाप कहा गया है| 🙂

Nitin Thakur रवीश कुमार के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो रिश्तेदारों पर लगे इल्ज़ामों के दम पर ही राजनीति शुरू कर दी गई। जैसे केजरीवाल के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो विधायकों को ही औने-पौने मामलों में फंसाया जाने लगा था। ये एक रणनीति है और इसे एक पक्ष हमेशा दूसरे के खिलाफ अपनाता ही है। ब्रजेश दोषी हैं या नहीं ये तो मामला ही अलग है और वैसे भी रवीश के विरोधियों को इसमें दिलचस्पी है भी नहीं।

Pankaj Chaturvedi जो निहाल चंद पर मुंह में दही जमा कर बैठे है। वे ऐसे झूठ गढ़ने में संजीदा हैं

Nitin Thakur कच्छ में भी आला भाजपा नेताओं पर लड़कियां सप्लाई करने का मामला है। अब तक उस पर भी ऱाष्ट्रीय नेताओँ का बयान नहीं आया है।

Chandra Prakash Pandey यह तर्क अच्छा है,, जब तक निहालचंद पर मुकम्मल कार्यवाही न हो जाये,, तब तक सभी महिला उत्पीड़न व बलात्कार के केस मुल्तवी कर देने चाहिए

Pankaj Chaturvedi Chandra Prakash Pandey भगवन किसने कहा कि गायत्री प्रजापति को पकड़ कर जेल मत भेजो लेकिन सूप तो सूप, छलनी भी बोले जिसमे ९५६ छेद

Chandra Prakash Pandey Pankaj Chaturvedi प्रभु आपने स्वयं लिखा है कि यह झूठ गढ़ा गया है,, फिर आगे कोई जाँच की बात ही बेमानी है,,

Pankaj Chaturvedi Chandra Prakash Pandey गयात्री प्रजापति वाला मसला अलग अहि, हाँ जांच तो होनी चाहिए सच की और झूठ कि लेकिन उससे पहले रवीश कुमार को उसमें लपेटने वाले निहाल चंद पर चुप क्यों हैं

Chandra Prakash Pandey Pankaj Chaturvedi आपने लिख ही दिया कि रवीश का मामला झूठा है फिर कैसी जाँच और कौन सी जाँच ,, हाँ दलित महिला पर झूठा केस करने पर उसपर मुक़दमा दर्ज होना चाहिए,, और जाँच होनी चाहिए,,

Nitin Thakur ब्रजेश की जांच हो.. रवीश का ट्रायल क्यों हो पांडे जी?

DrVibhuti Bhushan Sharma ये तो होना ही था, इसमें कैसा आश्चर्य! रवीश कुमार ने सच्चाई कही, बुराई को आईना दिखाया तो भुगतना ही होगा।।  फासीवादी ताकतों से भला क्या उम्मीद की जा सकती है। ये लोग महान षड्यंत्रकारी हैं।  शुक्र है आरोप रवीश के भाई पर ही लगे, आश्चर्य तो इस बात पर होना चाहिए कि अभी तक रवीश क्यों बचे हुए हैं?
“भारत में अगर रहना है। ।
मोदी मोदी कहना है।।”
मोदी की आलोचना करने वालों के लिए पाकिस्तान अथवा जेल भेजा जाएगा।।
चयन आपको करना है।
मोदी सरकार में मोदी की आलोचना एक अपराध है और अपराध करोगे तो भुगतोगे।
आप सब लोगों ने बहुत सालों तक आलोचना करने का आनंद उठाया है ये अब नहीं चलेगा। अब अगर सच्ची आलोचना भी की तो धरे जाओगे। देश यूँ ही नहीं चलता।।
मोदी जी की और स्मृति ईरानी की शैक्षणिक योग्यता जग जाहिर नहीं की जाएगी। चाहे वो सफेद झूठ कहें। भाजपा के नेता चाहे गंभीर आरोपों में लिप्त हों सब न्यायालय द्वारा बरी कर दिए गए या कर दिए जाएगें। चाहे उन्हें तड़ीपार का तमगा मिला हो। इसे कहते हैं सत्ता चलाना।।
“सत्ता की ताकत तुम क्या जानो रवीश बाबू।।”
लेकिन रवीश भाई चिंता मत कीजिए, हम इस भयावह दौर मे भी आपके साथ हैं।
“रात भर का है मेहमाँ अंधेरा।
किसके रोके रूका है सवेरा।।”

Dhirendrapratap Dhir आज तक का रिकॉर्ड गवाह है कि इस राष्ट्रवादी गिरोह ने जो भी कीचड दूसरों पर उछाला है, वह इसी के मुंह पर आ कर गिरा है. इनसे हम इतर आचरण की उम्मीद कर भी नहीं सकते इस लिए रवीशजी से यही कहेंगे कि मन ख़राब न करें और अपने नागरिक-अधिकारों का प्रयोग करते हुए प्रतिकार करें और अपना कार्य पूर्ववत करें लोग अब पहले की तरह जड़ नहीं हैं और वे जवाब देंगे.

Kishor Joshi बिल्कुल सर, इस मामले में रवीश को निशाना बनाने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन माफ कीजिएगा सर, यहां आपका डबल स्टैंर्डड साफ नजर आता है। आपकी और थान्वी सर (ट्वीट भी) की कई ऐसी पोस्ट हैं, जहां आप कोई भी छोटी से छोटी हो या बड़ी से बड़ी घटना हो तो उसके लिए इनडायरेक्ट वे में सीधे-सीधे मोदी या संघ को जिम्मेदार भी ठहरा देते हैं, भले ही वह देश के किसी भी हिस्से में घटित हुई हो, तब आप ये नहीं कहते कि पीएम या अन्य को इस मामले में निशाना बनाने का क्या औचित्य है?

Yogesh Nagar इस भक्ति काल में ‘सबसे बड़े कुमार’ ने भी ऐसे भक्त जुटा लिये हैं जो सेक्स रैकेट के भी जस्टिफिकेशन खोज ला रहे हैं। यह पत्रकारिता का चरमोत्कर्ष है। (भारी शर्मिंदगी)

Pankaj Pathak आपको भी पता चल गया गुजरात वाला मामला?

Om Thanvi आप सेक्स रैकेट लिखने से पहले कथित या आरोप शब्द तक नहीं लिखते, यह है आप कि न्याय-बुद्धि। और रिश्तेदार पर आरोप पर पत्रकार को निशाना बनाना चाहते हैं मगर ख़ुद एक बलात्कार के आरोपी निहालचंद को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शोभित करते हैं? शर्म तुमको मगर नहीं आती…

विक्की शरण सर ये तारिक फत्तेह के भक्त हैं।

Yogesh Nagar हाँ सही बात लेकिन क्या ये खबर उक्त ब्लेक स्क्रीन वाले कुमार साहब उसी निष्पक्षता के साथ दिखाएंगे? जिस निष्पक्षता का वे दम्भ भरते है यहाँ सवाल ये है justification को लेकर… और आप मेरे कॉमेंट को तुरंत बीजेपी के साथ जोड़ रहे है बगैर किसी आधार के यह है आपकी न्यायिक बुद्धि,यह आपकी कैसी निष्पक्षता है जो एक पत्रकार को लेकर की गयी मेरी टिप्पणी पर निहालचंद का udharan देने लगे?

Pankaj Pathak Yogesh Nagar जी, कितने स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मीडिया में जगह मिलते देखा है आपने? एक राजनीतिक हितों से आरोप लगाने वाले मामले को बेवज़ह तूल सिर्फ इसलिये मिल रहा है क्योंकि Ravish Kumar ने निष्पक्ष पत्रिकारिता करते हुए सत्ता पक्ष को अक्सर कटघरे में ही खड़ा किया है, चाहे वो 2014 से पहले का काल हो या बाद का। है किसी और पत्रकार में इतना दम?

Om Thanvi Yogesh Nagar क्योंकि आप उसी जमात के साथ जा खड़े हुए हैं।

Yogesh Nagar बिलकुल देखा है,दादरी मामला राष्ट्रीय मामला था? लेकिन बंगाल मामला लोकल मामला था कुमार जी की नज़र में ज़ी न्यूज़ के पत्रकार पर fir हुई,जागरण के पत्रकार की up में गिरफ़्तारी हुई तब मिडिया का गला नही घोटा गया यह है उनकी निष्पक्षत! थानवी जी मेरे आपके इतर राय रखते ही मैं कैसे उसी जमात में शामिल हुआ? आप तब कहते जब मैं बीजेपी इत्यादि का नाम लेता मैंने भक्तिकाल शब्द का प्रयोग किया जो निष्पक्षता की ओर इशारा करता है

Santosh Singh योगेश जी आप सही कह रहे है हमारी तो ये आदत में सुमार है राजा हरिशचन्द्र कि कहानी याद है ना राम सीता और धोबी याद है ना

Rajendra Kulashri पूरी पोस्ट में किसी न किसी बहाने से बृजेशकुमार साहब को बेगुनाह साबित करने की को़शिस है।

Om Thanvi रवीश के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया में चलाए गए कुत्सित अभियान की बात है; आरोप की बात जाँच एजेंसियाँ जानें या अदालत।

Rakesh Rk रवीश कुमार के परम्परागत विरोधी जैसे चाहे ऑनलाइन मुहीम चलायें उनके खिलाफ परन्तु वास्तविकता में तो उनके भाई का मामला बिहार की लोकल पुलिस और कोर्ट देख रहे होंगे, और वहाँ जद यू और राजद का शासन है| उन्हें तो रवीश कुमार से व्यक्तिगत रंजिश नहीं होनी चाहिए| वे तो न्याय की सही तसवीर सामने ला ही सकते हैं|

Shubham Upadhyay फ़िल्म द राइज़ ऑफ़ ईविल में अंत में हिटलर के पागलपन के खिलाफ लिखने वाले पत्रकार को गोली मार दी जाती है । ये दौर भयावह है । नितीश बाबू की शराबबंदी टाइप हो गया । करे कोई और भुगते कोई और

Anil Chaurasia जो जो लोग साहेब और उनकी पार्टी की आलोचना करेंगे वो वो इन लोगों की गैंग के शिकार होंगे इसमें अचरज की कोई बात नहीं , रवीश भी इनके लिए अनोखी बात नहीं.  इनकी इस प्रवृत्ति का परदा फाश होना ज़रूरी है.

Vinod Kumar Singh सर आप से पूर्ण सहमति। आशा है कि कम से कम बुद्धिजीवी वर्ग सिर्फ आरोपों पर नहीं बल्कि पूर्ण जाँच के बाद दोषी सिद्ध होने पर ही कोई अभियान चलायेगा । रवीश कुमार पर कोई आरोप भी नहीं लगा है। अगर उनके भाई सेक्स रैकेट चलाते हैं तो भी इस बहाने रवीश कुमार का चरित्र हनन सर्वथा अनुचित है। हाँ आरएसएस – भाजपा जैसे संगठन और काग्रेस के बीच इतना विभेद सर्वथा वाँक्षनीय है बौद्धिकता की मर्यादा की रक्षा के लिये।

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