Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

जल साक्षरता (पार्ट 3) : परियों की कहानी बन गया है नदियों का पानी!

सुनील चतुर्वेदी-

बीसवीं सदी का काउंटडाउन शुरू हो चुका था। दस..नौ..आठ! ज़मीन के नीचे का पानी तेज़ी से गहरे उतर रहा था तो ज़मीन के ऊपर बहने वाली नदियाँ भी सिमटती जा रही थी।

बात 2001-02 की होगी। मैं अपने बेटे के साथ उज्जैन सिद्धवट गया तो सन् 1974-75 का समय आँखों के सामने जीवंत हो उठा। मंदिर के ठीक नीचे वाली सीढ़ियों पर रुककर नदी की तरफ़ पीठ फेरे मैं बेटे को सुनाने लगा।

“गर्मियों की छुट्टियों में हम सब मामा, चाचा, बुआ के भाई-बहिन मेरी बड़ी बुआ के घर इकट्ठा होते। सुबह होते ही हम 10-12 बच्चों की फ़ौज घर से सिद्धनाथ घाट की ओर चल पड़ती। आगे-आगे बड़ी बहिनें बग़ल में कपड़ों की पोटली दबाये और पीछे-पीछे हम बच्चों का टुल्लर।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहिनें घाट पर कपड़े धोते हुए गपियाती रहती और हम यहाँ इस जगह खड़े होकर दोनों पैर का गंटा लगाकर नदी में कूदते और छपाक की आवाज़ के साथ पानी बहुत ऊपर तक उछलता। तुम्हारी बड़ी बुआ हमारे खेल की जज होती। जिसके कूदने पर सबसे ज्यादा ऊपर पानी उछलता वो जीत जाता। यह हमारा रोज़ का खेल था। फिर घंटे दो घंटे तैरते रहते। तैरते-तैरते थोड़ा आगे निकल जाते तो पैरों या शरीर के और किसी हिस्से पर सूँस टकरा जाती। उन दिनों क्षिप्रा में सूँस बहुत होती थी। हम डरकर किनारे लौट आते। ऐसी मज़ेदार होती थी हमारी गर्मियों की छुट्टियाँ। तुम्हारी तरह दिन-भर वीडियो गेम नहीं खेलते थे।”

मेरी बात ख़त्म होते ही बेटे ने संदेह से मेरी ओर देखते हुए पूछा, “पापा आप पक्का यहाँ से कूदते थे?“

Advertisement. Scroll to continue reading.

“हाँ , क्यों..?”

“पीछे मुड़कर देखो “

Advertisement. Scroll to continue reading.

मैंने देखा नदी की तलहटी में जगह-जगह चट्टानें उभरी हुई थी। उनके बीच कहीं-कहीं पानी के पोखर थे। मात्र पच्चीस-तीस साल में कभी क्षीर सी उफनती नदी मर रही थी। मैं चुपचाप घाट से लौट पड़ा। रास्ते में बड़ा बेटा हंसते हुए अपने से पाँच साल छोटे भाई से कह रहा था “पता है, पापा परियों की कहानी को अपनी स्टोरी बनाकर हमें सुना रहे थे। इतने ऊपर से फेंटम भी पत्थर पर कूदेगा तो उसके भी हाथ-पाँव फ्रेक्चर हो जाएँगे।“

यह वही समय था जब नदियाँ मर रही थीं। देशभर में लगभग छोटी-बड़ी 400 नदियाँ हैं और सहायक नदियों की सहायक नदियाँ मिलाकर नदियों की संख्या हज़ारों में है। इनमें से 30 प्रतिशत से अधिक नदियाँ या तो सूख चुकी हैं या नाले में तब्दील हो गयी हैं। एक अनुमान यह भी है कि पिछले 75 सालों में क़रीब 20 लाख तालाब, पोखर, झीलें ग़ायब हो गयी हैं। अब नदियों के मरने, तालाबों के गुम होने की रपट कहाँ और कौन लिखाये!

यहाँ यह बात भी गौर करने कि है, इस समय में भूजल स्तर का कम होना और नदियों का मरना दोनों घटनाएँ एक साथ घट रही थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तो क्या ज़मीन के नीचे और सतह पर बहने वाले पानी की बीच कोई अंतरसंबंध है? आप क्या सोचते हैं!

क्रमश:

Advertisement. Scroll to continue reading.

पिछला भाग…

जल साक्षरता (पार्ट 2) : पानी पर बरसता पैसा और हैंडपंप के बदले वोट!

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group_one

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement