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मेरे घर आने वाला एकमात्र हिंदी अखबार दिन प्रतिदिन अधिकाधिक हिंदूवादी-भाजपाई होता जा रहा है!

विष्णु नागर-

हिंदू और हिंदी का अंतर मीडिया लगातार मिटा रहा है। मेरे घर जो एकमात्र हिंदी अखबार आता है, वह भी अब अधिक से अधिक हिंदूवादी-भाजपाई होता जा रहा है। उसके हिंदूवादी रुझान रोज प्रकाशित अनेक खबरों में अब छुप नहीं पाते,जबकि इसका दावा है कि यह ‘देश का सबसे विश्वसनीय’ अखबार है।

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आज के इस अखबार के दिल्ली संस्करण में भी इसके इस रुझान के अनेक प्रमाण पहले पेज से ही मिलते हैं,जो इसकी ‘ प्रामाणिकता ‘ पर सवाल उठाते हैं पर मैं फिलहाल एक ही उदाहरण पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं।इस अखबार ने अपने ‘दिल्ली फ्रंट पेज’ पर दिल्ली के मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने संबंधी विवाद को जबरदस्त ढंग से चार कालम में लीड खबर बनाकर उछाला है।जरा इस चार कालम खबर का हेडिंग देखिए: ‘ आप विधायक गौतम ने लोगों को दिलाई राम और कृष्ण की पूजा न करने की शपथ।’ इसे ये कहते हैं-‘ विश्वसनीयता’!

इस आयोजन में शामिल होने के बारे में श्री गौतम ने जो स्पष्टीकरण दिया है,उसे महज डेढ़ पंक्ति दी गई है और उसमें भी उनकी बात नहीं आई है। बाकी पूरी खबर भाजपा के स्थानीय नेताओं के एकतरफा बयानों से भरी पड़ी है।एक नेता का बयान के साथ उसका फोटो प्रमुखता से है, जबकि दीक्षा देते गौतम का फोटो बेहद छोटा,नामालूम ढंग से छापा है।
इतना ही नहीं,इस अखबार ने यह तो छापा है कि श्री गौतम उस कार्यक्रम में गए थे और राम, कृष्ण और ब्रह्मा की पूजा न करने की सामूहिक शपथ का हिस्सा वह भी बने थे मगर यह पूरी तरह छुपाया कि यह उस शपथ का मात्र एक बिंदु है, जो डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते हुए ली थी और नवबौद्धों को दिलाई थी। दस हजार अंबेडकरवादियों ने अलग से कुछ कहा नहीं,केवल उसी शपथ का वाचन किया ,जो वे 1956 से लेते आए हैं।दूसरे हिंदी अखबार भी इस हिंदूवादी रुझान से अछूते नहीं रहे होंगे।इसके विपरीत द इंडियन एक्सप्रेस ने पूरी बात छापी है। गौतम ने जो स्पष्टीकरण दिया है,उसे भी उतनी ही प्रमुखता से छापा है।

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बहरहाल इस विवाद से भाजपा की पोल खोल दी है,जो बहुत अंबेडकर-अंबेडकर करती रहती है।यह बताओ भाजपाइयों कि ये बाइस शपथ लेकर हिंदू से बौद्ध बने अंबेडकर तुम्हें पसंद हैं या नहीं?या यह हिम्मत दिखाओ कि स्पष्ट रूप से कहो कि नहीं, हमें डा.अंबेडकर का यह रूप पसंद नहीं।फिर दलितों के वोट लेकर देखो!

तुम्हें केसरिया ब्रांड अंबेडकर चाहिए मगर ऐसा कोई ब्रांड नहीं है।

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