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हिन्दुस्तान धनबाद की हालत बेहद खराब

हिन्दुस्तान के धनबाद एडिशन की नैया डगमगा रही है. अनुभवहीन लोगों के हाथों एडिटोरियल की कमान देने का नतीजा है कि इसकी प्रसार संख्या लगातार गिरती जा रही है. न्यूज़ में पक्षपात, कंटेंट के साथ छेड़छाड़ और नाना प्रकार के माफियाओं के साथ गठजोड़ के लक्षण सीधे-सीधे अखबार में छपे समाचारों में दिख जा रहे हैं. एक दौर था जब ज्ञानवर्धन मिश्र की एडिटोरियल और आशीष सिंह के मैनेजमेंट की कप्तानी में एक साल में ही अखबार की प्रसार संख्या 35 हजार से छलांग लगा कर 60 हजार पहुँच गयी थी. रेवेन्यू के मामले में तीन जिला को कवर करने वाले इस यूनिट ने नौ जिला के एरिया वाली रांची जैसी बड़ी यूनिट को भी पछाड़ दिया दिया था.

<p>हिन्दुस्तान के धनबाद एडिशन की नैया डगमगा रही है. अनुभवहीन लोगों के हाथों एडिटोरियल की कमान देने का नतीजा है कि इसकी प्रसार संख्या लगातार गिरती जा रही है. न्यूज़ में पक्षपात, कंटेंट के साथ छेड़छाड़ और नाना प्रकार के माफियाओं के साथ गठजोड़ के लक्षण सीधे-सीधे अखबार में छपे समाचारों में दिख जा रहे हैं. एक दौर था जब ज्ञानवर्धन मिश्र की एडिटोरियल और आशीष सिंह के मैनेजमेंट की कप्तानी में एक साल में ही अखबार की प्रसार संख्या 35 हजार से छलांग लगा कर 60 हजार पहुँच गयी थी. रेवेन्यू के मामले में तीन जिला को कवर करने वाले इस यूनिट ने नौ जिला के एरिया वाली रांची जैसी बड़ी यूनिट को भी पछाड़ दिया दिया था.</p>

हिन्दुस्तान के धनबाद एडिशन की नैया डगमगा रही है. अनुभवहीन लोगों के हाथों एडिटोरियल की कमान देने का नतीजा है कि इसकी प्रसार संख्या लगातार गिरती जा रही है. न्यूज़ में पक्षपात, कंटेंट के साथ छेड़छाड़ और नाना प्रकार के माफियाओं के साथ गठजोड़ के लक्षण सीधे-सीधे अखबार में छपे समाचारों में दिख जा रहे हैं. एक दौर था जब ज्ञानवर्धन मिश्र की एडिटोरियल और आशीष सिंह के मैनेजमेंट की कप्तानी में एक साल में ही अखबार की प्रसार संख्या 35 हजार से छलांग लगा कर 60 हजार पहुँच गयी थी. रेवेन्यू के मामले में तीन जिला को कवर करने वाले इस यूनिट ने नौ जिला के एरिया वाली रांची जैसी बड़ी यूनिट को भी पछाड़ दिया दिया था.

धनबाद एडिशन के अधीन पहले धनबाद के अलावा गिरिडीह और बोकारो था. अब उसके साथ देवघर, दुमका, जामताड़ा, गोड्डा और पाकुड़ भी जुड़ गया है. लेकिन सर्कुलाशन में इजाफा नहीं के बराबर है. एक साजिश के तहत ज्ञानवर्धन मिश्र का रांची तबादले कर दिया गया और उसके बाद कई आरई आए गए. लेकिन ये सभी प्रतिद्वंदी अखबारों के आगे हिन्दस्तान को आगे नहीं बढ़ा पाए. हर संपादक यही जानने में अपना समय जाया करता रहा कि ज्ञानजी के कार्यकाल में हिन्दुस्तान के निरंतर बढ़ते रहने का राज क्या था?

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हाँ, अश्क जी इसके अपवाद अवश्य रहे क्योंकि उनका काम करने का ढंग कुछ अलग था. लेकिन लोकल रिपोर्टरों ने उनको सपोर्ट नहीं किया. हाल ही में दूसरी बार धनबाद के स्थानीय संपादक बने गीतेश्वर सिंह के समक्ष यह समस्या मुंह बाए खड़ी है. जो सूचनाएं उभर कर आ रही है उसके अनुसार हिन्दुस्तान के धनबाद एडिशन में एक ऐसा सिंडिकेट है जो किसी की चलने नहीं देता है. इस सिंडिकेट ने अश्क जी को भी काफी परेशान किया था. इस सिंडिकेट से परेशान अजय सिन्हा, रंजन झा, मृत्युंजय पाठक, संजीव झा, रामजी यादव, अमित राजा, सियाराम, सुनील कुमार, दीपक कुमार, चुन्नुकांत, रामप्रवेश, प्रदीप सुमन, सुबोध सिंह पवार, विनय कुमार, आशीष झा को अखबार छोड़ना पड़ा. यूनिट मैनेजर आशीष सिंह को भी त्यागपत्र देने को मजबूर होना पड़ा.

उपरोक्त सारे लोगों ने कलम से लेकर डंडा तक हाथ में थाम हिन्दुस्तान को आगे बढाया. सड़कों पर अखबार बेचा, जागरण और प्रभात खबर से लोहा लिया. लेकिन काम निकल जाने के बाद हिन्दुस्तान के नाम पर अकूत धन अर्जित करने वाले रांची से धनबाद तक सक्रिय सिंडिकेट ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. समय होत बलवान. कुछ दिन बाद ही बाहर का रास्ता दिखाने वाले लोगों को कर्मचारियों की हाय लगी और उन्हें हिन्दुस्तान छोड़ने को मजबूर होना पड़ा. लेकिन असर तो हिन्दुस्तान पर पड़ा ही.

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धनबाद से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.

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