हिन्दुस्तान टाइम्स समूह में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों को बिना कारण नौकरी से निकाला जा रहा है. कर्मचारियों पर दबाव डाला जाता है और न करने पर निकाला जाता है. कारण साफ है कि 3000 करोड़ का सालाना कारोबार करने वाले अखबार समूह में वेजबोर्ड का कोई कर्मचारी नहीं है. हिन्दुस्तान टाइम्स समूह कानून को ठेंगा दिखा कर भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के दम पर निरंतर कर्मचारियों का शोषण कर रहा है.
यहां न्याय के लिए कर्मचारियों को कितना भटकना पड़ता है इसकी एक छोटी सी मिसाल यह है कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह ने अपने यहां कार्यरत 272 कर्मचारियों को महात्मा गांधी की जन्मतिथि 02 अक्तूबर 2004 को निकाल बाहर किया था. 2012 में यह कर्मचारी केस जीते. कोर्ट ने साफ कहा था कि कर्मचारियों का कोई दोष नहीं है और प्रबंधन ने साजिश करके निकाला है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक मामला फाइनल होने के बावजूद कर्मचारी बकाया वेतन और नौकरी के लिए तरस रहे हैं.
न्याय व्यवस्था ऐसी कि आम आदमी ताकता रह जाए. आम आदमी किसी मामले में बार-बार कोर्ट जाए तो जुर्माना और अगर मैनेजमेंट जाए तो बड़े-बड़े वकील और कोर्ट उनके प्रति नरम रुख रखता रहा है.
इन दिनों अखबारों में छंटनी की बेतहाशा खबरें चिंतित करने वाली हैं. कोरोना से मीडियाकर्मियों के मरने का सिलसिला जारी है. रिपोर्टिंग करने वाले मीडियाकर्मी, न्यूज एडिटर और एडिटर आदि को तो सरकारी सहायता मिल जाती है लेकिन डेस्क पर काम करने वाले तथा अन्य मीडियाकर्मियों को न तो कोई सहायता और न ही उनके अपने संस्थानों से कोई मुआवजा ही मिल रहा है और इसके पीछे मीडिया संस्थानों के मालिकों का अपने कर्मचारियों के प्रति प्रतिकूल व्यवहार माना जा रहा है. इ
लेक्ट्रॉनिक मीडिया में तो मनमाने ढंग से वेतन दिया जाता है. प्रिंट मीडिया के लिए समय-समय पर वेतन आयोग गठित किये जाते रहे हैं और वर्तमान में मजीठिया वेतन आयोग के अनुसार वेतन देय है लेकिन ज्यादातर संस्थानों ने इससे बचने के लिए कम वेतन पर मीडियाकर्मियों की भर्ती की है.
हिन्दुस्तान टाइम्स और हिन्दुस्तान अखबार चलाने वाले मीडिया ग्रुप ने तो वर्ष 2002 से ही वेज बोर्ड कर्मचारियों का शोषण शुरू कर दिया था जो अब तक जारी है. हिन्दुस्तान टाइम्स समूह के सैंकड़ों कर्मचारी कोर्ट से केस जीतने के बाद भी अभी तक कई सौ करोड़ रूपए बकाये के इंतजार में कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं. हिन्दुस्तान टाइम्स समूह संस्थान से शुरू हुई बीमारी आज सभी संस्थानों में पहुंच गई है जहां मैनेंटमेंट में उच्च पदों पर तो मोटी तनख्वाहों पर कर्मचारी रखे जाते हैं और उन्हें विज्ञापन और येन-केन प्रकारेण नैतिक-अनैतिक ढंग से पैसा जुटाने का काम सौंपा जाता है लेकिन रिपोर्टिंग से लेकर, डेस्क पर काम करने वाले तथा अन्य मीडियाकर्मियों को कम तनख्वाह पर मनमाने ढंग से 50 या 100 रूपए के स्टाम्प पर नौकरी के कांट्रैक्ट थमाया जाता है जिसके अनुसार उनका प्रोविडेंट फंड से लेकर, ग्रेच्युटी का अंशदान तक उनकी तनख्वाह से काटा जाता है और सारी कटौती के बाद कर्मचारी मामूली टेक-होम सेलरी लेकर बंधुआ और मजबूर जीवन जीने को मजबूर है.
2014 से मोदी सरकार बनने के बाद से तो स्थिति और भी खराब हो गई है. भाजपानीत सरकारों ने कभी भी मजीठिया वेजजबोर्ड की रिपोर्ट को लागू करवाने की प्रयास नहीं किया. उल्टे भाजपानीत राज्य सरकारों के अधिकारियों से मीडिया संस्थानों के मालिकों से मिलकर संबंधित न्यायालयों में इस आशय की झूठी रिपोर्टें फाइल की कि सभी मीडिया संस्थानों में वेजबोर्ड लागू है. सुप्रीम कोर्ट तक मामला गया लेकिन कुछ नहीं हुआ.
आज जब लोग सुप्रीम कोर्ट की मामूली आलोचना कर रहे हैं तो उसके माननीय न्यायाधीश कोर्ट की अवमानना का डर दिखाकर जनता को चुप करा रहे हैं. लेकिन सर्वज्ञात है कि लाखों की तनख्वाह लेने के बाद क्या जनता इस संस्थान पर पूरी निष्ठा से विश्वास कर पा रही है.
मीडिया की दुर्दशा की लंबी गाथा है. वो लोग दूसरों का क्या भला करेंगे जो अपने कर्मचारियों का शोषण करने में सबसे आगे हैं और उनके कर्मचारी आम जनता का क्या भला करेंगे जब वो खुद शोषण का शिकार हों. लेकिन एक बात जो सबको ज्ञात होनी चाहिए वो यह है कि ठेके पर कार्यरत इन कर्मचारियों को चुपचाप नहीं बैठना चाहिए. लेबर कोर्ट इस तरह के मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं करता. अत: इस प्रकार के मामलों में उच्च न्यायालय में कम्पनसेशन के तहत मीडिया संस्थानों पर केस करने के लिए एकजुट होना चाहिए क्योंकि ऐसे ज्यादातर मामले इकतरफा एग्रीमेंट से जुड़े होते हैं और जितने वर्षों तक कम तनख्वाह में काम किया है उसके पूरे वेतनमान के भुगतान के लिए वेजबोर्ड के अनुसार वेतन की गणना करके सीधे भुगतान के लिए संबंधित लेबर कमिश्नर के यहां पूरा वेतन दिलवाने के लिए शिकायत दायर करनी चाहिए क्योंकि वेजबोर्ड में इस बात का प्रावधान किया गया है कि कर्मचारी भले ही ठेके पर हो लेकिन उसे वेजबोर्ड द्वारा अधिसूचित वेतन से कम वेतन नहीं दिया जा सकता.
खबरें आ रही हैं कि हिन्दुस्तान टाइम्स समूह में सबसे ज्यादा छंटनी का दौर चल रहा है इसलिए कर्मचारियों से निवेदन है कि वे अपने वेतन की गणना वेजबोर्ड के अनुसार करके अपने संबंधित लेबर कमिश्नर आफिस में बकाया वेतन भुगतान की शिकायत दायर करें व आगे के वेतन व इकतरफा नौकरी के कांट्रैक्ट को चैलेंज करते हुए मुआवजे के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों की शरण लें.
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।
Neetu
September 12, 2020 at 11:07 pm
No news on layoffs in Indian Express, don’t you think its your responsibility to get out with truth about Indian Express…….