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सुख-दुख

सिडनी शहर में नल खुला छोड़ना अपराध, जल संकट से जूझ रहे भारत में ऐसा कानून कब बनेगा?

Manish Srivastava : नल खुला छोड़ना एक अपराध है, भारी जुर्माना भी लगेगा…. सुनने में आपको भले अटपटा लगे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी में ये कानून अमल में सिर्फ इसलिए लाया गया क्योंकि वहां रिकॉर्ड तोड़ भयंकर सूखे के कारण जल संकट विकराल रूप धारण कर चुका है। लेकिन अधिकांश भारत में तो स्थितियां सिडनी से कई गुना अधिक विस्फोटक हैं फिर ये कानून यहां क्यों नहीं लागू हो सकता। यहां तो 60 करोड़ आबादी पानी के मामले में गंभीर अभाव के स्तर तक पहुंच चुकी है। प्रति वर्ष 2 लाख बेगुनाह सिर्फ इसलिए काल के गाल में समा रहे हैं क्योंकि उन्हें साफ जल तक मयस्सर नहीं।

हमारी सरकारें सिर्फ राष्ट्रवाद के झुनझुने तक सीमित हैं और आम जनता हिन्दू-मुस्लिम के नारों में उलझी है। क्या आपने कभी सोचा था कि साफ जल भी आपको 20 रुपये प्रति बोतल के हिसाब से खरीदना पड़ेगा। आप तब शायद जरूर सोचें जब 2020 तक देश के 21 महानगरों में भूजल खत्म सा हो जाएगा। ये हम नहीं सरकारी सर्वेक्षण की रिपोर्ट चीख चीख कर कह रही है। इसके बावजूद जल संचयन के उपाय बिल्कुल नगण्य हालत में है सरकारी तंत्र का ध्यान बस इसके वास्ते जारी हो रहे अरबों के बजट को खर्च करने पर है। लचर जल प्रबंधन का कड़वा सच ये भी है कि दुनियाभर में जमीन से उलीचे जा रहे कुल भूजल का एक चौथाई हिस्सा तो सिर्फ भारत से निकल रहा है।

अब भी आप चेत नहीं रहे तो क्यों न नल खुला छोड़ने पर अपराध का सख्त कानून भारत में भी लागू किया जाए। कम से कम कुछ तो डर आएगा। आप चुनावी चकल्लस में व्यस्त थे। हालात बद से बदतर हो चुके हैं। अब चुनाव खत्म हो चुके हैं जाग जाइये। लेकिन आपको ये संगीन सच न ही देश का मीडिया दिखायेगा और न ही सरकारें। दोनों की ही नजर में देश प्रगति की राह पर बुलेट ट्रेन के माफिक दौड़ रहा है। यूपी के बुंदेलखंड में बीते एक पखवाड़े में हालात बेहद विस्फोटक हो चुके हैं। आईआईटी गांधीनगर की वाटर एंड क्लाइमेट लैब की रिपोर्ट ने इस वर्ष सूखे पर जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक इस वक़्त देश की आधी करीब 47 फीसदी आबादी सूखे की चपेट में आ चुकी है 47 में 16 फीसदी इलाकों में भयंकर सूखे के हालात हैं। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि गुजरात और महाराष्ट्र में तो पानी सिर्फ 21 फीसदी ही बचा है।

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पृथ्वी का तापमान बढ़ने से हालात और विभीषक तेजी से हो रहे हैं। केंद्रीय जल आयोग भी हर हफ्ते बांधों में जलस्तर पर जो रिपोर्ट जारी करता हैं वो भी महज 91 बांधों में पानी की निगरानी पर होती है जबकि देश मे 5000 से ज्यादा बांध व जलाशय हैं। लेकिन यहां जल संरक्षण के कोई उपाय नहीं। जल संचयन के लाख उपायों और दावों के बावजूद आपको बता दूं कि बीते दस वर्षों में इन बांधों में पानी का स्तर बढ़ा ही नहीं है जबकि देश की आबादी बीते 10 वर्षों में न सिर्फ 12 फीसदी बढ़ी है बल्कि सवा अरब को पार कर चुकी है 15 करोड़ लोग बढ़े, पानी की मांग भी 12 फीसदी बढ़ी। प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 2 हजार घनमीटर पानी की जरूरत है जो सिर्फ सपना ही नजर आ रहा है।

कृषि क्षेत्र 80 फीसदी ताजे पानी का सीधा प्रयोग कर रहा है देश के महान वैज्ञानिक और सरकारें किसानों को फसलों के पैटर्न बदलने पर आजतक जागरूक नहीं कर पाए। नतीजतन जहां कम पानी की फसल उगाई जानी चाहिए वहां 20 गुना ज्यादा पानी वाली फसल उगाई जा रही और आपका पूरा ध्यान राफेल पर हजारों करोड़ फूंकने पर लगा है। देश मे 4 हजार अरब घनमीटर से अधिक पानी वर्षा से मिलता है जिसमे से 258 अरब घनमीटर पानी ही जलाशयों व बांधों में रोककर रखने के इंतजाम हैं।

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400 अरब घनमीटर पानी सीधे समुंदर में जाकर बेकार हो रहा है। तभी तो लातूर में पानी वाली ट्रेन लानी पड़ी। हालात इतने ही नाजुक रहे तो याद रखिये। यही जल ट्रेनें आपके शहरों तक भी आएंगी (अगर जल बचा तो ही)। सिर्फ यही नहीं देशों के बीच जल को लेकर युद्ध तक की संभावनांए भी हैं मैं हाल ही में लखनऊ के सुल्तानपुर रोड स्थित चक गंजरिया गया, जहां सरकारी तंत्र के लोग ही मोटे पाइपों से निकल रहे साफ पानी को सड़क व नाले में बहा(वीडियो नत्थी) रहे थे।

आसपास कोई न दिखा तो एक श्रमिक से पूछा तो वो बोला भइया अंदर निर्माण स्थल में पानी भर जाता है इसलिए बाहर पाइप रख देते हैं सोचिए करोड़ों रुपये से भी कीमती कितना साफ पानी नाले व सड़क में बहा दिया जाता है अगले ही दिन अखबारों में सिडनी में नल खुला छोड़ना अपराध घोषित वाली खबर देखी तो सोचा आंकड़े जुटाकर सोशल मीडिया पर आप सबको भी जागरूक करूँ। ये भी सामाजिक भ्रष्टाचार ही कहा जायेगा। शर्म सिर्फ आपपर ही नहीं स्वयं पर भी आती है कि मैं भी अपने जीवन में कितना स्वच्छ जल बर्बाद करता हूँ लेकिन जबसे यशवंत भाई ने जलसंकट पर अखबारों की कुछ न्यूज क्लिपिंग्स पोस्ट की तो रूह सिहर उठी। इन्ही क्लिपिंग्स का एक वीडियो भी आपके लिए बनाकर पोस्ट कर रहा हूँ। विभीषिका खुद देखिए क्योंकि ये हालात आपके आसपास भी जल्द ही बनने वाले हैं इससे भी सचेत न हों तो एक जलसंकट पर एक वीडियो और पोस्ट कर रहा हूँ जिसमे जलसंकट की विभीषिका दिखेगी। आप सभी से करबद्ध निवेदन है, जल संचयन करें, मैं भी करूँगा।वरना याद रखियेगा…जब रहेगा जल, तभी रहेगा हमारा कल.

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लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार मनीष श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.

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