Connect with us

Hi, what are you looking for?

राज्य

कानपुर ‘लाल इमली महाघोटाले’ पर हाईकोर्ट के रुख से वस्त्र मंत्रालय हिला

कानपुर (उ.प्र.) : वस्त्र मंत्रालय (भारत सरकार) के अधीन बीआईसी कानपुर (उ.प्र.) के पुनरुद्धार में हुए लगभग हजार करोड़ के भूखंडीय महाघोटाले ने लाल इमली के लगभग ढाई हजार अधिकारियों, कर्मचारियों की रोजी रोटी पर ऐसी डाकाजनी की है कि उनकी कमर ही टूट गई है। बताते हैं कि हाईकोर्ट के फैसलों के बावजूद इतना बड़ा घोटाला आजतक कानपुर से दिल्ली तक सुर्खियों में न आ पाने की खास वजह है, पर्दे के पीछे इस खेल में एक बड़े मीडिया घराने का मुख्य रूप से संलिप्त होना। सूत्रों के मुताबिक इस मामले पर कोई ठोस कदम उठाने के लिए हाल में ही 8 मई 2015 को दिल्ली में पीएमओ में संयुक्त सचिव स्तर की बैठक में बीआईसी के एमडी श्रीनिवासन पिल्लई के स्थान पर निर्मल सिह्ना को लाये जाने का निर्णय लेना पड़ा है। मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी विचाराधीन है। इस समय सारी हड़बड़ी इसलिए है कि हाईकोर्ट की जवाब तलबी की पूर्व निर्धारित समय सीमा भी पार हो चुकी है।

कानपुर (उ.प्र.) : वस्त्र मंत्रालय (भारत सरकार) के अधीन बीआईसी कानपुर (उ.प्र.) के पुनरुद्धार में हुए लगभग हजार करोड़ के भूखंडीय महाघोटाले ने लाल इमली के लगभग ढाई हजार अधिकारियों, कर्मचारियों की रोजी रोटी पर ऐसी डाकाजनी की है कि उनकी कमर ही टूट गई है। बताते हैं कि हाईकोर्ट के फैसलों के बावजूद इतना बड़ा घोटाला आजतक कानपुर से दिल्ली तक सुर्खियों में न आ पाने की खास वजह है, पर्दे के पीछे इस खेल में एक बड़े मीडिया घराने का मुख्य रूप से संलिप्त होना। सूत्रों के मुताबिक इस मामले पर कोई ठोस कदम उठाने के लिए हाल में ही 8 मई 2015 को दिल्ली में पीएमओ में संयुक्त सचिव स्तर की बैठक में बीआईसी के एमडी श्रीनिवासन पिल्लई के स्थान पर निर्मल सिह्ना को लाये जाने का निर्णय लेना पड़ा है। मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी विचाराधीन है। इस समय सारी हड़बड़ी इसलिए है कि हाईकोर्ट की जवाब तलबी की पूर्व निर्धारित समय सीमा भी पार हो चुकी है।

गौरतल है कि बीआईसी की लाल इमली और धारीवाल मिलें कभी देश की शीर्ष वूलेन कंपनियां हुआ करती थीं। उतार-चढ़ाव के बीच वर्ष 2003 में बीआईएफआर ने बीआईसी के पुनरुद्धार के लिए इसकी संपत्ति बेचने की अनुमति दे दी थी। उसके बाद करीब 25 बंगलों के लिए निविदा आमंत्रित की गई। प्राइस वाटर हॉउस कूपर्स नई दिल्ली को सेल कंसलटेंट बनाया गया। इन्हें टेंडर प्रक्रिया पूरी करनी थी। बताया जाता है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग के सारे नियम ताक पर रखकर टेंडर हुए। बीआईसी अफसरों से मिलीभगत कर डिफेक्टिव टेंडर पास कर दिया गया। यही से लाल इमली की बहुमूल्य संपत्ति में घोटाले का सिलसिला शुरू हुआ। अधिकारियों ने अरबों की संपत्ति अपने चहेते बिल्डरों को कौड़ियों के भाव दे दी। लैंड यूज को गलत दर्शा कर टेंडर न डालने के लिए इच्छुक व्यक्तियों/उद्योगपतियों को ऐसा भ्रमित किया गया कि उन्होंने इस टेंडर में भाग न लेने में ही अपनी भलाई समझी। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

बिल्डरों की साठगांठ से टेंडर प्रक्रिया के दौरान खेल ये किया गया कि छह बंगलों का भू-प्रयोग, जो नजूल विभाग एवं कानपुर विकास प्राधिकरण के मास्टर प्लान में आवासीय नहीं, उसे बीसीआई अफसरों ने कागजों में आवासीय दिखाने की कूट रचना की। प्राधिकरण द्वारा इस भू-प्रयोग में शो रूम, मल्टीप्लेक्स, नर्सिंग होम, होटल, रेस्टोरेंट आदि कॉमर्शियल भवन अनुमन्य हैं। चूंकि हर बंगले की निविदा के साथ आवेदनकर्ताओं को 25 से 40 लाख रुपए तक बीआईसी के पास अग्रिम जमा करना था, इसलिए अन्य आवेदन कर्ताओं ने किनारा कर लिया। इसी प्रायोजित मौके का फायदा उठाते हुए बीसीआई अधिकारियों ने सिंगल टेंडर में ही अपने चहेते भूमाफिया को ये बंगले एलॉट कर दिए। 

वस्त्र मंत्रालय भारत सरकार को प्रेषित पत्र में कानपुर निवासी डॉ. शक्ति भार्गव ने बताया है कि अप्रैल 2004 के इस महाघोटाले में बीआईसी क्लब को भी आवासीय दिखाकर नीलाम कर दिया गया। इसी तरह क्लॉक टॉवर को भी सिंगल टेंडर में आवासीय दर्शाकर अधिकारियों ने बेच डाला, जबकि ये गोदाम है। साथ ही, ये दोनो संपत्तिया मास्टर प्लान में आवासीय नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि नियमतः अनावासीय संपत्ति का मूल्यांकन सर्किल रेट का 15 प्रतिशत होता है और आवासीय संपत्ति का शत-प्रतिशत होता है। बिल्डरों के साथ खेल खेलते हुए इन बंगलों का मूल्यांकन आवासीय दर से किया गया। इसके बाद वर्ष 2004 में ही एसेट सेल कमेटी ने इस महा घोटाले का सारा दोष प्राइस वाटर हॉउस कूपर्स नई दिल्ली पर डाल कर अपना गला बचा लिया। इसके बाद 30 मई 2005 को कमेटी ने इन संपत्तियों का टेंडर निरस्त करने का निर्णय ले लिया। 14 जुलाई 05 को कमेटी ने इस पर अंतिम मुहर लगा दी। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

वर्ष 2006 में भूमाफिया बिना कोई अतिरिक्त भुगतान किए रजिस्टर्ड सेल एग्रीमेंट कराकर इन बंगलों के आधे मालिक बन गए। कैग (CAG) ने इन संपत्तियों के सेल में नीयत पर सवाल उठाते हुए भारी अनियमितता का बीसीआई अधिकारियों पर आरोप लगाया और बार बार शिकायत की गई, लेकिन इसके बावजूद वस्त्र मंत्रालय रहस्यमय ढंग से इस पर चुप्पी साधे हुए है। बताया जाता है कि इन छह बंगलों के खरीदार और वस्त्र मंत्रालय के कुछ अधिकारी अब तक इन संपत्तियों का निरस्तीकरण रोके हुए हैं। उन्हें रजिस्ट्री कराने के उपयुक्त मौके का इंतजार है। यह अपनी तरह का एक और बड़ा घोटाला हो सकता है।      

बताया जाता है कि अनुमानित तौर पर वर्तमान में इन अनावासीय एवं विवादित सवा लाख मीटर के छह भूखंडों की कीमत लगभग 99 हजार रुपए वर्ग मीटर के हिसाब से लगभग एक हजार करोड़ रुपए से अधिक हो सकती है। वर्ष 2014 में पीएमओ स्तर से भी इस पूरे मामले की छानबीन में पाया गया था कि घोटाला हुआ है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.

उस समय कुल 25 बंगलों के लिए टेंडर निकाला गया था, जिनमें दो समय से नियमपूर्वक फ्री होल्ड हो गए। शेष 23 बंगलों में से 17 अन्य आवंटन भी सही रहे लेकिन छह को विवादित पाया गया। इस साल जनवरी 2015 में वे 17 लोग मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गए। उनका कहना था कि हमे फ्री होल्ड क्यों नहीं किया जा रहा है? 19 जनवरी 2015 को हाईकोर्ट ने कहा कि जब इसी मामले पर कैग ने सितंबर 2012 में पार्लियामेंट को यह बताते हुए अपनी रिपोर्ट दे दी थी कि इस मामले में बीआईसी ने गंभीर अनियमता कर सरकारी खजाने को चोट पहुंचाई है, इसके बावजूद दो-ढाई वर्ष से वस्त्र मंत्रालय ने इस पर क्यों कोई कदम नहीं उठाया है। हाईकोर्ट की मंशा को भांपते हुए फिलहाल वस्त्र मंत्रालय दिल्ली की ज्वॉइंट सेक्रेटरी पुष्पा सुब्रह्मण्यम को बदला जा चुका है, क्योंकि उनके पति आर.सुब्रह्मण्यम वर्ष 2003 में बंगलों के टेंडर के दौरान वस्त्र मंत्रालय में बीआईसी के इंचार्ज-डाइरेक्टर थे।    

हाईकोर्ट ने वस्त्र मंत्रालय से 16 फरवरी 15 तक इस मामले पर जवाब तलब कर लिया। फरवरी 2015 में हाईकोर्ट ने साफ साफ कहा कि केंद्र सरकार इस मामले में अपने पांव घसीट रही है। वस्त्र मंत्रालय की रहस्यमय शिथिलता पर नाखुशी जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि दिसंबर 2014 में जो पीएमओ स्तर से इंक्वायरी कमेटी की जांच रिपोर्ट आई है, उसमें भी शिकायत उचित पाई गई है। इसके बाद भी मंत्रालय खामोश है। वस्त्र मंत्रालय सचिव का हलफनामा मांगते हुए हाईकोर्ट ने अब जवाब तलब किया है कि कब तक इस मामले का पटाक्षेप कर दिया जाएगा। वस्त्र मंत्रालय की ओर से दो माह में प्रकरण समाप्त करने का हाई कोर्ट को आश्वासन दिया गया है, लेकिन वायदे के मुताबिक आज लगभग ढाई माह गुजर जाने के बावजूद मामला जहां का तहां है। इस मामले को लेकर इस समय वस्त्र मंत्रालय में अंदरूनी तौर पर बड़े असमंजस की स्थिति है क्योंकि इसमें कई आला अधिकारियों का गला फंस सकता है। दूसरी तरफ मंत्रालय में बैठे जिम्मेदारों पर भूमाफिया-बिल्डरों के तरफदार मीडिया घराने का दबाव मामले को और पेंचीदा बनाए हुए है। 

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement