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सुख-दुख

रिवर्स गियर

जीवन में सफलता का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कारक यह है कि नयी और अनजानी स्थितियों में आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है। अचानक बड़ी खुशी मिलने पर, अचानक बड़ा नुकसान होने पर या अचानक किसी मुसीबत में फंस जाने पर आप स्थितियों से कैसे निबटते हैं, यह आपके भावी जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है।

जीवन कोई फूलों की सेज नहीं है। जीवन के रास्ते बड़े ऊबड़-खाबड़ हैं। हर रोज आप नये व्यक्तियों और नयी स्थितियों से दो-चार होते हैं। कभी आप को मनचाही सफलता मिल जाती है तो कभी परेशान कर देने वाली असफलता का मुख देखना पड़ जाता है। कभी आप पर सम्मान थोप दिया जाता है और कई बार बिना किसी दोष के भी आपको अपमान का घूंट पीकर चुप रह जाना पड़ता है। ऐसे में अक्सर आपके भावी जीवन का दारोमदार इस पर निर्भर करता है कि आप कितने संतुलित रहते हैं और कितनी कुशलता से स्थिति को संभालते हैं। कुछ छोटे-छोटे उदाहरण इसे स्पष्ट करने में सहायक होंगे।

अखिल एक अच्छे कार्यालय में अच्छी नौकरी कर रहे थे। दोस्तों और शुभचिंतकों की कमी नहीं थी। जीवन मजे से गुजर रहा था। एक दिन अखिल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिना बात के अखिल की आलोचना कर दी। उस मामले में अखिल का दोष नहीं था। बेबात आलोचना से अखिल उखड़ गये और सबके सामने अधिकारी पर बरस पड़े। सार्वजनिक हेठी के कारण अधिकारी ने भी जिद पकड़ ली। बात ज्यादा बढ़ गयी तो अखिल अधिकारी के मुंह पर त्यागपत्र मार कर घर आ गये। अधिकारी ने भी गुस्से में त्यागपत्र स्वीकार कर लिया। कुछ दिन तो अखिल बड़े खुश मूड में रहे। खालीपन का आनंद उठाया। लटके कामों को निबटाया और बीवी-बच्चों की शिकायतें दूर करने में दिन बिता दिये। पर अखिल जब तक नौकरी में थे, सब कुछ था, नौकरी जाते ही जैसे जिंदगी बदल गयी। जब वे दोबारा काम की खोज में निकले तो जैसे एक नई दुनिया से सामना हुआ। हर कोई पल्ला झाड़ने लगा। घर में पैसों के लाले पड़ गये। राशन वाला मुंह मोड़ने लगा। जहां पहले शान से जीते थे, अब लोगों की मनुहार करनी पड़ रही थी। बड़ी मुश्किल से एक नौकरी मिली भी, तो न वह पद मिला न वेतन!

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हममें से लगभग हर व्यक्ति कोई न कोई वाहन चलाता है। साइकिल हो या कार, ट्रक हो, ट्रैक्टर हो या ट्रॉलर हो, हल्के या भारी सभी वाहनों में टायर होते हैं और टायर में ट्यूब होती है। रबड़ के टायर घिसते हैं और ट्यूब राह चलते पंक्चर हो जाती है, जबकि लोहे के पहियों में घिसने, पंक्चर होने या ट्रेड खराब होने का डर नहीं होता। फिर भी लोहे के पहियों की जगह रबड़ के टायर और ट्यूबों का इस्तेमाल होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों है?

सड़कें ऊबड़-खाबड़ होती हैं। सड़कों में कहीं गड्ढा हो सकता है और कहीं उनमें कूबड़ जैसा उभार हो सकता है। रबड़ के टायर हल्के होते हैं, तेज गति से दौड़ते हैं पर उससे भी बड़ी बात यह है कि वे स्वयं को सड़क की बनावट के अनुरूप ढालने में सक्षम हैं। यदि सड़क पर कूबड़-सा उभार आ जाये तो रबड़ के टायर अंदर को दब जाते हैं और यदि कहीं गड्ढा आ जाए तो उसमें भी समा जाते हैं। लचीलेपन के इस गुण के कारण ही रबड़ के टायर लोहे के मजबूत पहियों से बेहतर माने जाते हैं क्योंकि लोहे के टायर मजबूत ही नहीं कठोर भी होते हैं। रबड़ के टायर-ट्यूब अपने लचीलेपन के गुण के कारण “शॉक एब्जॉर्बर” का काम भी करते हैं जबकि लोहे के पहियों की कठोरता के कारण सड़क के झटकों का प्रभाव और भी बढ़ जाता है।

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जीवन सांप-सीढ़ी का खेल है। जीवन में उतार-चढ़ाव आम बात है। जीवन की सड़क भी ऊबड़-खाबड़ ही है। लचीले रुख वाले लोग बहुत बार छोटे-छोटे नुकसान तो उठाते हैं पर कड़े रुख वाले लोग अक्सर ज्यादा आगे तक नहीं जा पाते या उन्हें आगे बढऩे में काफी ज्यादा समय लग जाता है। यही कारण है कि सोच-समझ कर कदम उठाने वाले जीवन का पूरा आनंद उठाते हैं और बिना सोचे-समझे फटाफट कुछ भी कर गुजरने वाले लोग अक्सर बाद में पछताते हैं।

कार, बस, ट्रक आदि हर बड़े वाहन में रिवर्स गियर भी अवश्य होता है। रिवर्स गियर के बिना गाड़ी का हर बार आगे बढ़ना संभव नहीं होता। मान लीजिए कि आपने गाड़ी कहीं पार्क कर दी तो बाद में गाड़ी निकालने के लिए आपको रिवर्स गियर लगाना पड़ सकता है। सड़कों पर भी कई बार हमें रिवर्स गियर का प्रयोग करना पड़ जाता है। क्या उससे हमारी शान घटती है? पार्किंग से गाड़ी बाहर निकालने के लिए हम रिवर्स गियर न लगाएं तो वहीं के वहीं खड़े रह जाएंगे जबकि थोड़ी देर के लिए रिवर्स गियर लगाकर पीछे हटने के बाद हम तेजी से अपने गंतव्य की ओर बढ़ जाते हैं। जीवन में भी यही सब होता है। हर बात को नाक का सवाल बना कर अड़ने वाले लोग कभी लोकप्रिय नहीं हो पाते जबकि आवश्यकता होने पर थोड़ा-सा लचीलापन दिखाने वाले लोग बड़े लाभ उठा ले जाते हैं।

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शराब पीना सिर्फ इसलिए बुरा नहीं माना जाता कि इससे नशा हो जाता है बल्कि शराब इसलिए भी बुरी है कि शराबी के लिए धीरे-धीरे शराब की हर मिकदार कम पड़ती जाती है। धीरे-धीरे शराब उसकी कमजोरी बन जाती है। फिर यह इस हद तक उसके लिए आवश्यक हो जाती है कि शराब पाने के लिए वह अपने रुतबे और अपनी इज्जत का ध्यान किये बिना कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। इसी तरह लचीलापन भी एक ऐसी आदत है जिसे यदि नियंत्रण में न रखा जाए तो यह हर सीमा पार कर जाता है और बजाए आपका गुण बनने के, आपकी कमजोरी बन कर रह जाता है। अत: यह ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है कि लचीलापन आपकी कमजोरी न बन जाए। यदि आपको कभी भी ऐसा लगे कि आपके लचीलेपन के कारण लोग आपका नाजायज फायदा लेने लगे हैं तो तुरंत खुद को सुधारिए और लोगों के साथ दृढ़ता से पेश आइए। याद रखिए, दृढ़ता और अड़ियलपन के बीच एक महीन रेखा है परंतु यह रेखा न केवल है बल्कि लगातार आत्मनिरीक्षण से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है।

अति हर चीज की बुरी है। अड़ियलपन और कड़ियलपन तभी तक जायज है, जब तक वह कैद न बन जाए। इसी तरह छूट की भी एक सीमा होनी चाहिए। सीमा से बाहर का काम सदैव हानिकारक होता है। याद रखिए, कार में रिवर्स गियर होता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर हम उसका प्रयोग कर सकें पर रिवर्स गियर का मतलब यह नहीं है कि हम उल्टे ही उल्टे चलते रहें और आगे बढ़ें ही नहीं। रिवर्स गियर वहीं तक लाभदायक है जब तक वह हमें आगे बढऩे के लिए साफ रास्ते पर नहीं पहुंचा देता। उसके बाद भी रिवर्स गियर का प्रयोग सिर्फ अनाड़ीपन है। परंतु यह भी सच है कि रिवर्स गियर के बिना न गाड़ी चलती है न जिंदगी।

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पी. के. खुराना दो दशक तक इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और दिव्य हिमाचल आदि विभिन्न मीडिया घरानों में वरिष्ठ पदों पर रहे। एक नामचीन जनसंपर्क सलाहकार, राजनीतिक रणनीतिकार एवं मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ-साथ वे स्तंभकार भी हैं और लगभग हर विषय पर कलम चलाते हैं।

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