राजीव शर्मा-
जब परवीन कुमार अश्क ने लिखा था-
‘ज़मीं को ऐ ख़ुदा वो ज़लज़ला दे
निशाँ तक सरहदों के जो मिटा दे’
तो उनके लिए ‘ज़लज़ला’ का अर्थ भूकंप था। उनसे पहले जितने शाइरों और शब्दकोश के विद्वानों ने ‘ज़लज़ला’ लिखा तो उनके लिए भी इस शब्द का अर्थ भूकंप ही था, क्योंकि ‘ज़लज़ला’ का अर्थ भूकंप ही होता है, लड्डू-जलेबी नहीं!
यह शब्द अरबी से आया है। आम बोलचाल और लेखन में ‘ज़लज़ला’ चल जाता है, लेकिन शब्दकोश में यह ‘ज़ल्ज़लः’ लिखा मिलता है, जिसका अर्थ भूकंप, भूचाल, भूप्रकंप और भूडोल आदि बताया गया है।
आसान शब्दों में कहें तो धरती का हिलना ‘ज़लज़ला’ कहलाता है। इस शब्द का उपयोग भूकंप से संबंधित ख़बरों में तो किया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि भारी बारिश हुई और उसे ‘ज़लज़ला’ घोषित कर दिया! धूप से माथा चकराने लगा तो कह दिया कि यह ‘ज़लज़ला’ है!
इन दिनों कई अख़बार, समाचार वेबसाइट्स भारी बारिश और बाढ़ से उपजे हालात को ‘ज़लज़ला’ बता रहे हैं। उनके ‘तेजस्वी’ संपादकों को लगता है कि जहाँ जल ही जल हो, वह ‘ज़लज़ला’ है! जबकि जल संस्कृत का शब्द है। इसे ज़बरदस्ती अरबी से जोड़ा जा रहा है।
मज़े की बात यह है कि मीडिया वेबसाइट्स भूकंप को भी ‘जलजला’ लिख देती हैं। चूंकि नुक़्ते का नियम बहुत पहले ही हटा दिया, इसलिए भूकंप भी ‘जलजला’ है और बाढ़ भी ‘जलजला’ ही है! आश्चर्य नहीं, अगर भविष्य में कोई व्यक्ति तालाब या नदी में तैरने चला जाए तो अख़बार उसे ‘जलचला’ लिख देंगे, क्योंकि वह ‘जल में चला गया’!
बाढ़ आदि के लिए ‘ज़लज़ला’ या ‘जलजला’ शब्द लिखना उचित नहीं है। इससे भारी भ्रम फैलता है।
उदाहरणः
- पत्रिका डॉट कॉम की ख़बर है- जिलेभर में जलजला, खेत जल मग्न, कई घरों में घुसा पानी
- भास्कर डॉट कॉम की ख़बर है- भादो ने डरायाः जलजला … 24 घंटे में नैनवां में साढ़े 10 इंच और बूंदी में 4 इंच बारिश से सबकुछ ठहरा, रास्ते थमे, संपर्क कटा
इन दोनों ख़बरों में ‘जलजला’ शब्द का उपयोग सही नहीं है।
- भास्कर डॉट कॉम ने प्रकाशित किया है- बात बराबरी कीः करोड़ों की पहचान से जुड़े शहर का नाम बिना हाय-तौबा के बदल जाता है, लेकिन औरत अपना नाम बदले तो जलजला आ जाता है।
यहाँ जलजला शब्द ठीक बैठता है। हालाँकि ‘ज़लज़ला’ लिखा जाता तो बेहतर होता, लेकिन जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूँ, अब अख़बारों में नुक़्ता इस्तेमाल नहीं किया जाता। चंद्रबिंदु का उपयोग भी सीमित हो गया है।
राजीव शर्मा
जयपुर
पत्रिका अखबार वाले ये ग़लती पहले भी करते रहे हैं, देखें ये खबर-
अब्दुल रज़ाक पंवार
September 24, 2022 at 5:10 am
भाई साहब,आप ‘जलजला’ की बात कर रहे हो जबकि किसी दिन कोई सा भी अखबार लेकर पढ़ने बैठोगे तो आपको अहसास होगा कि हिन्दी पत्रकारिता ‘गई भैंस पानी’ वाले मुहावरें को चरितार्थ कर रही हैं. सच पूछो तो आज के इन बंधुओं ने हिन्दी की चिन्दी तो कर ही दी हैं, अब ये भले मानुष अंग्रेजी और उर्दू की भी वाट लगा रहें… हिन्दी भाषा के बहुत से उर्दू के शब्द बहुत पहले से चलते रहें हैं लेकिन अब ये हिन्दी में खबर लिखते हैं और शीर्षक अंग्रेजी में लिखने लगे हैं. इसी तरह महरुम – मरहूम, मुल्जिम – मुस्तगिस, उस्ताद – उस्तादजी और बरखुरदार सहित आदि बहुत से ऐसे शब्द हैं, जिनका इस्तेमाल कहां होना चाहिए और ये बंधु इनका उपयोग कहां करते हैं, पढ़कर अफ़सोस होता हैं.
नवीन सिंह
September 25, 2022 at 5:32 am
अगर आपने यह विषय पकड़ ही लिया है तो मैं भी बता दूं कि मुझे भी आजकल अख़बार पढ़ते हुए कई शब्दों को देखकर हैरानी होती है और संशय भी होता है कि क्या मैं बचपन से गलत शब्द तो नही पढ़ता और सीखता आया।
उदाहरण के लिए ठप्प शब्द को आजकल ठप ही लिखा जा रहा है- ‘यातायात व्यवस्था ठप’
परिजन को आजकल स्वजन और प्रावधान को प्राविधान लिखा जा रहा है।
क्या आप इस विषय पर कुछ प्रकाश डालेंगे?
Naveen Singh
September 25, 2022 at 5:34 am
अगर आपने यह विषय पकड़ ही लिया है तो मैं भी बता दूं कि मुझे भी आजकल अख़बार पढ़ते हुए कई शब्दों को देखकर हैरानी होती है और संशय भी होता है कि क्या मैं बचपन से गलत शब्द तो नही पढ़ता और सीखता आया।
उदाहरण के लिए ठप्प शब्द को आजकल ठप ही लिखा जा रहा है- ‘यातायात व्यवस्था ठप’
परिजन को आजकल स्वजन और प्रावधान को प्राविधान लिखा जा रहा है।
क्या आप इस विषय पर कुछ प्रकाश डालेंगे?