Yashwant Singh : दल्ले-धंधेबाज चैनलों की तो छोड़िए, ndtv भी नहीं चलाएगा ये जनहित की बहुत बड़ी और ज़रूरी खबर, क्योंकि प्रणय रॉय-रवीश कुमार को भी रजनीगंधा पसंद है, भरपेट विज्ञापन जो देता है! कोई नहीं, भड़ास है न! खबर पढ़ने के लिए इस भड़ासी लिंक पर क्लिक करें- Saade Paan Masale mei bhi jahar …
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रवीश कुमार ने पूछा- क्या प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनाव आयोग में कोई शाखा खुली है?
आप सभी 18 अप्रैल के चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस का वीडियो देखिए। यह वीडियो आयोग के पतन का दस्तावेज़ (document of decline) है। जिस वक्त आयोग का सूरज डूबता नज़र आ रहा था उसी वक्त एक आयुक्त के हाथ की उंगलियों में पन्ना और माणिक की अंगुठियां चमक रही थीं। दफ्तर में बैठा अचानक …
भाजपा के देश भर में बने 600 से ज्यादा भव्य आफिसों पर मीडिया मौन क्यों है : रवीश कुमार
भारतीय जनता पार्टी की खासियत है कि वह कांग्रेस को तो भ्रष्ट बताती है पर अपनी ईमानदारी नहीं बताती। ऐसा कोई दावा नहीं करती। 2014 और इससे पहले कुछ किया भी हो, अब करने लायक भी नहीं है। दूसरी ओर, नोटबंदी के समय खबर छपी थी कि अलग-अलग शहरों में पार्टी ने जमीन खरीदी है …
सबसे अच्छी बात यह है कि श्री रवीश कुमार जी ने अख़बार पढ़ना शुरू कर दिया है : नीलू रंजन
सबसे अच्छी बात यह है कि श्री रवीश कुमार जी ने अख़बार पढ़ना शुरू कर दिया है। चाहे जो भी मजबूरी हो, ये अच्छी बात है। वरना लगभग चार या पाँच साल पहले प्रेस क्लब में मिल गए थे। शुरूआती नमस्कार के बाद उन्होंने पूछा था कि कहाँ काम रहे हो आजकल।
जयप्रकाश पांडेय की रिपोर्ट पढ़कर लगता है जैसे वे च्यवनप्राश बेचने वाले किसी आश्रम के प्रभारी हैं!
Ravish Kumar : जागरण ने भी कह दिया कि मोदी योगी ध्रुवीकरण को हवा दे रहे हैं… दैनिक जागरण, महासमर 2019, पेज नंबर 6 पर चुनाव की चार बड़ी-बड़ी रिपोर्ट हैं। पहली रिपोर्ट जयप्रकाश पांडेय की है। इस रिपोर्ट के आधे के बराबर हिस्से में पश्चिम उत्तर प्रदेश में गंग नहर बनने का संक्षिप्त इतिहास …
रवीश कुमार ने पूछा- आखिर कौन है जो पुण्य प्रसून के पीछे इस हद तक पड़ा है!
Ravish Kumar : पुण्य प्रसून वाजपेयी को फिर से निकाल दिया गया है। आख़िर कौन है जो पुण्य के पीछे इस हद तक पड़ा है। एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ कौन है जो इतनी ताकत से लगा हुआ है। आए दिन हम सुनते रहते हैं कि फलां संपादक को दरबार में बुलाकर धमका दिया गया। फलां …
गुजरात में टीवी9 के पत्रकार चिराग पटेल को जला कर मार डाला गया!
अहमदाबाद के पत्रकार चिराग पटेल की मौत की ख़बर आती जा रही है। चिराग का शरीर जला हुआ मिला है। पुलिस के अनुसार चिराग पटेल की मौत शुक्रवार को ही हो गई थी। मगर उसका जला हुआ शरीर शनिवार को मिला है। चिराग पटेल TV9 न्यूज़ चैनल में काम करता था।
लोकसभा चुनाव तक न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दीजिए : रवीश कुमार
क्या आप इन ढाई महीने के लिए चैनल देखना बंद नहीं कर सकते? कर दीजिए…. अगर आप अपनी नागरिकता को बचाना चाहते हैं तो न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दें। अगर आप लोकतंत्र में एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में भूमिका निभाना चाहते हैं तो न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दें। अगर आप …
गालियां और धमकियां देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाला अफसर सस्पेंड
Ravish Kumar : गालियां देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाले अफसर आशीष जोशी सस्पेंड… गालियां और धमकियां देने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की बात करने वालों के लिए यह सूचना कैसी रहेगी। पिछले दिनों ख़बर आई थी कि देहरादून में कंट्रोलर ऑफ कम्युनिकेश अकाउंट आशीष जोशी ने ट्रोल करने वालों के खिलाफ टेलिकाम …
वायु सेना और सरकार के पराक्रम के बीच पत्रकारिता का पतन झांक रहा है : रवीश कुमार
Ravish Kumar : वायु सेना, सरकार के पराक्रम के बीच पत्रकारिता का पतन झाँक रहा है। आज का दिन उस शब्द का है, जो भारतीय वायु सेना के पाकिस्तान में घुसकर बम गिराने के बाद अस्तित्व में आया है। भारत के विदेश सचिव ने इसे अ-सैन्य कार्रवाई कहा है। अंग्रेज़ी में non-military कहा गया है। …
बालिका गृह कांड कवर करने वाले कशिश न्यूज चैनल के संपादक को दी जा रही धमकी!
मुज़्फ्फरपुर बालिका गृह कांड में केस को भटकाने का भयंकर खेल चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व अंतरिम निदेशक नागेश्वर राव को एक दिन की सज़ा भी सुनाई, केस को दिल्ली ट्रांसफ़र किया फिर भी सत्ता तंत्र अपना खेल खेले जा रहा है। उसे सुप्रीम कोर्ट का भी भय नहीं है। चीफ़ जस्टिस रंजन …
एक IPS का सुसाइड नोट : ‘अपनी ही आईपीएस बिरादरी में कोई स्वाभिमानी अफसर नहीं बचा है!’
Ravish Kumar : मोदी को ममता, ममता को मोदी से बैलेंस के लिए नहीं है आईपीएस की आत्महत्या का मामला… पश्चिम बंगाल में एक सेवानिवृत्त आई पी एस अफसर ने आत्महत्या की है। अपने सुसाइड नोट में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ज़िम्मेदार ठहराया है। 1986 बैच के गौरव दत्त सस्पेंड किए गए थे और 2010 …
जो बैंक मैनेजर शेयर नहीं खरीद रहे उनका ट्रांसफर कर दिया जा रहा है!
बैंकों में ग़ुलामी आई है, शेयर खरीदें मैनेजर क्लर्क, पैसा नहीं तो लोन लें… कई बैंक के अधिकारी-क्लर्क मुझे लिख रहे हैं कि बैंक की तरफ से उन्हें शेयर लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है। कोई अपनी मर्ज़ी से शेयर नहीं ले रहा है लेकिन हर किसी पर उससे बड़े अफसर के ज़रिए …
मैं अपनी माँ और बहन को दी गई ये गालियाँ भारत माता के राष्ट्र को समर्पित करता हूँ : रवीश कुमार
Ravish Kumar : माँ-बहन की गालियों पर मां-बहन ही चुप हैं, क्यों चुप हैं? देशभक्ति के नाम पर गालियों पर छूट मिल रही है। दो चार लोगों को ग़द्दार ठहरा कर हज़ारों फोन नंबरों से गालियां दी जा रही हैं। मैं गालियों वाले कई मेसेज के। स्क्रीन शॉट यहाँ पेश कर रहा हूँ। भारत में …
रवीश कुमार ने ‘भक्त’ अखबार दैनिक जागरण को दिखाया आइना
यह जागरण की खबर है या रायटर की, दैनिक जागरण की इस ख़बर पर पाठकों के बीच जन-जागरण हो 2014 में रुपये की क्या धमक थी। डॉलर को धमकियाँ मिल रही थीं। साधु संत तक ट्विट करने लगे थे कि मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे तो एक डॉलर चालीस रुपये का हो जाएगा। एंटायर पोलिटिकल साइंस वाले …
रवीश कुमार के फोन पर ट्रोल अटैक!
Ravish Kumar : कश्मीरी छात्रों की मदद के लिए आगे आया सीआरपीएफ, मेरे फोन पर ट्रोल अटैक… आईटी सेल का काम शुरू हो गया है। मेरा, प्रशांत भूषण, जावेद अख़्तर और नसीरूद्दीन शाह के नंबर शेयर किए गए हैं। 16 फरवरी की रात से लगातार फोन आ रहे हैं। लगातार घंटी बजबजा रही है। वायरल …
‘द हिंदू’ ने मोदी सरकार को नंगा करना जारी रखा, पढ़िए आज का खुलासा
किसके लिए रफाल डील में डीलर और कमीशनखोर पर मेहरबानी की गई… आज के हिन्दू में रफाल डील की फाइल से दो और पन्ने बाहर आ गए हैं। इस बार पूरा पन्ना छपा है और जो बातें हैं वो काफी भयंकर हैं। द हिन्दू की रिपोर्ट को हिन्दी में भी समझा जा सकता है। सरकार …
रवीश ने ‘हिंदुस्तान’ की आज कर दी तगड़ी समीक्षा, शशिजी आप भी पढ़ लें!
Ravish Kumar : रफाल पर ख़बर तो पढ़ी लेकिन क्या हिन्दुस्तान के पाठकों को सूचनाएँ मिलीं… हिन्दुस्तान अख़बार ने रफाल मामले को लेकर पहली ख़बर बनाई है। ख़बर को जगह भी काफी दी है। क्या आप इस पहली ख़बर को पढ़ते हुए विवाद के बारे में ठीक-ठीक जान पाते हैं? मैं चाहता हूं कि आप …
अंबानी का नाम सुनते ही रिटेल ई-कामर्स जगत में सबको सांप क्यों सूंघ गया है, बता रहे हैं रवीश कुमार
Ravish Kumar : अंबानी का नाम सुनते ही रिटेल ई-कामर्स जगत में सबको सांप सूंघ गया है… भारत के सालाना 42 लाख करोड़ से अधिक के खुदरा बाज़ार में घमासान का नया दौर आया है। इस व्यापार से जुड़े सात करोड़ व्यापारी अस्थिर हो गए हैं। मुकेश अंबानी ने ई-कामर्स प्लेटफार्म बनाने के एलान ने …
कोबरापोस्ट 29 जनवरी को 33000 करोड़ के घोटाले का ख़ुलासा करेगा
Ravish Kumar : 29 जनवरी को कोबरापोस्ट 33000 करोड़ के घोटाले का ख़ुलासा करने वाला है। कल से ट्वीटर पर ये मेसेज देख रहा हूँ। तो आप लोग खुद देखें कि ये क्या ख़ुलासा है। ख़ुलासा तो हो जाएगा लेकिन जिसके पास ये 33000 करोड़ का माल पहुँचा होगा वो कितना मौज में होगा।
सुभाष चंद्रा के कमजोर वक्त में उनके लिए तल्ख बात न करूंगा : रवीश कुमार
ज़ी न्यूज़ के संस्थापक और मालिक सुभाष चंद्रा ने क्यों सार्वजनिक रूप से माफी मांगी है.. “सबसे पहले तो मैं अपने वित्तीय समर्थकों से दिल की गहराई से माफी मांगता हूं। मैं हमेशा अपनी ग़लतियों को स्वीकार करने में अव्वल रहता हूं। अपने फैसलों की जवाबदेही लेता रहा हूं। आज भी वही करूंगा। 52 साल …
रवीश कुमार ने पीएम मोदी को झूठा कहा!
Ravish Kumar : प्रधानमंत्री को झूठ नहीं बोलना चाहिए, इतना भी नहीं कि हँसी भी न आए…
ईवीएम हैक शुजा प्रेस कांफ्रेंस पर क्या कहते हैं रवीश कुमार, पढ़िए
Ravish Kumar : ईवीएम की बात पर बेशक हंसिए, क्या उन हत्याओं पर भी हंसेंगे जिनका ज़िक्र शुजा ने किया है. लंदन के इस प्रेस कांफ्रेंस की पत्रकारों के बीच कई दिनों से चर्चा चल रही थी। इंडियन जर्नलिस्ट एसोसिएशन( यूरोप) और फोरेन प्रेस एसोसिएशन ने इस आयोजन के लिए आमंत्रण भेजा था। यह सवाल …
ड्रग माफिया के खिलाफ लिखने वाले पत्रकार अजीत पर कांग्रेस संरक्षित अपराधियों का हमला
Ravish Kumar : पंजाब में पत्रकार अजीत सिंह बुलंद पर हमला… पंजाब केसरी के पत्रकार अजीत सिंह बुलंद पर जानलेवा हमला हुआ है। शुक्रवार को जालंधर में बदमाशों ने कार से खींच कर मारा और घायल कर दिया। एक बदमाश ने मारने के लिए देसी कट्टा भी निकाला मगर लोगों की भीड़ देख कर भाग …
कैरवां मैग्जीन का खुलासा- डोभाल के बेटे की कंपनी टैक्स हेवन में!
Ravish Kumar : टैक्स हेवन के ख़िलाफ़ डोभाल मगर उनके बेटे की कंपनी टैक्स हेवन में.. कैरवां पत्रिका का खुलासा… डी-कंपनी का अभी तक दाऊद का गैंग ही होता था। भारत में एक और डी कंपनी आ गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और उनके बेटे विवेक और शौर्य के कारनामों को उजागर करने …
हिंदी अख़बार कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे हैं : रवीश कुमार
Ravish Kumar : आलोक वर्मा के घर किसकी सिफ़ारिश करने गए थे केंद्रीय सतर्कता आयुक्त चौधरी? हिन्दी अख़बारों के संपादकों ने अपने पाठकों की हत्या का प्लान बना लिया है। अख़बार कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे हैं। हिन्दी के अख़बार अब ज़्यादातर प्रोपेगैंडा का ही सामान ढोते नज़र आते हैं। पिछले साढ़े चार …
क्रिएटिव हेडिंग के मामले में टेलीग्राफ अव्वल, देखें सुप्रीम कोर्ट के टाइपिंग एरर वाले मुद्दे पर मुख्य शीर्षक
Ravish Kumar : मैं टाइप करता गया, एरर होता गया… CAG GAC ACG AGC CGA PAC CAP PCA APC ACP…. IS, WILL, HAS BEEN…. BEEN WILL, IS, HAS, मैं क्या जानूँ रे, जानू तो बस मैं इतना जानू, मैं कुछ ना जानू रे। हुज़ूर की शान में अंग्रेज़ी जो हो ग़लत… ये कौन सी बात …
1984 के नरसंहार को समझना है तो जरनैल सिंह की किताब ‘कब कटेगी चौरासी’ पढ़ें
Ravish Kumar : कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को 84 के नरसंहार के मामले में उम्र क़ैद हुई है। 1984 के नरसंहार को समझना है तो जरनैल सिंह की किताब ‘कब कटेगी चौरासी’ को पढ़ सकते हैं। बल्कि पढ़नी ही चाहिए। यह किताब हिन्दी में है। जब आई थी तब समीक्षा की थी। 84 पर इस …
टेलीग्राफ ने तो कमाल कर दिया, लीड हेडिंग में केवल क्वेश्चन मार्क! देखें
Ravish Kumar एक अख़बार यह भी है। कोर्ट इतनी बड़ी ग़लती कैसे कर सकता है? या सरकार से ये ग़लती हुई? कौन सी CAG की रिपोर्ट की बात लिखी है जो पब्लिक अकाउंट कमेटी में जमा हुई? पब्लिक अकाउंट कमेटी को तो क़ीमतों पर सीएजी की किसी रिपोर्ट की जानकारी ही नहीं।
रवीश ने पूछा- पुलिस अफ़सर जब अपने IPS साथी के प्रति ईमानदार न हो सके तो इंस्पेक्टर के हत्यारों को पकड़ने में ईमानदारी बरतेंगे?
Ravish Kumar इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को नफ़रत से प्रोग्राम्ड रोबो-रिपब्लिक ने मारा है… कल यूपी पुलिस के जवानों और अफसरों के घर क्या खाना बना होगा? मुझे नहीं मालूम। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की तस्वीर उन्हें झकझोरती ही होगी। नौकरी की निर्ममता ने भले ही पुलिस बल को ज़िंदगी और मौत से उदासीन बना …
मोहम्मद अज़ीज़ के गुजरने पर रवीश ने जैसे उन्हें याद किया, वैसा शायद ही कोई लिख पाए!
Ravish Kumar गानों की दुनिया का अज़ीम सितारा था,मोहम्मद अज़ीज़ प्यारा था. काम की व्यस्तता के बीच हमारे अज़ीज़ मोहम्मद अज़ीज़ दुनिया को विदा कर गए। मोहम्मद रफ़ी के क़रीब इनकी आवाज़ पहचानी गई लेकिन अज़ीज़ का अपना मक़ाम रहा। अज़ीज़ अपने वर्तमान में रफ़ी साहब के अतीत को जीते रहे या जीते हुए देखे …
अमित शाह का पीछा करती फ़र्ज़ी एनकाउंटर की ख़बरें और ख़बरों से भागता मीडिया
अमित शाह का पीछा करती फ़र्ज़ी एनकाउंटर की ख़बरें और ख़बरों से भागता मीडिया… नहीं छपने से ख़बर मर नहीं जाती है। छप जाने से अमर भी नहीं हो जाती है। मरी हुई ख़बरें ज़िंदा हो जाती हैं। क्योंकि ख़बरें मैनेज होती हैं, मरती नहीं हैं। बस ऐसी ख़बरों को ज़िंदा होने के इंतज़ार में …
भास्कर ग्रुप ने रवीश कुमार से प्रायोजित सवाल पूछे!
Girish Malviya कल देश के तथाकथित सबसे बड़े अखबार दैनिक भास्कर में पत्रकार रवीश कुमार से जो प्रायोजित 10 से 12 सवाल पूछे गए, उनमें से चार सवाल देखिए…
रवीश कुमार ने पूछा- सीबीआई की ‘पार्वती’ और ‘पारो’ में से किसे चुनेंगे देवदास हुज़ूर!
आपने फ़िल्म देवदास में पारो और पार्वती के किरदार को देखा होगा। नहीं देख सके तो कोई बात नहीं। सीबीआई में देख लीजिए। सरकार के हाथ की कठपुतली दो अफ़सर उसके इशारे पर नाचते नाचते आपस में टकराने लगे हैं। इन दोनों को इशारे पर नचाने वाले देवदास सत्ता के मद में चूर हैं। नौकरशाही …
रवीश कुमार ने पूछा- ‘प्रधानमंत्रीजी जवाब दीजिए, एमजे अकबर अभी तक क्यों आपके साथ है?’
Ravish Kumar मेरा अकबर महान ! कारनामा ऐसा कि कायनात शर्मा जाए… सवाल अकबर के इस्तीफ़े का नहीं है। इस्तीफ़ा लेकर कोई महान नहीं बन जाएगा। वो तो होगा ही। मगर जवाब देना पडेगा कि इस अकबर में क्या ख़ूबी थी कि राज्य सभा का सदस्य बनाया, बीजेपी का सदस्य बनाया और मंत्री बनाया। इसके …
‘मिरर नाऊ’ की पत्रकार सांतिया ने लिखा- ‘मुंबई का वो ब्यूरो चीफ लगातार मेरे स्तन घूरे जा रहा था!’
Ravish Kumar : सांतिया ‘मिरर नाऊ’ की पत्रकार हैं। कई चैनलों में काम कर चुकी हैं। उनका पोस्ट पढ़िए और ख़ुद में झांकिए। ख़ासकर वो लोग जो नौकरी देने के ओहदे में रहे हैं। बैंकों पर सीरीज़ के दौरान वहाँ काम करने वाली औरतों ने इस तरह के और इससे भी भयानक अनुभव बताए थे। …
अखिलेश यादव के साथ सेल्फी लेकर रवीश कुमार भी आ गए ‘सेल्फीबाज चिरकुट पत्रकार’ की कैटगरी में!
Vivek Kumar : रवीश कुमार बहुत बड़े वाले हिप्पोक्रेट हैं. जब सुधीर चौधरी और अन्य पत्रकारों ने पीएम नरेंद्र मोदी संग सेल्फी लेकर फेसबुक पर पोस्ट किया तो उन्हें कोसा गया. रवीश ने भी ऐसे सेल्फीबाज पत्रकारों को बुरा-भला कहा. लेकिन उन्होंने अखिलेश यादव के साथ सेल्फी लेकर खुद को ‘सेल्फीबाज चिरकुट पत्रकार’ की कैटगरी …
रवीश कुमार ने जेटली का बचाव करने वाले पत्रकारों को ‘चंपू’ कह दिया!
Ravish Kumar मैं नहीं चाहता कि जेटली इस्तीफ़ा दें। मैं इसलिए ये चाहता हूं कि मुझे चांस ही नहीं मिला उनका बचाव करने के लिए। बहुत से पत्रकारों को जब जेटली का बचाव करते देखा तो उस दिन पहली बार लगा कि लाइफ में पीछे रह गया। मगर फिर लगा कि जब जेटली को भी …
रवीश कुमार को बदनाम करने वाले BJP आईटी सेल के हेड अमित मालवीय की ‘बदमाशी’ पकड़ी गई
Sanjaya Kumar Singh : भाजपा आईटी सेल के प्रमुख की कारगुजारी देखिए। पकौड़े बेचने की तरह करियर यहां भी है। ना गटर गैस की जरूरत और ना गटर के पास खड़े रहने की जरूरत। एयर कंडीशन की नौकरी है, अगर आपको पसंद आए। किसी को बदनाम कैसे किया जाता है, इनसे सीखिए। झूठ के उस्ताद …
क्या आपको आपके हिन्दी के अख़बार ने ये सब बताया?
Ravish Kumar क्या आपको आपके हिन्दी के अख़बार ने ये सब बताया? नोटबंदी ने लघु व मध्यम उद्योगों की कमर तोड़ दी है। हिन्दू मुस्लिम ज़हर के असर में और सरकार के डर से आवाज़ नहीं उठ रही है लेकिन आंकड़े रोज़ पर्दा उठा रहे हैं कि भीतर मरीज़ की हालत ख़राब है। भारतीय रिज़र्व …
रवीश कुमार ने पूछा- क्या चौकीदार जी ने अंबानी के लिए चौकीदारी की है?
Ravish Kumar क्या चौकीदार जी ने अंबानी के लिए चौकीदारी की है? उपरोक्त संदर्भ में चौकीदार कौन है, नाम लेने की ज़रूरत नहीं है। वर्ना छापे पड़ जाएंगे और ट्विटर पर ट्रोल कहने लगेंगे कि कानून में विश्वास है तो केस जीत कर दिखाइये। जैसे भारत में फर्ज़ी केस ही नहीं बनता है और इंसाफ़ …
अभूतपूर्व : अमेरिका में एक ही दिन 300 अखबारों ने प्रेस की स्वतंत्रता पर संपादकीय लिखा
Ravish Kumar : प्रेस की आज़ादी पर 300 अमरीकी अख़बारों के संपादकीय… अमरीकी प्रेस के इतिहास में एक शानदार घटना हुई है। 146 पुराने अख़बार दी बोस्टन ग्लोब के नेतृत्व में 300 से अखबारों ने एक ही दिन अपने अखबार में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर संपादकीय छापे हैं। आप बोस्टल ग्लोब की साइट पर …
बाउंसर्स के साए में चलने लगे रवीश कुमार! देखें वीडियो
क्या रवीश कुमार ने अपनी जान पर मंडराते खतरे को देखते हुए बाउंसर रख लिया है? पिछले दिनों उऩ्हें बाउंसर्स के साये में चलते देखा गया. रविन्द्र भवन में आयोजित एक कार्यक्रम से रवीश जब निकले तो कुछ लोगों ने उनसे बातचीत की कोशिश की. पर रविश के बाउंसर ने रोक दिया.
रवीश कुमार के एफबी पेज की रेटिंग जीरो करने में जुटे हैं ‘मोदी भक्त’!
ख़र्चा मोदी जी के समर्थकों का और चर्चा रवीश कुमार का! ध्यातव्य और ज्ञातव्य हो कि….. आई टी सेल मेरे फ़ेसबुक पेज Ravish Kumar की रेटिंग ज़ीरो करने में लगा है। उन्हें लगता है रेटिंग ज़ीरो होने से फ़ेसबुक मुझे फ्री 1.5 जीबी का दैनिक भत्ता बंद कर देगा। इसलिए मेरी रेटिंग ज़ीरों करने में …
रवीश की ‘नौकरी सीरीज’ का इंपैक्ट- हजारों युवाओं को इनकम टैक्स इंस्पेक्टर का नियुक्ति पत्र मिला
Ravish Kumar : एनडीटीवी के प्राइम टाइम के लिए जब उस नौजवान ने वीडियो मेसेज भेजा था, तब उसमें उदासी थी। नियुक्ति पत्र न मिलने की कम होती आस थी। जैसे ही वित्त मंत्रालय की शीर्ष संस्था सीबीडीटी ने 505 इनकम टैक्स इंस्पेक्टर के नाम वेबसाइट पर डाले, उसका चेहरा खिल उठा। चहक उठा। ये …
पेट्रोल की कीमत रिकार्ड स्तर पर होने के बावजूद गोदी मीडिया में संपूर्ण खामोशी : रवीश कुमार
Ravish Kumar : 2013-14 के साल जितना अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल की कीमत अभी उछली भी नहीं है लेकिन उस दौरान बीजेपी ने देश को पोस्टरों से भर दिया था बहुत हुई जनता पर डीज़ल पेट्रोल की मार, अबकी बार बीजेपी सरकार। तब जनता भी आक्रोशित थी। कारण वही थे जो आज केंद्रीय मंत्री …
ये एंकर अब जन विरोधी गुंडे हैं : रवीश कुमार
…पुण्य प्रसून वाजपेयी ने हाल ही में कहा है कि ख़बरों को चलाने और गिराने के लिए पीएमओ से फोन आते हैं। कोबरा पोस्ट के स्टिंग में आपने देखा ही कैसे पैसे लेकर हिन्दू मुस्लिम किए जाते हैं। इस सिस्टम के मुकाबले आप दर्शकों ने जाने अनजाने में ही एक न्यूज़ रूम विकसित कर दिया है जिसे मैं पब्लिक न्यूज़ रूम कहता हूं। बस इसे ट्रोल और ट्रेंड की मानसिकता से बचाए रखिएगा ताकि खबरों को जगह मिले न कि एक ही ख़बर भीड़ बन जाए…
मेरे आदर्श संपादक प्रभाष जोशी का मानना था- सत्ता और व्यवस्था विरोध हर पत्रकार का एजेंडा होना चाहिए
Devpriya Awasthi : अपने देश और समाज को समझना है तो एनडीटीवी पर रवीश कुमार और फेसबुक पर हिमांशु कुमार को फालो कीजिए. आपको रवीश के बारे में अपनी राय बनाने और रखने का पूरा अधिकार है लेकिन, सत्ता और व्यवस्था प्रतिष्ठान के विरोध में उनका नजरिया मुझे और मुझ सरीखे बहुत से लोगों को पसंद आता है. मेरे आदर्श संपादक प्रभाष जोशी का मानना था कि सत्ता और व्यवस्था विरोध हर पत्रकार का एजेंडा होना चाहिए.
पीएम मोदी का पीएनबी घोटाले के एक आरोपी मेहुल भाई से कनेक्शन! देखें वीडियो
Ravish Kumar : प्रधानमंत्री के हमारे मेहुल भाई और रविशंकर प्रसाद की जेंटलमैन चौकसी… ये शब्द प्रधानमंत्री के हैं- ”कितना ही बड़ा शो रूम होगा, हमारे मेहुल भाई यहां बैठे हैं लेकिन वो जाएगा अपने सुनार के पास ज़रा चेक करो।” ये वाक्य यूट्यूब पर हैं। यूट्यूब पर ”PM Narendra Modi at the launch of Indian Gold Coin and Gold Related Schemes” नाम से टाइप कीजिए, प्रधानमंत्री का भाषण निकलेगा। इस वीडियो के 27वें मिनट से सुनना शुरू कीजिए। प्रधानमंत्री हमारे मेहुल भाई का ज़िक्र कर रहे हैं। ये वही मेहुल भाई हैं जिन पर नीरव बैंक के साथ पंजाब नेशनल बैंक को 11 हज़ार करोड़ का चूना लगाने का आरोप लगा है। उनके पार्टनर हैं।
अपनी शामों को मीडिया के खंडहर से निकाल लाइये : रवीश कुमार
Ravish Kumar : अपनी शामों को मीडिया के खंडहर से निकाल लाइये…. 21 नवंबर को कैरवान (carvan) पत्रिका ने जज बीएच लोया की मौत पर सवाल उठाने वाली रिपोर्ट छापी थी। उसके बाद से 14 जनवरी तक इस पत्रिका ने कुल दस रिपोर्ट छापे हैं। हर रिपोर्ट में संदर्भ है, दस्तावेज़ हैं और बयान हैं। जब पहली बार जज लोया की करीबी बहन ने सवाल उठाया था और वीडियो बयान जारी किया था तब सरकार की तरफ से बहादुर बनने वाले गोदी मीडिया चुप रह गया।
तीन सौ मुकदमों में गवाह है यह एक शख्स!
Ravish Kumar : 300 मामले में गवाह बना सोमेश आपके हर भरोसे पर सवाल है…. क्या ऐसा संभव है कि कोई एक बंदा 250-300 केस में चश्मदीद गवाह हो? उसके 300 केस में फर्ज़ी गवाह होने के क्या मायने हैं? क्या इतना आसान है कि किसी के ख़िलाफ़ फर्ज़ी मामले बनाकर, फ़र्ज़ी गवाब जुटा कर अदालतों के चक्कर लगवा देना और कई मामलों में सज़ा भी दिलवा देना? आसान नहीं होता तो छत्तीसगढ़ का सोमेश पाणिग्रही 250-300 मामलों में गवाह कैसे बन जाता?
Artificial intelligence के कारण मध्यम और निम्न दर्जे की ढेर सारी नौकरियां विलुप्त हो जाएंगी
Ravish Kumar : नौकरियों के घटते और बदलते अवसरों पर चर्चा कीजिए… FICCI और NASSCOM ने 2022 में नौकरियों के भविष्य और स्वरूर पर एक रिपोर्ट तैयार की है, जिसके बारे में बिजनेस स्टैंडर्ड में छपा है। लिखा है कि इस साल आई टी और कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जा रहे छात्र जब चार साल बाद निकलेंगे तो दुनिया बदल चुकी होगी। उनके सामने 20 प्रतिशत ऐसी नौकरियां होंगी जो आज मौजूद ही नहीं हैं और जो आज मौजूद हैं उनमें से 65 प्रतिशत का स्वरूप पूरी तरह बदल चुका होगा। ज़रूरी है कि आप अपनी दैनिक समझ की सामग्री में BIG DATA, ARTIFICIAL INTELLEGENCE, ROBOTIC को शामिल करें। इनके कारण पुरानी नौकरियां जाएंगी और नई नौकरियां आएंगी। क्या होंगी और किस स्तर की होंगी, इसकी समझ बनानी बहुत ज़रूरी है।
रवीश कुमार ने पूछा- मीडिया क्यों सरकार से दलाली खा रहा है?
Ravish Kumar : नागरिक निहत्था होता जा रहा है…. राजस्थान के डॉक्टरों की हड़ताल की ख़बर पर देर से नज़र पड़ी। सरकार ने वादा पूरा नहीं किया है।हमने प्रयास भी किया कि किसी तरह से प्राइम टाइम का हिस्सा बना सकें। मगर हम सब ख़ुद ही अपने साथियों से बिछड़ने की उदासी से घिरे हुए थे। हर दूसरे दिन संसाधन कम होते जा रहे हैं। हम कम तो हुए ही हैं, ख़ाली भी हो गए हैं। साथियों को जाते देखना आसान नहीं था। वर्ना डॉक्टरों को इनबाक्स और व्हाट्स अप में इतने संदेश भेजने की ज़रूरत नहीं होती। आगरा से आलू किसान और दुग्ध उत्पादक भी इसी तरह परेशान हैं। दूध का दाम गिर गया है और आलू का मूल्य शून्य हो गया है। इन ख़बरों को न कर पाना गहरे अफसोस से भर देता है। कोई इंदौर से लगातार फोन कर रहा है।
भारत के न्यूज़ एंकर रोबोट के पत्रकार बनने से पहले ही सरकार के रोबोट बन गए हैं : रवीश कुमार
Ravish Kumar : भले मत जागिए मगर जानते रहिए… अमरीका में एक अद्भुत गिनती हुई है। नए राष्ट्रपति ट्रंप ने दस महीने के कार्यकाल में झूठ बोलने के मामले में शतक बना लिया है। ओबामा ने आठ साल के कार्यकाल में कुल 18 झूठ बोले थे। न्यूयार्क टाइम्स ने भारत के प्रधानमंत्री का झूठ नहीं गिना है। यहाँ भी गिना जाना चाहिए। नेताओं के झूठ की गिनती हो रही है।
टीएम कृष्णा यानि एक ऐसा शास्त्रीय संगीतकार जो सत्ता और कारपोरेट को चुनौती देता है
Ravish Kumar : टी एम कृष्णा हिन्दी जगत के लिए अनजान ही होंगे। मैं ख़ुद कृष्णा के बारे में तीन चार साल से जान रहा हूं, संगीत कम सुना मगर संगीत पर उनके लेख ज़रूर पढ़े हैं। टी एम कृष्णा कर्नाटिक संगीत के लोकप्रिय हस्ती हैं और वे इस संगीत की दुनिया का सामाजिक विस्तार करने में लगे हैं। उनकी किताब A SOUTHERN MUSIC-THE KARNATIK STORY हम जैसे हिन्दी भाषी पाठकों के लिए दक्षिण भारत के संगीत की दुुनिया खोल देती है। संगीत से लेकर मौजूदा राजनीति के बारे में उन्होंने काफी लिखा है जो इस वक्त TMKRISHNA.COM पर मौजूद भी है। कृष्णा कर्नाटिक संगीत सभा पर ऊंची जाति के वर्चस्व को लेकर काफी मुखर रहे हैं और कोशिश करते रहे हैं कि संगीत की इस दुनिया में दलित प्रतिभाएं भी स्थान और मुकाम पाएं। जिसके लिए उन्हें कर्नाटिक संगीत के पांरपरिक उस्तादों की काफी नाराज़गी भी झेलनी पड़ती है।
आरके सिन्हा का अख़बारों ने भावनात्मक दोहन किया है : रवीश कुमार
Ravish Kumar : क्यों छपी बीजेपी सांसद सिन्हा की सफाई विज्ञापन की शक्ल में… पैराडाइस पेपर्स में भाजपा के राज्य सभा सांसद आर के सिन्हा का भी नाम आया था। इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने उनकी सफाई के साथ ख़बर छापी थी। पैराडाइस पैराडाइस पेपर्स की रिपोर्ट के साथ यह भी सब जगह छपा है कि इसे कैसे पढ़ें और समझें। साफ साफ लिखा है कि ऑफशोर कंपनी कानून के तहत ही बनाए जाते हैं और ज़रूरी नहीं कि सभी लेन-देन संदिग्ध ही हो मगर इसकी आड़ में जो खेल खेला जाता है उसे भी समझने की ज़रूरत है। सरकार को भी भारी भरकम जांच टीम बनानी पड़ी है। ख़ैर इस पर लिखना मेरा मकसद नहीं है।
हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए
Ravish Kumar : इंडियन एक्सप्रेस में छपे पैराडाइस पेपर्स और द वायर की रिपोर्ट pando.com के बिना अधूरा है… हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए। एक पाठक के रूप में आप बेहतर होंगे। हिन्दी में तो यह सब मिलेगा नहीं क्योंकि ज्यादातर हिन्दी अख़बार के संपादक अपने दौर की सरकार के किरानी होते हैं। कारपोरेट के दस्तावेज़ों को समझना और उसमें कमियां पकड़ना ये बहुत ही कौशल का काम है। इसके भीतर के राज़ को समझने की योग्यता हर किसी में नहीं होती है। मैं तो कई बार इस कारण से भी हाथ खड़े कर देता हूं। न्यूज़ रूम में ऐसी दक्षता के लोग भी नहीं होते हैं जिनसे आप पूछकर आगे बढ़ सकें वर्ना कोई आसानी से आपको मैनुपुलेट कर सकता है।
रवीश जी, अगर Yashwant Singh से कुछ पर्सनल खुन्नस है तो कम से कम उनके काम की तो तारीफ कर दीजिये!
Divakar Singh : रवीश जी, आपने सही लिखा हमारी मीडिया रीढविहीन है. साथ ही नेता भी चाहते हैं मीडिया उनकी चाटुकारिता करती रहे. आप बधाई के पात्र हैं यह मुद्दे उठाने के लिए. पर क्या बस इतना बोलने से डबल स्टैंडर्ड्स को स्वीकार कर लिया जाए? आप कहते हैं कि ED या CBI की जांच नहीं हुई तो कोई मानहानि नहीं हुई. आप स्वयं जानते होंगे कितनी हलकी बात कह दी है आपने. दूसरा लॉजिक ये कि अमित शाह स्वयं क्यों नहीं आये बोलने. अगर वो आते तो आप कहते वो पिता हैं मुजरिम के, इसलिए उनकी बात का कोई महत्त्व नहीं. तीसरी बात आप इतने उत्तेजित रोबर्ट वाड्रा वगैरह के मामले में नहीं हुए. यहाँ आप तुरंत अत्यधिक सक्रिय हो गए और अतार्किक बातें करने लगे. ठीक है नेता भ्रष्ट होते हैं, मानते हैं, पर कम से कम तार्किक तो रहिये, अगर निष्पक्ष नहीं रह सकते.
‘भक्तों’ से जान का खतरा बताते हुए पीएम को लिखा गया रवीश कुमार का पत्र फेसबुक पर हुआ वायरल, आप भी पढ़ें
Ravish Kumar : भारत के प्रधानमंत्री को मेरा पत्र…
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी,
आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप सकुशल होंगे। मैं हमेशा आपके स्वास्थ्य की मंगल कामना करता हूं। आप असीम ऊर्जा के धनी बने रहें, इसकी दुआ करता हूं। पत्र का प्रयोजन सीमित है। विदित है कि सोशल मीडिया के मंचों पर भाषाई शालीनता कुचली जा रही है। इसमें आपके नेतृत्व में चलने वाले संगठन के सदस्यों, समर्थकों के अलावा विरोधियों के संगठन और सदस्य भी शामिल हैं। इस विचलन और पतन में शामिल लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।
बिकने के बाद भी एनडीटीवी में काम करेंगे रवीश कुमार?
Ashwini Kumar Srivastava : ”अब तेरा क्या होगा रवीश कुमार…” एनडीटीवी पर भी कब्जा कर चुके मोदी-अमित शाह और उनके समर्थक शायद ऐसा ही कुछ डॉयलाग बोलने की तैयारी में होंगे। जाहिर है, रवीश हों या एनडी टीवी के वे सभी पत्रकार, उनके लिए यह ऐसा मंच था, जहां वे बिना किसी भय के सरकार की आलोचना या खामियों की डुगडुगी पीट लेते थे। उनकी इसी डुगडुगी को अपने लिये खतरा मानकर संघ और भाजपा के समर्थकों की नजर में ये पत्रकार और एनडीटीवी सबसे बड़े शत्रु बने हुए थे।
‘पेट्रो लूट’ का पैसा चुनावों में आसमान से बरसेगा और ज़मीन पर शराब बनकर वोट ख़रीदेगा : रवीश कुमार
Ravish Kumar : सजन रे झूठ मत बोलो, पेट्रोल पंप पर जाना है… पेट्रोल के दाम 80 रुपये के पार गए तो सरकार ने कारण बताए। लोककल्याणकारी कार्यों, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ख़र्च करने के लिए सरकार को पैसे चाहिए। व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी और सरकार की भाषा एक हो चुकी है। दोनों को पता है कि कोई फैक्ट तो चेक करेगा नहीं। नेताओं को पता है कि राजनीति में फैसला बेरोज़गारी, स्वास्थ्य और शिक्षा के बजट या प्रदर्शन से नहीं होता है। भावुक मुद्दों की अभी इतनी कमी नहीं हुई है, भारत में।
मोदी सरकार के लिए रवीश कुमार ने कहा- ”असफल योजनाओं की सफल सरकार, अबकी बार ईवेंट सरकार”
Ravish Kumar : असफल योजनाओं की सफल सरकार- अबकी बार ईवेंट सरकार… 2022 में बुलेट ट्रेन के आगमन को लेकर आशावाद के संचार में बुराई नहीं है। नतीजा पता है फिर भी उम्मीद है तो यह अच्छी बात है। मोदी सरकार ने हमें अनगिनत ईवेंट दिए हैं। जब तक कोई ईवेंट याद आता है कि अरे हां, वो भी तो था,उसका क्या हुआ, तब तक नया ईवेंट आ जाता है। सवाल पूछकर निराश होने का मौका ही नहीं मिलता।
रवीश ने अपने ब्लाग और पोस्ट से चुनौती दी- साबित करो कि यह फोटोशाप नहीं है!
Sheetal P Singh : बूसी बसिया. कल गौरी लंकेश को इसाई बताकर खारिज किया गया था, सबूत में उनके दफ़नाये जाने को उत्तर भारत के कुपढ़ समाज के मूढ़ मष्तिष्क में ठोंसा गया और यह भी कहा गया कि वे केरल की संघ कार्यकर्ताओं की हत्या के पक्ष में लिख रही थीं!
‘फेक न्यूज फैक्ट्री” अब Ravish Kumar पर काम कर रही है!
Dinesh Choudhary : ‘फेक न्यूज फैक्ट्री” अब Ravish Kumar पर काम कर रही है। यह अब बहुत आसान हो गया है। बस एक झूठी खबर को किसी भी प्लेटफॉर्म पर छोड़ दीजिए, उचक्के उसे लपक कर रक्त-बीज की तरह फैला देंगे। आप सफाई देते घूमते रहिए। अव्वल तो आपकी बात ही सामने नहीं आएगी, या जब आएगी तब तक ‘ठप्पा’ लग चुका होगा। बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है, जिनके लिए कन्हैया ‘देशद्रोही’ है। फेक न्यूज फेक्ट्री में सबसे ज्यादा उत्पादन देश-द्रोहियों का ही हो रहा है, क्योंकि बाज़ार में इसकी बड़ी माँग है।
13 सितंबर का अंक गौरी लंकेश के लिए आख़िरी साबित हुआ!
Ravish Kumar : गौरी लंकेश का आख़िरी संपादकीय हिन्दी में… ‘गौरी लंकेश’ नाम है पत्रिका का। 16 पन्नों की यह पत्रिका हर हफ्ते निकलती है। 15 रुपये कीमत होती है। 13 सितंबर का अंक गौरी लंकेश के लिए आख़िरी साबित हुआ। हमने अपने मित्र की मदद से उनके आख़िरी संपादकीय का हिन्दी में अनुवाद किया है ताकि आपको पता चल सके कि कन्नडा में लिखने वाली इस पत्रकार की लिखावट कैसी थी, उसकी धार कैसी थी। हर अंक में गौरी ‘कंडा हागे’ नाम से कालम लिखती थीं। कंडा हागे का मतलब होता है ‘जैसा मैने देखा’। उनका संपादकीय पत्रिका के तीसरे पन्ने पर छपता था। इस बार का संपादकीय फेक न्यूज़ पर था और उसका टाइटल था- फेक न्यूज़ के ज़माने में…
रवीश कुमार ने बलात्कारी राम रहीम और निकम्मे मनोहर लाल खट्टर की डट कर ख़बर ली
Dayanand Pandey : रवीश कुमार सिर्फ़ लाऊड, जटिल और एकपक्षीय ही नहीं होते, कभी-कभी स्मूथ भी होते हैं और बड़ी सरलता से किसी घटना को तार-तार कर बेतार कर देते हैं। आज उन्होंने एक बार फिर यही किया। एनडीटीवी के प्राइम टाइम में हरियाणा के पंचकुला में बलात्कारी राम रहीम के कुकर्मों और उन पीड़ित दोनों साध्वी की बहादुरी का बखान करते हुए खट्टर सरकार की नपुंसकता की धज्जियां उड़ा कर रख दीं।
न्यूज़ चैनल आपकी चेतनाओं की हत्या करने के प्रोजेक्ट हैं : रवीश कुमार
Ravish Kumar : 2010 के साल से ही न्यूज़ चैनलों को लेकर मन उचट गया था। तभी से कह रहा हूँ कि टीवी कम देखिये। कई बार ये भी कहा कि मत देखिये मगर लगा कि ऐसा कहना अति हो जाएगा इसिलए कम देखने की बात करने लगा। मैंने इतना अमल तो किया है कि न के बराबर देखता हूँ। बहुत साल पहले कस्बा पर ही डिबेट टीवी को लेकर एक लेख लिखा था ‘जनमत की मौत’।
लोग मुझ पर हंस रहे हैं कि अब तुम्हारी नौकरी चली जाएगी : रवीश कुमार
Ravish Kumar : यूपी के शिक्षामित्रों सुनिये मेरी भी बात… सुबह से यूपी के शिक्षा मित्रों ने मेरे फोन पर धावा बोल दिया है। मेरा एक तरीका है। जब अभियान चलाकर दबाव बनाने की कोशिश होती है तो मैं दो तीन महीने रूक जाता हूँ। स्टोरी नहीं करता। मैं समझता हूं आपकी पीड़ा और परेशानी। कुछ साथियों के आत्महत्या करने की ह्रदयविदारक ख़बर देखी है। विचलित भी हूँ। सोच भी रहा था कि कुछ करता हूँ।
अमित शाह की संपत्ति और मीडिया का भय
Ravish Kumar : भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की संपत्ति में तीन सौ फ़ीसदी की वृद्धि की ख़बर छपी। ऐसी ख़बरें रूटीन के तौर पर लगभग हर उम्मीदवार की छपती हैं जैसे आपराधिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि की ख़बरें छपती हैं। कुछ मीडिया ने अमित शाह की ख़बर नहीं छापकर और कुछ ने छापने के बाद ख़बर हटा कर अच्छा किया। डर है तो डर का भी स्वागत किया जाना चाहिए। इससे समर्थकों को भी राहत पहुँचती है वरना प्रेस की आज़ादी और निर्भीकता का लोड उठाना पड़ता। जो लोग चुप हैं उनका भी स्वागत किया जाना चाहिए। बेकार जोखिम उठाने से कोई लाभ नहीं।
एनडीटीवी ने 70 कर्मचारियों को निकाला, रवीश कुमार ने चुप्पी साधी
हर मसले पर मुखर राय रखने वाले पत्रकार रवीश कुमार अपने संस्थान एनडीटीवी के घपलों-घोटालों और छंटनी पर चुप्पी साध जाते हैं. ताजी सूचना के मुताबिक एनडीटीवी ने अपने यहां से छह दर्जन से ज्यादा मीडियाकर्मियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. इनमें से ज्यादातर तकनीकी कर्मी हैं. करीब 35 तो कैमरामैन ही हैं. बाकी टेक्निकल स्टाफ है. वे कैमरामैन में जो पहले एडिटोलियल टीम के सदस्य थे, अब एचआर ने उन्हें टेक्निकल स्टाफ में कर दिया है.
न्यूज़ एंकर हमारे समय का थानेदार है, गुंडा है और बाहुबली है : रवीश कुमार
एक ऐसे वक्त में जब राजनीति तमाम मर्यादाओं को ध्वस्त कर रही है, सहनशीलता को कुचल रही है, अपमान का संस्कार स्थापित कर रही है, उसी वक्त में ख़ुद को सम्मानित होते देखना उस घड़ी को देखना है जो अभी भी टिक-टिक करती है। दशकों पहले दीवारों पर टिक टिक करने वाली घड़ियां ख़ामोश हो गई। हमने आहट से वक्त को पहचानना छोड़ दिया। इसलिए पता नहीं चलता कि कब कौन सा वक्त बगल में आकर बैठ गया है। हम सब आंधियों के उपभोक्ता है। लोग अब आंधियों से मुकाबला नहीं करते हैं। उनका उपभोग करते हैं। आंधियां बैरोमीटर हैं, जिससे पता चलता है कि सिस्टम और समाज में यथास्थिति बरकरार है। …
एक लाख रुपये वाला ‘कुलदीप नैयर सम्मान’ पत्रकार रवीश कुमार को देने की घोषणा
Om Thanvi : भाषाई पत्रकारिता के लिए स्थापित पहला कुलदीप नैयर सम्मान संजीदा पत्रकार रवीश कुमार को दिया जाएगा। प्रेस क्लब, दिल्ली में इसकी घोषणा आज सम्मान समिति के अध्यक्ष आशीष नंदी ने की। इस मौक़े पर कुलदीप नैयर भी मौजूद थे। सम्मान में प्रशस्ति के साथ एक लाख रुपए की राशि दी जाएगी।
इंडिया टीवी के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के नाम खुला ख़त…
जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
प्रिय अभिषेक उपाध्याय
बीते एक हफ्ते में आपने फेसबुक पर जो कुंठा ज़ाहिर की है, उससे अब घिन आने लगी है। सुना है आपने खाना-पीना छोड़ दिया है। खुद को संभालिये, आप ‘वो’ नहीं बन सकते इस सच को जितनी जल्दी स्वीकार लेंगे आपको आराम हो जाएगा। लकीर को मिटाकर बड़ा नहीं बन सकते आप, आपको बड़ी लकीर खींचना सीखना होगा, अपने सीनियर्स से सीखिये उन पर कीचड़ मत उछालिये। हालांकि इस मामले में आपकी चुस्ती देखकर मुझे अच्छा भी लग रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे ‘स्वर्ग की सीढ़ियां’, ‘नाग-नागिन का डांस’ और ‘क्या एलियंस गाय का दूध पीते हैं’ जैसी स्टोरीज़ में अब आपकी दिलचस्पी कम हो गई है। ये अच्छा संकेत है, मुबारकबाद।
रवीश को रवीश में उलझाना एक साज़िश है!
Sheeba Aslam Fehmi : जबकि पत्रकारिता पर गहरा नैतिक संकट आया हुआ है और मौजूदा दौर के लिए ज़रूरी हैं रवीश कुमार, तो सत्ता यही चाहेगी की रवीश खुद खबर बन जाएं और सफाई देने में उलझे रहें. लेकिन हमें सतर्क रहना होगा. इस मामले में रवीश खुद बेहद सतर्क हैं. अपने काम में निजी जीवन का कोई पहलू कभी आड़े ना आये इसके लिए उनके कई नियम और त्याग तो मैं भी जानती हूँ.
‘बागों में बहार है’ के लिए रवीश को सज़ा..?
टीवी एंकर रवीश कुमार के भाई पर यौन शोषण का आरोप क्या लगा मानों कुछ गुमनाम पत्रकारों को अपने नाम को सुर्खियों में लाने का मौका मिल गया…रवीश कुमार पर इन पत्रकारों के हमले से मुझे जलन की बू आ रही है…वो इसलिए कि… शायद रवीश के साथ जिन पत्रकारों ने अपना सफर तय किया था उन्हें वक्त के साथ उतनी शोहरत नहीं मिली जितनी उन्होंने ख्वाहिश पाल रखी थी… और रवीश ने रोज नए- नए मकाम हासिल कर अपनी एक अलग पहचान बनाई…
रवीश कुमार सब करने ही लगेगा तो नंगों के बीच बदनाम कब होगा!
प्राइम टाइम को रामजस कॉलेज में बदलना खेल नहीं था -रवीश कुमार- गुरुवार सुबह नौ बजे जब हम मूलचंद फ्लाईओवर से एंड्र्यूज गंज केंद्रीय विद्यालय की तरफ उतर रहे थे, तभी कार की खिड़की से देखा कि थोड़ी दूर एक बुज़ुर्ग अपना नियंत्रण खोते हैं और स्कूटर से गिर जाते हैं। टक्कर कैसे लगी, यह …
आरोपी रवीश पांडे का भाई है तो क्या अपराध सिद्ध होने तक खबर भी न चलाओगे?
Abhishek Upadhyay : ये अखबार वाले भी न। ये भी नही समझते एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय माफ़ कीजिएगा, रवीश कुमार के प्रताप को। अब कल मैंने जो लिखने से मना किया था। आज वही छाप दिए। दंग हूँ मैं आज का टाइम्स ऑफ़ इंडिया पढ़कर। ये तो खबर छाप दिए है बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष और बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के बेहद करीबी ब्रजेश पांडेय सेक्स स्कैंडेल में फंसे। पद से इस्तीफ़ा दिए। रेप के साथ-साथ पॉस्को (बच्चों का शोषण वाली धारा) भी लगा। हाँ हाँ वही। एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय (उफ़ ये आदत), माफ़ कीजिएगा, रवीश कुमार के सगे बड़े भाई ब्रजेश पांडेय।
यह हमला रवीश पर नहीं, आलोचना का साहस रखने वाली पत्रकारिता पर है : ओम थानवी
Om Thanvi : आलोचक उनके लिए दुश्मन होता है; ‘दुश्मनी’ निकालने का उनके पास एक ही ज़रिया है कि आलोचक को बदनाम करो, उसका चरित्र हनन करो। भले वे विफल रहें, पर जब-तब अपनी गंदी आदत को आज़माते रहते हैं। उनकी आका भाजपा की वैसे ही रवीश से बौखलाहट भरी खुन्नस है। रवीश कुमार फिर उनके निशाने पर हैं। रवीश के भाई ब्रजेश बिहार में चालीस साल से कांग्रेस की राजनीति करते हैं।
भाई दोषी है तो कोर्ट सजा दे, इसमें मेरी क्या गलती है : रवीश कुमार
बिहार के टीवी पत्रकार संतोष सिंह से बातचीत में रवीश कुमार ने कहा कि अगर भाई दोषी है तो कोर्ट उन्हें सजा दे, इसमें मेरी क्या गलती है. पढ़िए संतोष सिंह की पूरी पोस्ट…
भक्तों की टोली को हुआं हुआं करने दो, रविश का बाल भी बांका न कर सकेंगे शिकारी
Sheeba Aslam Fehmi : बेदाग़ करियर वाले सेक्युलर बुद्धिजीवियों को घेरने के लिए एक ही रास्ता बचा है की यौन शोषण का आरोप लगा दो. जहाँ आरोप लगाने वाले को कुछ साबित नहीं करना पड़ता. अगर वो ख़ुद बेहद्द सतर्क हों तो कोई बात नहीं परिवार के किसी सदस्य पर लगा दो, और भक्तों की टोली हुआं हुआं करती सोशल मीडिया के ज़रिये जान ले लेगी. लेकिन रविश ने बीस साल के बेदाग़, रौशन करियर में घास नहीं छीली है, उन्होंने जो इज़्ज़त, भरोसा और समर्थन हासिल कर लिया है, उसके रहते शिकारी उनका बाल बांका नहीं कर सकेंगे.
रवीश कुमार को बिना सुनवाई के ही फांसी पर टांग देना चाहिए!
Nitin Thakur : मुझे बिलकुल समझ नहीं आ रहा है कि ये सरकार रवीश कुमार को इतनी मोहलत क्यों दे रही है। उन्हें तो बिना सुनवाई के ही फांसी पर टांगा जाना चाहिए। आखिर किसी पत्रकार के भाई का नाम सेक्स रैकेट चलाने में आए और फिर भी पत्रकार को खुला घूमने दिया जाए ऐसा कैसे हो सकता है? पहले तो उनके भाई ब्रजेश पांडे ने लहर के खिलाफ जाकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली.. ऊपर से टिकट लेकर विधायकी लड़ने का जुर्म किया.. इसके बाद भी ना ब्रजेश पांडे में राष्ट्रवाद ने उफान मारा और ना ही उन्हें देश के हिंदुओं की कोई फिक्र हुई.. कांग्रेस में ही उपाध्यक्ष का पद लेकर राजनीति जारी रखी।
रवीश कुमार बनाम राहुल कंवल
फेसबुक से.
क्या रवीश के शो की टीआरपी ना आने की वजह से किसी को दस्त लग सकते हैं?
Nitin Thakur : क्या रवीश कुमार के शो की टीआरपी ना आने की वजह से किसी को दस्त लग सकते हैं? जी हां, लग सकते हैं। एक जाने-माने दरबारी विदूषक (विदूषक सम्मानित व्यक्ति होता है, दरबारी विदूषक पेड चाटुकार होता है) का हाजमा खराब हो गया और उसने मीडिया पर अफवाह फैलाने वाली एक वेबसाइट का मल रूपी लिंक अपनी पोस्ट पर विसर्जित कर दिया। कई बार लोग जो खुद नहीं कहना चाहते या लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते वो किसी दूसरे के लिखे हुए का लिंक डाल कर बता देते हैं।
रवीश के इस प्राइम टाइम शो को हम सभी पत्रकारों को देखना चाहिए
एनडीटीवी इंडिया पर कल रात नौ बजे प्राइम टाइम शो के दौरान रवीश कुमार ने पत्रकारों की विश्वसनीयता को लेकर एक परिचर्चा आयोजित की. इस शो में पत्रकार राजेश प्रियदर्शी और प्रकाश के रे के साथ रवीश ने मीडिया और पत्रकार पर जमकर चर्चा की.
बरखा दत्त एनडीटीवी से मुक्त हुईं, देर सबेर रवीश कुमार भी जा सकते हैं!
बरखा दत्त ने 21 साल की नौकरी के बाद एनडीटीवी को अलविदा कह दिया. वह खुद का वेंचर शुरू करेंगी. उधर एनडीटीवी ने भी बयान जारी कर बरखा दत्त के इस्तीफे की वजह बताई है. बरखा दत्त एनडीटीवी में बतौर कंसल्टिंग एडिटर कार्यरत थीं. आधिकारिक बयान जारी करके एनडीटीवी ने उनके लंबे समय तक चैनल के साथ कार्यकाल की तारीफ की और उनके भविष्य के लिए बधाई दी है.
बरखा दत्त और रवीश कुमार का ईमेल व ट्वीटर एकाउंट हैक
रवीश कुमार ने ईमेल-ट्वीटर एकाउंट हैक किए जाने को लेकर अपने ब्लाग नई सड़क पर एक पोस्ट का प्रकाशन किया है, जो इस प्रकार है…
हम फ़कीर नहीं हैं कि झोला लेकर चल देंगे..
रवीश कुमार
मेरे हमसफ़र दोस्तों….
गुंडों का रवीश कुमार को धमकाना… एबीपी न्यूज-आजतक जैसे चैनलों को पब्लिक का दुःख न दिखना
Virendra Yadav : तीन दिनों से लगातार देख रहा हूँ एनडीटीवी पर. रवीश कुमार अपनी टीम के साथ बैंकों के सामने लगी कतारों, नोटों को लेकर अफरा तफरी और आम जनता की तकलीफों को ग्राऊंड जीरो से प्राईम टाईम रिपोर्ट में पेश कर रहे हैं. हर कहीं दो चार लोग आकर उन्हें धमकाते हुए यह कहते दीखते हैं कि ‘जनता खुश है, सब ठीक है आप गलत रिपोर्ट पेश कर रहे हो’. आज बुलन्दशहर की रिपोर्टिंग के दौरान यही हुआ. उद्विग्न रवीश को एनडीटीवी के दर्शकों से यह कहना पड़ा कि ‘अगर यही सब चलता रहा तो जल्द ही टीवी पर आप सच्चाई नहीं देख पायेंगे’. सच का गला घोंटने की यह दबंगई हिटलर के दौर के उन ‘ब्राउन शर्ट’ दस्तों की याद दिलाती है जो फासीवाद के सफरमैना की भूमिका में थे. सचमुच हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं. इन पदचापों को न सुनने की भूल आत्मघाती होगी.
रवीश जैसे पत्रकार का ये हाल है तो बाकी रिपोर्टर्स और स्थानीय पत्रकारों का क्या होता होगा?
Rakesh Srivastava : रवीश को धमकाने का काम प्रायोजित है ऐसा मुझे नहीं लगता। बैंको के बाहर की हर लाईन में बहुत लोग प्रधानमंत्री के इस कदम की सराहना करने वाले भी मिलते हैं, इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन, यह भी अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है कि मोदी जी के समर्थक टाईप अधिकांश लोग बुली करने टाईप ही क्यों होते हैं। दो चार बुली करने वाले दसियों साधारण लोग की आवाज़ को दबा देते हैं। ऐसा सब जगह हो रहा है। इस प्रवृति को एक्सपोज कर रवीश ने अच्छा किया।
रवीश और उनकी टीम को मुट्ठी भर मोदी भक्त नुमा असामाजिक तत्व धमकाने में जुटे!
Tarun Vyas : मैं रवीश के दीवानों वाली सूची में शामिल नहीं हूं और न होना चाहता हूं। लेकिन रवीश कुमार की पत्रकारिता के अंदाज़ से प्रभावित ज़रूर हूं। रवीश का गुरुवार और शुक्रवार का प्राइम टाइम जिस किसी ने भी देखा मैं उन से दो सवाल पूछना चाहता हूं। क्या बैंकों में लगी कतारें और कतारों में भूखे प्यासे आंसू बहाते लोग झूठे हैं? और क्या नरेंद्र मोदी का रुंधा गला ही देशभक्ति का अंतिम सत्य है ? मेरे सवाल आपको नकारात्मक लग सकते हैं क्योंकि जब दाल 170 रुपए ख़ामोशी के साथ ख़रीदी जा रही हो तो इस तरह के सवालों का कोई मोल नहीं होता।
अर्णब गोस्वामी और रवीश कुमार पत्रकारिता के दो विपरीत छोर हैं : उदय प्रकाश
Uday Prakash : There have been two striking popular and leading poles in TV journalism spirited these days. One in English and the other in Hindi. I’m always skeptical about Hindi as it’s always characterized by the people who represent it, in politics, culture and media. My friends here on Facebook know about my views through my posts time and again. One of the poles, in English was Times Now, anchored by Arnab Goswami and the other, in Hindi is NDTV, with its anchor Ravish Kumar.
मोदी के ‘जय श्री राम’ कहने का रवीश वैसे ही मज़ाक उड़ाएंगे जैसे वरुण गांधी का मज़ाक बनाया था?
Abhishek Srivastava : हां जी, तो दशहरा बीत गया। एक झंझट खत्म हुआ। आइए अब मुहर्रम मनाते हैं, कि दुनिया के सबसे बड़े संसदीय लोकतंत्र के सबसे ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे शख्स ने त्योहार के बहाने पांच बार ”जय श्रीराम” का नारा लगाया और यह कह कर कि आवाज़ दूर तक पहुंचनी चाहिए, जनता को भी ललकार दिया। ‘अपने’ रवीश कुमार कहां हैं भाई? जब प्रधानजी नारा लगा रहे थे, तब मैं सोच रहा था कि क्या रवीश कुमार अपने प्राइम टाइम में वैसे ही उनका मज़ाक उड़ाएंगे जैसे 2009 में पीलीभीत में वरुण गांधी द्वारा चुनावी रैली में यह नारा लगाने पर उन्होंने उनका मज़ाक बनाया था?
भांड पत्रकारिता के दौर में देश का मनोबल बढ़ा हुआ है
-रवीश कुमार-
बलों में बल मनोबल ही है। बिन मनोबल सबल दुर्बल। संग मनोबल दुर्बल सबल। मनोबल बग़ैर किसी पारंपरिक और ग़ैर पारंपरिक ऊर्जा के संचालित होता है। मनोबल वह बल है जो मन से बलित होता है। मनोबल व्यक्ति विशेष हो सकता है और परिस्थिति विशेष हो सकता है। बल न भी रहे और मनोबल हो तो आप क्या नहीं कर सकते हैं. ये फार्मूला बेचकर कितने लोगों ने करोड़ों कमा लिये और बहुत से तो गवर्नर बन गए। जब से सर्जिकल स्ट्राइक हुई है तमाम लेखों में यह पंक्ति आ जाती है कि देश का मनोबल बढ़ा है। हमारा मनोबल स्ट्राइल से पहले कितना था और स्ट्राइक के बाद कितना बढ़ा है,इसे कोई बर्नियर स्केल पर नहीं माप सकता है। तराजू पर नहीं तौल सकता है। देश का मनोबल क्या होता है, कैसे बनता है, कैसे बढ़ता है, कैसे घटता है।
संकट होता है तब, जब आप किसी को ‘कल्ट’ बना देते हैं, जैसे रवीश भी कल्ट बना दिये गये हैं!
Sanjeev Chandan : रवीश कुमार को मैं भी पसंद करता हूं, उनकी पत्रकारिता को, उनके गद्य को। उनकी प्रतिबद्धता का भी कायल हूं, और उन्हें किसी भी पक्ष के द्वारा बुली किये जाने का सख्त विरोधी हूं। विरोध गाहे- बगाहे लिखकर भी प्रकट करता रहा हूं। लप्रेक के उनके प्रयोग से बहुत वास्ता न होते हुए भी उनके संग्रह की कुछ कहानियां मुझे बहुत पसंद है- खासकर डा. आंबेडकर की मूर्ति के पास प्रेमी-युगलों के संवाद वाली कहानी।
रवीश के इस प्राइम टाइम को देखने के बाद यशवंत ने क्या लिखा FB पर, आप भी पढ़ें
यशवंत
Yashwant Singh : न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया आपको मानसिक रोगी बना सकते हैं। कल बहुत दिन बाद न्यूज़ चैनल खोला तो अपनी पसंद के अनुरूप ndtv प्राइम टाइम रविश कुमार को देखा। मनोरोग सप्ताह मनाए जाने के दौरान ndtv ने प्राइम टाइम में इसी सब्जेक्ट को चुना। इसी कार्यक्रम में रविश ने बताया कि ताजा शोध के मुताबिक दुनिया भर में न्यूज़ चैनल्स लोगों को मनोरोगी बना रहे हैं।
प्रधानमंत्री को लात मारना या गोली मारना टाइप के अतिरेक से बचना चाहिए : रवीश कुमार
Ravish Kumar : गोली मार देने की बात मुझे नहीं जंची, भले ही यह बात इसलिए कही गई हो कि ठोस तरीके से मैसेज चला जाए. मेरी राय में प्रधानमंत्री को ऐसे अतिरेक से बचना चाहिए था. जिन गौ रक्षकों को वे दो दिन से असामाजिक तत्व, नकली गौ रक्षक, भारत की एकता को तोड़ने वाला मुट्ठी भर समूह बता रहे थे, उनके लिए यह कहना कि मुझे गोली मार दो मगर मेरे दलित भाइयों को मत मारो. जो लोग प्रधानमंत्री की नज़र में कानून और समाज के अपराधी हैं उन्हें हमारे प्रधानंत्री को गोली मारने की इजाज़त कतई नहीं दी जा सकती. इलाहाबाद की परिवर्तन रैली में भी प्रधानमंत्री ने कह दिया था कि मुझे यूपी में एक बार मौका दीजिए, पांच साल में अपने किसी काम के लिए आपका नुकसान कर दिया तो मुझे लात मार कर बाहर कर दीजिएगा.
कश्मीर में मीडिया पर बैन का कोई तुक नहीं बनता : रवीश कुमार
कश्मीर में अख़बार बंद है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ आज दूसरा दिन है जब वहाँ किसी को अख़बार नहीं मिला है। राज्य सरकार ने अख़बारों के छपने और वितरण पर रोक लगा दी है। दिल्ली की मीडिया में ख़बरें आई हैं कि कर्फ़्यू के कारण वितरण रोका गया है। छपी हुई प्रतियाँ ज़ब्त कर ली गई हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट भी बंद है। कर्फ़्यू के कई दिन गुज़र जाने के बाद राज्य सरकार को ख़्याल आया कि अख़बारों को बंद किया जाए। क्या कर्फ़्यू में दूध,पानी सब बंद है? मरीज़ों का इलाज भी बंद है? आधुनिक मानव के जीने के लिए भोजन पानी के साथ अख़बार भी चाहिए। सूचना न मिले तो और भी अंधेरा हो जाता है। अफ़वाहें सूचना बन जाती हैं और फिर हालात बिगड़ते ही हैं, मन भी बिगड़ जाते हैं। खटास आ जाती है।
राजस्थान हाईकोर्ट के वकील डॉ. विभूति भूषण शर्मा ने भी दिया रोहित सरदाना के पत्र का जवाब
श्री रोहित सरदाना जी,
जिस तरह से आपने रवीश की चिठ्ठी के जवाब में चिठ्ठी लिखी उससे ये प्रतीत होता है कि रवीश कुमार की चिठ्ठी ने आपके मनो मस्तिष्क में बहुत गहरे से प्रहार किया, आपकी चिठ्ठी पढ़कर ऐसा लगा कि रवीश कुमार की कलम ने आपको नंगा कर दिया और आप तिलमिला उठे। रवीश ने चिठ्ठी लिखी अकबर को और चोट लगी आपको, मामला संदिग्ध है, बहुत कुछ स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है क्योंकि अकबर को लिखी चिठ्ठी केवल अकबर के लिए नहीं बल्कि अकबर जैसों के लिए थी, यद्दपि अकबर जैसों में आप बरखा दत्त, राजदीप सरदेसाई, पुण्य प्रसून बाजपेई और आशुतोष को रखते हैं लेकिन आपका दर्द बयान करता है कि आपको ऐसा लगा कि जैसे रवीश कुमार ने ये चिठ्ठी आपको लिखी हो।। रवीश जी ने तो पहले विजय माल्या सहित बहुत लोगों को इसी अंदाज में चिट्ठियाँ लिखी है लेकिन तब आपको टीस नहीं हुई। इस चिठ्ठी को पढ़कर आपका दर्द बड़ा बेदर्द निकला।
सॉरी रवीश जी! इस बार आप हास्यास्पद लगे, पत्र से जहालत झांक रही
Prabhat Ranjan : रवीश कुमार का बहुत सम्मान करता हूँ लेकिन अपने खुले पत्र में एम जे अकबर के लिए उन्होंने जिस भाषा का इस्तेमाल किया है वह आपत्तिजनक है। अकबर बहुत बड़े लेखक पत्रकार रहे हैं। नेहरु पर लिखी उनकी किताब बेहतरीन है। एक बड़े विद्वान का आकलन क्या महज उसकी विचारधारा से होगा? रवीश जी बड़ी मासूमियत से बड़ी भावुकता से लिखते हैं लेकिन उनके इस पत्र में उनकी जहालत भी झाँकती दिखाई देती है। यह पत्र ख़ुद को विक्टिम मोड में रखकर मौक़े पर चौका मारने की कोशिश से अधिक नहीं लगा। मैं हिंदी का एक मामूली लेखक हूँ लेकिन सॉरी रवीश जी इस बार आप हास्यास्पद लगे।
एमजे अकबर के नाम रवीश कुमार और रवीश कुमार के नाम रोहित सरदाना के पत्र की सोशल मीडिया पर खूब चर्चा
पहला पत्र रवीश कुमार का एमजे अकबर के नाम…..
आदरणीय अकबर जी,
प्रणाम,
ईद मुबारक़। आप विदेश राज्य मंत्री बने हैं, वो भी ईद से कम नहीं है। हम सब पत्रकारों को बहुत ख़ुश होना चाहिए कि आप भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता बनने के बाद सांसद बने और फिर मंत्री बने हैं। आपने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। फिर उसके बाद राजनीति से लौट कर सम्पादक भी बने। फिर सम्पादक से प्रवक्ता बने और मंत्री। शायद मैं यह कभी नहीं जान पाऊँगा कि नेता बनकर पत्रकारिता के बारे में क्या सोचते थे और पत्रकार बनकर पेशगत नैतिकता के बारे में क्या सोचते थे? क्या आप कभी इस तरह के नैतिक संकट से गुज़रे हैं? हालाँकि पत्रकारिता में कोई ख़ुदा नहीं होता लेकिन क्या आपको कभी इन संकटों के समय ख़ुदा का ख़ौफ़ होता था?
रवीश कुमार जी, खोटे सिक्के अकेले पुलिस महकमे की टकसाल में ही नहीं ढलते, कुछ आपके पेशे में भी होंगे!
रवीश कुमार की चिट्ठी पढ़ कर यूपी के एक प्रादेशिक पुलिस अधिकारी ने लिखा जवाबी खत… भारतीय पुलिस सेवा (उत्तर प्रदेश) के अधिकारी द्वारा रवीश के पत्र का समुचित जवाब ये रहा….
रवीश जी के ख़त का उत्तर..
प्रिय रवीश जी,
बीजेपी, सीपीएम और आप : जनता के पैसे से विज्ञापनबाजी में कोई किसी से कम नहीं
Ravish Kumar : बुधवार के रोज़ अख़बारों पर केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन छाये हुए थे। गुरुवार के दिन प्रधानमंत्री मोदी छाये हुए हैं। देश के अलग-अलग राज्यों से निकलने वाले तमाम भाषाओं के अखबारों में ये विज्ञापन छपे हैं। मीडिया के अनेक माध्यमों में कई दिनों से विज्ञापन छपते आ रहे हैं। अखबारों की संख्या और खर्चे का पता लगाना संभव नहीं हो सका, लेकिन 26 मई के दिन मोदी सरकार के दो साल पूरे करने पर ये विज्ञापन छपे हैं। आप से उम्मीद की जाती है कि आप ही के दिए गए पैसे से आपकी ही चुनी हुई सरकार के कामकाज का हिसाब आप ही तक पहुंचाने के इस प्रयास को ख़ाली न जाने दें। सुबह अगर नहीं पढ़ सके तो घर लौटकर पलट कर ज़रूर पढ़ें कि सरकार ने क्या-क्या काम करने का वादा किया है। अगर आप इन विज्ञापनों को ठीक से नहीं पढ़ेंगे तो अपने ही हाथों अपना ही पैसा बर्बाद करेंगे।
माल्या जी, आपके ललका जहाज़ की सीट के पाकेट से मैं लाल रंग वाला ईयर फोन ले आया था : रवीश कुमार
माल्या का भागना, चैनलों का जागना
आनंदप्रिय विजय माल्या जी,
आमतौर पर आदरणीय का प्रयोग होता है लेकिन आपके लिए आनंदप्रिय ठीक है । इसका कत्तई मतलब नहीं कि आप आदरणीय नहीं है । आपके कैलेंडर सराहनीय हो सकते हैं तो आप आदरणीय क्यों नहीं हो सकते हैं ।आपने समाज में मनोरंजन और रसरंजन को प्रतिष्ठित किया है । आप हमारे मुल्क ( भारत नहीं लिख रहा पता नहीं कब कौन सेडिशन लगवा दे) के उदास चेहरों के बीच खिलखिलाने का ब्रांड एंबेसडर हैं । जिसे देखिये वही दुखी है । आपको देखकर लगता था कि एक है जो सबसे सुखी है । इसलिए आपको आनंदप्रिय कहा है । लोकप्रिय तो बहुत मिल जाते हैं।
भविष्य निधि पर टैक्स मोदी सरकार के गले की फांस बनी, सफाई देने के चक्कर में ज्यादा बुरे फंसे
भविष्य निधि के भविष्य को लेकर नौकरीशुदा लोगों का वर्तमान परेशान हो गया है। क्या वित्त मंत्री अपने इस फैसले को वापस लेंगे, ऐसा तो कोई संकेत नहीं है कि नहीं लेंगे। बल्कि सूत्र आधारित जानकारी के अनुसार बीजेपी और सहयोगी दलों के सांसदों के साथ बैठक में उन्होंने उत्सुक सांसदों को कारण समझाने का प्रयास तो किया लेकिन वापसी की मांग को देखते हुए कह गए कि फैसला प्रधानमंत्री लेंगे। तो क्या ये फैसला प्रधानमंत्री का था या वित्त मंत्री ने ये कहना चाहा कि वे अपने इस फैसले पर अड़े रहेंगे। मंगलवार को एक बार फिर से राजस्व सचिव हंसमुख अधिया ने सफाई दी कि पीपीएफ पर कोई टैक्स नहीं लगेगा।
इस साल के सबसे ताकतवर लोगों की TOP 100 की लिस्ट में पत्रकार रवीश कुमार और अरनब गोस्वामी भी शामिल
नई दिल्ली : साल 2016 के 100 सबसे ताकतवर भारतीयों की लिस्ट जारी करते हुए इंडियन एक्सप्रेस ने जो सूची जारी की है उसमें पत्रकार रवीश कुमार का भी नाम शामिल है. सूची में राजनीति, खेल, सिनेमा, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों से जुड़े लोग शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से इस सूची में टॉप पर हैं. इस लिस्ट में पत्रकारों को भी शामिल किया गया है जिसमें रवीश कुमार और अरनब गोस्वामी का नाम भी मौजूद है.
रवीश कुमार भी वही कर रहे हैं जो दूसरे लोग, दल या पत्रकार कर रहे हैं
अपने हालिया विदेशी दौरे वाले लेख में स्वयं को स्टार एंकर कहने वाले एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार कमोबेश वही कर रहे हैं जो दूसरे लोग, दूसरे दल या दूसरे पत्रकार कर रहे हैं। पक्षपात, विरोधाभास, मामलों को जरूरत से ज्यादा तूल देने, मुद्दों के मनमाने चुनाव, किसी पर मनमाना ठप्पा लगाने, निरर्थक बहसों आदि के मामले में वे किसी भी तरह दूसरे कुछ पत्रकारों से अलग नहीं हैं। आप मानें या न मानें, लेकिन निम्नलिखित बातों पर एक बार विचार करके जरूर देखें।
रवीश ने जो कमाया है वह गालियों से बहुत आगे की चीज है
Sanjaya Kumar Singh : मुझे नहीं लगता कि कोई मालिक एंकर अपने चैनल पर ऐसा लिख-बोल पाएगा। लेकिन रवीश कुमार ने कल कर दिखाया। इसके लिए खुद को बनाना पड़ता है। एक कद हासिल करना पड़ता है और यह कद पुरस्कारों या सस्ती लोकप्रियता के साथ नहीं मिल सकता है। मोटी तनख्वाह के साथ तो नहीं ही मिलेगा। तय आपको करना है कि क्या चाहिए। लगे रहिए भक्ति में या फिर पैसे ही कमा लीजिए। रवीश ने जो कमाया है वह गालियों से बहुत आगे की चीज है। गाली देने वाले क्या जानें। रवीश कुमार को नहीं देखने वालों के पास दर्शक के रूप में रवीश का जवाब तो नहीं ही होगा।
तब रवीश कुमार की आत्मा नहीं जागी थी?
Sarjana Sharama : रवीश कुमार अच्छे पत्रकार है माना जा सकता है। लेकिन निरपेक्ष भाव से या बिना किसी का पक्ष लिए पत्रकारिता करते हैं ये नहीं माना जा सकता। उनकी अंतरआत्मा भी कुछ सिलेक्टिव मुद्दों पर जागती है। अब देखिए ना काला पर्दा दिखा कर वो इमंरजेंसी जैसा माहौल पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं जिसको एक वर्ग हाथों हाथ ले रहा है।
बिना प्रणव राय की मर्जी के रवीश कुमार एनडीटीवी में सांस भी ले सकते हैं?
: सच यह है कि रवीश कुमार भी दलाल पथ के यात्री हैं : ब्लैक स्क्रीन प्रोग्राम कर के रवीश कुमार कुछ मित्रों की राय में हीरो बन गए हैं। लेकिन क्या सचमुच? एक मशहूर कविता के रंग में जो डूब कर कहूं तो क्या थे रवीश और क्या हो गए हैं, क्या होंगे अभी! बाक़ी तो सब ठीक है लेकिन रवीश ने जो गंवाया है, उसका भी कोई हिसाब है क्या? रवीश कुमार के कार्यक्रम के स्लोगन को ही जो उधार ले कर कहूं कि सच यह है कि ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है! कि देश और देशभक्ति को मज़ाक में तब्दील कर दिया गया है। बहस का विषय बना दिया गया है। जैसे कोई चुराया हुआ बच्चा हो देशभक्ति कि पूछा जाए असली मां कौन? रवीश कुमार एंड कंपनी को शर्म आनी चाहिए।
अपने ब्लैक प्राइम टाइम शो के दौरान रवीश लगातार क्या बोलते रहे, यहां पढ़िए
आप सबको पता ही है कि हमारा टीवी बीमार हो गया है। पूरी दुनिया में टीवी में टीबी हो गया है। हम सब बीमार हैं। मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा। बीमार मैं भी हूं। पहले हम बीमार हुए अब आप हो रहे हैं। आपमें से कोई न कोई रोज़ हमें मारने पीटने और ज़िंदा जला देने का पत्र लिखता रहता है। उसके भीतर का ज़हर कहीं हमारे भीतर से तो नहीं पहुंच रहा। मैं डॉक्टर नहीं हूं। मैं तो ख़ुद ही बीमार हूं। मेरा टीवी भी बीमार है। डिबेट के नाम पर हर दिन का यह शोर शराबा आपकी आंखों में उजाला लाता है या अंधेरा कर देता है। आप शायद सोचते तो होंगे।
रवीश ने घनघोर अन्धकार भरे समय में पत्रकारिता की गिरती साख बचा लिया
Priyabhanshu Ranjan : आज Primetime देखते हुए सोच रहा था कि पूरी NDTV और खासकर रवीश कुमार ने जिस तरह न्यूज़ चैनलों, कुछ दोयम दर्जे के पत्रकारों, समाज में रह रही दंगाइयों की भीड़ और मोदी सरकार को expose किया है, क्या इससे उन्हें कोई खतरा नहीं होगा ! मुझे पूरा अंदेशा है कि रवीश और NDTV का कोई भी पत्रकार अब मोदी सरकार और उनके कट्टर समर्थकों को फूटी आंख नहीं सुहा रहा होगा। लिहाज़ा, उन्हें पत्रकारिता तो ऐसी ही जारी रखनी चाहिए…लेकिन अपनी सुरक्षा को लेकर भी चौकसी बरतनी चाहिए….क्योंकि रवीश सुधीर चौधरी जैसे ‘भक्त’ पत्रकार नहीं हैं, जिन्हें मोदी सरकार सरकारी सुरक्षा मुहैया करा दे।
प्राइम टाईम अंधेरे का सदमा… इस समय इस प्राइम टाइम की सख़्त जरूरत थी
Preety Choudhari : मैंने आदत के तौर पर टीवी देखना दस बारह साल पहले ही छोड़ दिया था ,यानि रवीश कुमार जब से अपने ब्लाग पर टी वी नहीं देखने की सलाह दे रहे हैं उससे बहुत पहले ही. मैं अच्छी तरह जानती थी कि मैं टीवी क्यों नहीं देखती …रवीश कुमार ने पत्रकारिता की इस कालिमा को पेश कर अपने ज़मीर को थोड़ा सुकून बख़्शा है या उसे और किकरत्व्यविमूढ़ कर दिया है पता नहीं पर इतना ज़रूर है कि इस समय इस प्राइम टाइम की सख़्त जरूरत थी.
भारतीय टीवी पत्रकारिता के फील्ड में एनडीटीवी और रवीश कुमार ने इतिहास रच दिया
Shambhunath Shukla : मैने चैनल नहीं बदला रवीश जी। आज की मीडिया की हकीकत को नए और अभिनव अंदाज से दिखाने के लिए Ravish Kumar आपको बधाई और शुक्रिया। शायद विजुअल पत्रकारिता के इतिहास में ऐसा प्रयोग पहली बार हुआ। इसके पहले एक बार 27 जून 1975 को कई अखबारों ने अपने पेज काले ही छोड़ दिए थे।
रवीश कुमार निष्पक्षता का चोला पहने अपना comfort zone सुनिश्चित कर लेते हैं
Shikha : कथित रूप से “गैर राजनैतिक” चोला पहने लोग सबसे शातिर होते हैंl किसी की राजनीति साफ़ हो तो भले ही वह कितना भी बड़ा विरोधी क्यों न हो उससे उतनी समस्या नहीं होती क्योंकि उसके प्रति साफ़ नजरिया बनाया जा सकता हैl पर निष्पक्षता का चोला पहने लोग अपना comfort zone सुनिश्चित कर लेते हैं ताकि घटनाक्रमों से दूर रहकर निष्क्रियता का बहाना ढूंढ सकेंl रवीश कुमार ऐसे ही पत्रकार हैंl इनके “निष्पक्ष” चश्मे से abvp के गुंडों द्वारा सिद्धार्थ वरदराजन के साथ की गई बदमाशी और jnu में रामदेव के आने का छात्रों द्वारा किया गया विरोध, दोनों एक समान घटनाएं हैं और उसी “निष्पक्ष” नम्बर वाले चश्मे से रविश बड़ी चतुराई से बिना कारणों और तथ्यों की पड़ताल किए दोनों घटनाओं को “बराबर निंदनीय” बताकर निकल लेते हैंl
नभाटा डिजिटल के संपादक ने रवीश कुमार पर छापे गए घटिया जोक को हटाया और अफसोस जताया
नवभारत टाइम्स की आनलाइन विंग में एक से एक बुद्धिमान लोग आ गए लगता है. इनने हिट्स के चक्कर में जाने माने पत्रकार रवीश कुमार के उपर इतना घटिया चुटकुला बनाकर छाप दिया कि इसे जो भी पत्रकार पढ़ता, सन्न रह जाता. पत्रकारों की गरिमा से खिलवाड़ करने वाला यह चुटकुला जब रवीश कुमार के …
रवीश कुमार को एक टीवी पत्रकार की सलाह
Khushdeep Sehgal : भाई रवीश कुमार को पूर्व क्षमायाचना के साथ बिना मांगे सलाह… वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को सोशल मीडिया पर एक विशेष विचारधारा के लोग हड़का रहे है, अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं…ऐसा करके वो अपनी दूषित मानसिकता का परिचय दे रहे हैं,,,उनसे सुधरने की किसी तरह की उम्मीद करना बेमानी है…लेकिन समझ नहीं आ रहा कि रवीश क्यों उनकी बात पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं…ऐसे लोगों की पूरी तरह अनदेखी करना ही श्रेयस्कर है…इन्हें ज़रा सा भी तूल दो तो इनका उद्देश्य हल हो जाता है..
रवीश ने गाली देने वाले से पूछा- क्या तुम ऐसे सवाल अपनी मां से कर लेते हो?
अरविंद, आपने पूछा है कि क्या मेरी मां चाचा के साथ सोई थी। क्या तुम ऐसे सवाल अपनी मां से कर लेते हो? किस घर्मग्रंथ से तुमने ऐसे सवालों की प्रेरणा पाई है मेरे मित्र। मेरी मां देवी हो या न हो, वो मां है इसीलिए मेरी नज़र कभी उसके सामने उठ भी नहीं सकती। वैसे भी मेरी मां तो भारत माता है। दोस्त मैं माफी चाहता हूं। मैं अपनी भारत माता से ये सवाल नहीं कर सकता। वैसे तुम लोगों की हिन्दी भी बहुत ख़राब है। आप जिस विचारधारा के गुप्त गुंडे हैं, आप भारत माता का अपमान कर सकते हैं लेकिन मैं नहीं कर सकता क्योंकि इससे तो उन शहीदों का अपमान हो जाएगा जिन्होंने भारत माता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। गुप्त गुंडे इसलिए कहा कि आप ये ट्वीट न तो अपनी बहन को दिखा सकते हैं, न अपनी मां को या पत्नी को। ज़ाहिर है आप कभी सामने नहीं आएंगे। आप अपने पिता को भी नहीं दिखा सकते।
गाली देने वाले को रवीश ने यूं समझाया
मैं भारत माता की संतान हूं। अगर मेरी मां भारत माता नहीं है तो फिर कोई भारत माता नहीं है। फिर कोई मां पूजे जाने के लायक नहीं है। मैंने हमेशा भारत माता को अपनी माता समझा है और अपनी मां में भारत माता देखी है। क्या हम सभी सौ फीसदी माँ भारती की औलाद नहीं हैं? सवाल मेरी मां का भी नहीं है। सवाल उन तमाम मांओं का है जिनके आगे बड़े बड़े नेता देवी कह कह कर गिड़गिड़ाते हैं और बाद में अपने वैचारिक समर्थकों से उन्हीं देवियो को किसी न किसी बहाने गाली पड़वाते हैं। गाली देने वाले की प्रोफाइल गलत हो सकती है मगर नकली नाम के पीछे किसी असली आदमी ने ही तो लिखा होगा। उसकी कुछ सोच होगी। वो किसी संगठन के लिए काम करता होगा। उसकी भलाई चाहता होगा। क्या उस संगठन में मांओं की यही इज़्ज़त है। अगर आप इस प्रवृत्ति को अब भी नहीं समझे और सतर्क नहीं हुए तो बहुत देर हो जाएगी। आखिर कौन लोग हैं जो पिछले कुछ दिनों धड़ाधड़ गालियां दिये जा रहे हैं।
नवभारत टाइम्स ने रवीश कुमार पर बनाया घटिया चुटकुला, पढ़िए रवीश की प्रतिक्रिया
नवभारत टाइम्स ने मुझे लेकर लतीफा छाप दिया। यह लतीफा कितना ख़तरनाक है। आप पढ़ेंगे तो डर जायेंगे। पत्रकार को ऐसे डराया जाएगा तो एक बात याद रखियेगा। इस डर का नुकसान आपको होगा। नवभारत टाइम्स को ऐसा नहीं करना चाहिए था। मेरे नाम से हिट्स चाहिए तो ले लीजिए लेकिन समाज में ऐसी सोच मत डालिये जो एक दिन आपके पत्रकारों को भी खा जाएगी।
मैं जहाँ काम करता हूँ वहाँ छुट्टी नहीं लेना अपराध माना जाता है : रवीश कुमार
मुझे नहीं पता था कि प्राइम टाइम की एंकरिंग से मेरी ज़िंदगी इतनी बदल जाएगी कि मेरी ग़ैरहाजिरी भी चिन्ता और अफवाह का कारण बन जाएगी । रात के नौ बजते ही मैसेज आने लगते हैं और दिन भर फोन कि कहाँ हैं । क्या NDTV ने आपको हटा दिया है, क्या आपने NDTV छोड़ दी है ? क्या सरकार के दबाव में आप एंकरिंग नहीं कर रहे हैं ? हमें आपकी चिन्ता हो रही है । आप सही तो बोल रहे हैं न कि छुट्टी पर हैं। हम आपके साथ हैं। आप हमारी आवाज़ हैं । अगर आपको साइड लाइन किया जा रहा है तो साफ साफ बोलिये।
रवीश कुमार को कैसी लगी फिल्म ‘वज़ीर’, पढ़िए…
क्रूर क्रूरतम होता जा रहा है । कमज़ोर को ही चुनौती है कि वो साहस दिखाये । क्रूरता को झेलते हुए मुस्कुराये । सत्ता और उसके नियम क्रूरता के प्रसार के लिए हैं । कमज़ोर सिर्फ उनकी चालों से शह की उम्मीद में मात खाता जा रहा है । हम जड़ होते जा रहे हैं । यथार्थ को समझते समझते हमने यथार्थ की वर्चुअल रियालिटी बना डाली है । दुनिया अगर ख़ुशगवार है तो वह सिर्फ विज्ञापनों में है । क्रूरता रोज बढ़ती जा रही है । उसका एक एकांत होता है । जहाँ कुछ लोग उसकी भेंट चढ़ते रहते हैं । हम इस दुनिया से क्रूरता कम नहीं कर सके।
खुद को और बरखा दत्त को सोशल मीडिया पर गाली देने वाले को रवीश कुमार ने अपनी कलम के जरिए दिखाया आइना
आपकी गाली और मेरा वो असहाय अंग
कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में
जिन्हें तल कर
जिनसे छन कर
वही बात हर बार निकलती है
बालकनी के बाहर लगी रस्सी पर
जहाँ सूखता है पजामा और तकिये का खोल
वहीं कहीं बीच में वही बात लटकती है
जिन्हें तल कर
जिनसे छनकर
वही बात हर बार निकलती है
बातों से घेर कर मारने के लिए
बातों की सेना बनाई गई है
बात के सामने बात खड़ी है
बात के समर्थक हैं और बात के विरोधी
हर बात को उसी बात पर लाने के लिए
कुछ ही तो वाक्य हैं बाज़ार में
जिन्हें तल कर
जिनसे छनकर
वही बात हर बात निकलती है
लोग कम हैं और बातें भी कम हैं
कहे को ही कहा जा रहा है
सुने को ही सुनाया जा रहा है
एक ही बात को बार बार खटाया जा रहा है
रगड़ खाते खाते बात अब बात के बल पड़ने लगे हैं
शोर का सन्नाटा है, तमाचे को तमंचा बताने लगे है
अंदाज़ के नाम पर नज़रअंदाज़ हो रहे हैं हम सब
कुछ ही तो वाक्य है बाज़ार में
जिन्हें तल कर
जिनसे छनकर
वही बात हर बार निकलती है ।
बात हमारे बेहूदा होने के प्रमाण हैं
वात रोग से ग्रस्त है, बाबासीर हो गया है बातों को
बकैती अब ठाकुरों की नई लठैती है
कथा से दंतकथा में बदलने की किटकिटाहट है
चुप रहिए, फिर से उसी बात के आने की आहट है।
रवीश कुमार हर महीने दस हजार रुपये की किताबें खरीदकर पढ़ जाते हैं!
Shukla SN : रवीश कुमार: भीड़ में एक चेहरा! मीडिया में आया हर पत्रकार रवीश जैसी चकाचौंध चाहता है, ग्लैमर चाहता है पर रवीश बनना आसान नहीं है. उन जैसे सरोकार तलाशने होंगे और उन सरोकारों के लिए एकेडिमक्स यानी अनवरत पढ़ाई जरूरी है. रवीश बताते हैं कि साहित्य या फिक्शन की बजाय वह इकोनामिक्स …
उस लड़की ने इंडिया टुडे टीवी की डिप्टी एडिटर प्रीति चौधरी से पलट कर पूछ लिया- आप जहां से आईं हैं, वो महिलाओं के लिए सुरक्षित है?
Vineet Kumar : इंडिया टुडे टेलीविजन की डिप्टी एडिटर प्रीति चौधरी ने अपनी खास रिपोर्ट हाफ बिहार में सतरह-अठारह साल की एक लड़की से सवाल किया- आपको लगता है कि बिहार लड़कियों के लिए सुरक्षित जगह है? जाहिर है प्रीति चौधरी का सवाल करने का अंदाज ऑथिरिटेरियन था जैसा कि आमतौर पर टीवी के पत्रकार ठसक से पूछते हैं. हालांकि प्रीति चौधरी के इस शो की विजुअल्स और कैमरा वर्क पर गौर करें तो फ्रेम दर फ्रेम रवीश कुमार के शो ये जो हमारा बिहार है से मिलाने की कोशिश है.
ये बात बर्दाश्त नहीं की जा सकती कि हम मेहनत से, बिना किसी से प्रभावित हुए काम करें और आप हमें दलाल बताएं : रवीश कुमार
Vineet Kumar : मैं तो प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को सुझाव देना चाहता हूं कि आप ये बिल्कुल स्पष्ट कर दो कि कौन बीजेपी का पत्रकार है, उसके लिए काम कर रहा है, कौन कांग्रेस के लिए या किसी दूसरी पार्टी के लिए. सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा. कम से कम लोगों के सामने चीजें स्पष्ट तो होंगी… लेकिन ये बात बर्दाश्त नहीं की जा सकती कि हम मेहनत से, बिना किसी से प्रभावित हुए काम करें और आप हमें दलाल बताएं.
मैं इन दिनों घोर अंतर्द्वन्द से गुज़र रहा हूँ, भीतर से बेचैन हूँ : रवीश कुमार
इक छोटी सी इल्तज़ा है आपसे
दोस्तों
मैं सोशल मीडिया से किसी के डर के कारण नहीं गया हूँ। मैं ऐसा न अपने साथ कर सकता हूँ और न आपके साथ। यह बात दिमाग़ से निकाल दीजिये कि चार लोग हैंडल बनाकर इधर उधर टैग कर कुछ लिख देंगे तो मैं डर जाऊँगा। मैं सिर्फ इसी बात को लेकर डरा रहता हूँ कि मुझसे कोई ग़लती न हो जाए और हो भी गई तो जान नहीं देने वाला। कुछ लोग और समूह हैं जो मुझसे डरते हैं। मेरी किसी रिपोर्ट या लिखावट से इतना डर जाते हैं कि इन्हें लगता है कि कहीं दुनिया ने उस पर यक़ीन कर लिया तो क्या होगा। ऐसा न हो सकता है और न किसी पत्रकार को यह मुगालता पालना चाहिए। पर उनका दाँव बहुत ज्यादा है इसलिए वे डर कर मुझे डराने के नाम पर अनाप शनाप लिखते हैं। तो उस तरफ डरपोकों की फौज है जो दिन रात अफवाह फैला रही है। ट्वीटर और फेसबुक पर नक़ली पेज बनाकर सांप्रदायिक किस्म के भी अफवाह फैलाये जा रहे हैं।