Anil Mishra : ”कल्लूरी मुद्दा नहीं है। पत्रकारों की लड़ाई बहुत बड़ी है।” कमल शुक्ला का भूख हड़ताल तुड़वाने पहुंचे दो वरिष्ठ पत्रकारों की समझाईश काम आई और कल्लूरी के लिए जान देने पर आमादा कमल ने जूस पीकर अनशन तोड़ दिया। जब चर्चा चल रही थी तभी मैं पहुंचा। मुख्यमंत्री के सलाहकार वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा और रुचिर गर्ग से हुई चर्चा के मुख्य बिंदु बताता हूँ।
कल्लूरी जब पुलिस ट्रेनिंग में था तब वह रोज 10 कल्लूरी बना रहा था। अब वहां है जहां उसका पत्रकारों या आदिवासियों में कोई दखल नहीं है। अफसर है तो कहीं न कहीं तो होगा ही। अभी वह एडीजी रैंक का अफसर है। एसीबी में जिस पद पर उसे बिठाया गया है वह डीआईजी रैंक का पद है। तो सरकार ने प्रमोट कहाँ किया है। फिर भी उसे हटाना है तो बस्तर के सभी साथी आ जाएं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से चर्चा करें। समाधान निकाला जाएगा। उसके लिए आमरण अनशन की क्या जरूरत। लड़ाई बड़ी है।
दूसरा। सरकार ने आते ही पत्रकार सुरक्षा कानून पर काम शुरू किया है। मीडिया सरकार की गलतियां उजागर करे। हम सरकार की ओर होकर भी आपके साथ रहेंगे। वादा है।
तीसरा। जेलों में फर्जी मामलों में बन्द आदिवासियों की रिहाई का रास्ता खोलना है। आप लोगों की मदद उस बड़ी लड़ाई में चाहिए। आदिवासियों के वनाधिकार समेत दूसरे मुद्दे भी हैं। यकीन रखो। सरकार इन मसलों पर संवेदनशील है।
निर्णय। कमल शुक्ला ने अनशन तोड़ा पर कल्लूरी के खिलाफ लड़ाई जारी रहेगी। बस्तर पर रिपार्टिंग करने वाले सभी साथी सीएम से मिलेंगे। कल्लूरी के खिलाफ जो आपराधिक मामले पिछली सरकार ने दबाए थे उन्हें फिर से उजागर कर उसपर एफआईआर दर्ज कराने की मांग की जाएगी। लोकतांत्रिक विरोध के दूसरे तरीक़े अपनाए जाएंगे। जब कोई तरीका काम नहीं आएगा तब फिर से अनशन होगा। इस बार न हो तो बेहतर होगा। हुआ तो रुचिर भैया भी नहीं उठा पाएंगे। फिलहाल आंदोलन स्थगित हुआ है। बन्द नहीं। इंकलाब जिंदाबाद।।
रायपुर के पत्रकार अनिल मिश्रा की एफबी वॉल से.