चौथे स्तंभ का यह कलंक है या कुछ और…अब कुछ दारूबाज मिल कर करते हैं दैनिक जागरण में संपादकीय विभाग के कर्मचारियों के भविष्य का फैसला। पिछले एक साल का रिकार्ड देखें तो जिन लोगों को प्रमोशन या इंक्रीमेंट मिला है, उनमें अधिकतर दारूबाज हैं, जो अपने सरगना के लिए शाम को दारू की व्यवस्था करते हैं। दारू की इस व्यवस्था के बदले में उन्हें मोटी तनख्वाह मिलती है। काम के मामले में ये कितने काबिल हैं, वह बात किसी से छिपी नहीं हैं। पिछले दिनों इस गिरोह के सदस्यों ने एक सप्लीमेंट प्लान किया, जिसके लिए चवन्नी का विज्ञापन नहीं मिला। उससे मालिक संजय गुप्ता इन दारूबाजों से खासे खफा हैं।
इन दारूबाजों की हरकत से दैनिक जागरण के अधिकतर कर्मचारियों में असंतोष है। उसी का परिणाम यह हुआ था कि लोग काली पट्टी बांधने को मजबूर हो गए थे और हड़ताल का आह्वान कर दिया था। अंतत: सीजीएम नीतेंद्र श्रीवास्तव की धूर्तता काम आई और हड़ताल नहीं हो पाई। हड़ताल रोकने के लिए जो समझौता किया गया, अब उसे लागू नहीं किया जा रहा है।
दारूबाजों का सरगना वैसे तो ब्राह्मणवाद का विष कर्मचारियों में घोल रहा है, लेकिन है वह ब्राह्मण के नाम पर कलंक। स्वर्गीय नरेंद्र मोहन ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित उनका अखबार दारूबाजों के चंगुल में फंस जाएगा। इन्हीं दारूबाजों की कुटिलताओं से इतना असंतोष फैला कि हजारों कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट चले गए। कंपनी में यूनियन का गठन हो गया और हमेशा हड़ताल का माहौल बना रहता है। दारूबाजों की जो सैलरी है, उसका आधा भी शेष कर्मचारियों को नहीं मिल रहा है। और तो और दारूबाजों को मार्केट में दलाली करने के लिए छोड़ दिया गया है। आए दिन दारूबाजों पर अवैध उगाही के आरोप लगते रहते हैं।
अब हालत यह है कि दारूबाजों का सरगना बहुत ही तेजी से अपनी जेब भरने में लगा हुआ है। सूत्र बताते हैं कि मालिकान की नाराजगी से वह अपने को असुरक्षित महसूस करने लगा है, जिससे उसके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई हैं। वह अब सोचने लगा है कि जल्दी से जल्दी जागरण के नाम पर समाज को चूस लो, आगे न जाने क्या हो जाए। क्यों कि इन दारूबाजों की वजह से कर्मचारियों ही नहीं, संस्थान को भी भारी नुकसान झेलना पड़ा है। देखना यह है कि संजय गुप्ता की आंख कब खुलती है और वह इन दारूबाजों से पीछा छुड़ाने का फैसला करते हैं।
फोर्थ पिलर एफबी वाल से